डलकू की ट्रेन यात्रा | हिन्दी लघु कथा

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डलकू की ट्रेन यात्रा हिन्दी लघु कथा डलकू शाम के समय आकाश को निहार रहा था। सूरज की लालिमा अपनी छटा बिखेर रही थी। डलकू को पहाड़ों की याद आ गई, कैसे सांध

डलकू की ट्रेन यात्रा


लकू शाम के समय आकाश को निहार रहा था। सूरज की लालिमा अपनी छटा बिखेर रही थी। डलकू को पहाड़ों की याद आ गई, कैसे सांध्य बेला में पहाड़ सूरज की लालिमा से ढक कर स्वर्ग के स्वर्ण पर्वतों की तरह लगते हैं। डलकू को अवाहदेवी, कमलाह, मुराह के पहाड़ों की याद आ गई जैसे मानों वे उसकी आँखों के सामने खड़े हों। एक सप्ताह बाद डलकू सात महीने बाद छुट्टी मिलने पर अपने घर जा रहा है। विशाखापट्टनम रेलवे स्टेशन पर डलकू समता एक्सप्रेस में चढ़ जाता है। थोड़ी देर बाद ट्रेन चलने लगती है। आधे घंटे बाद ट्रेन शहर को छोड़ ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवेश करती है। खेतों की मेड़ों पर एक पंक्ति में लगे नारियल के पेड़ बहुत सुंदर दिखाई पड़ रहे हैं। पहाड़ों में चीड़ और देवदार के पेड़, तो तटीय इलाकों में नारियल के पेड़ सुंदरता में चार चांद लगाते हैं। जल्दी ही ट्रेन पूर्वी घाट के पर्वतों में प्रवेश करती है। घने जंगलों से ढके पर्वतों में बह रहे छोटे - छोटे नाले प्राकृतिक मनोरमा को बढ़ा रहे हैं। 

डलकू की ट्रेन यात्रा
पूर्वी घाट का यह क्षेत्र नक्सलवाद से प्रभावित क्षेत्र है। नक्सलवादी हिंसा की घटनाओं को अंजाम दे कर घने जंगलों में छिप जाते हैं। तेलंगाना, छत्तीसगढ़ को पार करती हुई समता एक्सप्रेस मध्यप्रदेश के मैदानी इलाकों में प्रवेश करती है। खेतों में गेहूं की फसल काटी जा चुकी है। मृगयूथ यहां वहां टहल रहे हैं। शाम होते-होते ट्रेन उत्तर प्रदेश पहुंच जाती है। यहां अभी गेहूं की फसल नहीं काटी गई है। गेहूं के साथ सरसों के हरे - भरे खेत लहरा रहे हैं। औरतें और युवतियां भैंसों के लिए घास काट कर ले जा रही हैं। यह मनोरम दृश्य देखकर डलकू को अपने घर की याद आ जाती है। रात के आठ बजे डलकू हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर उतरता है। डलकू को रात के ग्यारह बजे पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से ऊना के लिए हिमाचल एक्सप्रेस पकड़नी है। डलकू औटो में सवार हो जाता है। दिल्ली के औटो वालों का अपना अलग ही टशन है। दिल्ली में औटो की सवारी किसी साहसिक यात्रा से कम नहीं है। दिल्ली में गाड़ियों की छोटी-मोटी टक्कर का बूरा नहीं माना जाता है। औटो वाला हॉर्न बजाने से ज्यादा गालियां देकर लोगों को रास्ते से हटाता है। पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन एक ऐतिहासिक इमारत है। डलकू प्रतीक्षा सूची में अपना नाम ढूंढता है, पर सूची में डलकू को अपना नाम नहीं मिलता। अब डलकू को बिना टिकट रेल यात्रा करनी है। 

डलकू स्लीपर क्लास में चढ़ जाता है। रात के दो बज रहे होते हैं। डलकू बाथरूम के बगल में खड़ा ऊबाईयां ले रहा होता है। तभी दो टिकट चैकर वहां आते हैं। एक टिकट चैकर बोगी में टिकट चैक करने के लिए आगे बढ़ जाता है। टिकट चैकर पैंतालीस - पचास वर्ष का एक दुबला पतला सरदार है। टिकट चैकर डलकू को टिकट दिखाने के लिए कहता है। डलकू कहता है उसके पास टिकट नहीं है। टिकट चैकर डलकू को कहता है - "निकालो पाँच सौ रूपए।" डलकू टिकट चैकर से प्रार्थना करता है कि वह गरीब आदमी है। वह इतने पैसे नहीं दे सकता है। टिकट चैकर-"निकालो चार सौ रूपए।" डलकू दोबारा वही प्रार्थना करता है। ऐसा करते करते डलकू टिकट चैकर को दस रूपए देता है। बाथरूम के बगल में बैठे बैठे डलकू को नींद आ जाती है। सुबह सूरज की किरणों से डलकू की नींद खुलती है। ट्रेन नंगल डैम के ऊपर से गुजर रही होती है। आठ बजे के करीब ट्रेन उना रेलवे स्टेशन पहुंच जाती है। ट्रेन से उतर कर डलकू अपने घर की तरफ चल देता है।


- विनय कुमार 
हमीरपुर , हिमाचल प्रदेश

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