जयशंकर प्रसाद का गीतिकाव्य

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जयशंकर प्रसाद का गीतिकाव्य जयशंकर प्रसाद हिंदी छायावाद के चार स्तंभों में से एक हैं। उनकी गीतिकाव्य रचनाओं में भावनाओं की गहनता, प्रतीकात्मकता और संगी

जयशंकर प्रसाद का गीतिकाव्य

यशंकर प्रसाद हिंदी छायावाद के चार स्तंभों में से एक हैं। उनकी गीतिकाव्य रचनाओं में भावनाओं की गहनता, प्रतीकात्मकता और संगीतात्मकता विशेष रूप से उल्लेखनीय है। प्रसाद जी की कविताओं में प्रकृति, प्रेम, जीवन, मृत्यु, दर्शन आदि विषयों का चित्रण मिलता है।

छायावादी गीतिकाव्य को पूर्णता प्रदान करने में प्रसाद जी का योगदान सराहनीय है। झरना, लहर आदि संग्रहों में उनके श्रेष्ठ गीत गीतिकाव्य का चरमोत्कर्ष उपस्थित करते हैं। उनके गीतों का वैशिष्ट्य निरूपित करते हुए डॉ० द्वारिकाप्रसाद सक्सेना ने लिखा है कि “इनकी अपनी निजी तान है, निजी लय है, निजी स्वर है, निजी ताल है और निजी बन्धन है। इसी कारण ये 'प्रगीत' कहलाते हैं। ये प्रगीतात्मक कविताएँ विविध नूतन राग-रागिनियाँ प्रस्तुत करती हैं, मांसल एवं सूक्ष्म-सौन्दर्य के निरूपण में मादक अनुरक्ति के स्वर अभिव्यक्त करती हैं, भावोच्छ्वास की गम्भीर विह्वलता को कोमल लय में अंकित करती हैं, प्रेम एवं प्रणय-सम्बन्धी सूक्ष्म भावों की मधुर तान छेड़ती हैं, स्मृति एवं अन्तर्द्वन्द्व की कोमल रागिनियाँ गाती हैं, भावुकता एवं भावों से परिपूर्ण गंभीर चिंतन एवं मनन को प्रस्तुत करती हैं, छायावाद की नूतन स्वरलहरी को बहाती हैं तथा ओज, कान्ति एवं तेजस्विता के मार्मिक नाद को अंकित करती हुई पाठकों एवं श्रोताओं को अपनी लय में लीन करने की पूर्ण सामर्थ्य प्रकट करती हैं।" 

जयशंकर प्रसाद का गीतिकाव्य


प्रसाद जी के गीतों के सरलतापूर्वक दो भेद किये जा सकतें हैं:
  • संगीतप्रधान और 
  • साहित्यिक। 
उनके नाटकों के अधिकांश गीत संगीत की शास्त्रीय राग-रागिनियों से युक्त हैं। इनमें अतिशय मधुर सांगीतिक पदावलियों का भी प्रयोग किया गया है। गीतों में स्वरों का आरोह-अवरोह अद्भुत है।
 
चूँकि उनके गीतों की प्रवृत्तियाँ भी लगभग वही हैं जो अन्य काव्य-रचनाओं की हैं, अतः अलग से इनके विस्तृत विवेचन की आवश्यकता नहीं है। फिर भी निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत उनका अध्ययन किया जा सकता हैं : 
  1. संगीतात्मकता, 
  2. रागात्मक अनुभूति, 
  3. वेदना की विवृति 
  4. सहज-स्वाभाविक अभिव्यक्ति, 
  5. आत्माभिव्यक्ति, 
  6. सौन्दर्यमयी कल्पना, 
  7. लयात्मक अनुभूति,
  8. संक्षिप्तता आदि ।
 
'प्रसाद' जी के गीतों की भी विभिन्न कोटियाँ हैं। जैसे :
  • देश की अतीतगरिमा से सम्बंधित गीत -'अरुण यह मधुमय देश हमारा' तथा 'हिमालय के आँगन में उसे प्रथम किरणों का दे उपहार' शीर्षक गीतों में प्रसाद जी ने भारतीय सांस्कृतिक तथा दार्शनिक गरिमा का आख्यान अतिशय कलात्मक ढंग से किया है। प्रतीकात्मक परिवेश में देश की गरिमा का राष्ट्रीय भावनाओं से भरा हुआ चित्र जैसा 'प्रसाद' के गीतों में प्राप्त होता है, वैसा किसी अन्य कवि में नहीं।
  • उद्बोधनमूलक गीत - प्रसाद जी ने अपने राष्ट्रीय उद्बोधनमूलक गीतों में अत्यन्त स्पष्ट एवं प्रभावशाली शब्दों में देश के नवयुवकों तथा सैनिकों को उनका कर्त्तव्य स्मरण दिलाकर, उनके सुप्त पुरुषत्व को धिक्कार कर, जातीय गौरव की रक्षा के लिए जो उद्बोधन दिये हैं वे ओज, उत्साह, प्रवाह, जागृति और पुरुषत्व के प्रतीक हैं। इस सन्दर्भ में उनके 'क्या सुना नहीं कुछ अभी पड़े सोते हो' तथा 'देश की दुर्दशा निहारोगे' नामक गीत देखे जा सकते हैं। विशेषता यह है कि ये दोनों गीत उन्होंने नारियों के माध्यम से प्रस्तुत कराये हैं जो इस तथ्य की ओर संकेत करते हैं कि भारतीय जनजागृति के कार्य में नारियों का भी महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है।
  • नवजागरणमूलक - गीत प्रसाद जी ने कुछ ऐसे भी गीत लिखे हैं जिनका मूल उद्देश्य राष्ट्रीय भावनाओं की अभिव्यक्ति या नवजागरण के स्वरों को प्रस्तुत करना है। 'पैशोला की प्रतिध्वनि' में प्रसाद जी ने ऐतिहासिक परिवेश में रचना के द्वारा नवजागरण तथा राष्ट्रीयता की भावनाओं की अभिव्यक्ति नाटकीय कौशल के साथ की है -  'कौन लेगा भार यह ? जीवित है कौन ? साँस चलती है किसकी ? कहता है कौन ऊँची छाती कर, मैं हूँ- 'मैं हूँ मेवाड़ में।'
  • स्फुट गीत -इस श्रेणी के अन्तर्गत हम प्रसाद जी के ऐसे गीतों को रख सकते हैं जिनका समावेश अभी तक वस्तुगत दृष्टि से विभक्त गीतों के भीतर नहीं किया जा सका है। 'उठ उठ लोल लहर' तथा 'ओ री मानस की गहराई' नामक गीत ऐसी ही रचनाएँ हैं।
प्रसाद जी की गीतिकाव्य रचनाएं आज भी पाठकों के बीच लोकप्रिय हैं। उनकी कविताओं में जीवन और जगत के प्रति गहरी अंतर्दृष्टि मिलती है।

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