भारतीय विश्वविद्यालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार

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केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति संघीय लोक चयन आयोग और राज्य विश्वविद्यालयों में नियुक्ति राज्य लोक चयन आयोग के माध्यम से होनी चाहिए।

भारतीय विश्वविद्यालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार


हिंदी सिनेमा की फिल्मों के इतिहास पर नजर डालें तो साठ और सत्तर के दशक में नेताओं को भ्रष्ट, अस्सी और नब्बे के दशक में पुलिस को भ्रष्ट, इक्कीसवीं सदी की शुरुआत में न्यायपालिका को भ्रष्ट और वर्तमान समय में सबके साथ फिल्म के नायक को भी भ्रष्ट दिखाया जाता है। हमारे समाज में आज भ्रष्टाचार करना इज्जत की बात है। समाज में जो जितना ज्यादा भ्रष्टाचारी है, वह उतना ही इज्जतदार है। हमारे समाज ने भ्रष्टाचार को आज स्वीकार कर लिया है और भ्रष्टाचारी होना आज इज्जत की बात मानी जाती है। अगर प्रशासनिक सेवा का कोई अधिकारी यह दावा करे कि वह भ्रष्टाचारी नहीं है तो लोग उसे विचित्र नजरों से देखने लगते हैं। देश और समाज का चारित्रिक विकास विश्वविद्यालयों की जिम्मेदारी है। आज देश के विश्वविद्यालय भ्रष्टाचार के सबसे बड़े केंद्र बने हुए हैं। जब शरीर का दिल ही भ्रष्ट है तो शरीर तो भ्रष्ट होगा ही। दिल ही धड़कते-धड़कते भ्रष्टाचार का कंपन पैदा करेगा तो शरीर तो भ्रष्टाचार - भ्रष्टाचार चिल्लाएगा ही। अगर हम समाचार पत्र उठाएं या समाचार सुनने के लिए अपने टेलीविजन को औन करें तो मुख्य खबरें देश के किसी विश्वविद्यालय में हुए भ्रष्टाचार की ही होगी। लेकिन दिल को चोट तब पहुंचती है जब विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार करने वाले व्यक्ति को कठोर सजा देने की बजाए उसके भ्रष्टाचार को सम्मानित करने के लिए राजनीतिक दल उसे किसी बड़ी संस्था का अध्यक्ष या देश की संसद तक का सदस्य बना देते हैं। आज हमारा देश उन्नति और पतन के खतरनाक मोड़ पर खड़ा है। आज हमें अपने व्यक्तिगत हितों को नजरअंदाज करते हुए देश के उत्थान के लिए विश्वविद्यालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए कार्य करना होगा। 
  
भ्रष्टाचार किसी भी देश की जड़ों में दीमक की तरह होता है। वह बिना दिखे धीरे-धीरे जड़ों को खा जाती है और पेड़ को खोखला बना देती है। आरोप भी उन पर नहीं आता और बदनाम दूसरे पहलु होते हैं। शिक्षक राष्ट्रनिर्माता होता है। देश का भविष्य उस पर निर्भर करता है। शिक्षक की गोद में निर्माण और प्रलय दोनों पलते हैं। माता-पिता के बाद सबसे ज्यादा प्रभाव बच्चे पर शिक्षक का ही होता है। वह बच्चे को उंगली पकड़कर चलना सिखाता है। शिक्षक के मार्गदर्शन में छात्र समाज का जिम्मेदार नागरिक बनता है। किसी समाज और संस्कृति का उत्थान और पतन उसके विद्यालयों पर निर्भर करता है। किसी भी देश में विश्विद्यालय शिक्षा जगत के केंद्र होते हैं। शिक्षकों की शिक्षा का बंदोबस्त भी वही करते हैं। विश्वविद्यालय देश और समाज के हृदय होते हैं। इन्ही विश्वविद्यालयों में देश और समाज के भविष्य की पटकथा लिखी जाती है। विश्वविद्यालय समाज का सबसे पवित्र मंदिर होता है। अगर विश्वविद्यालय ही भ्रष्टाचार का केंद्र हो तो उस देश और समाज के पतन को स्वयं भगवान भी नहीं रोक सकते हैं। आज भारत के विश्वविद्यालयों में व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार का बोलबाला है। देश की धीमी प्रगति के लिए हम विश्वविद्यालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार को सबसे ज्यादा दोषी ठहरा सकते हैं।

भ्रष्टाचार वर्तमान में एक नासूर बनकर समाज को खोखला करता जा रहा है। भ्रष्टाचार वह गुनाह है, वक्त के साथ समाज जिसे स्वीकार कर लेता है। धर्म का नाम लेकर लोग अधर्म को बढ़ावा दे रहे हैं। आज दोषी व अपराधी धन के प्रभाव में स्वच्छंद होकर घूम रहे हैं। अधिकांश भ्रष्टाचारी देश की संसद के सदस्य बने बैठे हैं। धन - बल का प्रदर्शन लूटपाट, तस्करी आदि आम बात हो गई है। भ्रष्टाचार का हमारे समाज और राष्ट्र में व्यापक रूप से असर हो रहा है। शिक्षा में भ्रष्टाचार पूरे क्षेत्र में है। यह शैक्षिक नियोजन और प्रबंधन के सभी क्षेत्रों में पाया जा सकता है। जैसे - स्कूल, वित्तपोषण, शिक्षकों की भर्ती, पदोन्नति और नियुक्ति, स्कूलों का निर्माण, उपकरणों और पाठ्यपुस्तकों की आपूर्ति और वितरण, विश्वविद्यालयों में प्रवेश इत्यादि।  भोजपुर जिले के वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय में व्याप्त भ्रष्टाचार व छात्रहितों की समस्या को लेकर छात्र जेडीयू कुंवर वीर सिंह विश्वविद्यालय इकाई द्वारा आमरण अनशन शुरू किया गया था। एमबीए विभाग के शिक्षक कर्मचारी की नियुक्ति की उच्च स्तरीय जाँच व महंत महादेवानंद महिला विश्वविद्यालय में सरकार द्वारा रोक के बावजूद कर्मचारियों का संविदा पर हुई नियुक्ति की जाँच हो। परीक्षा विभाग से नियंत्रित कंप्यूटर सेंटर से परीक्षा फल में गड़बड़ी का मामला, कुंवर सिंह विश्वविद्यालय में गेस्ट फैकल्टी नियुक्ति की जाँच हो। पूर्णिया विश्वविद्यालय में जारी भ्रष्टाचार के खिलाफ पूर्णिया विश्वविद्यालय बचाओ संघर्ष समिति चरणबद्ध आंदोलन चला रही है। बिहार में शिक्षा व्यवस्था पूर्णतया पटरी से उतर गई है। खासकर उच्च शिक्षा संस्थान लूट का केंद्र बन गए हैं। राज्य में कुलाधिपति कार्यालय के संरक्षण में विश्वविद्यालय में व्यापक भ्रष्टाचार किया गया। केंद्र सरकार को चाहिए था कि भ्रष्टाचारी कुलाधिपति को अबिलंब पद से हटाया जाता। 

