पत्रकार वार्ता एवं प्रेस प्रबंधन

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पत्रकार वार्ता एवं प्रेस प्रबंधन पत्रकार वार्ता और प्रेस प्रबंधन दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। प्रभावी प्रेस प्रबंधन के लिए, पत्रकार वार्ता एक महत

पत्रकार वार्ता एवं प्रेस प्रबंधन


त्रकार वार्ता (Press Conference) एक आयोजन होता है जिसमें कोई व्यक्ति या संगठन मीडिया से बात करता है। यह आमतौर पर महत्वपूर्ण घोषणाओं, घटनाओं या अपडेट के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए आयोजित किया जाता है।

प्रेस प्रबंधन (Press Management) मीडिया के साथ संबंधों को प्रबंधित करने और सकारात्मक सार्वजनिक छवि बनाने की प्रक्रिया है। इसमें प्रेस विज्ञप्ति जारी करना, मीडिया इंटरव्यू आयोजित करना और मीडिया के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना शामिल है।

पत्रकार वार्ता और प्रेस प्रबंधन दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। प्रभावी प्रेस प्रबंधन के लिए, पत्रकार वार्ता एक महत्वपूर्ण उपकरण है।

पत्रकारवार्त्ता प्रेस वार्ता किसे कहते हैं

पत्रकारवार्ता,साक्षात्कार का एक संदर्भित रूप है। पत्रकारवार्त्ता के अन्य पर्याय हैं- पत्रकार-सम्मेलन-संवाददाता सम्मेलन, समाचार-गोष्ठी आदि । पत्रकारवार्त्ता में किसी विशेष "संवाददाता का एक मात्र अधिकार नहीं रहता, वरन्
पत्रकार वार्ता एवं प्रेस प्रबंधन
इसमें विविध समाचारपत्रों अथवा न्यूज़ एजेन्सियों के प्रतिनिधियों को आमन्त्रित किया जाता है। किन्तु संवाददाता के लिए पत्रकारवार्त्ता में शामिल होना और समाचार भेजना आवश्यक है। 'पत्रकारवार्त्ता' का आयोजन किसी विशिष्ट व्यक्ति द्वारा किया जाता है। वह शासन का प्रवक्ता, किसी राजनीतिक दल का नेता अथवा उस दल का अधिकृत प्रवक्ता, अधिकारी, निगमों, संस्थाओं, संगठनों का पदाधिकारी आदि हो सकता है। उस विशिष्ट व्यक्ति द्वारा आहूत 'पत्रकारवार्त्ता' में उस स्थान विशेष के सभी समाचारपत्रों आदि के प्रमुख संवाददाता आमन्त्रित किये जाते हैं। वे पत्रकारवार्त्ता बुलाने वाले व्यक्ति से प्रश्न पूछते हैं। वह व्यक्ति या तो स्वयं प्रश्नों का उत्तर देता है या उसके द्वारा अधिकृत व्यक्ति उत्तर देता है। अतः पत्रकारवार्त्ता एक अति महत्त्वपूर्ण समाचार स्रोत है। इसमें अधिक विश्वसनीयता रहती है। अनेक पत्रकारों की उपस्थिति में सम्बन्धित व्यक्ति से सीधे प्रश्नोत्तर के द्वारा जानकारी प्राप्त की जाती है। इस प्रकार से पत्रकारवार्त्ता दोनों पक्षों- पत्रकारों और सम्बद्ध व्यक्तियों के लिए लाभप्रद होती है। पूछे गये प्रश्नों और प्राप्त उत्तरों पर किसी एक पत्रकार का अधिकार न होकर सभी उपस्थित पत्रकारों का समान अधिकार होता है ।

पत्रकारवार्त्ता का कोई निश्चित समय या अवसर नहीं होता है। जब कोई राजनीतिक दल, शासन, संगठन आदि किसी महत्त्वपूर्ण अथवा अति आवश्यक सूचना को सार्वजनिक करना चाहता है, तब पत्रकारवार्त्ता का आयोजन करता है। यह वार्त्ता साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक, अर्द्ध-वार्षिक और वार्षिक हो सकती है। प्राय: पत्रकारवार्त्ता के पूर्व सम्बन्धित विषय की पाठ्य सामग्री पत्रकारों को जानकारी के लिए भेज दी जाती है। यह सामग्री पत्रकारवार्त्ता का मुख्य आधार बनती है।
 
अतः स्पष्ट है कि पत्रकारवार्त्ता एक महत्त्वपूर्ण समाचार स्रोत है। इसका महत्त्व ही पत्रकारों के उत्तरदायित्व को भी गम्भीर बना देता है। इसलिए यह ज़रूरी हो जाता है कि पत्रकारवार्त्ता में सम्मिलित होने वाले पत्रकार योग्य, अनुभवी और धीर-गम्भीर होने चाहिए।
 
ध्यातव्य तथ्य
प्रवीण दीक्षित ने पत्रकारवार्त्ता में शामिल होने वाले पत्रकारों के लिए कुछ ध्यातव्य तथ्यों का उल्लेख किया है। वे तथ्य निम्नांकित हैं- 
  • पत्रकारवार्ता में शामिल होने के पूर्व सम्बन्धित विषय या प्राप्त सामग्री का गहन अध्ययन किया जाय।
  • पत्रकारवार्त्ता के आयोजक या मुख्य वक्ता को अपने से कम विद्वान् एवं योग्य कदापि नहीं समझना चाहिए।
  • ना सोचे-समझे बोलने या टिप्पणी करने की अपेक्षा चुप रहना ही श्रेयस्कर है।बुद्धिमत्ता की धाक जमाने के चक्कर में मूर्खतापूर्ण आचरण ठीक नहीं। संक्षिप्त बोलकर अधिक-से-अधिक सुनना चाहिए। 
  • अपने सहधर्मियों को भी कुछ जानने-पूछने का अवसर देना चाहिए। 
  • अपने और दूसरे के समय का विशेष ध्यान रखना चाहिए। 
  • यदि पत्रकारवार्त्ता का विषय ज्ञात हो तो अपेक्षित जानकारी के लिए दो-तीन प्रश्न पहले से ही निर्धारित कर लेना चाहिए। 
  • कोरे खण्डन-मण्डन या विवाद की भावना से बचना चाहिए। 
  • भाषा और व्यवहार में पत्रकारोचित शालीनता अवश्य लानी चाहिए।
  • किसी भी प्रश्न पर अनेक पहलुओं से विचार करके अपने प्रश्न को इस प्रकार तर्कसंगत बनाकर प्रस्तुत करना चाहिए जिससे कि किसी की बात को ज्यों-का-त्यों मान कर चुप न रहना पड़े। खुद निरुत्तर न हों, बल्कि वह हो जो सामने है। 
  • किसी अन्य व्यक्ति द्वारा पूछे गये प्रश्न को पुनः कदापि न पूछा जाये। यदि उत्तर में कोई स्पष्टीकरण अपेक्षित हो तो संकोच नहीं करना चाहिए। 
  • पत्रकारवार्त्ता के आयोजन के उद्देश्य को पहले से ही जान-समझ लेना चाहिए।
  • यथासमय ही पहुँचना चाहिए। यदि विलम्ब से पहुँचे तो पहले की कार्यवाही पर प्रश्नोत्तरों को अपने किसी सहधर्मी से जान लेना चाहिए।'
 
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य 
उपरिवर्णित तथ्यों का सम्बन्ध उन पत्रकारों से है जो पत्रकारवार्त्ता में सम्मिलित होते हैं। किन्तु इनके अतिरिक्त भी अन्य कई महत्त्वपूर्ण स्थितियाँ हैं जिन पर ध्यान देने से 'पत्रकारवार्त्ता' बहुत सार्थक, सफल और उपयोगी सिद्ध होती है। वे स्थितियाँ निम्नांकित हैं- 
  • उपयुक्त स्थान का चयन- वस्तुतः पत्रकारवार्त्ता में 'स्थान' का विशेष महत्त्व होता है। एक अनुभवी और कुशल पत्रकार अपने लिए ऐसे स्थान को चुनता है जहाँ से वह वक्ता का ध्यान अपनी तरफ़ खींच सके। इस प्रकार पत्रकारवार्त्ता शुरू होने से पूर्व ही उसे वार्त्ता-स्थल पर पहुँचकर उपयुक्त स्थान का चयन कर लेना चाहिए।
  • आवश्यक तैयारी- पत्र- प्रतिनिधि को पत्रकारवार्त्ता में शामिल होने से पूर्व उसी प्रकार की तैयारी करनी चाहिए जिस प्रकार किसी साक्षात्कार में जाने से पूर्व की जाती है। पत्रकारवार्त्ता में संवाददाता को आत्मविश्वास के वार्तालाप करना चाहिए। आत्मविश्वास कहीं से भी न डगमगाये, इस बात की सदा चेष्टा करनी चाहिए। यदि संवाददाता को प्रश्न के मुख्य भाग के सम्बन्ध में आवश्यक जानकारी नहीं होगी तो वह न प्रश्न पूछ सकेगा और न ही प्रश्न की तह तक पहुँच सकेगा। अतः पत्रकार को 'वार्त्ता' के पूर्व ही आवश्यक तैयारी कर लेनी चाहिए। 
  • प्रश्न की शैली- पत्रकारवार्त्ता में प्रश्न पूछने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है- प्रश्न पूछने की शैली या ढंग। पत्रकार का प्रश्न पूछने का ढंग या तरीका सही और सटीक होना चाहिए। यदि प्रश्न की शैली प्रभावपूर्ण है तो पत्रकार वक्ता से सब कुछ जानकारी प्राप्त कर लेगा जो वह पाना चाहता है। इस प्रकार पत्रकारवार्त्ता में प्रश्न पूछने की कला का विशेष महत्त्व है। पत्रकार को प्रश्न पूछते समय अपने विचारों को व्यक्त नहीं करना चाहिए। जैसे- 'मेरे विचार से ऐसा होना चाहिए किन्तु आप की क्या धारणा है ? ' ऐसा प्रश्न पूछने से वह वक्ता को सच्चाई प्रकट करने के लिए घेर नहीं पायेगा, किन्तु इसके विपरीत यदि वह कहता है- "क्या यह बात सच है कि....?' तो- वक्ता सीधा उत्तर देने के लिए मजबूर हो जायेगा। इस प्रकार पत्रकार की कोशिश सदैव सही जानकारी प्राप्त करने की होनी चाहिए।
  • भूमिका रहित प्रश्न - पत्रकारवार्त्ता में पत्रकार को विस्तृत भूमिका बाँधना उचित नहीं है। ऐसा न करने से पत्रकार को पूछे गये अपने प्रश्न का कोई सही और ठोस उत्तर प्राप्त नहीं हो सकता।
  • समय का सदुपयोग- पत्रकारवार्त्ता का महत्त्व वक्ता और पत्रकार दोनों के लिए ही होता है। अत: दोनों को यह ध्यान रखना चाहिए कि एक मिनट का भी समय मूल्यवान् है। उसे व्यर्थ के एवं अनावश्यक प्रश्नोत्तर में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए।
उपरिवर्णित विवेचन से स्पष्ट है कि समाचार-संकलन में पत्रकारवार्त्ता का विशेष महत्त्व है। अपरोक्ष रूप से इसमें पत्रकारों के बीच एक प्रकार से सह-अस्तित्व का सिद्धान्त काम करता है। पत्रकारवार्त्ता की विषय-सामग्री पर सभी उपस्थित पत्रकारों का समान अधिकार होता है। इसका प्रयोग सभी को करना चाहिए। यह स्मरण रहे कि पत्रकारवार्त्ता के समाचार - लेखन में पत्रकार को अपनी तरफ़ से कुछ नहीं जोड़ना अथवा कहना है, अपितु जो समाचार दिये जा रहे हैं, वे सब वक्ता के कथन पर ही आधारित रहें।
 

प्रेस प्रबन्धन

समाचार-पत्र के प्रकाशन में प्रबन्धन की मुख्य भूमिका होती है। समाचार-पत्र के व्यवस्थित प्रकाशन, प्रसार, मुद्रण आदि के सम्बन्ध में प्रबन्धन नीति-निर्धारण के अतिरिक्त प्रशासन पर भी अपनी दृष्टि रखता है। किसी भी समाचार-पत्र की लोकप्रियता तथा उसके मुद्रण, विपणन, प्रचार-प्रसार आदि में भी प्रबन्धन की कुशलता का प्रमुख हाथ होता है। अस्तु, समाचार-पत्र के प्रबन्धन में सर्वप्रमुख स्थान निदेशक-मण्डल का होता है।
  • निदेशक-मण्डल- निदेशक-मण्डल समाचार-पत्र का मुखिया होता है। निदेशक-मण्डल का कार्य प्रमुख नीतियों का निर्धारण करना, प्रशासन पर पूरी नजर रखना और ध्यान देना, अर्थ-व्यवस्था सँभालना, समाचार-पत्र के प्रसार एवं विकास के उपाय खोजना, सम्पादन-विभाग की गतिविधियों पर दृष्टि रखना आदि। 
  • निदेशक मण्डल का प्रमुख ही उसका 'चेयरमैन' होता है। निदेशकमण्डल की बैठकों की अध्यक्षता भी वही करता है। अस्तु, समाचार-पत्र के प्रकाशन, प्रसार, मुद्रण आदि पर उसका सीधा नियंत्रण होता है।
  • प्रबन्ध-निदेशक- निदेशक-मण्डल में दूसरा महत्त्वपूर्ण स्थान प्रबन्ध-निदेशक का होता है। निदेशक-मण्डल की बैठकों को वही आहूत करता है। बैठक में विचार-विमर्श के लिए प्रस्तावों को तैयार करने का काम भी प्रबन्ध निदेशक ही करता है। निदेशक-मण्डल द्वारा समाचार-पत्रों के लिए तैयार नीतियों के कार्यान्वयन का दायित्व भी प्रबन्ध-निदेशक का होता है। इस तरह निदेशक-मण्डल में प्रबन्ध-निदेशक का दायित्व अहम होता है।

निदेशक
निदेशक, निदेशक-मण्डल के सदस्य होते हैं। इनके दो वर्ग होते हैं- 
(क) अवैतनिक निदेशक, 
(ख) वैतनिक निदेशक । 
(क) अवैतनिक निदेशक- अवैतनिक-निदेशक के रूप में समाज के भिन्न-भिन्न वर्गों के संभ्रान्त एवं प्रतिष्ठित व्यक्तियों को नामित किया जाता है। इसके अन्तर्गत प्रमुख उद्योगपति, प्रसिद्ध कलाकार, प्रख्यात शिक्षाविद्, प्रतिष्ठित-मूर्धन्य विद्वान् आदि आते हैं। यथा- 'दैनिक जागरण' के निदेशक-मण्डल में प्रख्यात उद्योगपति डॉ. गौरहरि सिंहानिया शामिल रहे हैं।

(ख) वैतनिक निदेशक- समाचार-पत्र के सुचारु तथा स्तरीय प्रकाशन के लिए अनेक विभाग होते हैं। यथा- प्रशासन, सम्पादन, उत्पादन, प्रसार- विज्ञापन आदि। इन विभागों का प्रमुख निदेशक होता है। इसके दिशा-निर्देश एवं नेतृत्व में सभी विभाग अपने कर्त्तव्य एवं दायित्व का वहन करते हैं। इन विभिन्न विभागों की कार्यकुशलता, सफलता और निर्धारित लक्ष्य की उपलब्धि आदि उनके अपने निदेशक की प्रतिभा, योग्यता, क्षमता और कार्यकुशलता पर निर्भर करती है। निदेशक-मण्डल द्वारा निर्धारित नीतियों के कार्यान्वयन का दायित्व इन निदेशकों पर होता है। साथ ही ये समाचार-पत्र समूह के हित में नव्य एवं आकर्षक नीतियाँ बनाकर उन्हें निदेशक-मण्डल के सम्मुख प्रस्तुत करते हैं।
 
प्रमुख विभाग
समाचार-पत्र के सफल प्रकाशन तथा उसको लोकप्रिय बनाने के लिए प्रबन्धन के विभिन्न विभागों की संरचना की जाती है। यथा- प्रमुख विभाग इस प्रकार हैं-
 
1. प्रशासनिक विभाग 
2. सम्पादकीय विभाग 
3. उत्पादन या मुद्रण विभाग 
4. प्रसार विभाग 
5. विज्ञापन-विभाग ।

1. प्रशासनिक विभाग- प्रेस के मालिकों के अधीन प्रेस रहता है, किन्तु उसका प्रत्यक्ष नियंत्रण प्रशासनिक विभाग करता है। प्रेस की परिकल्पना, योजनाएँ बनाना, वित्तीय व्यवस्था देखना, समाचार-पत्र की नीति, कर्मचारियों की नियुक्ति आदि के अतिरिक्त प्रेस-सम्बन्धी समस्त दायित्वों का निर्वहन भी प्रशासनिक विभाग के अन्तर्गत होता है। इसका मुख्य अधिकारी- प्रबन्ध-निदेशक, ट्रस्टी या मालिक होता है। इसके अधीन महाप्रबन्धक, प्रशासन-प्रबन्धक, वित्तनियंत्रक, कार्यालय-प्रबन्धक जैसे अनेक अधिकारी होते हैं।
 
2. सम्पादकीय विभाग- समाचार-पत्र के प्रकाशन में सम्पादकीय विभाग की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। स्वामित्व को छोड़ दें तो समाचार की सारी व्यवस्था का दायित्व इसी विभाग पर होता है। इस विभाग की प्रमुख श्रेणियाँ अधोलिखित हैं-

(क) प्रधान सम्पादक- समाचार-पत्र के प्रधान सम्पादक का महत्त्वपूर्ण स्थान होता । समाचार-पत्र को जीवन्त, प्रभावपूर्ण तथा जनता के मध्य लोकप्रिय बनाने में प्रधान सम्पादक की अहम भूमिका होती है। समाचार-पत्र की रीति-नीति को लागू करना, प्रकाशन सामग्री की भाषा-शैली पर ध्यान देना, उपसम्पादकों, सहायक सम्पादकों को आवश्यक निर्देश देना जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य प्रधान सम्पादक ही करता है। प्रधान सम्पादक के महत्त्व को रेखांकित करते हुए प्रसिद्ध पत्रकार स्व. विष्णुदत्त शुक्ल ने लिखा है-
 
"सम्पादक (प्रधान सम्पादक) का कार्य एक प्रधान सेनापति का कार्य है। जिस प्रकार प्रधान सेनापति अपनी सेना का संचालन करता है, उसी प्रकार सम्पादक या प्रधान सम्पादक को अपने पत्र का संचालन करना पड़ता है। जिस प्रकार एक योग्य सेनापति सेना के चलने-फिरने, खाने-पीने, लड़ने-भिड़ने आदि पर अपनी निगाह रखता है, उसी प्रकार प्रधान सम्पादक सेनापति भी अपने रिपोर्टर, संवाददाता, उपसम्पादक आदि सिपाहियों पर अपनी नज़र रखता है।
 
(ख) प्रबन्ध-सम्पादक- प्रबन्ध-सम्पादक का कार्य प्रबन्ध से सम्बन्धित मामलों को निपटाना होता है। सम्पादन-विभाग में विविध पदों पर नियुक्ति आदि की व्यवस्था प्रबन्ध-सम्पादक द्वारा होती है। इसके अतिरिक्त, सम्पादन-विभाग के लिए आवश्यक सामग्री की व्यवस्था करना और रख-रखाव की ज़िम्मेदारी प्रबन्ध-सम्पादक की होती है। 
(ग) स्थानीय सम्पादक- यह प्रधान सम्पादक के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है। अति महत्त्वपूर्ण पद होने के कारण यह सीधे प्रधान सम्पादक से ही नियंत्रित होता है। वस्तुत: इतने महत्त्वपूर्ण दायित्व का निर्वाह करने के लिए स्थानीय सम्पादक को 'जीता-जागता नगर-ज्ञान-कोष' होना चाहिए। इस हेतु उसे सभी समाचार-पत्रों से सम्बद्ध व्यक्तियों, संस्थाओं, राजनीतिक दलों, सरकारी एवं अर्द्ध-सरकारी पदाधिकारियों आदि के नाम, पते और फ़ोन नम्बर सदैव अपने पास रखने चाहिए। साथ-ही-साथ उसे तथ्यों की सत्यता पर भी ध्यान रखना चाहिए। इसके अतिरिक्त उसे समाचार के वांछनीय-अवांछनीय अंशों की पूरी जानकारी भी होनी चाहिए। तनिक-सी भूल अथवा असावधानी से समाचार-पत्र का पूरा तन्त्र प्रभावित होता है।
 
(घ) सहायक सम्पादक- सहायक सम्पादक का प्रमुख कार्य स्थानीय सम्पादक को सहयोग करना है। वह समाचार-पत्र में छपने वाले लेखों को देखता है। कभी-कभी आवश्यकतानुसार वह सम्पादकीय लेख, फीचर-लेखन को भी देखता है। समाचार-पत्र में प्रायः विविध परिशिष्ट निकलते हैं। इन परिशिष्टों के आकर्षक और स्तरीय सम्पादन एवं प्रकाशन का दायित्व भी उसी पर होता है। अस्तु, सहायक सम्पादक का कार्य अत्यन्त दायित्वपूर्ण होता है।
 
ब)समाचार-सम्पादक- समाचार एकांश का प्रभारी समाचार-सम्पादक होता है। समाचार-पत्र में छपने वाले समस्त समाचारों का दायित्व समाचार-सम्पादक का होता है। वही उन सबका सम्पादन करता है। कौन-सा समाचार किस पृष्ठ पर जाना है- इसका निर्धारण समाचार-सम्पादक ही करता है। इस प्रकार समाचार-पत्र के पूरे कलेवर को उपयोगी और आकर्षक बनाने का काम समाचार-सम्पादक का होता है। वही समाचारों के उपयुक्त शीर्षकों का भी निर्धारण करता है। समाचार-सम्पादक के कार्य में सहयोग देने हेतु कई अन्य सहायक भी होते हैं।
 
(छ) उप-समाचार-सम्पादक या उपसम्पादक - समाचार-सम्पादक को नित्य-प्रति के कार्य-निष्पादन में उप-समाचार-सम्पादक या उपसम्पादक अपना सहयोग देता है। उसे समाचार-पत्र के कुछ पृष्ठों का दायित्व दे दिया जाता है। इन्हें 'डेस्क-प्रभारी' भी कहा जाता है। कभी-कभी ये प्रकाश्य समाचारों का सम्पादन भी करते हैं- साथ ही यह निर्णय भी लेते हैं कि कौन-सा समाचार किस पृष्ठ में जाना चाहिए। उप-समाचार-सम्पादक के निम्नलिखित कार्य हैं -
 
1. समाचार पढ़कर उसकी भाषा को ठीक करने के साथ अपेक्षित संशोधन करना। 
2. आवश्यकतानुसार समाचारों को विस्तृत या संक्षिप्त करना। 
3. एक ही समाचार विभिन्न सूत्रों से प्राप्त होने पर उनकी संगति बैठाकर समाचार की क्रमबद्ध रूपरेखा तैयार करना । 
4. समाचार के तथ्यों की जाँच और पुष्टि करना । 
5. समाचार की कानूनी त्रुटियों को देखना और ठीक करना। 
6. समाचार स्रोतों का उल्लेख करना ।
 
(ज) मुख्य संवाददाता- समाचार-पत्र के मुख्य संवाददाता का दायित्व भी अति महत्त्वपूर्ण होता है। प्रकाशन-योग्य समाचारों के चयन, स्थान के निर्धारण आदि का उत्तरदायित्व मुख्य संवाददाता का होता है। वह अपने से सम्बद्ध संवाददाताओं को उनके कार्य के आवंटन के साथ-साथ आवश्यक दिशा-निर्देश भी देता है।
 
(छ) संवाददाता- समाचार पत्र में कई संवाददाताओं की नियुक्ति होती है। अपराध, शिक्षा, राजनीति, प्रशासन, रेलवे, खेल-कूद, साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियाँ, वी. आई. पी. आदि विविध क्षेत्रों के लिए पृथक्-पृथक् संवाददाता होते हैं। ये सभी अपनी बीट (Beat) के अनुसार समाचारों का संकलन करते हैं। दिनभर के संकलित समाचारों को ये मुख्य संवाददाता को देते हैं।
 
(ज) प्रादेशिक डेस्क- इसका प्रभारी उपसमाचार-संपादक स्तर का व्यक्ति होता है। ये संवादाताओं द्वारा प्रेषित खबरों को सम्पादित करते हैं।
 
(झ) खेल-कूद-डेस्क- खेल-कूद-डेस्क का भी आज के युग में बहुत महत्त्व बढ़ गया है। बड़ी-बड़ी राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय कम्पनियाँ इनका आयोजन करती हैं। प्रत्येक समाचार-पत्र खेल-कूद से सम्बन्धित खबरों को प्रमुखता और आकर्षक शैली में प्रकाशित करता है। इस डेस्क का प्रभारी उपसमाचार-संपादक या उपसम्पादक के स्तर का व्यक्ति होता है।
 
