समरथ को नहिं दोष गुसाईं पर निबंध | Samrath Ko Nahi Dosh Gosain Hindi

SHARE:

समरथ को नहिं दोष गुसाईं पर निबंध समरथ को नहिं दोष गुसाईं यह चौपाई रामचरितमानस के बालकांड से ली गई है। यह चौपाई भगवान राम के जन्म के समय का चित्रण कर

समरथ को नहिं दोष गुसाईं पर निबंध

 
मरथ को नहिं दोष गुसाईं यह चौपाई रामचरितमानस के बालकांड से ली गई है। यह चौपाई भगवान राम के जन्म के समय का चित्रण करती है। जब राम का जन्म हुआ, तब देवताओं और ऋषियों ने उनकी दिव्यता को पहचान लिया और उन्हें वंदन किया।इस चौपाई में कवि कहना चाहते हैं कि जब कोई व्यक्ति स्वयं शक्तिशाली और सक्षम होता है, तो उसे दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। जैसे सूर्य स्वयं प्रकाश देता है और अग्नि स्वयं जलती है, उसी प्रकार राम भी स्वयं ईश्वर हैं और उन्हें किसी अन्य देवता की सहायता की आवश्यकता नहीं है।

यह चौपाई हमें आत्मनिर्भरता का महत्वपूर्ण संदेश देती है। हमें सदैव अपनी क्षमताओं पर विश्वास रखना चाहिए और दूसरों पर निर्भर रहने से बचना चाहिए। यदि हम स्वयं पर विश्वास रखेंगे और कठोर परिश्रम करेंगे, तो हम अवश्य ही सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

एक कहावत अक्सर आम लोग बोलते या कहा करते हैं - "दुनिया झुकती है, झुकाने वाला चाहिए।” झुकाने का अर्थ अपने अधीन बनाना, वश में या काबू करना है। यह सब वही कर सकता है, जिसमें सामर्थ्य अर्थात् शक्ति हो । जीवन और समाज में यदि कोई शासन करता है, तो समर्थ या शक्तिशाली ही किया करता है। प्रकृति का नियम भी यही है कि जो दुर्बल और असमर्थ होता है, वह बच नहीं पाता । प्रकृति स्वयं ही उसे नष्ट हो जाने दिया करती है । मानव-समाज में भी ठीक यही नियम चलता आ रहा है । यहाँ भी दुर्बल और असमर्थ किसी क्षेत्र में टिक नहीं पाता। हालात उसे क्षीण करके नष्ट हो जाने के लिए मजबूर कर दिया करते हैं । इसी कारण शक्तिशाली और समर्थ बनने की बात कही जाती है ।

शक्ति का प्रभाव

शक्ति या सामर्थ्य दो प्रकार की होती है। एक शरीर की शक्ति और दूसरी मन तथा आत्मा की शक्ति। इनमें से एक शक्ति का होना ही उचित या लाभदायक नहीं माना जाता। दोनों का रहना आवश्यक कहा गया है। केवल शरीर की शक्ति व्यवहार के स्तर अधिक होता है, पर इनका जोर या प्रभाव हमेशा नहीं चल पाया करता । जो हो, जो शक्तिशाली और समर्थ है, दुनिया उसी के आगे झुकती है, उसी का कहना माना करती है। वास्तव में कुछ कर भी वही सकता है, जिसके पास सामर्थ्य हो । वह किसी का हक दिला भी सकता है, लोगों को कष्ट दे भी सकता है, दूर भी कर सकता है । वह यदि कुछ अनुचित भी करता है, तब भी कोई उसे कुछ नहीं कह सकता । 

समरथ को नहिं दोष गुसाईं पर निबंध
समर्थ वान व्यक्ति का  कोई कुछ बिगाड़ भी नहीं सकता । इस बिगाड़ पाने की असमर्थता का ध्यान करते हुए ही शायद गोस्वामी तुलसीदास ने अपनी रचना 'रामचरितमानस' के किसी पात्र के है :- "समरथ को नहीं दोष गोसाईं” अर्थात् समर्थ व्यक्ति उचित-अनुचित जो कुछ भी करता है, वही नियम और परम्परा बन जाया करता है। कोई भी उसमें ना नुकर नहीं कर सकता दोष नहीं निकाल सकता और उसके कार्यों के आगे प्रश्न-चिह्न भी नहीं लगा सकता मुख से कहलवाया समर्थों का दोष न देखने, उनका प्रतिकार न करने की भावना और प्रक्रिया ने ही इस प्रवृत्ति और कहावत को जन्म दिया होगा कि “बड़ी मछली छोटी मछली को निगल या खा जाती है ।" प्रकृति में तो ऐसा ही होता है, हम मनुष्यों के समाज में भी आरम्भ से ही यही नियम चला आ रहा है। यहाँ भी बड़ी मछली अर्थात् समर्थ और शक्तिशाली व्यक्ति छोटी मछलियों अर्थात कमजोर और असमर्थ लोगों को निगलते या समाप्त करते आ रहे हैं । 

प्रकृति और समाज में शुरू से ही यह नियम चला आ रहा है कि "जिस की लाठी उसकी भैंस" आज यही सब चल रहा है, इस पर भी लाठी के बल पर दूसरों की भैंस हाँककर ले जाने वालों अर्थात् समर्थों को कोई दोष नहीं दिया जाता । दोष देकर भी उनका कोई कुछ बिगाड़ नहीं पाता। आज भी सच्चाई पर कायम रहने वाला असमर्थ ही पिस रहा है। रिश्वत, काला-बाजार जैसे भ्रष्टाचार करने वाले छुट्टे घुम रहे हैं, जबकि महँगाई की मार से आम आदमी पिस रहा है। सरकारें ऐसे लोगों के सामने असमर्थ हैं । सभी प्रकार के नियम-कानून भी समर्थों के लिए कोई अर्थ या महत्त्व नहीं रखते। उनकी मार भी केवल असमर्थों और गरीबों को ही झेलनी पड़ती है। गुनहगार समर्थ हमेशा से बेगुनाह माने जाकर आदर पाते रहे हैं, आज भी पा रहे हैं ।
 

समर्थवान की मानसिकता

"जिसकी लाठी उसकी भैस", "छोटी मछली बड़ी मछली को निगली जाती है", जैसी कहावतें तो "समरथ को नहीं दोष गोसाई" कहावत का अर्थ प्रकट करती ही हैं, जीवन में इस बात की सार्थकता या व्यापकता की तरफ भी संकेत करती हैं। गरीब की जोरू सबकी भाभी" जैसी कहावतें भी इसी मानसिकता को प्रकट करने वाली हैं। गरीब असमर्थ होता है, इस कारण लोग उसकी जोरू अर्थात् इज्जत के साथ खेलने या उसका मज़ाक उड़ाने से बाज नहीं आया करते । यही बात है कि "समरथ को नहीं दोष गोसाईं" की कहावत निराशा के स्वर में कही गयी प्रतीत होती है। इसमें छिपा अर्थ और भाव भी असमर्थ और लाचार व्यक्तियों की निराशा को ही प्रकट करने वाला है । मध्ययुग की मानसिकता को उजागार करता है । 

मानव अधिकारों की रक्षा

आज का प्रगतिवादी, वैज्ञानिक, अपने को आधुनिक कहने वाला समाज यद्यपि इस प्रकार की कहावतों, इसमें छिपी मानसिकता और प्रवृत्तियों पर विश्वास नहीं करता, वह मानव-अधिकारों की रक्षा की बात कहता और करता है, पर वह सब केवल कागज़ी रूप और स्तर पर ही है । वास्तव में आज भी मानव-जीवन और समाज में "समर्थ-असमर्थ' वाला जंगली कानून ही लागू है। जब तक हम प्रयत्न करके अपने-आप को समर्थ मानने वालों की प्रवृत्ति और मानसिकता को नहीं बदल डालते, तब तक गरीब की जोरू को सब की भाभी बनकर रहना पड़ेगा, लाठी वाले दूसरों की भैंसे हाँककर ले जाते रहेंगे। सब-कुछ देख-सुनकर भी लाचारी के भाव से हम कहने को विवस रहेंगे।

समरथ को नहिं दोष गुसाईं की चौपाई रामचरितमानस की एक महत्वपूर्ण शिक्षा है। यह हमें सिखाती है कि आत्मविश्वास और सदाचार जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए आवश्यक हैं। जब हम अपने आप पर विश्वास करते हैं और सदाचारी जीवन जीते हैं, तो हम किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं और अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं।

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका