शमशेर बहादुर सिंह की काव्यगत विशेषताएं

SHARE:

शमशेर बहादुर सिंह की काव्यगत विशेषताएं शमशेर बहादुर सिंह हिंदी के एक महत्वपूर्ण कवि हैं जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से हिंदी कविता को समृद्ध किया

शमशेर बहादुर सिंह की काव्यगत विशेषताएं


मशेर बहादुर सिंह हिंदी के एक महत्वपूर्ण कवि हैं जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से हिंदी कविता को समृद्ध किया है। उनकी कविताओं में आधुनिक जीवन के विभिन्न पहलुओं, मानवीय संवेदनाओं और अनुभवों का सच्चा और मार्मिक चित्रण मिलता है। उनकी सरल और सहज भाषा, प्रभावशाली बिम्ब, संगीतात्मकता और गहन अनुभूतियां उनकी कविताओं को विशेष बनाती हैं।

शमशेर बहादुर सिंह प्रगतिशील हैं, प्रयोगशील हैं, वे यथार्थ के कुशल चित्रकार और सौन्दर्य के उपासक हैं। उनकी काव्य-सृष्टि सुदीर्घ एवं बहुआयामी है। किन्तु, उनमें सब जगह गहरा तनाव और अन्तर्द्वन्द्व विद्यमान है। शायद इसीलिए उनका काव्य-संसार 'बहुत ही अमुखर और शान्त' है।
 
शमशेर बहादुर सिंह की काव्यगत विशेषताएं
वास्तव में शमशेर की रचनात्मकता का लक्ष्य है- 'अपने-आपको देख पाना'। इस लक्ष्य की प्राप्ति में वे अक्सर दुरूह हो गये हैं। उनकी कविता में वे सारे लक्षण और हैं जो उनके समकालीनों की कविता में उपलब्ध होते हैं, मसलन : लोकमंगल की भावना, जनतांत्रिकता, प्रेम और सौन्दर्य, मानवीय करुणा एवं संवेदना आदि, किन्तु उसको व्यक्त करने का उनका जो ढंग है, जो शैली है, उस कारण उनकी कविता सामान्य पाठकों के लिए ही नहीं, कभी-कभी विशिष्ट पाठकों के लिए भी दुरूह हो जाती है। राजेन्द्र यादव लिखते हैं- “मैं उनको पूरा जनतांत्रिक- जनकवि मानता हूँ, किन्तु उनकी कविता समझना मेरे लिए सम्भव नहीं है। उसके लिए मैं कह सकता हूँ कि मैंने चाहे पढ़ा शमशेर को हो, लेकिन समझा बिलकुल नहीं।” ऐसा ही अभिमत डॉ० केदारनाथ सिंह का भी है कि, “अपने समय के अधिकांश महत्त्वपूर्ण कवियों की तरह शमशेर की जीवन-दृष्टि भी जनतांत्रिक है, परन्तु यह भी सही है कि उनकी कविता का बहुत बड़ा हिस्सा, जिसको साधारण पाठक कहा जाता है, उसकी पहुँच से परे है।"
 
यहाँ विजयबहादुर सिंह और डॉ० सूरज पालीवाल के क्रमशः यह कथन अधिक संगत एवं उचित हैं कि— “शमशेर में वस्तुतः रोमाण्टिक विदग्धता है, जो उनके शब्दार्थों को काव्यार्थी से सम्पन्न करती रहती है। इस रोमाण्टिक विदग्धता के सूत्र जब तक हमारे हाथ में नहीं आते, कवि की काव्यानुभूति तक किसी भी स्थिति में हमारी पहुँच सम्भव नहीं।” “शमशेर की पहचान कवि के रूप में है, और कवि भी सामान्य नहीं, दुरूह कवि जिसे उनकी कविताओं में आये शब्दों से नहीं, शब्दों के पीछे कवि की संवेदना और उसके गहरे जीवनानुभवों की अनुभूति के साथ ही समझा जा सकता है।"
 
शमशेर के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

प्रगतिवाद बनाम लोकमंगल की भावना

शमशेर सिद्धान्तः प्रतिबद्ध और घोषित मार्क्सवादी हैं। वे निःसंकोच मार्क्सवाद का प्रचार करते हैं। बाकायदे कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य रहे— बम्बई में पार्टी दफ्तर में रहते थे। वहाँ पार्टी सिद्धान्तों के लिए मार भी खायी। (पार्टी के दफ्तर पर जब कम्युनिस्ट-विरोधियों का एक बार हमला हुआ था तो वे वहाँ मौजूद थे)। वास्तव में 'शमशेर की चेतना में मार्क्सवाद नमक की तरह घुला हुआ है।'
 
शमशेर प्रगतिवाद के आरम्भिक दौर में एक अनुशासित कार्यकर्त्ता के रूप में 'प्रगतिशील लेखक संघ' की लेखकीय इकाई में सक्रिय रूप से सम्मिलित हुए। इसीलिए उनके काव्य में, प्रगतिवाद की आन्दोलनात्मक प्रवृत्तियाँ तथा सच्चे जनवादी की भाँति जनशक्ति में आस्था एवं जनपक्षधरता का भाव सहज विद्यमान है। शुरुआती दौर की दो-एक कविताएँ उदाहरण-रूप में द्रष्टव्य हैं- 

"टूटेंगे अरिदल के पहाड़ 
जब जनबल का सागर दहाड़ कर उठेगा करता विचूर्ण फासिस्ट हाड़ 
जनता के बल का महाबाण / शक्ति-स्फुलिंग जो मध्ययुगों का परित्राण कर छूटेगा 
बन नवयुग का जनता प्रमाण।"
 
इसी तरह 'य' शाम है' आरम्भिक दौर की एक-ऐसी कविता है, जिसमें 12 जनवरी, 1944 ई० को घटी घटना, जिसमें ग्वालियर में सामन्ती रियासत द्वारा 'मजदूरों के जुलूस' पर गोलियों की बौछार की गयी थी, की गवाही लिपिबद्ध है। उसी दौर में उनके द्वारा लिखी अन्य कविताओं- 'बम्बई में वहीं के 70 किसानों को देखकर' तथा 'नाविक विद्रोहियों पर बमबारी : बम्बई 1946' में भी उनकी जनपक्षधरता को साफ-साफ देखा जा सकता जब शमशेर कहते हैं कि - 
 
“मुझको प्यास के पहाड़ों पर लिटा दो 
जहाँ मैं एक झरने की तरह तड़प रहा हूँ। 
मुझको सूरज की किरनों में जलने दो, 
ताकि उसकी आँच और लपट में तुम फव्वारों की तरह नाचो ।”

तब, स्वयं को प्यासा रखकर दूसरों के लिए झरना बन जाने, अपने-आप को जलाकर दूसरों को प्रकाश से आलोकित करने की उनकी जो कामना है, वह उन्हें लोकहित-चिन्ता से जोड़ती है। ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः' के ये महाभाव ही शमशेर को प्रगतिवादी सिद्ध करते हैं।
 
शमशेर प्रगतिशील हैं। प्रगतिशील इस अर्थ में कि वे विचारधारा में मजदूरों का पक्ष लेते 'उनकी कम-से-कम 50 ऐसी कविताएँ हैं, जिनमें उनकी मार्क्सवादी-समाजवादी प्रतिबद्धताएँ प्रत्यक्ष दिखायी देती हैं। ग्वालियर में मजदूरों पर गोली चली उसको देखकर, किसानों को देखकर, नाविक विद्रोह देखकर, बहुत-सारे व्यक्तियों पर-कामरेड रुद्रदत्त भारद्वाज, सज्जाद जहीर, काजी नजरूल इस्लाम, मुक्तिबोध आदि पर उनकी जो लिखी कविताएँ हैं, उनको देखकर लगता है कि वे अपने सामाजिक बोध एवं कर्त्तव्य के प्रति बहुत सजग हैं और इसका वे निर्वाह भी करते हैं। किन्तु, वे उस तरह के प्रगतिवादी या प्रगतिशील नहीं हैं जिस तरह के प्रगतिशील कवियों को आप देखते हैं। (कर्ण सिंह चौहान ) । 'वे मूलतः संवेदनावादी कवि हैं। उनकी कविता को, 'किसी को पीटने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।'

उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि शमशेर अपने सामाजिक सरोकारों में मार्क्सवादी हैं, किन्तु अपनी कविताओं में जनपक्षधरता को उस रूप में व्यक्त नहीं कर पाते, जिस रूप में सामान्य पाठक एक प्रगतिवादी कवि से अपेक्षा रखता है। “मुक्तिबोध और शमशेर, नागार्जुन और केदारनाथ अग्रवाल की तरह जनकवि नहीं हैं, वे जनवादी और प्रगतिवादी कवि हैं। ....आधुनिक हिन्दी-कविता में इस कसौटी पर नागार्जुन सबसे खरे उतरेंगे। वे जितने जनवादी या प्रगतिशील कवि हैं, उतने ही जनकवि हैं।"

सौन्दर्य और प्रेम

शमशेर मूलतः प्रेम और सौन्दर्य के कवि हैं। विजयदेवनारायण साही का मानना है कि ‘हिन्दी में आज तक विशुद्ध सौन्दर्य का कवि यदि कोई हुआ है तो वह शमशेर है। उनकी कविताओं में सर्वाधिक भावतीव्रता नारी-सौन्दर्य एवं प्रकृति के प्रति है। 'वे हिन्दी में अपने ढंग से अकेले वर्जनामुक्त प्रेम के कवि हैं।
 
शमशेर बहादुर सिंह की कविताओं में प्रेम और सौन्दर्यवाची शब्दों का प्रयोग सामान्यतः नहीं मिलता, वे प्रेम की प्रतीति कराते हैं। इस खामी खूबी को लक्षित करते हुए डॉ० शिवकुमार मिश्र लिखते हैं कि उन्होंने अपनी कविताओं में जहाँ सौन्दर्य और प्रेम की मार्मिक एवं अद्वितीय छवियाँ उपस्थित की हैं, वहाँ उसे व्यंजना के धरातल पर समृद्ध किया है। शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध के ऐन्द्रिकबोध को उन्होंने मानवीय स्तर पर हमारे अहसास का विषय बनाया है। वे महीन बुनावट के, अंतरंग छवियों के, मनोवैज्ञानिक गहराइयों के रचनाकार, कुशल शिल्पी, कारीगर हैं।
 
शमशेर की प्रेम और सौन्दर्य-विषयक रचनाओं के सन्दर्भ में सुप्रसिद्ध समीक्षक मानबहादुर सिंह का कहना है कि, “शमशेर अपने शब्दों और रंगों से जिस प्रेम और सौन्दर्य की तलाश में हैं, वह उनका अपना बहुत निजी और ऐकान्तिक है। सामान्य पाठक की पहुँच वहाँ तक नहीं है। सामान्य पाठक ने तो प्रेम गाँवों की गलियों-गलियारों, साँझ के झुरपुटे में अगवारे-पिछवारे होते देखा है। शहर के पाठक ने भीड़-भाड़ भरी सड़कों पर, सिनेमाघरों में, चाय की दुकानों में, पार्क, पुस्तकालयों या पति-पत्नी के रूप में शयनकक्षों में देखा है। शमशेर की कविताओं में कहीं नहीं उभरते ऐसे प्रेमी युगल । मध्यकालीन कवियों के पास कम-से-कम रीतिकाल की नायिकाएँ थीं, जिनकी मांसलता का अनुभव आज भी किया जा सकता है। इसके विपरीत शमशेर की कविताओं में एक प्लेटोनिक प्रेम है, जिसमें प्रेम के भाव को ही प्रेम किया जा रहा है। चोली से उझक पड़ते पुष्ट स्तन नहीं हैं यहाँ। श्रमरत हाथों में खनकती चूड़ियों और खुल-खुल जाती पीठ पर रेंगती पसीने की बूँदों-से भीगी गहरी रीढ़ का ताप नहीं है।
 
