दो वरदान | Do Vardaan | Bal Ram Katha Class 6

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दो वरदान Do Vardaan Bal Ram Katha Class 6 दो वरदान बाल राम कथा का तीसरा प्रसिद्ध अध्याय है जो त्याग, कर्तव्य और वचनबद्धता के मूल्यों को दर्शाता

दो वरदान | Do Vardaan | Bal Ram Katha Class 6

 
दो वरदान, बाल राम कथा का तीसरा प्रसिद्ध अध्याय है जो त्याग, कर्तव्य और वचनबद्धता के मूल्यों को दर्शाता है। यह कहानी राजा दशरथ, रानी कैकेयी और उनके पुत्रों, भगवान राम और भरत, के जीवन में घटित एक दुखद घटना पर आधारित है।

दो वरदान पाठ का सारांश 

राजा दशरथ के मन में अब एक ही इच्छा बची थी। राम का राज्याभिषेक। उन्होंने राम को राज-काज में शामिल करना शुरू कर दिया था। राम बहुत ही विद्वता, पराक्रम व विनम्रता से कार्य कर रहे थे। दरबार में राम का सम्मान निरन्तर बढ़ रहा था।
 
राजा दशरथ ने दरबार में कहा-"मैं वृद्ध हो चला हूँ और राज्य का कार्यभार राम को सौंपना चाहता हूँ।" सभा ने राजा दशरथ के प्रस्ताव का स्वागत किया-"शुभ काम में देरी कैसी, यह कार्य कल सुबह कर दिया जाए।
 
दो वरदान | Do Vardaan | Bal Ram Katha Class 6
भरत व शत्रुघ्न उस समय अयोध्या में नहीं थे। वे अपने नाना कैकेयराज के यहाँ गए हुए थे। राजा दशरथ ने राम से इस विषय में चर्चा की और कहा कि तुम राजधर्म का पालन करना, कुल की मर्यादा की रक्षा अब तुम्हारे हाथ में है।

राज्याभिषेक की तैयारियाँ रानी कैकेयी की दासी ने भी देखीं। मंथरा यह सुनकर जल-भुन गई कि कल राम का राज्याभिषेक होने वाला है। उसने रनिवास में जाकर सोती हुई कैकेयी को जाकर कहा-" अरे मेरी मूर्ख रानी! उठ। तेरे ऊपर भयानक विपदा आने वाली है। विपत्ति का पहाड़ टूटे, इससे पहले जाग जाओ।" उसने कहा कि कल राम का राज्याभिषेक होने वाला है, अब राम युवराज होंगे।
 
कैकेयी ने कहा-"अच्छी बात है, राम इस पद के योग्य हैं।" मंथरा कहने लगी- "रानी, तुम्हारी बुद्धि फिर गई है, राम को राज मिला तो वे भरत को देश निकाला दे देंगे। वे भरत को दंड देंगे। इस तिरस्कार से भरत की रक्षा करो, रानी ! कोई ऐसा उपाय करो कि राजगद्दी भरत को मिले और राम को जंगल भेज दिया जाए।"
 
कैकेयी पर मंथरा की बातों का असर होने लगा, उसे मंथरा के तर्कों में सच्चाई दिखने लगी।मंथरा ने कैकेयी से कहा, "याद करो रानी! महाराज दशरथ ने तुम्हें दो वरदान दिए थे। दशरथ से अपना वचन पूरा करने को कहो। एक से भरत के लिए राजगद्दी माँग लो। दूसरे से राम को चौदह वर्ष का वनवास । तुम मैले कपड़े पहनकर कोपभवन चली जाओ। तुम दशरथ की प्रिय रानी हो, वे तुम्हारा दुख देख नहीं पायेंगे। बस उस समय तुम दोनों वचन माँग लेना।"

रानी मंथरा के कथनानुसार कोपभवन चली गई। दिनभर की गहमागहमी के बाद महाराज दशरथ को रानियों की याद आई। सबसे पहले वे कैकेयी के कक्ष की तरफ गए। कैकेयी वहाँ नहीं थी। पता चला कैकेयी कोपभवन में है। 

