रघुवीर सहाय का साहित्यिक जीवन परिचय

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रघुवीर सहाय का साहित्यिक जीवन परिचय


घुवीर सहाय हिंदी साहित्य के एक महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। उनकी रचनाओं ने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है और पाठकों को प्रेरित एवं विचारशील बनाया है। वे हिंदी के उन कवियों में से एक हैं जिन्होंने अपनी रचनाओं से हिंदी साहित्य को नई दिशा दी है।

एक कालजयी रचनाकार के रूप में रघुवीर सहाय आधुनिकता के जीवन्त प्रमाण हैं जिनका त्रिआयामी व्यक्तित्व इनकी कविताओं में सम्पूर्णता तथा नवीनता से परिभाषित हुआ है। कवि युग और जीवन की पहचान है ।

रघुवीर सहाय का जीवन परिचय

रघुवीर सहाय का जन्म 9 दिसम्बर 1929 ई. को लखनऊ (उत्तर प्रदेश) के एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था । इनके पिता हरदेव सहाय साहित्य के अध्यापक थे। सादगी, सहृदयता और आस्तिकता इन्हें संस्कार के रूप में प्राप्त था। इनकी माता श्रीमती तारादेवी एक जमींदार परिवार से सम्बन्धित थीं । जो इनके तीन वर्षों की आयु में यक्ष्मा से चल बसीं।
 
रघुवीर सहाय का साहित्यिक जीवन परिचय
इनकी प्रारम्भिक शिक्षा लखनऊ प्रीपरेटरी स्कूल से प्रारम्भ हुई। इन्होंने सन् 1944 में मैट्रिक तथा सन् 1948 ई. में बी.ए. पास किया। सन् 1954 में अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. किया। इन्होंने हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से साहित्य-विशारद की। ये औसत दर्जे के विद्यार्थी थे ।
 
रघुवीर सहाय का विवाह सन् 1955 ई. में प्रोफेसर महादेव प्रसाद श्रीवास्तव की 20 वर्षीय पुत्री विमलेश्वरी जी से हुआ। रमुवीर सहाय को तीन बेटियाँ और एक बेटा था ।
 
सर्वप्रथम सन् 1950 ई. में रघुवीर सहाय दैनिक नवजीवन के उप संपादक के रूप में इलाहाबाद आये । सन् 1951 ई. में वे सहायक सम्पादक के रूप में संलग्न रहे। सन् 1957 ई. में आकाशवाणी में हिन्दी समाचार विभाग में उप संपादक बने। इन्होंने एशिया थियेटर इन्स्टीच्यूट में रिसर्च ऑफिसर के रूप में भी कार्य किया । इन्होंने नवभारत टाइम्स तथा दिनमान में भी कार्य किया। अज्ञेय के पश्चात् इन्होंने दिनमान के सम्पादक के कार्यभार को संभाला। सन् 1963 से स्वतंत्र लेखन कार्य में संलग्न हुए। 

कवि की पहली कविता 'अंत का आरम्भ' सन् 1946 ई. में छपी। इसी वर्ष दिसम्बर में 'दसमी का मेला' कविता लखनऊ रेडियो से प्रसारित हुई। इनकी पहली सुक्तछन्द कविता सन् 1949 ई. मे रची गई । इसी वर्ष पहली बार उनकी लम्बी कविता 'प्रतीक' में सायंकाल शीर्षक में छपी। दूसरा सप्तक में भी इनकी कविता छपी । उनकी पहली पुस्तक सन् 1960 में 'सीढ़ियों पर धूप' प्रकाशित हुई। इन्होंने कविता, कहानी, निबन्ध, आलोचना उपन्यास आदि अनेक विधाओं में लिखा । इन्होंने अनूदित रचनाएँ भी लिखीं । 'टीना नदी का पुल' तथा 'आधुनिक हंगरी, कविता शीर्षक से 32 हंगरी कविताओं का अनुवाद प्रस्तुत किया । 30 दिसम्बर को सायंकाल दिल के दूसरी बार दौरा के कारण सन् 1990 ई. में इनका देहवसान हो गया । 

रघुवीर सहाय का साहित्य में स्थान

रघुवीर सहाय का रचना संसार विस्तृत फलक पर फैला हुआ है। इनका व्यक्तित्व बहुआयामी था । इनकी रचनाओं में इनके समय का इतिहास और संवेदनात्मक धड़कनें दर्ज हैं। डॉ. सुरेश शर्मा के अनुसार अपने बहुस्तरीय व्यक्तित्व के कारण रघुवीर सहाय ने विश्व और भारतीय समाज को सम्पूर्णता में देखा है। इससे स्पष्ट होता है कि रघुवीर सहाय की रचनाएं आधुनिक समय की धड़कनों की जीवन्त प्रतिलिपि हैं । इनके अनुसार आदमी को नापने का अपना गज होता है वह उतना ही बड़ा होता है जिस रूप में दूसरे को नापता है ।

प्रत्येक रचनाकार अपने युग और समाज को जीता है उसकी रचना में उसका जीवन और उसकी दृष्टि स्पष्टतः परिलक्षित होती है जिसे व्यक्तित्व और कृतित्व कहा जाता है।

रघुवीर सहाय की प्रमुख रचनाएँ

कवि की निम्नलिखित रचनाओं के आधार पर इसकी समीक्षा करना हमारा अध्येतव्य विषय हैं - 
कविता संग्रह - सीढ़ियों पर धूप, आत्म हत्या के विरुद्ध, हँसो-हँसो जल्दी हँसो, लोग भूल गये हैं, कुछ पत्ते कुछ चिट्ठियाँ आदि । 
कहानी-संग्रह : रास्ता इधर से है, जो आदमी हम बना रहे हैं आदि । 
निबन्ध : दिल्ली मेरा परदेश, लिखने का कारण, उबे हुए सुखी, वे और नहीं होंगे जो मारे जाएँगे, भँवर लहरें और तरंग, शब्द शक्ति, अर्थात् दर्जनों अनूदित पुस्तकें ।
 

रघुवीर सहाय का भाव पक्ष और कला पक्ष

रघुवीर सहाय एक उदार, सहृदय और बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे। वे कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, पत्रकार, सभी थे किन्तु एक राजनीतिक कर्मी भी थे। इनका जीवन हलचलों से परिपूर्ण था । उनकी रचना पत्रकारिता और राजनीति एक दूसरे की पूरक हैं। किसी भी स्थिति में वे संवेदनशील और पूर्ण मानव होते हैं। जैसे कवि कहना चाहते हों कि "वहीं होओ जो कि तुम हो' अर्थात् “व्यक्ति की अबाध, निरपेक्ष सत्ता है जो किसी मर्यादा, मूल्य और नैतिकता की गिरफ्त में नहीं रहती, अपितु सर्वथा स्वतंत्र और मुक्त है ।"
 
आम लोगों के संघर्ष सत्ताधारियों की दुनियां तथा नित्य प्रति तेजी से बदलती हुई स्थितियों से उनका निकट का सम्बन्ध है । वे राजनीति और समाज के ऐसे प्रसंगों को अपनी कविता का विषय बनाते हैं जिसे कोई सोच भी नहीं सकता है। यही कारण है कि निराला के बाद उन्हें कविता की दुनियाँ में नये-नये विषयों को तलाश करने वाला सबसे बड़ा कवि माना जाता है। ये विषयवस्तु और परिवेश के अनुरूप ही भाषा चयन करते हैं। नवयुग के मानव के नये विचारों को, नवीन अभिव्यक्ति प्रदान करने की इनकी अद्भुत विशेषता थी । समता और लोकतांत्रिक अधिकारों से जुड़े रघुवीर सहाय का सम्पूर्ण लेखन समाज को मानवीय तथा मनुष्य को संवेदनशील बनाने की अन्तहीन कोशिश है। वे अपने लेखन में लोकतंत्र और आजादी के मूल्यों की बार-बार याद दिलाते हैं जिन्हें हम भूलते जा रहे हैं। इस सन्दर्भ में इनकी रचनाओं का महत्त्व और भी बढ़ जाता है ।
 
कृतित्व : कवि व्यक्ति के रूप में जो जीवन जीता है, उसकी रचना में उसका यथार्थ स्वरूप देखने को लिता है । डॉ. सुरेश शर्मा के शब्दों में "अपने सृजन की नवीनता से उन्होंने साहित्य की धारा को यथार्थवाद की नई दिशा की ओर ले जाने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है । अपनी रचनाओं के माध्यम से उन्होंने यथार्थ का नया रूप सामने रखा जो निश्चय ही समाज के साथ साहित्य का क्रान्तिकारी रिश्ता बनाता है।" किसी दिये हुए समय में कवि के राजनीतिक उद्वेलन की मात्राएँ घटती-बढ़ती रहती हैं। समाज में समता और न्याय के लिए इनका कवि कर्म परिवर्तन के प्रयत्न का आनुषंगित होता है। ऐसे सामाजिक उतार-चढ़ाव के साथ-साथ कवि का अकेलापन घटत-बढ़ता रहता है। इस आधार पर यर्थ की यह परिभाषा कर सकते हैं कि वह जो बदलने के लिए प्रेरित करें, वही यथार्थ है । इसके अतिरिक्त यथार्थ का यदि कोई अर्थ निकलता है तो वह हमारे काम का नहीं है । 

उपर्युक्त विवेचन से कवि के व्यक्तित्व और कृतित्व को उनकी रचनाओं के संदर्भ में स्पष्टतः देखा जा सकता है । 

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