उनकी प्रेम-कविताएँ प्रेम का मनोविज्ञान - मात्र हैं। प्रेम के कर्मवाची शब्द नहीं हैं शमशेर के पास।” जिस तरह केदारनाथ अग्रवाल की प्रेम-कविताओं में 'उत्तप्त देह की गरम साँसें' निकलती हैं, वैसी गरमाहट शमशेर की कविताओं में नहीं है।

शिल्पगत रचाव

शमशेर के शिल्प के सम्बन्ध में, उनके द्वारा लिखी गयी ये पंक्तियाँ, सार्थक प्रकाश डालती हैं कि- “मेरे कवि ने किसी 'फार्म', शैली या विषय का सीमा-बन्धन स्वीकर नहीं कया। फैशन किन विषयों पर लिखने का है, कौन-सी शैली 'चल रही है'; किस 'वाद' का युग आ गया है या चला गया है— मैंने कभी इसकी परवाह नहीं की। जिस विषय पर जिस ढंग से लिखना मुझे रुचा, मन जिस रूप में भी रमा, भावनाओं ने उसे अपनाया; अभिव्यक्ति अपनी ओर से सच्ची हो, यही मात्र मेरी कोशिश रही- उसके रास्ते में किसी भी बाहरी आग्रह का आरोप या अवरोध मैंने सहन नहीं किया ।" (कुछ और कविताएँ, पहले संस्करण का वक्तव्य) स्पष्ट है कि उन्होंने किसी बनी-बनाई लीक पर चलकर काव्य-सर्जना नहीं की ।

शमशेर बहादुर सिंह की काव्य भाषा

शमशेर की प्रारम्भिक कविताओं पर छायावादी काव्यभाषा का प्रभाव है, किन्तु बाद में वे इस प्रभाव से मुक्त होते गये हैं। उनके भाषिक रचाव में जहाँ तक शब्द-प्रयोग का प्रश्न है, उसमें 'उर्दू और हिन्दी का कारगर मेल है। उनकी कविताओं एवं गज़लों में हिन्दी-उर्दू भाषा का अन्तर नहीं है। उन्होंने दोनों भाषाओं के शब्दों का भरपूर प्रयोग सार्थक ढंग से किया है। उन्होंने भाषा पर ध्यान न देकर उसके मुहावरे पर ध्यान दिया।
 
वैसे ध्यान से देखा जाय तो कविताओं में उन्होंने हिन्दी शब्दों के साथ उर्दू शब्दों का तथा गद्य विधा में लिखते समय हिन्दी शब्दों के साथ अँगरेजी शब्दों का प्रयोग किया है।
 
उनकी कविता 'अरथ अमित अति आखर थोरे' को चरितार्थ करती है। कम-से-कम शब्दों में अपनी बात कह देने में वे सिद्धहस्त हैं। उनकी कविता में फालतू शब्दों की समाहिति 'नहीं', के बराबर है। अपनी कविताओं में वे शब्दलोप, वर्णलोप का भी सहारा लेते हैं। जैसे 'यह शाम है' की जगह 'य' शाम है।' इसी तरह 'लौट आ ओ धार' कविता में 'मैं समय की लम्बी आह' पद में 'हूँ' का प्रयोग नहीं है। 'उषा' और 'एक पीली शाम' कविता में भी यह शब्दलोप की प्रवृत्ति उपलब्ध है।
 
शमशेर की भाषा के सम्बन्ध में एक बात साफ है कि वह जनसामान्य के लिए संप्रेषणीय नहीं है। नरेन्द्र वशिष्ठ का मत है कि “शमशेर की भाषा पढ़े-लिखे मध्यवर्गीय समाज की भाषा है। त्रिलोचन, नागार्जुन और केदार की भाषा से मिट्टी की जो गन्ध आती है, वह शमशेर के यहाँ गायब है। दूसरे, शब्दलोप, अमूर्त्तन और चित्रकला के अति प्रभाव से उनके यहाँ कविताओं की सम्प्रेषणीयता बाधित होती है। वस्तुतः शमशेर को समझने के लिए उर्दू, हिन्दी और अँगरेजी की काव्य-परम्पराओं के अलावा ललित कलाओं का मर्मज्ञ होना भी जरूरी है।"