(अ) कम्पोज़िंग और स्कैनिंग 
(ब) प्रोसेसिंग 
(स) मशीन।
 
उत्पादन या मुद्रण विभा 
(अ) कम्पोज़िंग और स्कैनिंग- इस विभाग में समाचारों को कम्पोज़ किया जाता है। अब तो सारा काम कम्प्यूटर से होता है। कम्प्यूटर-कम्पोज़िंग के बाद और समाचार-सम्पादक या सम्पादक के देखने के उपरान्त पूरी सामग्री पृष्ठ-सज्जा के लिए भेज दी जाती है। पृष्ठ-सज्जा के बाद समाचार-पत्रों से सम्बन्धित चित्रों को स्कैनिंग द्वारा वस्तु के अनुरूप बनाया जाता है।
 
(ब) प्रोसेसिंग- समाचार-पत्र के पृष्ठ निर्धारित हो जाने के उपरान्त उसके मुद्रण की प्रक्रिया शुरू होती है। छायाकार छापने योग्य चित्रों की सेटिंग करता है। कहाँ रंग हल्का और कहाँ गहरा करना है- आदि का निर्णय प्रोसेस करते वक्त लिया जाता है।
 
(स) मशीन - इसका प्रभारी एक वरिष्ठ मशीनमैन होता है। उसके ऊपर स्वच्छ, उत्कृष्ट और कलात्मक छपाई का पूरा दायित्व रहता है। वह निर्णय लेता है कि छपाई की कौन-सी प्रक्रिया अपनायी जाय जिससे देखने में समाचार-पत्र का मुद्रण स्वच्छ, उत्कृष्ट, आकर्षक तथा कलात्मक लगे। प्रधान मशीनमैन की सहायता के लिए सहायक मशीनमैन होते हैं।
 
4. प्रसार-विभाग- इस विभाग का प्रमुख प्रसार-व्यवस्थापक होता है। इसका प्रमुख दायित्व होता है- समाचार-पत्र के प्रसार को बढ़ाना। समाचार-पत्र के वितरण, विपणन, वाहनों की व्यवस्था, एजेन्सियों और विभिन्न जनपदों में अपने एजेन्ट की नियुक्ति आदि की व्यवस्था करना वस्तुतः प्रसार-व्यवस्थापक का दायित्व एवं कर्त्तव्य होता है। प्रसार-व्यवस्थापक की सहायता के लिए अनेक सहायक होते हैं। उनके पास प्रसार से सम्बन्धित अलग उपविभाग का कार्य होता है। यथा- सहायक-स्थानीय, सहायक प्रादेशिक, सहायक-वाहन, सहायक-विपणन आदि ।
 
5.विज्ञापन-विभाग - विज्ञापन-विभाग समाचार-पत्र-कार्यालय की आय का स्रोत है। विज्ञापन- समाचार-पत्र की अर्थव्यवस्था की 'रीढ़' होते हैं। विज्ञापन-व्यवस्थापक इस विभाग का प्रभारी होता है। वह निदेशक-मण्डल द्वारा निर्धारित की गयी लक्ष्य-धनराशि की प्रबन्ध-व्यवस्था करता है।

विज्ञापन-व्यवस्थापक अपने सहयोग के लिए एक विज्ञापन-प्रबन्धक नियुक्त करता है। विज्ञापन प्रबन्धक की सहायता के लिए मार्केटिंग एक्जिक्यूटिव्ज़ होते हैं। इन्हें विभिन्न जनपदों से विज्ञापन एकत्र करने का दायित्व दिया जाता है। इनके अतिरिक्त विज्ञापन-व्यवस्थापक विज्ञापन हेतु स्थानीय एजेन्सियाँ भी नियुक्त करता है। ऐसी एजेन्सियाँ कमीशन के आधार पर विज्ञापनों की व्यवस्था करती हैं। ये केवल अपने नियोक्ता समाचार-पत्र के लिए विज्ञापन एकत्र करती हैं। 

COMMENTS

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  1. धन्यवाद, आपके इस लेख से मुझे काफी मदद मिली l आपने बहुत ही सरल शब्दों में समझाने का प्रयास किया है

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