दशरथ कोपभवन में जाकर कैकेयी की दशा देखकर व्यथित हो गए और पूछा- "तुम्हें क्या दुख है? क्या हुआ है तुम्हें? तुम अस्वस्थ हो? राजवैद्य को बुलाऊँ?" परन्तु कोई उत्तर नहीं मिला, कैकेयी रोती रही। दशरथ भी भूमि पर बैठ गए, विनती करते रहे। कैकेयी बोली- ''मैं जो माँगू, उसे पूरा करोगे?" दशरथ ने कहा, “तुम मेरी सबसे प्रिय रानी हो, मैं तुम्हारी हर इच्छा पूरी करूँगा।"
 
कैकेयी ने कहा-"आप मुझे दो वरदान दीजिए, जिसका संकल्प आपने वर्षों पहले रणभूमि में लिया था।" दशरथ ने हामी भरी। "कल सुबह राज्याभिषेक भरत का हो, राम का नहीं। राम को चौदह वर्ष का वनवास हो। " दशरथ अवाक् रह गए। उनका चेहरा सफेद हो गया, सिर चकराने लगा, वे मूच्छित होकर गिर पड़े ।कुछ समय बाद दशरथ ने नेत्र खोले तो कैकेयी ने अंतिम हथियार चलाया, "अपने वचन से पीछे हटना रघुकुल का अनादर है। आप चाहें तो ऐसा कर सकते हैं। पर आप दुनिया में मुँह दिखाने योग्य न रहेंगे। रही मेरी बात। आप वरदान नहीं देंगे तो मैं विष पीकर आत्महत्या कर लूँगी। यह कलंक आपके माथे होगा।"
 
राजा दशरथ यह सुन नहीं सके। दोबारा बेहोश हो गए। वह कैकेयी को समझाते, गिड़गिड़ाते, डराते रहे। पर कैकेयी टस से मस नहीं हुई। सारी रात इसी तरह बीत गई। 

दो वरदान के प्रश्न उत्तर 

प्रश्न . राजा दशरथ के मन में क्या इच्छा शेष थी? 
उत्तर-राजा दशरथ के मन में अब एक ही इच्छा बची थी। राम का राज्याभिषेक। उन्हें युवराज का पद देना।
 
प्रश्न. राजा दशरथ ने राम के राज्याभिषेक के संबंध में दरबार में क्या कहा?
 
उत्तर- राजा दशरथ ने राम के राज्याभिषेक के संबंध में दरबार में कहा, "मैंने लंबे समय तक राज-काज चलाया। जैसा बन पड़ा। अब मेरे अंग शिथिल हो गए हैं।मैं वृद्ध हो चला हूँ। मैं चाहता हूँ कि यह कार्यभार राम को सौंप दूँ। अगर आप सब सहमत हों तो राम को युवराज का पद दे दिया जाए। अगर आपकी राय इससे भिन्न है तो मैं उस पर भी विचार करने को तैयार हूँ।"
 
प्रश्न. प्रजा पर राजा दशरथ के वचनों की क्या प्रतिक्रिया हुई? 
उत्तर-सभा ने तुमुलध्वनि से राजा दशरथ के प्रस्ताव का स्वागत किया। राम की जय-जयकार होने लगी। दशरथ थोड़ी देर तक सुनते रहे। संतोष के साथ उन्होंने कहा, "शुभ काम में देरी नहीं होनी चाहिए, मेरी इच्छा है कि राम का राज्याभिषेक कल सुबह कर दिया जाए।"
 
प्रश्न. दशरथ ने राम से क्या कहा?
 
उत्तर- उन्होंने राम से कहा, "जनता ने तुम्हें अपना राजा चुना है। तुम राजधर्म का पालन करना। कुल की मर्यादा की रक्षा अब तुम्हारे हाथ में है।"
 
प्रश्न. मंथरा ने कैकेयी से क्या कहा? 
उत्तर- मंथरा ने कहा, "अरे मेरी मूर्ख रानी! उठ। तेरे ऊपर भयानक विपदा आने वाली है। यह समय सोने का नहीं है। होश में आओ। विपत्ति का पहाड़ टूटे, इससे पहले जाग जाओ। सब अमंगल होने वाला है। तुम्हारे सुखों का अंत। महाराज दशरथ ने कल राम का राज्याभिषेक करने का निर्णय लिया है। अब राम युवराज होंगे।"