बिम्ब धर्मी कवि

शमशेर बिम्बधर्मी रचनाकार हैं, अतः उनकी कविताओं में 'बिम्ब का संसार अत्यन्त सघन और विस्तृत है।' बिम्ब के प्रति तो उनमें इतना आकर्षण है कि उनकी - कविताओं के शीर्षक तक बिम्बधर्मी हैं- 'एक पीली शाम', 'एक नीला दरिया बरस रहा है', 'एक नीला आईना बेठोस', 'पथरीली घास भरी इस पहाड़ी के ढाल पर' आदि ऐसे ही बिम्बधर्मी शीर्षक हैं। उन्होंने अपनी कविताओं में जिन शब्दों का प्रयोग किया है, उनमें बिम्बधर्मी विशेषणों की भी बहुलता है। ऐसी जगहों पर उनका चित्रकार-रूप सामने आ गया है। नीला शंख, काली सिल, लाल केसर, पीली शाम, पीले गुलाब, नील जल आदि-इत्यादि ऐसे ही विशेषणयुक्त वर्णबिम्ब हैं, जिनसे उनके सूक्ष्म रंग-बोध का ज्ञान होता है। कहीं-कहीं तो उन्होंने 'रंगों के शेड्स' से प्रकृति की परिवर्तनशील गतिमयता को अद्भुत सफलता के साथ रूयत किया है। जैसे- 'उषा' कविता में।
 

छन्द विधान लय सृष्टि

शमशेर ने अपनी कविताओं में बहुत सारे 'फार्मों' का प्रयोग किया है। इस सन्दर्भ में स्वयं शमशेर का कहना है कि, 'मैंने इतनी मेहनत की है, इतनी मश्क, कविता के मर्म को और शब्द-शब्द को समझने, साधने की— इस शिद्दत के साथ, कि लगता है कि मैंने कविता के सिवाय कुछ किया ही नहीं है......हाँ साब ! इतना अभ्यास था मुझे छन्दों का कि मैं इम्तहान में अँगरेजी के समान पर्चे गद्य के बजाय छन्दोबद्ध पद्य में ज्यादा आसानी से कर सकता था।उर्दू, हिन्दी और अँगरेजी में समान रूप से मैं छन्द-रचना करता था। मैंने काव्य के इतने विविध रूप-प्रकारों में, सम्पूर्ण भीतरी अर्जेंसी के साथ सफल ढंग से काव्य-रचना की है कि मैं समझता हूँ कि मेरे समवयस्कों में किसी ने न की होगी ।"
 
शमशेर की कविताओं की पाठ-प्रक्रिया जटिल किंवा कठिन है। 'वे इशारे के कवि हैं।' उनकी प्रायः सभी कविताएँ एकालाप हैं- आन्तरिक एकालाप। यह एकालाप 'बक रहा हूँ जुनूँ में क्या-क्या कुछ/ कुछ न समझे खुदा करे कोई' के अंदाज में है।
 
उनकी कविता को अगर रुक कर न पढ़ें तो वह समझ में नहीं आयेगी। उनके यहाँ हर पंक्ति चाहे उसमें एक ही शब्द क्यों न हो, वाक्य है। अपनी कविताओं की पाठ-प्रक्रिया का रहस्य बताते हुए शमशेर स्वयं लिखते हैं कि “मेरे यहाँ टुकड़ा चाहे छोटा हो या बड़ा, स्वयं में पूर्ण है। उसे रुककर एक पूरी पंक्ति जितना समय देकर पढ़ना होगा।" "एक पीली शाम' जैसी कविताओं को इसी प्रक्रिया से पढ़कर बेहतर समझा जा सकता है।शमशेर की कविताओं की शैली लयात्मक नहीं है, वह बोलचाल की लय से युक्त गद्यात्मक है।

शमशेर बहादुर सिंह के सम्पूर्ण कृतित्व का मूल्य यह सिद्ध करता है कि वे 'जेनुइन' कवि हैं। अपनी रचनाओं से उन्होंने हिन्दी काव्य-जगत् को समृद्ध किया है, और अपनी रचनाओं के बल-बूते पर हिन्दी-जगत् में हमेशा याद किये जायेंगे। मोहन राकेश के लिए लिखी शमशेर जी की ये पंक्तियाँ- 

"मोहन राकेश, यद्यपि 
मौत का राज तुम मुझे नहीं बता सकते 
मगर/मौत पर तुम विजयी हो गये हो।" 

स्वयं शमशेर के कवि पर भी उतनी ही लागू है। शमशेर 'मौत पर तुम विजयी हो गये हो।- अपनी रचनाओं की बदौलत । 

इस प्रकार शमशेर बहादुर सिंह हिंदी कविता के नई कविता आंदोलन के प्रमुख स्तंभ हैं। वे अपनी ईमानदारी, गहन संवेदनशीलता और अभिव्यक्ति की शक्ति के लिए जाने जाते हैं। उनकी कविता में आधुनिक जीवन की जटिलताओं और विरोधाभासों को व्यक्त करने की अद्भुत क्षमता है।

COMMENTS

Leave a Reply
नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,35,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",7,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,3,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,7,आषाढ़ का एक दिन,22,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,2,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,19,कमलेश्वर,6,कविता,1438,कहानी लेखन हिंदी,17,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,6,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,27,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,4,केशवदास,6,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,138,गजानन माधव "मुक्तिबोध",15,गीतांजलि,1,गोदान,7,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,3,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,2,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,33,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,74,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,5,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,26,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,6,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,38,निर्मल वर्मा,2,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,192,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,134,प्रयोजनमूलक हिंदी,37,प्रेमचंद,41,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,86,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,7,भक्ति साहित्य,139,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,13,भीष्म साहनी,7,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,5,मलिक मुहम्मद जायसी,7,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,2,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,12,मैला आँचल,4,मोहन राकेश,13,यशपाल,14,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,20,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,3,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,9,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,4,लघु कथा,122,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,34,विद्यापति,7,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,1,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,7,शमशेर बहादुर सिंह,6,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,54,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,1,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,30,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,39,समसामयिक हिंदी लेख,242,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,18,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,76,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",10,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,23,सूरदास,16,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,10,हजारी प्रसाद द्विवेदी,4,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,403,हिंदी लेख,514,हिंदी व्यंग्य लेख,12,हिंदी समाचार,170,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,87,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,chitra-varnan-hindi,3,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,6,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,19,hindi essay,395,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,104,hindi stories,668,hindi-bal-ram-katha,12,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,19,hindi-notes-university-exams,36,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,17,kavyagat-visheshta,25,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,10,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,5,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,sponsored news,10,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,43,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: शमशेर बहादुर सिंह की काव्यगत विशेषताएं
शमशेर बहादुर सिंह की काव्यगत विशेषताएं
शमशेर बहादुर सिंह की काव्यगत विशेषताएं शमशेर बहादुर सिंह हिंदी के एक महत्वपूर्ण कवि हैं जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से हिंदी कविता को समृद्ध किया
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjLYVLUfJxTeI-mCwUaU_0At-WXyDXQEMKESuSqKu7DIfxkllFqnTsCSA7p_llsrUJ3Fv7a9cpI-BTJ1FVZvar9OrvDP5UTpLNMTr6FbHUhp5DBH256F485udsxPvQhM2Nqa5P6PoTawGnTY5-c30SXOhsMsofvVHQq0i4GqQHD1KV_IL4re0_sFnDjS31I/s16000/shamsher-bahadur-singh.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjLYVLUfJxTeI-mCwUaU_0At-WXyDXQEMKESuSqKu7DIfxkllFqnTsCSA7p_llsrUJ3Fv7a9cpI-BTJ1FVZvar9OrvDP5UTpLNMTr6FbHUhp5DBH256F485udsxPvQhM2Nqa5P6PoTawGnTY5-c30SXOhsMsofvVHQq0i4GqQHD1KV_IL4re0_sFnDjS31I/s72-c/shamsher-bahadur-singh.jpg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2024/06/shamsher-bahadur-singh-ki-kavyagat-visheshta.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2024/06/shamsher-bahadur-singh-ki-kavyagat-visheshta.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका