वीर बालक एकांकी डॉ रामकुमार वर्मा

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वीर बालक एकांकी डॉ रामकुमार वर्मा वीर बालक एकांकी एक 10 वर्षीय बालक की कहानी है जो देशभक्ति से ओतप्रोत है। वह देश के प्रति अपने कर्तव्यों और जिम्मेदा

वीर बालक एकांकी डॉ रामकुमार वर्मा


वीर बालक एकांकी एक 10 वर्षीय बालक की कहानी है जो देशभक्ति से ओतप्रोत है। वह देश के प्रति अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को समझता है। जब देश पर आक्रमण होता है, तो वीर बालक अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए युद्ध में शामिल होने का फैसला करता है। वह अपने माता-पिता, दादा, शिक्षक और मित्रों से प्रेरणा और समर्थन प्राप्त करता है। वीर बालक वीरता से लड़ता है और शत्रुओं को परास्त करता है।

वीर बालक एकांकी का सारांश 

डॉ. रामकुमार वर्मा द्वारा लिखित 'वीर बालक' एकांकी एक श्रेष्ठ कृति है । जैसा कि हम जानते हैं कि डॉ. वर्मा एक कुशल नाटककार होने के साथ ही साथ एक सफल एकांकीकार भी हैं बल्कि एकांकी साहित्य के जन्मदाताओं में वर्माजी का नाम अपना विशेष महत्त्व रखता है । उनकी अधिकांश रचनाएँ सुकोमल भावनाओं से ओतप्रोत रहती हैं ।प्रस्तुत एकांकी 'वीर बालक' उन्हीं में से एक है। 

वीर बालक एकांकी डॉ रामकुमार वर्मा
इस एकांकी में यह दिखाया गया है कि बलकरन एक बालक है । बचपन से ही उसमें वीरता और साहस की भावना विद्यमान है । वह चाकू की धार तेज करता है । उसको यह भय नहीं कि कहीं उसकी उँगली चाकू से कट न जाए। इसके अतिरिक्त इसमें यह भी दिखाने का प्रयास किया गया है कि बलकरन के हृदय में अपनी माँ के प्रति कितनी श्रद्धा, आदर तथा प्यार है और माँ के हृदय में भी अपने पुत्र के प्रति कितनी ममता है। इसका उदाहरण निम्न पंक्तियों में मिलता है जब बलकरन की वर्षगाँठ के अवसर पर माँ कल्याणी कहती है—'अपने प्यारे बेटे को नहलाऊँगी, चन्दन लगाऊँगी, फूलों की माला पहनाऊँगी ।' इसके उत्तर में बलकरन भी अपनी माँ से कहता है—'पर माँ, मेरे साथ तुझे भी खाना पड़ेगा, तुझे भी अपनी वर्षगाँठ आज ही मनानी पड़ेगी, अभी ही मेरे साथ । 

इस प्रकार इस एकांकी में माँ बेटे का प्यार बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। बचपन से ही बालक में वीरता और प्रेम की भावनाओं का उदय हो जाता है। बलकरन की वीरता और साहस का परिचय तो तब मिलता है जब गाँव में तैमूर के सिपाही आ जाते हैं और उनके भय से सारा गाँव खाली हो जाता है । यहाँ तक कि माँ को भी बिना अपने बेटे के तलघर में छिपने के लिए विवश होना पड़ता है। जब बलकरन दूध लेकर आता है तो घर में माँ को न पाकर परेशान होता है । इतने में ही उसके सामने तैमूर आ जाता है। तैमूर उसको डराना चाहता है परन्तु उसे देखकर बलकरन बिल्कुल नहीं डरता और युक्ति से तैमूर की तलवार ले लेता है 

तैमूर बलकरन की वीरता तथा वाक्चातुर्य से इतना प्रभावित हो जाता है कि वह उसके आगे मित्रता का हाथ बढ़ाता है । वीरता के साथ ही साथ बलकरन में अनेक स्थलों पर भावुकता का भी परिचय मिलता है । अन्त में वह तैमूर से पुरस्कार के रूप में कुछ और न माँग कर केवल यही माँगता है कि वह उसके गाँव से चला जाय । इससे यह ज्ञात होता है कि उसके हृदय में देश प्रेम और नि:स्वार्थता आदि उच्च भावनाओं के लिए बहुत आदर है । यहाँ तक कि तैमूर भी, जो एक अत्यन्त क्रूर शासक है, एक वीर बालक की बात मानकर उसके गाँव से अपनी सेना के साथ वापस चला जाता है । इस प्रकार इस पूरे एकांकी को पढ़कर पाठकों के हृदय में वीरता, निःस्वार्थता, देश-प्रेम आदि उच्च भावनाओं का संचार होता है । 

