लंका विजय | Lanka Vijay | Bal Ram Katha

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लंका विजय Lanka Vijay Bal Ram Katha लंका विजय पाठ, रामायण का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो भगवान राम द्वारा रावण पर विजय और देवी सीता की मुक्ति का

लंका विजय | Lanka Vijay | Bal Ram Katha


लंका विजय पाठ, रामायण का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो भगवान राम द्वारा रावण पर विजय और देवी सीता की मुक्ति का वर्णन करता है। यह पाठ बाल राम कथा का भी हिस्सा है, जिसे अक्सर स्कूलों में पढ़ाया जाता है।

लंका विजय पाठ का सारांश

लंका कूच की तैयारियाँ रात भर चलती रहीं। सभी तत्पर। सभी उद्यत। सुग्रीव ने वानरों को संबोधित किया, "युद्ध भयानक होगा। इसमें केवल वही सैनिक जाएँगे जो शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ हों। जो दुर्बल हैं, यहीं रुक जाएँ।" वानर सेना को युद्ध के नियम बताए गए। रक्षा और आक्रमण के तरीके।
 
सेना किष्किंधा से दहाड़ती, गरजती, किलकारियाँ भरती रवाना हुई। इसका नेतृत्व नल कर रहे थे। सुग्रीव के सेनापति । जामवंत और हनुमान सबसे पीछे थे। यह सेना की रणनीति का हिस्सा था।
 
उधर लंका में खलबली मची हुई थी। राक्षसों में बेचैनी थी। उनके मन में डर बैठ गया था। राम की शक्ति को लेकर ।ये चर्चाएँ विभीषण ने सुनीं। वे रावण के पास गए। उसे सही स्थिति बताने । उन्होंने कहा, "आप सीता को लौटा दें। सबका कल्याण इसी में है। सीता मिल जाएगी तो वे आक्रमण नहीं करेंगे। सीता आपके गले में बंधा साँप है। वह आपको डस लेगा। इसे छोटी बात मत समझिए, लंकाधिराज। ये संकेत महाविनाश के हैं। मैं अब भी कहता हूँ, सीता को लौटा दीजिए। लंका बच जाएगी। 

रावण का क्रोध भड़क उठा। कहा, "निकल जाओ यहाँ से। मुझे तुम्हारा साथ नहीं चाहिए।" विभीषण ने राम के पास जाना ठीक समझा। वानरों ने उन्हें सुग्रीव के सामने पेश किया।
 
लंका विजय | Lanka Vijay | Bal Ram Katha
"वानरराज! मैं लंका के राजा रावण का छोटा भाई हूँ। मैं राम की शरण में आया हूँ। आप मुझे उनके पास पहुँचा दें। मेरा नाम विभीषण है। रावण ने मुझे लंका से निकाल दिया। मैंने उससे सीता को लौटाने की बात कही थी। एक बार राम से मिलवा दें। मैं उनसे कुछ कहना चाहता हूँ।" राम ने बात सुनी और कहा, "हमें विभीषण को स्वीकार करना चाहिए। मैं शरण में आए व्यक्ति को कभी निराश नहीं करता। यह स्वीकार करना चा मेरी नीति है। विभीषण को आदर से अंदर लाइये।" विभीषण राम के पास पहुँचे। बताया, “रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए बल और बुद्धि दोनों की आवश्यकता है।” “विभीषण! तुम चिंता मत करो। राक्षस मारे जाएँगे। लंका की राजगद्दी तुम्हारी होगी। भविष्य तुम्हारा है," राम ने कहा। राम की सेना के सामने एक बड़ी चुनौती थी समुद्र। उसे कैसे पार करें? नल ने अगले दिन काम आरंभ कर दिया। पुल बनने लगा। पाँच दिन में पुल तैयार हो गया। सबसे पहले विभीषण पुल से उस पार गए। पीछे-पीछे वानर सेना। अब दोनों सेनाएँ समुद्र के एक ही ओर थीं। राम ने अपनी सेना को चार भागों में विभक्त कर दिया। लंका के चार द्वार थे। चौतरफा आक्रमण होना था। हर टुकड़ी को एक द्वार सौंपा गया। सूर्योदय होते ही राम ने आदेश दिया, "लंका को चारों तरफ से घेर लिया जाए।" इसी बीच राम ने अंगद को बुलाया। कहा, "तुम लंका जाओ। मेरे दूत बनकर । सुलह का अन्तिम प्रयास करो। ताकि युद्ध टल जाए। रावण से कहो कि सीता को लौटा दे। अन्यथा उसका अंत होगा।" अंगद ने ऐसा ही किया। पर रावण नहीं माना।
 
