आत्मसम्मान जिंदगी की बुनियादी आधारशिला है

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आत्मसम्मान जिंदगी की वह बुनियादी आधारशिला है जिसकी मजबूती की परख उस समय होती है जब कोई इमारत ज़िंदगी के विभिन्न झंझावात को सहकर भी अडिग रहती है उस मजब

आत्मसम्मान जिंदगी की बुनियादी आधारशिला है


सूरज अपनी दैनंदिन प्रक्रिया से निवृत होकर रोज की तरह  क्षितिज पर अवस्थित हो गया था।सिंदूरी शाम के इस अद्भुत वितान को जी भर पढने हेतु  मैं और मेरी सहेली अपने घरों से बाहर शहर के दूसरे छोर की राह पकड लेते हैं सांझ की सैर के लिए। जीवन की आपाधापी से दूर जाकर संभवतः कोई हमसुख़न एकांत खंड मिल जाये। किंतु ये आपाधापी कहां पीछा छोड़ती है हमारा? कभी धीमी, कभी तीव्र चाल चलते हुए  हम दोनों सैर करते हुए कब  हुजूम का हिस्सा हो जाते हैं? पता ही नहीं चल पाता.. जहां जाओ वहीं स्वास्थ्य के प्रति शिष्ट समूह लंबे-लंबे डग भरते हुए क्षण भर  दूर जाते  हैं फिर वहीं  वापस लौटकर आ जाते हैं।रोज़ टहलने के प्रक्रम में  अब यह  हूजूम अपरिचित सा नहीं लगता वरन  अपना ही मौहल्ला सा लगता है।

शहर के जिस छोर की ओर हम टहलने के लिए उद्दत होते हैं उस सडक़ के किनारे प्रतिदिन सुप्त से पड़े हुए आठ-दस कुत्ते  रोज हम टहलकदमी करने वालों को आया देख, पूंछ हिलाकर हर्षसिक्त अभिवादन करते हैं।

आत्मसम्मान जिंदगी की बुनियादी आधारशिला है
आज भी हम दोनों सैर पर हैं अपनी चिर-परिचित सैरगाह  के दायरे में। कुत्तों के समवेत  भौंकने के भयाक्रांत स्वर ने सहसा हमारे गात्र को कंपकंपा दिया। प्रबल आशंका थी कि कुत्तों ने आज किसी की बोटी नोच ली है।हमने पीछे मुडकर देखा तो एक  कृषकाय तरूण भयभीत होकर हमारी ओर ही भाग रहा था।वे कुत्ते जो यक़ीनन अब कुत्ते न रहकर भेड़िये होकर उस तरुण को काटने पर आमादा थे। शोर शराबा  सुनकर कुछ पुरूषों दने उन कुत्तों को छड़ियों से भगाकर युवक की जान बचायी ।।उस कृषकाय की धूलधुसरित,मटमैली काया,शिखर से कंधे  लंबे-लंबे  लटके हुए बाल उसके वंचित जीवन के आखिरी पांत के अभिशप्त परिवेश का परिचय दे रहे थे।

हम सभी को देखकर हांफते हुए वह क्षणिक रूका और अभाव प्रदत्त हीन-भावना को अपने ही वजूद में रखने की जगह तलाशने लगा। जैसा कि इस समय परिस्थिती को हम सभी से अपेक्षा थी, हम सभी ने नैतिकतावश उस कृषकाय से  स्वभाविक वार्तालाप करने का प्रयास किया। किंतु संभवतः हमारी दृष्टि का सहानुभूतिपूर्ण निक्षेप उसकी जीर्ण काया पर शीतल मलहम ना लगाकार उसके आत्मसम्मान को परिहास के शर से भेद गया।उसने त्वरित अपनी गर्दन अकड़ायी, चेहरे पर आत्मविश्वास का छदम ओढा और अपनी मैली- कुचली कमीज दोनों हाथों से झाड़कर, पैंट की दोनों जेबों में हाथ खोंसकर,निरवयव सीटी बजाता हुआ आगे की  ओर बढ गया।उस स्वल्प व्यक्तित्व के मानवीय विशेषताओं की सर्वोच्च प्रदर्शनी अकस्मात मुझे वंचित जीवन के अथाह सुख से स्नात कुंड में आप्लावित कर गयी।

टहलकदमी करते हुए आज यह भी बोध हुआ कि आपाधापी से दूर जाकर, कभी टहलकदमी के हुजूम में ही मन को उसका समृद्ध कोना मिल सकता है। इसलिए खूब घूमो,घर से बाहर निकलो,व्यक्ति से हुजूम बनो।आत्मसम्मान जिंदगी की वह बुनियादी आधारशिला है जिसकी मजबूती की परख उस समय होती है जब कोई इमारत ज़िंदगी के विभिन्न झंझावात को सहकर भी अडिग रहती है उस मजबूत बुनियाद की वजह से..

वह तरूण वास्तव में सहानुभूति का नहीं सम्मान का पात्र था यह उसकी भाव-भंगिमा ने ही हमें सिखाया।उसने ही हमें जताया कि सनद रहे! अवित्त में आत्मसम्मान जरा सघन होता है कुलीन की तुलना में।



- सुनीता भट्ट पैन्यूली

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