बिहार के सभी विश्वविद्यालयों के भ्रष्टाचार की जाँच सीबीआई से कराई जानी चाहिए। भ्रष्टाचार की कहानियां जादू टोने के आरोपों की तरह सामाजिक संबंधों, आर्थिक हितों और सत्ता की छिपी संरचनाओं का विश्लेषण करने के लिए एक लेंस प्रदान करती हैं। इस विषय को विकसित करते हुए, मैं विश्वविद्यालयों में धोखाधड़ी की रोकथाम और भ्रष्टाचार विरोध के बारे में बढ़ती चिंताओं के संदर्भ में भ्रष्टाचार के प्रवचनों की जाँच करता हूं। विश्वविद्यालय प्रशासन की आलोचनाओं से आगे बढ़कर नौकरशाही, स्वार्थी संस्थाओं के रूप में, जिनके हित विश्वविद्यालय के शैक्षणिक मिशन के लिए तेजी से विरोधाभासी होते जा रहे हैं, मैं पूछता हूं, शिक्षा जगत में भ्रष्टाचार क्या है और यह मानी गई समस्या अकादमिक पूंजीवाद और लेखापरीक्षा संस्कृति के उदय से कैसे संबंधित है। बढ़ते भ्रष्टाचार के बारे में चिंताएं दुनिया के सबसे पुराने और सबसे पवित्र संस्थानों में से एक विश्वविद्यालय तक फैल गई हैं। हालांकि भ्रष्टाचार का अध्ययन करने की कठिनाइयों को देखते हुए, इसे मापने की तो बात छोड़िए, विश्वविद्यालय कितने भ्रष्ट हैं, इस सवाल का हम किसी भी सटीकता के साथ उत्तर नहीं दे सकते। विश्वविद्यालयों को उनके शोध और शिक्षण की गुणवत्ता, क्रेडिट रेटिंग, प्रतिष्ठा और अन्य कारकों जैसे - प्रभाव, नवाचार, स्नातक रोजगार और छात्र अनुभव के आधार पर मापने और रैंकिंग करने के लिए संकेतकों की अधिकता के बावजूद किसी ने भी विश्वव्यापी भ्रष्टाचार सूचकांक विकसित नहीं किया है। अकादमिक पूंजीवाद ने किस हद तक भ्रष्टाचार को बढ़ाया है, यह बहस का विषय है। उच्च शिक्षा में भ्रष्टाचार सरकारों, शिक्षकों, छात्रों और अन्य हितधारकों के लिए चिंता का विषय बन गया है। कमजोर संस्थान, जिनके पास नियंत्रण या प्रबंधकीय शक्ति का अभाव है, वे भ्रष्टाचार के लिए सबसे अधिक प्रवण हैं। भ्रष्टाचार ने उच्च शिक्षा की पूरी प्रणाली पर आक्रमण कर दिया है और शोध उत्पादों और स्नातकों की प्रतिष्ठा को खतरे में डाल दिया है। 

भारतीय विश्वविद्यालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार
यूनेस्को के अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा संस्थान के निदेशक के अनुसार शैक्षणिक धोखाधड़ी इतनी व्यापक हो गई है कि यह अब शैक्षिक संस्थानों और प्रदर्शन में जनता के विश्वास और उच्च शिक्षा के प्रमाणन की अखंडता और विश्वसनीयता के लिए गंभीर खतरा बन गई है। उच्च शिक्षा में भ्रष्टाचार अनेक रूपों में प्रकट होता है, जिसमें रिश्वतखोरी, गबन, धोखाधड़ी, जबरन वसूली, पक्षपात, भाई - भतीजावाद, छद्म शिक्षक, अनाधिकृत ट्यूशन, अनुचित पदोन्नति, सार्वजनिक संपत्ति का दुरुपयोग, अनुसंधान के कदाचार, धोखाधड़ी और साहित्यिक चोरी शामिल है। निश्चित रूप से विश्वविख्यात धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार से ग्रस्त हैं। आज भारतीय विश्वविद्यालयों की यह हालत है कि छात्र शिक्षकों की धोखाधड़ी को आदर्श मान रहे हैं। एक ऐसा देश जो भ्रष्टाचार में अग्रणी है, उसके नेताओं को विश्वविद्यालयों में भ्रष्टाचार गर्व का विषय लगता है। दिलचस्प बात यह है कि विश्वविद्यालय की भ्रष्टाचार की परिभाषा विश्व बैंक या ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की परिभाषा से कहीं ज्यादा व्यापक है। धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार शब्द केवल मौद्रिक या भौतिक लाभ तक सीमित नहीं है। धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार में आमतौर पर जानबूझकर, बेईमान, भ्रामक और अनाधिकृत कार्य या चूक शामिल होती है जिससे विश्वविद्यालय को नुकसान होता है या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से व्यक्तिगत लाभ होता है। भ्रष्टाचार बेईमानी से कई जाने वाली गतिविधि है जिसमें विश्वविद्यालय का कोई प्रबंधक, कर्मचारी या ठेकेदार विश्वविद्यालय के हितों के विपरीत काम करता है और अपने या किसी अन्य व्यक्ति या संस्था के लिए कुछ व्यक्तिगत लाभ प्राप्त करने के लिए अपने पद पर विश्वास का दुरुपयोग करता है। कोई भी व्यक्ति जो बेईमानी से और विश्वविद्यालयों के हितों के विपरीत काम करता है, उस पर भ्रष्टाचार के आरोप लग सकते हैं। 

