निर्मला उपन्यास में संयोग अधिक आ जाने से कथानक कमजोर हुआ है

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निर्मला उपन्यास में संयोग अधिक आ जाने से कथानक कमजोर हुआ है मुंशी प्रेमचंद जी द्वारा लिखित निर्मला उपन्यास का कथानक सामान्यता सुसंगठित, रोचक तथा एकसूत

निर्मला उपन्यास में संयोग

मुंशी प्रेमचंद जी द्वारा लिखित निर्मला उपन्यास का कथानक सामान्यता सुसंगठित, रोचक तथा एकसूत्रता में बँधा है। उस में कुछ कमियाँ स्पष्ट हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि लेखक को अपने पाठक पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं । वे हर बात को पूरी तरह से, विस्तारपूर्वक समझा कर कह देना चाहते हैं, यह अतिकथन ही दोष बन गया है ।
 
निर्मला उपन्यास में संयोग अधिक आ जाने से कथानक कमजोर हुआ है
सर्वप्रथम संयोगों की भरमार इसके कथानक को कमजोर करती है। जब उदयभानु लाल आत्म हत्या का अभिनय करने निकलते हैं तो अचानक तीन साल की सजा काट कर, एक दिन पहले जेल से छूटा बदमाश मतई उन्हें पकड़ कर उनका पीछा करता है और मार डालता है । लेखक यहीं पर अपनी ओर से संकेत भी देते हैं कि उदयभानु लाल के लिए ईश्वर ने कुछ और ही विधान रच रखा है । इसी प्रकार जब मुंशी तोताराम निर्मला के आगे अपनी बहादुरी की डींग मार- रहे हैं और निहत्थे चार पांच चोरों से लड़ने की बहादुरी का बखान कर रहे हैं तो एकाएक रुक्मिणी के कमरे में साँप निकल आता है और तोताराम जी भाग खड़े होते हैं । मंसाराम उसे मारता है । अब यहां पर निर्मला तो पहले ही मुंशी जी की बुजदिली का मजाक उड़ा रही थी और पाठक भी इसे समझ रहा था तो इस संयोग की क्या आवश्यकता थी ?
 
संयोग ऐसा होता है कि जो डाक्टर मंसाराम का इलाज करता है, वह मुंशी जी का मित्र बन जाता है और वह डॉ० सिन्हा निकलता है जिस ने निर्मला को दहेज के लिए त्याग दिया था। एक संयोग यह भी होता है कि जिस दिन निर्मला के यहाँ बेटी होती है उसी दिन मुंशी का मकान नीलाम होता है और उसी दिन उस की बहन कृष्णा की शादी भी तय होती है । संयोग वश ही मुंशी जी एकाएक निर्मला की चिता को आग देने के लिए ठीक वक्त पर पहुँच जाते हैं । इस प्रदार संयोगों की भरमार कथानक में जड़ता लाती है । 

उपन्यासों में सपनों का होना गलत नहीं । यहां पर सपनों के माध्यम से आने वाली कथा का आभास पहले ही दे दिया जाता है । ऐसा करने से कहानी की रोचकता कम होती है । विवाह से पहले निर्मला को सपना आता है कि एक टूटी-फूटी डोंगी उसे लेनी आई है । उसे लगता है कि किनारे बैठे रहने से उस टूटी-फटी डोंगी में चल देना ही ठीक है । यह टूटी डोंगी उस के भावी जीवन का संकेत है । उस का पति ही वह डोंगी है । इसी प्रकार अस्पताल में मुंशी तोताराम को पहले स्वप्न आता है कि मंसाराम की स्वर्ग वासिनी मां उसे लेने आ गई है । वह उसे अपने साथ ले जाती है । मंसाराम की मृत्यु का आभास दे कर उसकी मृत्यु का प्रसंग निरर्थक बना दिया है ।
 
अनेक स्थानों पर लेखक को भविष्य बता देने का लालच हो जाता है । घटना घटित होने से पहले ही लेखक उस की सूचना दे देता है। मंसाराम को स्कूल के बोडिंग में दाखिल करवाया जा रहा है और रुक्मिणी उसे जाते देख कर सोचती है अब वह लौट कर नहीं आएगा।
 
प्रेमचन्द जी पात्रों की अनावश्यक हत्याएं करवाते हैं।डाक्टर भुवन मोहन की आत्महत्या तथा जियाराम की आत्महत्या एकदम अनावश्यक है । उनके पात्रों को लेखक जन्म देकर भूल जाता है । उनका विकास ही नहीं हो पाता । 

इस प्रकार मुंशी प्रेमचन्द द्वारा बार-बार संयोग का सहारा लेकर कथा को आगे बढ़ाना अनुचित है । ऐसा करने से कथानक की विश्वसनीयता कम हो जाती है । 

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