लोकतंत्र में भ्रष्टाचार और मीडिया पर निबंध

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लोकतंत्र में भ्रष्टाचार और मीडिया पर निबंध लोकतंत्र, जनता द्वारा, जनता के लिए, और जनता का शासन है सरकार की नीति भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई मे मीडिया

लोकतंत्र में भ्रष्टाचार और मीडिया पर निबंध


लोकतंत्र, जनता द्वारा, जनता के लिए, और जनता का शासन है। यह प्रणाली पारदर्शिता, जवाबदेही और न्याय के सिद्धांतों पर टिकी होती है। लेकिन, जब भ्रष्टाचार इस व्यवस्था में प्रवेश करता है, तो यह लोकतंत्र की नींव को कमजोर कर देता है।

भ्रष्टाचार अनेक रूपों में हो सकता है, जैसे रिश्वत, घोटाला, पद का दुरुपयोग, और कानूनों का उल्लंघन। यह न केवल सरकार की दक्षता को कम करता है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक असमानता को भी बढ़ावा देता है।

इस खतरनाक बीमारी से लड़ने में मीडिया एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। मीडिया को "लोकतंत्र का चौथा स्तंभ" कहा जाता है क्योंकि यह सरकार और नागरिकों के बीच एक सेतु का काम करता है।

लोकतंत्र में सरकार की नीति

लोकतंत्र में भ्रष्टाचार और मीडिया पर निबंध
लोकतंत्र अर्थात् भारतीय शासन व्यवस्था की परिभाषा देते हुए अब्राहम लिंकन ने लिखा है कि Government is of the people by the people and for the people ; अर्थात् जनता की सरकार, जनता के लिए सरकार और जनता द्वारा चुनी गई सरकार। आज भारत एक प्रजातांत्रिक देश है।प्रजा द्वारा चुनी गयी सरकार ही देश के सत्ता की देखभाल करती है अर्थात् सरकार की नीति, लोक कल्याण की होनी चाहिए और लोक कल्याण ही जनता का कल्याण होगा। अतः स्वभावतः जनता का ध्यान उस नीति की तरफ जाना चाहिए जिस नीति के सहारे उस देश की सरकार उस पर शासन करती है।
 
इस शासन प्रणाली में जनता ही अपने बीच से उन प्रतिनिधियों का चुनाव करती है जो सरकार के अंग बनकर सत्ता की देखभाल करते हैं । लोकतांत्रिक राज्य में सभी को यह अधिकार प्राप्त है कि अगर वह वयस्क हो गया, प्रतिनिधि बनने की अर्हताएं और योग्यताएँ उसे प्राप्त हैं तो वह चुनाव में भाग लेकर अपने को जन प्रतिनिधि के रूप में चुनने की जनता से माँग करे। इस आधार पर हमारे देश में विभिन्न दलों के बहुत सारे समूह हैं जो जनता के सामने अपनी पार्टी की नीतियों से उसका ध्यान आकृष्ट कर अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के पक्ष में जनता से मतदान करने का आग्रह करते हैं। चुनाव प्रक्रिया समाप्त होने के बाद जिस दल का बहुमत होता है वह सरकार बनाता है और अपने घोषणापत्र के अनुरूप नीतियों का निर्धारण कर राजसत्ता चलाता है। 

भारत मे लोकतांत्रिक प्रणाली

भारत ने इस लोकतांत्रिक प्रणाली को इसलिए स्वीकार किया कि इस प्रणाली में बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय कार्य होने की अधिक सम्भावना होती है। इस प्रणाली को अपनाते समय हमारे राजनेताओं ने अवश्य सोचा होगा कि इस प्रणाली द्वारा देश का द्रुतगति से विकास होगा और शासक और शासित के बीच की खाई भी पट जाएगी। उन्होंने यह कभी नहीं सोचा होगा कि राजनीति की प्राचीन परिभाषा साम-दाम, दण्ड विभेद नीति से अपने स्वार्थ की पूर्ति भारतीय राजनीति का अंग बन जाएगी। राजनीति और भ्रष्टाचार का नाम लेते ही आज लगने लगता है कि क्या भ्रष्ट नीति को ही राजनीति कहते हैं ? आज के भारत के परिदृश्य को देखने पर हमें राजनीति की परिभाषा कुछ इस प्रकार की लगती है - ‘“वह नीति जिसके द्वारा दूसरों को बुद्धू बनाकर अपना उल्लू सीधा किया जा सके, कुर्सी तक पहुँचा जा सके, जनता का शोषण किया जा सके, उसे जाति-धर्म, वर्ग में बाँटा जा सके और निर्बाध सरकारी खजाने को लूटा जा सके। सरकारी खजाने का लूटने की कला में जो जितना माहिर है वह उतना ही बड़ा नेता है। ग्राम प्रधान से लेकर मंत्री और आलामंत्री तक सभी लूट में माहिर हैं। ये सभी देश के विकास के लिए नाली बनवाना, सड़क बनवाना, बाँध बनवाना, गरीबों का आवास बनवाना महत्त्वपूर्ण कार्य मानते हैं, किन्तु सरकार से प्राप्त धन उन सभी नेताओं के जेबों में चला जाता है और विकास के सभी कार्य कागज के पन्नों तक ही सीमित रह जाते हैं। एक सांसद अगर अपने कार्यकाल में करोड़ों का घोटाला नहीं किया तो उसका सांसद बनना बेकार है। राजनेताओं का स्तर जितना ऊपर उठेगा उतना ही बड़ा भ्रष्टाचारी बनना उसके लिए आवश्यक है। कहने का तात्पर्य यह है कि आज के परिप्रेक्ष्य में राजनीति और भ्रष्टाचार का चोली-दामन का साथ है।
 

मीडिया द्वारा भ्रष्टाचार का उजागर

आज के समाचार पत्र-पत्रिकाएँ इसके गवाह हैं। किसी मंत्री पर करोड़ों के घोटाले का आरोप है किसी ने अरबों पर हाथ साफ कर दिया है । किसी ने विदेशी जासूसी से धन कमाया है तो किसी ने हेरा-फेरी से। किसी राजनीतिज्ञ का स्वीसबैंक में खाता है तो किसी ने लंदन के बैंक में नाम बदलकर खाता खुलवाकर लूट की रकम जमा करा दी है। किसी ने पनडुब्बी की खरीद में दलाली कमाई है तो किसी पर बोफोर्स तोप सौदे में दलाली लेने का अभियोग है। कोई पशुओं का चारा खा डाला है तो किसी ने अलकतरा बेचकर करोड़ों का घोटाला किया है। किसी ने अम्बेदकर पार्क के नाम पर करोड़ों डकार डाला है तो कोई हवाला का अभियुक्त है। कहने का अर्थ यह नहीं कि राजनीति करनेवाले भ्रष्टाचार में ही डूबे हुए हैं फिर भी जब बड़े स्तर पर राजनीति में भ्रष्टाचार विद्यमान है तो छोटे स्तर पर होना स्वाभाविक है। 

आज बच्चे को नौकरी दिलाना हो, ठेका लेना हो, किसी चीज का लाइसेंस लेना हो तो मंत्री जी का दामन पकड़िए, उनका पॉकेट गर्म कीजिए, उनकी जादुई छड़ी घूमी नहीं कि आपका काम हुआ। राजनीतिक भ्रष्टाचार का ही परिणाम है कि हर जगह पैसे का खेल धड़ल्ले से चल रहा है, जरूरत है उचित आदमी की तलाश की जो आपको उस मुकाम तक पहुँचा सके। आज के नेता कहीं जातिभेद का बीज बोकर, कहीं वर्ग संघर्ष कराकर, कहीं धर्म की आड़ लेकर अपनी कुर्सी सुरक्षित करने में लगे हैं और भ्रष्टाचार की कमाई पर ऐश कर रहे हैं। आज राजनीति का नाम लेने पर लोग अपने कान बन्द कर लेते हैं क्योंकि उससे भ्रष्टाचार की बदबू आने लगी है। राजनीति मानव कल्याण के लिए की जाती है कहा भी गया है कि - नयति इति नेता अर्थात् जो देश को विकास के मार्ग पर ले जाय, न कि अपनी तिजोरियाँ भरें। 

भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई मे मीडिया

लोकतंत्र में मीडिया एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में यह एक शक्तिशाली हथियार हो सकता है। मीडिया को स्वतंत्र, निष्पक्ष और साहसी होना चाहिए।यह भी महत्वपूर्ण है कि नागरिक मीडिया का समर्थन करें। हमें सच्ची और विश्वसनीय पत्रकारिता का समर्थन करने और भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले मीडिया हाउसों की रक्षा करने के लिए आवाज उठानी चाहिए।

केवल एक सतर्क और जागरूक नागरिक समाज ही भ्रष्टाचार को खत्म कर सकता है और एक मजबूत और न्यायपूर्ण लोकतंत्र का निर्माण कर सकता है।

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