सन् 2020 में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में पीएचडी में अयोग्य उम्मीदवारों को प्रवेश दे दिया गया। इन अयोग्य उम्मीदवारों में तत्कालीन कुलपति का बेटा भी शामिल था। इस भ्रष्टाचार का चौतरफा विरोध हुआ लेकिन कुलपति को हिमाचल प्रदेश सरकार का संरक्षण प्राप्त होने के कारण इसकी जांच न हो सकी। पीएचडी प्रवेश में यही हाल केन्द्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला हिमाचल प्रदेश का भी रहा। पीएचडी में नेट(जेआरएफ) पास उम्मीदवारों को छोड़कर अन्य उम्मीदवारों को प्रवेश दे दिया गया। जबकि विश्वविद्यालय में प्रवेश में नेट(जेआरएफ) उत्तीर्ण छात्रों को वरीयता दी जाती है। ये कहानियां भ्रष्टाचार और उसके समाधान के बारे में बहस के लिए प्रासंगिक बिंदुओं को उजागर करती हैं। विशेषज्ञों की राय है कि भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी की रोकथाम प्रणालीगत समस्याओं के बजाय सांस्कृतिक और व्यवहार संबंधी मुद्दे हैं। धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार का समाधान नैतिक शिक्षा, पारदर्शी नियामक प्रणालियों को बनाए रखना और जबावदेही के लिए प्रबंधन क्षमताओं को मजबूत करना में निहित है भ्रष्टाचार की जड़ व्यक्तिगत लालच है। साधारण लालच और किसी भी सामान्य जीवनशैली से परे जीने का अवसर धोखाधड़ी के लिए प्राथमिक प्रेरणा है। इसे कभी-कभी 'अच्छे लोग, बुरा काम करते हैं' के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।  भ्रष्टाचार के मामले में देशभर के कुछ कुलपति अव्वल होते जा रहे हैं। अगर देश के सभी कुलपतियों की संपति की जांच कराई जाए तो रतन टाटा, मुकेश अंबानी, गौतम अडानी की संपति से भी ज्यादा निकले। बेशुमार अधिकारों की वजह से भ्रष्टाचार में लिप्त कुलपति करोड़ों अरबों रूपए के घोटाले करने में जुटे हुए हैं। स्वयं इन कुलपतियों की नियुक्ति भ्रष्ट तरीके से हुई है। सन् 2020 में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति की जांच उठी थी। लेकिन तत्कालीन सरकार ने इस मुद्दे को दबा दिया। हिमाचल प्रदेश के एक गैर सरकारी विश्वविद्यालय के कुलपति ने तो जाँच के डर से आत्महत्या कर ली थी। उत्तर प्रदेश के डॉ राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर रवि शंकर पर उन्ही के शिक्षकों ने आरोप लगाया था। अपने खासम खास लोगों को पदोन्नति देने में एवं दीपोत्सव जैसे मामले में घोटाले के संबंध में शिकायत की गई थी। जिसके बाद जाँच हुई तो मामला सही निकला। जाँच में और भी खुलासे हुए जिसमें कुलपति ने अपने रिश्तेदार सहित पैसे लेकर अन्य लोगों को भी विश्वविद्यालय में नियुक्त किया था। घोटाला करने वाले कुलपतियों से केवल इस्तीफा ही नहीं लेना चाहिए। अपितु उन्हें जेल का रास्ता भी दिखाना चाहिए।  देश में भ्रष्टाचार तो हर जगह फैला हुआ है। रक्षा क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। भारतीय नौसेना का जहाज जो रूस से खरीदा जा रहा होता है, एकाएक रूस उसके दाम तीन गुना बढ़ा देता है। जहाज के दाम तीन गुना बढ़ने से भारतीय खुफिया एजेंसियों का ध्यान जहाज के कमानाधिकारी की तरफ जाता है। इस बात की जाँच होती है और कमानाधिकारी दोषी पाया जाता है। कमानाधिकारी का कोर्ट मार्शल कर दिया जाता है। 

