एक समाचार पत्र की आत्मकथा पर निबंध | Samachar Patra Ki Atmakatha Nibandh

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एक समाचार पत्र की आत्मकथा पर निबंध Samachar Patra Ki Atmakatha Nibandh मैं एक समाचार पत्र हूँ, कागज का वो पन्ना जो हर सुबह आपके घरों में दस्तक देता है

एक समाचार पत्र की आत्मकथा पर निबंध


मैं एक समाचार पत्र हूँ, कागज का वो पन्ना जो हर सुबह आपके घरों में दस्तक देता है। मैं शब्दों का वो समूह हूँ जो आपको दुनिया से जोड़ता है। मैं जानकारी का वो स्रोत हूँ जो आपको शिक्षित करता है, आपको जागरूक करता है।

मेरा जन्म होता है एक विशाल कार्यालय में, जहाँ पत्रकार दिन-रात दुनिया भर की खबरें इकट्ठा करते हैं। संपादक उन खबरों को छानते हैं, उन्हें क्रम देते हैं, और उन्हें मेरे पन्नों पर उतारते हैं। मेरे शरीर पर स्याही के निशान, दुनिया की कहानियाँ लिखते हैं।

मैं समाचार पत्र, आज मैं अपने बारे में आप सभी को बताना चाहता हूँ। मेरे जन्म का मुख्य उद्देश्य है- सामाजिक, आर्थिक, खेल जगत या जो भी पूरे विश्व में हो रहा है या हो चुका है, उसकी खबर जन-जन तक पहुँचाना। में काफी प्राचीन काल से अपने नाम को सार्थक कर रहा हूँ। समय एवं काल के अनुसार मेरा लिबास एवं तरीका परिवर्तित होता रहता है। प्राचीन काल में मैं डोंडी या डुग्गी के माध्यम से जनता से मिलता था, कभी भोज पत्रों के माध्यम से मैं युद्ध की विकट स्थिति, चमत्कार या राज्यारोहण जैसे समारोह का वर्णन करता था। राजकीय घोषणाओं के लिये मैंने शिलाखण्ड का रूप अपना लिया। सम्राट अशोक ने मुझे धर्म प्रचार का भी काम सौंपा जिससे मैं धन्य हो गया, क्योंकि अशोक के शिलालेख तो इतिहास प्रसिद्ध हैं। विश्व पत्रकारिता के उदय की दृष्टि से मैं समचार पत्रों का पूर्वज हूँ।
 
एक समाचार पत्र की आत्मकथा पर निबंध | Samachar Patra Ki Atmakatha Nibandh
धीरे-धीरे मानव सभ्यता के विकास के साथ मेरा भी विकास होता गया। पाँचवीं शताब्दी में रोम की राजधानी से दूर स्थित नागरिकों तक मैं संवाद लेखक के रूप में जाता था। 60 ई.पू. में जूलियस सीजर ने मेरा परिचय 'एक्ट डायना' नाम से किया जहाँ मैं शासकीय घोषणाओं को प्रचारित करता था।
 
16वीं शताब्दी में मैं पर्ची के रूप में आया। मेरा काम किन्तु सदैव एक ही रहा, युद्धों का सजीव चित्रण, आश्चर्य में डालनेवाले प्रसंग तथा राज दरबारों के रोचक किस्सों से जनमानस को अवगत कराना। हिन्दुस्तान में मुगल साम्राज्य की स्थापना से ही मेरे जीवन को नया आयाम मिला। इस काल में कुछ वाक्यानवीस (रिपोर्टर) हुआ करते थे जो मेरे लिए खबर लाया करते थे फिर मुझे हस्तलिखित कारिगर उन खबरों को सजाते थे। बहादुरशाह के काल में मैं "सिराज-उल-अखबार” के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
 
ईस्ट इण्डिया कंपनी को मुझसे हमेशा भय रहता था। उन दिनों जिन्हें कंपनी के विरुद्ध शिकायत थी उन महानुभावों ने मुझे अपने विचारों एवं शिकायतों से अलंकृत किया।
 
