लोकतंत्र में चुनाव का महत्व पर निबंध | Importance Of Elections In Democracy

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लोकतंत्र में चुनाव का महत्व पर निबंध Importance Of Elections In Democracy लोकतंत्र शासन की एक ऐसी प्रणाली है जिसमें जनता सरकार का चुनाव करती है और सरक

लोकतंत्र में चुनाव का महत्व पर निबंध


लोकतंत्र शासन की एक ऐसी प्रणाली है जिसमें जनता सरकार का चुनाव करती है और सरकार जनता के प्रति जवाबदेह होती है। लोकतंत्र में चुनाव इस प्रणाली की आधारशिला हैं। चुनावों के माध्यम से नागरिक अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि सरकार उनकी इच्छाओं और आवश्यकताओं के अनुरूप काम करे।

लोकतंत्र विश्व की सर्वोत्तम शासन-प्रणाली है। इसमें जनता के प्रतिनिधि जनता की इच्छा को साकार करने के लिए जनता द्वारा शासन चलाते हैं। यह बात प्रकट रूप से जितनी आदर्श और मनोरम प्रतीत होती है, उसका व्यावहारिक रूप उतना ही घिनौना तथा बदरंग है। जन-प्रतिनिधियों को चुनने की प्रणाली को चुनाव कहते हैं। यदि हम भारत के चुनावों की बात करें तो कह सकते हैं कि चुनाव किसी जन- युद्ध से कम नहीं होते ।
 

लोकतंत्र में प्रत्यक्ष चुनाव

भारतीय लोकतंत्र में अपने प्रतिनिधियों को सीधे मतदान द्वारा चुना जाता है। इसलिए बड़े-बड़े नेता हर पाँच साल बाद अपने मतदाताओं के सामने हाथ जोड़कर खड़े होते हैं। इस प्रक्रिया से नेताओं को बोध होता रहता है कि वे निरंकुश बादशाह नहीं है। उन पर जन-इच्छा का नियंत्रण हैं। यह चुनावों का एक उज्ज्वल पक्ष है।
 
चुनावों के माध्यम से हर मतदाता की कीमत बढ़ती है। उसकी इच्छा को सुना जाता है। उसे आश्वासन मिलते हैं। चाहे हर आश्वासन पूरा न हो पाता हो, परंतु कम-से-कम जनता की इच्छा को सरकार तक पहुँचाने का एक अवसर तो मिलता ही है। सच्चे जननेता जन-भावनाओं का ध्यान रखकर अपने क्षेत्र का विकास भी करते हैं। इस प्रकार लोकतंत्र पूर्णतया सफल सिद्ध होता है।
 

भारतीय चुनावों का परिदृष्य

लोकतंत्र में चुनाव का महत्व पर निबंध
भारतीय लोकतंत्र में चुनाव प्रणाली का परिदृश्य बहुत सुहावना नहीं है । यहाँ छत्तीस बिरादरियों के लोग रहते हैं। वे सभी अपने-अपने महत्त्व को दिखाने के लिए अपने नेता, अपने गुट तथा अपने दल खड़े करते हैं। चुनाव घोषित होने के साथ-साथ टिकट पाने की होड़ शुरू हो जाती है। राष्ट्रीय दलों में उम्मीदवारों का जमावड़ा लगने लगता है। प्रत्येक उम्मीदवार अपने साथ भारी- भरकम समर्थकों की उमड़ती भीड़ लेकर पार्टी के कार्यालय में पहुँचता है। वहाँ नारेबाजी, धक्का-मुक्की तथा अपने नेता को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने की जुगाड़ शुरू होती है। इसी के साथ शुरू होती है दूसरों पर छींटाकशी और सार्वजनिक लोकनिंदा। बड़ी-बड़ी पार्टियाँ 'एक अनार सौ बीमार' का दर्द झेलती हुई किसी एक को टिकट देती है तो शेष निन्यानवे विद्रोह, निंदा, मार-पीट, नारेबाजी, तोड़फोड़ पर उतर जाते हैं। दूसरी ओर सफल उम्मीदवारों का उत्साह सातवें आसमान पर चढ़ जाता है। ढोल-ढमाके आरंभ हो जाते हैं।
 