उधर, रावण के आदेश पर उसकी सेना निकल पड़ी। भयानक युद्ध हुआ। हर ओर दहला देने वाला शोर। हाथियों की चिंघाड़ । घोड़ों की हिनहिनाहट । रथों की सरसराहट । कोलाहल। रावण के अनेक पराक्रमी राक्षस ढेर हो गए। धरती लाल हो गयी। मेघनाद ने राक्षस सेना को पीछे हटते देखा। "आगे बढो। हम विजय के करीब हैं।" वह मायावी था। उसके बाण राम और लक्ष्मण को लगे। दोनों वहीं मूच्छित होकर गिर पड़े। उसने दोनों भाइयों को मृत समझ लिया। धूम्राक्ष मारा गया। वज्रद्रष्ट धरती पर गिर पड़ा। अकंपन कुचल कर मारा गया। प्रहस्त को नील ने ध्वस्त कर दिया। वह घबरा गया। वह हड़बड़ाकर उठा और स्वयं कमान संभाल ली। लेकिन राम के बाणों ने उसका मुकुट धरती पर गिरा दिया। वह लज्जित होकर लौट गया। कुंभकर्ण दुर्ग से बाहर आया। उसने हनुमान और अंगद को घायल कर दिया। दोनों भाइयों ने बाणों की वर्षा कर उसे मार दिया। कुंभकर्ण रणभूमि के अंक में सो गया। सदा के लिए। रावण निराश हो गया। मेघनाद ने रावण को सहारा दिया, "मेरे रहते आप क्यों चिंता करते हैं?" मेघनाद और लक्ष्मण का भीषण युद्ध हुआ। अचानक लक्ष्मण का एक बाण उसे लगा। वह घायल हो गया। झुक गया। लक्ष्मण ने ताबड़तोड़ बाणों की बरसात की। मेघनाद पीछे मुड़ा। महल की ओर भागा। मेघनाद महल में ही मारा गया। अपने ज्येष्ठ पुत्र की मृत्यु से रावण एकदम टूट गया। हनुमान ने निकुंभ, देवांतक और त्रिशिरा को मौत की नींद सुला दिया। अंगद ने नरांतक का काम तमाम कर दिया। लक्ष्मण ने अतिकाय का सिर काट डाला। राक्षस सेना भाग खड़ी हुई। 

रावण के पास अब कोई विकल्प नहीं था। युद्धनाद हुआ। अकेला बचा रावण युद्ध के लिए निकला। विभीषण को राम की सेना में देख रावण उबल पड़ा। उसके लिए यह देशद्रोह था। छोटे भाई का विश्वासघात। रावण का बाण लगते ही लक्ष्मण अचेत हो गए। गिर पड़े। उधर, हनुमान लक्ष्मण को उठाकर रणक्षेत्र से दूर ले गए। वैद्य सुषेण को बुलाया। हनुमान संजीवनी बूटी लाए। सुग्रीव ने लक्ष्मण के स्वस्थ होने की सूचना राम तक पहुँचाई। वे सिंह की भांति रावण पर टूट पड़े। राम-रावण युद्ध भयानक था। कुछ ही देर में लगा कि युद्ध समाप्त होने को है। दोनों पक्ष के योद्धा हाथ बाँध कर खड़े हो गए। रावण का एक बाण राम को लगा। उनके रथ की ध्वजा कटकर गिर पड़ी। राम ने प्रहार किया। बाण रावण के मस्तक में लगा। रक्त की धारा बह निकली। बीच में युद्ध कुछ पल के लिए रुका। रावण अपने महल चला गया। युद्ध फिर शुरू हुआ। राम के बाणों ने रावण के रथ का मुँह मोड़ दिया। यह पराजय का संकेत था। रथ मुड़ा। लेकिन रावण के हाथ से धनुष छूट गया। वह पृथ्वी पर गिर पड़ा। मारा गया। बची हुई राक्षस सेना हड़बड़ा गई। जान बचाकर भागी। लंका विजय अभियान पूरा हुआ। राम की जयकार होने लगी। वानर सेना उछल-कूद करने लगी। समुद्र से ठंडी हवा आ रही थी। रणक्षेत्र में केवल एक व्यक्ति दुःखी था। अपने भाई के मृत शरीर के पास खड़ा। राम ने विभीषण को समझाया, "मित्र, शोक मत करो। रावण महान योद्धा था। उसकी अंत्येष्टि महानता के अनुरूप होनी चाहिए। मृत्यु सत्य है। उसे स्वीकार करो।" राम ने सुग्रीव को गले लगा लिया।
 