30 मई 1826 को युगल किशोर शुक्ल ने मुझे 'उदन्त मार्तन्ड' के नाम से प्रकाशित कर हिन्दी के प्रथम समाचार पत्र से गौरवान्वित किया। अल्प आयु यानी डेढ़ साल में आर्थिक परेशानियों से मुझे ग्रहण लग गया। ग्रहण की काली छाया मुझ पर से 10 मई, 1829 को दूर हुई जब राजाराम मोहन राय ने मुझे 'बंगदूत' के नाम से सबसे परिचित कराया। मुझे नीलरतन हालदर ने शब्दों से सुसज्जित किया था। इसके बाद अलग-अलग जगहों पर विभिन्न समय एवं काल में मेरे भाई बन्धु अवतरित हुए। 1826 ई० से 1873 ई. तक को मेरा पहला चरण कहा जा सकता है। बंगदूत (1829), प्रजामित्र (1834), बनारस अख़बार (1845), मार्तण्ड पंचभाषीय (1846), ज्ञानदीप (1846), मालवा- अखबार (1849), मजहरुलसरूर (1850), बुद्धिप्रकाश (1852), ग्वालियर गजट (1853), समाचार सुधावर्षण (1854), दैनिक कलकत्ता, प्रज, हितैषी (1855), सर्वहितकारक (1855), सूरजप्रकाश (1861), लोकमित्र (1835), भारतखंडामृत (1864), तत्वबोधिनी पत्रिका (1865), इन पत्रों में से कुछ मासिक थे, कुछ साप्ताहिक। इस तरह मेरे परिवार का विकास हुआ। 1854 में श्यामसुन्दर सेन ने कलकत्ता में मुझे 'सुधावर्षण' के नाम से जनता जनार्दन से प्रतिदिन मिलने का अवसर दिया।
 
1857 में 'पयामें आजादी' के नाम से मुझे आजादी में सरीख होने का अवसर मिला। ये सौभाग्य मुझे नाना साहेब और अजिमुल्ला खाँ की वजह से मिला। 'पयामें आजादी' के रूप में में जनता में अपनी प्रखर एवं तेजस्वी वाणी से जोश भरने में कामयाब रहा। मेरे द्वारा ही तत्कालीन राष्ट्रीय गीतलोगों तक पहुँचा जिसकी पंक्तियाँ निम्न थीं  -

हम हैं इसके मालिक, हिन्दुस्तान हमारा 
पाक वतन है कौम का, जन्नत से भी प्यारा।. 
आज शहीदों ने मुझको, अहले वतन ललकारा। 
तोड़ो गुलामी की जंजीरें, बरसाओ अंगारा ।

आजादी की लड़ाई में मेरे अन्य भाई बन्धु जैसे धर्मप्रकाश, सूरज प्रकाश, सर्वोकारक, प्रजापति, ज्ञानप्रकाश भी अपना तेजस्वी वाणी से लोगों में जोश भरने में कामयाब रहे। आजादी के संघर्ष के बाद से आज तक मेरा विकास बहुत तेजी से हुआ। अनेक नामों से दुनिया को अपडेट करते हुए खुद भी अपडेट होता गया। आलम ये है कि आज मैं ई अखबार के रूप में आपके पी.सी. पर भी दस्तक दे चुका हूँ। आजकल तो मैं सुबह की चाय के साथ अनेक नामों जैसे - नई दुनिया, हिन्दुस्तान टाइम्स, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, अमर उजाला, दबंग दुनिया, आज, नव भारत टाइम्स आदि अनेक रूपों में उगते सूरज के साथ सुप्रभात करने आपके घर पहुँच जाता हूँ और आप सभी को हर क्षेत्र की जानकारी से प्रकाशित कर अपने आपको धन्य समझता हूँ।

मैंने इतिहास के कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। मैंने क्रांतियाँ और युद्ध देखे हैं, मैंने विकास और प्रगति देखी है। मैंने मानव सभ्यता के हर पहलू को करीब से देखा है। मैं लोगों की आवाज हूँ, उनकी भावनाओं का प्रतिबिम्ब हूँ।

मेरा जीवन आसान नहीं रहा है। मुझे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। मुझे प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा है, मुझे सेंसरशिप का सामना करना पड़ा है। लेकिन मैंने हार नहीं मानी। मैं हमेशा सच कहने की कोशिश करता रहा हूँ, लोगों को सही जानकारी देने की कोशिश करता रहा हूँ।आज के डिजिटल युग में, मेरा रूप बदल रहा है। मैं अब सिर्फ़ कागज के पन्नों तक सीमित नहीं रहा हूँ। मैं ऑनलाइन भी उपलब्ध हूँ, जहाँ लोग मुझे कभी भी, कहीं भी पढ़ सकते हैं। यह मेरे लिए एक नया अवसर है, और मैं इसका पूरा लाभ उठाना चाहता हूँ।

मैं चाहता हूँ कि मैं हर व्यक्ति तक पहुँचूँ, हर किसी को शिक्षित करूँ, और हर किसी को प्रेरित करूँ। मैं चाहता हूँ कि मैं दुनिया को बेहतर बनाने में मदद करूँ।मैं एक समाचार पत्र हूँ, और मेरा जीवन अनंत कहानियों से भरा है।

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