लोकतंत्र में चुनाव प्रचार

जैसे दशहरे से पहले देश में रामलीलाएँ शुरू हो जाती हैं, ठीक उसी प्रकार चुनाव से पहले चुनाव प्रचार का हलचल-भरा वातावरण शुरू हो जाता है। नगर, गाँव क्या गली-मुहल्ले तक इसकी गूंज सुनाई देती है। सारा चुनाव-क्षेत्र रंगीन झंडों, बैनरों, नारों, पोस्टरों, चीखते हुए लाउड़- स्पीकरों, प्रचार करती गाड़ियों तथा देशभक्ति-भरे गानों से सराबोर हो जाता है। सब पार्टियों पर देशभक्त होने का नशा सवार हो जाता है। पार्टी कार्यालय पर छत्तों की तरह कार्यकर्ता मँडराने लगते हैं। सड़कों पर शोर ही शोर होता है। 

लोकतंत्र में चुनावी सभाएँ 

चुनावों से पहले हर दल के नेता चुनावी सभाएँ करते हैं। जब कोई राष्ट्रीय नेता आता है तो हजारों की संख्या में लोग आते हैं। आजकल फिल्मी अभिनेताओं, अभिनेत्रियों, टी.वी. कलाकारों और क्रिकेट-सितारों को भी बुलाया जाता है। इस बहाने नेताओं को सुनने की भीड़ उमड़ती है। नेता झूठे-सच्चे वायदे करते हैं। दूसरे नेताओं की पोल खोलते हैं। कई बार तो ये नेता इतनी भद्दी, सस्ती और तीखी टिप्पणियाँ करते हैं कि चुनावी माहौल गंदा हो जाता है। नेताओं की छल भरी बातों और घातों से आहत कविवर राधेश्याम शुक्ल लिखते हैं- 

हाय सियासत बन गई जिंदगानी की सौत । 
राजा जी का खेल है और प्रजा की मौत ।। 

चुनाव का दिन 

चुनाव वाले दिन सबकी छुट्टी होती है। अपराधी तत्त्वों को रोकने के लिए वाहन भी रोक दिए जाते हैं। सरकारी कर्मचारी अपनी-अपनी ड्यूटी पर रवाना होते हैं तो राजनीतिक दल अपने एक-एक वोटर को मतदान केंद्र तक पहुँचाने की व्यवस्था में लग जाते हैं। 

जहाँ शांतिपूर्ण मतदान होता है, वहाँ स्त्री-पुरुषों की लंबी कतारें खड़ी दीखती हैं। जहाँ वातावरण में संघर्ष और तनाव होता है, वहाँ पुलिस और सेना के सतर्क नौजवान मोर्चा सँभाले खड़े दीखते हैं। बिहार जैसे क्षेत्र में बूथ लूटने की घटनाएँ सरेआम होती हैं। इसलिए वहाँ हिंसा, फायरिंग, छुरेबाजी की घटनाएँ हो जाती हैं। कई लोग मारे भी जाते हैं। इसीलिए किसी कवि ने कहा है -
 
गोलियाँ से छलनी जनतंत्र हो गया है। 
गणतंत्र जब हमारा गनतंत्र हो गया है। 

मीडिया का चुनावी खेल

लोकतंत्र का दृश्य मीडिया के बिना पूरा नहीं हो सकता। आजकल दूरदर्शन और विभिन्न समाचार-पत्रों के संवाददाता चुनावों में विशेष सरगर्मी देखते हैं। वे चुनावों के बाद एक्जिट पोल कराकर संभावित परिणामों पर दिन-रात टीका-टिप्पणी करते हैं। इससे राजनीति जन-जन तक पहुँच जाती है । 

उपसंहार

भारतीय लोकतंत्र में चुनावों का दृश्य धीरे-धीरे साफ-सुथरा होता जा रहा है। चुनाव आयोग की क्रियाशीलता के कारण प्रायः निष्पक्ष चुनाव संपन्न हो जाते हैं। परंतु यह कहना कि भारतीय लोग अपने सही प्रतिनिधि का चुनाव कर पाते हैं, बहुत कठिन और भ्रामक है। जैसे-जैसे मतदाता जागरूक होगा, अपने मत की कीमत समझेगा तथा अपने मत का सही एवं अनिवार्यतः उपयोग करेगा, वैसे-वैसे चुनाव प्रक्रिया परिपक्व होती चली जाएगी।

चुनाव लोकतंत्र का एक अनिवार्य अंग हैं। ये जनता को शासन में भाग लेने, सरकार को जवाबदेह बनाने और शांतिपूर्ण तरीके से सत्ता परिवर्तन सुनिश्चित करने का अवसर प्रदान करते हैं। चुनाव मानवाधिकारों की रक्षा और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

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