लक्ष्मण से विभीषण ने राज्याभिषेक की तैयारी करने को कहा। उसने हनुमान को बुलाया। अशोक वाटिका जाने का निर्देश दिया। "यह संदेश आपको ही सीता तक पहुँचाना है। उन्हें लंका विजय का समाचार दीजिए। उनको संदेश देकर शीघ्र आइये। " लक्ष्मण विभीषण के पास गए। सोने का चमचमाता हुआ सिंहासन। रत्नों-मणियों जड़ित । "माता सीता लंका विजय का समाचार सुनकर खुश हुईं। वे आपसे मिलने के लिए अधीर हैं," हनुमान ने कहा। तब तक विभीषण वहीं आ गए थे। राम उनकी ओर मुड़े। कहा, “लंकापति, सीता अब भी आपकी अशोक वाटिका में हैं। उन्हें यहाँ लाने की व्यवस्था की जाए।" हनुमान को छोड़कर किसी ने सीता को नहीं देखा था। सीता आईं तो सबको अपनी कल्पनाओं से ऊपर लगीं। सुंदर, सौम्य, शांत। उस सुंदरता में एक वर्ष बाद पति से मिलन की प्रसन्नता शामिल थी।

लंका विजय पाठ के प्रश्न उत्तर

प्रश्न. सुग्रीव ने वानरों से युद्ध के बारे में क्या कहा? 
उत्तर- सुग्रीव ने वानरों से युद्ध के बारे में कहा, "युद्ध भयानक होगा। इसमें केवल वही सैनिक जाएँगे जो शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ हों। जो दुर्बल हैं, यहीं रुक जाएँ।'
 
प्रश्न. लंका के राक्षसों में क्या बेचैनी फैली हुई थी? 
उत्तर-लंका के राक्षसों में बेचैनी फैली हुई थी। उनके मन में डर बैठ गया था। राम की शक्ति को लेकर। जिसका दूत लंका में आग लगा सकता है, वह स्वयं कितना शक्तिशाली होगा। नगर में चर्चा का विषय यही था।
 
प्रश्न. विभीषण ने रावण से क्या कहा? 
उत्तर-विभीषण ने रावण से कहा, "आप सीता को लौटा दें। सबका कल्याण इसी में है। सीता मिल जाएँगी तो वे आक्रमण नहीं करेंगे। सीता आपके गले में बँधा साँप है। वह आपको डस लेगा। इसे छोटी बात मत समझिए, लंकाधिराज ! ये संकेत महाविनाश के हैं। मैं अब भी कहता हूँ, सीता को लौटा दीजिए। लंका बच जाएगी।"
 
प्रश्न. विभीषण ने सुग्रीव से क्या कहा? 
उत्तर- विभीषण ने सुग्रीव से कहा, "वानरराज! मैं लंका के राजा रावण का छोटा भाई हूँ। मैं राम की शरण में आया हूँ। आप मुझे उनके पास पहुँचा दें। मेरा नाम विभीषण है। रावण ने मुझे लंका से निकाल दिया। मैंने उससे सीता को लौटाने की बात कही थी। क्रोध और अहंकार में चूर रावण ने मुझे सभा में अपमानित किया। मैं प्राण बचाकर आया हूँ। एक बार राम से मिलवा दें। मैं उनसे कुछ कहना चाहता हूँ।"
 
प्रश्न. राम ने सुग्रीव से विभीषण के लिए क्या कहा? 
उत्तर- "हमें विभीषण को स्वीकार करना चाहिए। मैं शरण में आए व्यक्ति को कभी निराश नहीं करता। यह मेरी नीति है। विभीषण को आदर से अंदर लाइए।"
 
प्रश्न. राम ने विभीषण को क्या आश्वासन दिया? 
उत्तर- "विभीषण! तुम चिंता मत करो। राक्षस मारे जाएँगे। लंका की राजगद्दी तुम्हारी होगी। भविष्य तुम्हारा है," राम ने कहा।
 
प्रश्न. राम ने अंगद से क्या कहा? 
उत्तर-राम ने अंगद को बुलाया। कहा, “तुम लंका जाओ। मेरे दूत बनकर सुलह का अंतिम प्रयास करो। ताकि युद्ध टल जाए। रावण से कहो कि सीता को लौटा दे। अन्यथा उसका अंत होगा।"
 
प्रश्न. लक्ष्मण को अचेत देखकर राम ने रावण से क्या कहा? 
उत्तर- "रावण! काल तुझे मेरे सामने ले आया है। आज अन्याय पर न्याय की विजय होगी। तेरा अंत निश्चित है।" 

प्रश्न. राम-रावण युद्ध का दृश्य अपने शब्दों में लिखिए। 
उत्तर-राम-रावण युद्ध भयानक था। शस्त्रों की गति से कँपा देने वाली ध्वनियाँ निकल रही थीं। हवा थम गई थी। सूरज बादलों के पीछे छिप गया था। शस्त्रों की चमक बिजली की तरह कौंध रही थी। गड़गड़ाहट थी। थर्रा देने वाली। दोनों योद्धा अपनी पूरी शक्ति से लड़ रहे थे। कोई एक रत्ती भी पीछे खिसकने को तैयार नहीं। सबकी नजरें राम और रावण पर थीं। सबकी आँखें फटी रह गईं। पलकें झपकना भूल गईं। उन्होंने ऐसा युद्ध पहले कभी नहीं देखा था। रावण का एक बाण राम को लगा । उनके रथ की ध्वजा कटकर गिर पड़ी। राम ने प्रहार किया। बाण रावण के मस्तक में लगा। रक्त की धारा बह निकली। बीच में युद्ध कुछ पल के लिए रुका। रावण अपने महल चला गया। घोड़े और रथ बदलने। युद्ध फिर शुरू हुआ। राम के बाणों ने रावण के रथ का मुँह मोड़ दिया। यह पराजय का संकेत था। रावण हिम्मत हारने लगा। जब तक वह रथ घुमाता, राम का एक बाण उसके पार निकल गया। रथ मुड़ा। लेकिन रावण के हाथ से धनुष छूट गया। वह पृथ्वी पर गिर पड़ा। मारा गया। 

प्रश्न . रावण की मृत्यु से दुखी विभीषण को राम ने कैसे समझाया? 
उत्तर- राम ने विभीषण को समझाया, "मित्र, शोक मत करो। रावण महान योद्धा था। उसकी अंत्येष्टि महानता के अनुरूप होनी चाहिए। मृत्यु सत्य है। उसे स्वीकार करो।"
 
प्रश्न. लंका विजय के पश्चात् राम ने हनुमान को बुलाकर क्या कहा? 
उत्तर-लंका विजय के पश्चात् राम ने हनुमान को बुलाकर कहा, "यह संदेश आपको ही सीता तक पहुँचाना है। उन्हें लंका विजय का समाचार दीजिए। उनका संदेश लेकर शीघ्र आइए।
 
प्रश्न . माता सीता ने हनुमान के हाथ राम के लिए क्या संदेश भेजा ? 
उत्तर- "माता सीता लंका विजय का समाचार सुनकर प्रसन्न हुईं। वे आपसे मिलने के लिए अधीर हैं।"
 
प्रश्न. राम ने विभीषण से क्या कहा?
उत्तर-"लंकापति, सीता अब भी आपकी अशोक वाटिका में हैं। उन्हें यहाँ लाने की व्यवस्था की जाए।" 


लंका विजय पाठ के कठिन शब्दार्थ

रवाना हुई = प्रस्थान किया
कोलाहल =  शोर 
अनभिज्ञ = अनजान। 
पराजय = हार। 
शुभचिंतक = शुभ (मंगल) चाहने वाले। 
विस्मय = हैरानी। 
चौतरफा= चारों तरफ से 
वैभव =  समृद्धि। 
विकल्प = दूसरा रास्ता (चुनाव)।
ध्वस्त करना = मार देना। 
शस्त्रागार = जहाँ शस्त्र रखे जाते हैं। 
तुमुलनाद = हर्षयुक्त ध्वनि। 
अंत्येष्टि = मरने के उपरान्त करने वाले क्रियाकर्म। 

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