अपने सम्प्रदाय की विवाह पद्धति के अनुसार सम्पन्न एक विवाहोत्सव का वर्णन

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अपने सम्प्रदाय की विवाह पद्धति के अनुसार सम्पन्न एक विवाहोत्सव का वर्णन विवाह समारोह पर निबंध विवाह में सम्मिलित बारात की तैयारियाँ विवाह संपन्न हुआ

विवाह समारोह पर निबंध

त वर्ष की बात है । दिसम्बर का महीना था। एक दिन मेरे मित्र नरेश ने अपने बड़े भाई के विवाह का निमन्त्रण देते हुए मुझसे कहा, 'मेरे भाई का विवाह पच्चीस दिसम्बर को होना निश्चित हुआ है। बारात आगरा जायेगी । तुम्हें बारात में अवश्य चलना है ।” उन दिनों कड़ाके का जाड़ा पड़ रहा था। शीत के प्रकोप से बचने के लिये मैंने एक बार कुछ बहाना बनाने की भी सोची, परन्तु मैं मित्र के अनुरोध को टाल न सका। मैं विवाह में सम्मिलित होने के लिये अपने मित्र के निवास स्थान पर समय से पूर्व ही पहुँच गया । 

विवाह में सम्मिलित

अपने सम्प्रदाय की विवाह पद्धति के अनुसार सम्पन्न एक विवाहोत्सव का वर्णन
बारात दिन के ठीक एक बजे मथुरा रोड से होती हुई आगरा की ओर चल पड़ी । यद्यपि नरेश के पिताजी ने बारात के लिये एक डीलक्स बस और कई कारों का भी प्रबन्ध किया था, परन्तु हमारी मित्र-मण्डली ने बस में ही बैठना पसन्द किया। हवा से बचने के लिये हमने बस के सारे शीशे बन्द कर लिये थे, परन्तु बस के चलते ही हमारे मुँह पर ठंढी हवा के थपेड़े लगने लगे । बस हवा को चीरती हुई तेज गति से आगे बढ़ती रही और लगभग चार घण्टे के भीतर हमने आगरा की सीमा में प्रवेश किया।
 
बारात के ठहरने का प्रबन्ध इम्पीरियल होटल में किया गया था। जब हमारी बस होटल के द्वार पर पहुँची तो कन्या-पक्ष के कुछ लोग हमारे स्वागत में वहाँ पहले से ही तैयार खड़े थे। बारात के ठहरने और खाने-पीने का प्रबन्ध बहुत अच्छा था । दो-दो बारातियों के लिये एक-एक कमरे की व्यवस्था थी और कमरों में पानी गर्म करने के लिये गीज़र लगे थे । बारातियों के खाने-पीने के लिये चाय, कॉफ़ी, कोल्ड ड्रिंक्स, समोसे, दही-बड़े, आलू की टिकियों, फलों की चाट और रसगुल्लों के स्टाल लगे हुए थे बाराती लोग एक स्टाल से दूसरे स्टाल तक बड़ी शान के साथ घूम रहे थे और अपनी-अपनी पसन्द की चीज़ों को खा-पी रहे थे जलपान के बाद कुछ बाराती पान खाने के बाद पनवाड़ी के पान लगाने के ढंग पर टीका-टिप्पणी कर रहे थे तो कुछ बाराती सिगरेट के धुएँ से छल्ले बनाने की कला का प्रदर्शन कर रहे थे । कुछ बाराती इधर-उधर चहलकदमी कर रहे थे । 

बारात की तैयारियाँ

इसके बाद बारात की चढ़त की तैयारियाँ होने लगीं। थोड़ी देर में ही बैंड और गैस की बत्ती वालों से सारा आँगन भर गया । बाराती लोग भी सजने-सँवरने लगे। नरेश के बड़े भाई के मस्तक पर सेहरा बाँधा जाने लगा। नरेश और उसके पारिवारिक जनों ने गुलाबी पगड़ियाँ बाँधीं। उस समय नरेश का उत्साह देखते ही बनता था । वह बारातियों के ऊपर केवड़ा-जल छिड़क रहा था । उधर बैंड पर धुनें बज उठीं। नरेश के बड़े भाई साहब सज-धज कर घोड़ी पर बैठे। उस समय उनके सिर पर झिलमिलाता हुआ छत्र सुशोभित हो रहा था । घोड़ी के आगे हमारी मित्र-मण्डली ने नृत्य करना प्रारम्भ कर दिया। रंग-बिरंगी चमकीली वेशभूषा को धारण किये हुए बैंड पार्टी धीरे-धीरे बढ़ने लगी । बैंड-मास्टर के संकेत पर कुछ ही समय में डिस्को संगीत से वातावरण गूँज उठा । बारात के युवकों और युवतियों के पैर उन मदमाती धुनों पर थिरक उठे । 