'सवाल राम की योग्यता का नहीं है। राजा दशरथ के षड्यंत्र का है। तुम्हारे अधिकार छीनने का है," मंथरा ने हार दूर फेंकते हुए कहा। यह षड्यंत्र नहीं तो और क्या है? कल सुबह राज्याभिषेक है। भरत को जानबूझकर ननिहाल भेज दिया। समारोह के लिए बुलाया तक नहीं।"
 
प्रश्न. कैकेयी ने मंथरा को डाँटते हुए क्या कहा? 
उत्तर-कैकेयी ने मंथरा को डाँटते हुए कहा, "राम के प्रति मेरा अगाध स्नेह है। वह मुझे माँ के समान मानते हैं। तुझे इसमें षड्यंत्र दिखाई देता है? इसमें षड्यंत्र नहीं है। राम के बाद भरत ही राजा बनेंगे। राज सर्वदा ज्येष्ठ पुत्र को ही मिलता है!"
 
प्रश्न. कैकेयी को मंथरा ने क्या कहकर उत्तेजित किया? 
उत्तर- कैकेयी को मंथरा ने यह कहकर उत्तेजित किया-"तुम्हें आसन्न संकट नहीं दिखता। दुःख की जगह प्रसन्नता होती है। राम राजा बने तो तुम कौशल्या की दासी बन जाओगी। भरत राम के दास हो जाएँगे। वह राजा नहीं बनेंगे। राम के बाद अगला राजा राम का पुत्र होगा। अनर्थ को अर्थ समझने की मूर्खता मत करो, रानी! राम को राज मिला तो वे भरत को देश निकाला दे देंगे। वे भरत को दंड देंगे। इस तिरस्कार से भरत की रक्षा करो, रानी! कोई ऐसा उपाय करो कि राजगद्दी भरत को मिले और राम को जंगल भेज दिया जाए।"
 
"याद करो रानी! महाराज दशरथ ने तुम्हें दो वरदान दिए थे। दशरथ से अपना वचन पूरा करने को कहो। एक से भरत के लिए राजगद्दी माँग लो। दूसरे से राम को चौदह वर्ष का वनवास ।' " 

प्रश्न. दशरथ ने कैकेयी को भवन में देखकर क्या पूछा? 

उत्तर- दशरथ ने कैकेयी को भवन में देखकर पूछा कि तुम्हें क्या दुःख हुआ है तुम्हें? मुझे बताओ। अस्वस्थ हो? राजवैद्य को बुलाऊँ? तुम मेरी सबसे प्रिय रानी हो। मैं तुम्हें प्रसन्न देखना चाहता हूँ। तुम्हारी खुशी के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ। कुछ भी, धरती-आसमान एक कर सकता हूँ। 

प्रश्न. कैकेयी ने दशरथ से कौन-से दो वरदान माँगे ? 

उत्तर-(1) “कल सुबह राज्याभिषेक भरत का हो, राम का नहीं।" (2) " राम को चौदह वर्ष का वनवास हो।"
 
प्रश्न. कैकेयी ने दशरथ को वचन पूरा करने के लिए क्या कहा? 

उत्तर- " अपने वचन से पीछे हटना रघुकुल का अनादर है। आप चाहें तो ऐसा कर सकते हैं। पर तब आप दुनिया में मुँह दिखाने योग्य नहीं रहेंगे। रही मेरी बात। आप वरदान नहीं देंगे तो मैं विष पीकर आत्महत्या कर लूँगी। यह कलंक आपके माथे होगा।"


दो वरदान पाठ के कठिन शब्दार्थ

सम्मान = आदर
निरंतर= लगातार । 
प्राणों से प्यारे=अत्यधिक प्रिय।  
तुमुलध्वनि = प्रसन्नतापूर्वक । 
आग बबूला = क्रोधित। 
विपत्ति का पहाड़ = टूटना मुसीबत खड़ी होना। 
समारोह = उत्सव। 
ज्येष्ठ = बड़ा। 
स्नेह = प्यार। 
अव्यक्त=जिसे व्यक्त न किया जा सके (कहा न जा सके)। 
संकल्प लेना = किसी काम को करने का निश्चय करना। 
टस से मस न होना = विचलित न होना (बात न मानना)। 

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