जाँच में पाया जाता है कि कमानाधिकारी के साथ और भी अधिकारी इस घोटाले में शामिल थे। भारत में भ्रष्टाचार एक ऐसा मुद्दा है जो केन्द्रीय, राज्य और स्थानीय सरकारी संस्थाओं की अर्थव्यवस्था को कई तरह से प्रभावित करता है। भारत की अर्थव्यवस्था को ठप्प करने के लिए भ्रष्टाचार को जिम्मेदार ठहराया जाता है। शिक्षा के मंदिर कहे जाने वाले विश्वविद्यालय अब भ्रष्टाचार के अड्डे बनते जा रहे हैं। कुलपति और शिक्षकों की नियुक्तियों से लेकर खरीद-फरोख्त, छात्रों को पास कराने सहित अन्य मामलों में भ्रष्टाचार को अधिक महत्व दिया जा रहा है। यही वजह है कि भ्रष्टाचार के चलते विश्वविद्यालयों की साख पर बट्टा लग रहा है। विश्वविद्यालय भ्रष्टाचार की गिरफ्त में फंसते जा रहे हैं। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में सन् 2019-23 के बीच हुई शिक्षकों की भर्ती में चहेतों को लाभ पहुंचाने के लिए यूजीसी के मानकों की अनदेखी हुई है। ये खुलासा आरटीआई से जुटाई जानकारी में हुआ है। आरोप है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने 196 के करीब शिक्षकों और गैर - शिक्षकों को गलत तरीके से नियुक्त किया है। चयन प्रक्रिया में फर्जी शोध पत्रों के आधार पर नियुक्तियां दी गई हैं। आज पूरे देश में विश्विद्यालय भ्रष्टाचार के अड्डे बने हुए हैं। जिन विश्वविद्यालयों की जिम्मेदारी समाज में शिक्षा का प्रकाश फैलाने की थी, वे आज स्वयं भ्रष्टाचार के अंधकार में डूबे हुए हैं।
 
आज भारत पतन की घोर अवस्था से गुजर रहा है। देश में चारों ओर भ्रष्टाचार का बोलबाला है। जिन विश्वविद्यालयों की जिम्मेदारी देश और समाज का मार्गदर्शन करने की थी, उन्हें आज स्वयं मार्गदर्शन की जरूरत है। विश्वविद्यालयों में भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा कारण शिक्षकों और गैर शिक्षकों की नियुक्ति में पारदर्शिता का न होना है। अयोग्य लोग भ्रष्टाचार के चलते शिक्षक नियुक्त किए जा रहे हैं। ये अयोग्य शिक्षक विश्वविद्यालय में शोध कार्य करने की बजाए भ्रष्टाचार करने में मग्न हैं। भ्रष्टाचार में मग्न हो भी क्यों न, क्योंकि इनकी नियुक्ति भी तो शैक्षणिक योग्यता की जगह भ्रष्टाचार से हुई है। अगर समय रहते विश्वविद्यालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश न लगाया गया तो यह कहावत भी झूठी सिद्ध हो जाएगी कि - "कुछ बात है कि मिटती नहीं हस्ती हमारी, दुश्मन सदियों से रहा है दौरे जमां हमारा।" भारत को खत्म करने के लिए आज दुश्मनों की जरूरत नहीं है, विश्वविद्यालयों के अयोग्य और भ्रष्ट शिक्षक ही भारत का नामोनिशान मिटा देंगे। केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति संघीय लोक चयन आयोग और राज्य विश्वविद्यालयों में नियुक्ति राज्य लोक चयन आयोग के माध्यम से होनी चाहिए। प्राध्यापक और सह प्राध्यापक के पद पर सीधे नियुक्ति नहीं होनी चाहिए। सहायक प्राध्यापक ही पदोन्नति के बाद सह प्राध्यापक और प्राध्यापक बनने चाहिए। विश्वविद्यालयों में फैले भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए देश में आज व्यापक सुधारों की जरूरत है।


- विनय कुमार, 
सहायक हिन्दी प्रोफेसर
हमीरपुर , हिमाचल प्रदेश

COMMENTS

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  1. वर्तमान समय में विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता है।

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