यद्यपि होटल से लड़की वालों का घर लगभग आधा किलोमीटर की दूरी पर ही था, परन्तु बारात को वहाँ तक पहुँचने में लगभग दो घण्टे लग गये । बारात को शहर के बीच से गुजरना था । सड़क के दोनों किनारों पर बारात देखने वालों की भीड़ लगी हुई थी । महिलाएँ अपनी-अपनी छतों पर से बारात देख रही थीं। दर्शकों की भीड़ को देखकर कहीं-कहीं बैंड वाले रुक जाते । ऐसे में जब संगीत एवं नृत्य का समा बँध जाता तो लोग बैंड वालों के ऊपर नोटों की वर्षा करने लगते । 

आखिर बारात कन्या-पक्ष के द्वार पर पहुँची । वहाँ घर के निकट एक विशाल शामियाना लगा था। उस शामियाने की सजावट अत्यन्त सुरुचिपूर्ण थी । एक पार्श्व में बैठने तथा दूसरे में भोजन का प्रबन्ध था। एक ओर एक मंच बनाया गया था। उस मंच के ऊपर वर एवं कन्या के बैठने के लिये दो अत्यन्त भव्य एवं कलात्मक कुर्सियाँ रखी हुई थीं । कन्या-पक्ष के लोगों ने बारातियों का स्वागत किया । इसके पश्चात् जयमाला का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। पहले कन्या ने वर के गले में फूलों का एक बहुत बड़ा एवं सुन्दर हार डाला । वर के गले में हार पड़ने के बाद वर ने भी कन्या के गले में एक वैसा ही सुन्दर हार डाला । इसके साथ ही समस्त वातावरण तालियों से गूँज उठा । मैंने देखा कि फ़ोटोग्राफ़र ने उन हर्ष एवं उल्लास के क्षणों को अपने कैमरे में सदैव के लिए बन्द कर लिया । 

विवाह संपन्न हुआ

जयमाला के तुरन्त बाद ही दावत प्रारम्भ हो गई। भोजन में अनेक व्यंजन थे—पूड़ी, कचौड़ी, नान, पुलाव, मटर-पनीर, आलू-गोभी, चटनी, केले का रायता, दही-बड़े, छोले, गाजर का हलुवा और बाद में एस्प्रेसो कॉफी । हमारी मित्र मंडली ने एक साथ भोजन किया । हम नाचते-नाचते काफी थक चुके थे। हमें भूख भी खूब लगी थी। हमने डटकर भोजन किया। मुझे दही-बड़े बहुत स्वादिष्ट लगे, परन्तु नरेश ने गाजर का हलवा दो बार लिया। भोजन के बाद हमने कॉफ़ी पी । कॉफ़ी के बाद हमने पान खाया और कुछ देर के लिए इधर-उधर चहलकदमी करने के लिए निकल पड़े। थोड़ी देर घूमने के बाद हमें सर्दी-सी लगने लगी । हम सीधे अपने कमरे की ओर चल पड़े और वहाँ जाकर सो गए। अगले दिन जब हम सोकर उठे तो डोली की तैयारियाँ हो रही थीं । हम हाथ-मुँह धोकर कन्या पक्ष के द्वार पर पहुँचे तो नरेश के बड़े भाई और उनकी नवविवाहिता पत्नी एक सजी हुई कार में बैठ रहे थे । थोड़ी देर में ही वह कार दिल्ली की ओर चल दी । कुछ देर बाद हमारी बस और अन्य कारें भी उस कार की दिशा में ही चल पड़ीं । 

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