इस एकांकी की भाषा अत्यन्त सरल और सुबोध है। कहीं-कहीं मुहावरों का भी अच्छा प्रयोग हुआ है । कथानक के अनुसार शब्द चयन बहुत सुन्दर है। हिन्दी के कठिन शब्दों का प्रयोग न कर सरल शब्दों का प्रयोग किया गया है जिससे प्रत्येक पाठक एकांकी का लाभ उठा सके । कथोपकथन भी अत्यन्त प्रभावी बन पाए हैं। पात्रों का चयन एकांकी के अनुरूप है । बलकरन के पात्र द्वारा एकांकीकार वीरता और भावुकता के समन्वय के महत्त्व को प्रस्तुत करने में सफल हुआ है। इस प्रकार 'वीर बालक' एक सफल एकांकी है ।

वीर बालक एकांकी का उद्देश्य 

'वीर बालक' एकांकी का उद्देश्य एक वीर बालक की वीरता तथा वाक् चातुर्य को प्रस्तुत कर यह संदेश देना है कि किस प्रकार एक क्रूर कठोर शासक को भी वाक्पटुता तथा बहादुरी से प्रभावित किया जा सकता है । एक क्रूर हृदय में भी किसी कोने में प्यार छिपा होता है । क्रूर हृदय की सरस हृदय से हार होती है । क्रूर हृदय में भी सरसता की नदी बहती है । इसके साथ ही साथ जब तैमूर बालक से कहता है कि अपनी इच्छा से जो माँगना चाहता है माँग ले, बलकरन तैमूर से व्यक्तिगत कुछ न माँगता हुआ पूरे गाँव से चले जाने के लिए कहता है तथा गाँव की लूट-मार से मुक्ति चाहता है । इस प्रकार एकांकीकार व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठकर 'उदार चरितानां वसुधैव कुटुम्बकम्' अर्थात् 'उदार चरित्र वालों के लिए सम्पूर्ण वसुधा ही कुटुम्ब के समान है' उक्ति को चरितार्थ करता है 

वीर बालक एकांकी शीर्षक की सार्थकता

एकांकीकार अपने शीर्षक 'वीर बालक' का निर्वाह करने में पूर्णतया सफल हुआ है, इसके बारे में दो राय नहीं हो सकती । प्रारम्भ से अन्त तक बलकरन की वीरतापूर्ण बातें पाठकों का हृदय जीत लेती हैं। यहाँ तक कि तैमूर जैसा क्रूर सेनानायक भी उसकी वीरता का लोहा मानते हुए उस गाँव को लूटने का विचार छोड़ देता है । अत: प्रस्तुत एकांकी का शीर्षक सर्वथा उपयुक्त है । 

वीर बालक एकांकी प्रमुख पात्र चरित्र चित्रण 

वीर बालक एक अत्यंत प्रभावशाली और प्रेरक एकांकी है। यह हमें मातृभूमि के प्रति प्रेम, देशभक्ति, त्याग, समर्पण, कर्तव्यनिष्ठा, साहस, वीरता, पराक्रम, और परिवार और मित्रों के प्यार की भावना से प्रेरित करता है।

तैमूर का चरित्र चित्रण

तैमूर इस एकांकी का प्रधान चरित्र है। वह धीरोदात्त नायक है। अपने साहस और वीरता के कारण युवावस्था में ही अपने कबीले का सरदार बन गया था तथा उसने शीघ्र ही तुर्किस्तान और फारस (वर्तमान ईरान) आदि पर अधिकार कर लिया । सेनानायक तैमूर ने भारत पर मुख्यतः दो कारणों से आक्रमण किया था। एक तो वह भारत को जीतकर एक महान् विजेता के रूप में ख्याति प्राप्त करना चाहता था तथा दूसरे वह भारत की धन-सम्पत्ति प्राप्त करना चाहता था क्योंकि उसने भारत की अपार धन-सम्पत्ति के विषय में अनेक कहानियाँ सुन रखी थीं। वह अपने उद्देश्य में काफी हद तक सफल रहा था । 

तैमूर एक निर्दयी तथा क्रूर शासक है। उसकी सेना उससे थर-थर काँपती है। क्रूर होने के साथ-साथ वह धन-लोलुप भी है । उसकी क्रूरता तथा धनलोलुपता का परिचय तो वहीं लग जाता है जब उसके सिपाही कल्याणी के घर में घुसकर मिठाइयाँ तथा अन्य पकवान खाते हैं और कुछ आराम करते हैं। इस समय तैमूर अन्दर घुस आता है और अपने सिपाहियों को आराम से मिठाइयाँ खाते देख क्रोधित हो उठता है तथा क्रोध में अपने सिपाहियों से व्यंग्य में कहता है: “कम्बख्तो ! इसी तरह तुम हिन्दुस्तान की दौलत गाज़ी तैमूर के खज़ाने में भरोग ? जब तुम्हें कत्ल करना चाहिए, तब तुम आराम से तख्त पर बैठे हो । जब तुम्हें जवाहरात ढूँढ़ने चाहिए तब तुम नाश्ता करते हो ।” इस प्रकार के वक्तव्य से तैमूर की क्रूरता एवं सख्ती का परिचय मिलता है । 

वह इस बात में विश्वास करता है कि आक्रमण करने की स्थिति में आराम और ऐश आक्रमण की भावना को दुर्बल कर देते हैं । आक्रमणकारी को ऐश-आराम और भूख की चिन्ता नहीं करनी चाहिए। उसका एकमात्र उद्देश्य आक्रमण कर अपने उद्देश्य को पूर्ण करना है । इसी सिद्धान्त को वह अपने जीवन में अपनाए हुए है। आश्चर्य इस बात का है कि इतना क्रूर और निर्दयी शासक वीर बालक बलकरन के वाक् चातुर्य के आगे झुक जाता है । उसके नीरस हृदय में सरसता तथा करुणा की लहर हिलोरें लेने लगती है। उस समय उसका पूर्ण व्यक्तित्व बदल जाता है, वह एक भावुक मनुष्य हो जाता है । वह अपनी बदला लेने की भावना को भूल जाता है ।
 
बलकरन का वाक् चातुर्य उसके हृदय का परिष्कार कर देता है । वह बलकरन की वीरता से बहुत खुश होता है तथा उसको ‘चाकू वाला बहादुर' कहता है। इससे उसके हृदय में वात्सल्य की झलक मिलती है । बलकरन उसकी तलवार का चाकू से मुकाबला करता है । यह सब उसको बहुत अच्छा लगता है । बलकरन की धृष्टता को देखते हुए भी वह उसको माफ करता है । उसके कहने पर उस गाँव से चला जाता है । यह उसके हृदय की विशालता है। 

कल्याणी 

कल्याणी इस एकांकी की प्रधान स्त्री पात्र है । वह बलकरन की माँ है । इस एकांकी में कल्याणी का चरित्र एक ममतामयी माँ, वात्सल्य रस की साकार मूर्ति के रूप में प्रस्तुत किया गया है। संतान किस प्रकार की होनी चाहिए इसकी जिम्मेदारी केवल माँ की होती है अर्थात् संतान का उज्ज्वल भविष्य माँ के हाथ में होता है । बच्चा वीर होता है या कायर यह सब उसकी माँ पर निर्भर होता है। बलकरन का चरित्र एक वीर तथा वाक्पटु बालक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इससे यह सिद्ध होता है कि कल्याणी ने बलकरन को ऐसी शिक्षा दी, ऐसा पालन पोषण किया जिसके कारण वह वीर बालक बन सका ।

वह कितनी ममतामयी है इसका परिचय तो इसी बात से मिलता है जब बलकरन की वर्षगाँठ होती है वह उस दिन बहुत खुश है । वह इस दिन अधिक से अधिक अपने सामर्थ्यानुसार घर में मिठाइयाँ और खाद्य व्यंजन बनाकर अपने बेटे की वर्षगाँठ की खुशी प्रकट करना चाहती है और बेटे से कहती है कि आज मैंने तेरी वर्षगाँठ पर बहुत मिठाइयाँ बनाई हैं । पहले अपने बेटे को आज वर्षगाँठ के दिन नहालाऊँगी, चंदन लगाऊँगी, फूलों की माला पहनाऊँगी, उसके बाद उन मिठाइयों को खिलाऊँगी । 

कल्याणी का हृदय ममता एवं प्यार की भावना से ओतप्रोत दिखाई देता है । यहाँ तक कि तैमूर के सिपाहियों के आक्रमण के समय भी वह बेटे को छोड़कर घर से नहीं जाना चाहती है । किन्तु जब जबरन ग्रामवासी उसको घर से बाहर ले जाते हैं तब वह चिल्लाकर बलकरन ! बलकरन ! कहती हुई ग्रामवासियों के साथ घर छोड़कर छिपने जाती है ।
 
उसके हृदय में बलकरन की बहुत चिन्ता है । इससे उसके मातृत्व का परिचय मिलता है। इसके बाद जब तैमूर गाँव से वापस चला जाता है, गाँव में शांति हो जाती है तब वह अपने घर वापस आती है। उसे पता है उसके पीछे तैमूर आया था । वह आते ही बलकरन की कुशलता पूछती है । कहती है-वह ठीक तो है, उसे कुछ हुआ तो नहीं । बलकरन कहता है— उसने तैमूर का साहस के साथ सामना किया । वह उससे डरा नहीं। तैमूर उससे खुश हो गया ।वह उसे चाकूवाले बहादुर के नाम से पुकारता था। इस प्रकार के बलकरन के शब्दों को सुनकर कल्याणी का हृदय खुशी से गद्गद् हो जाता है । जब उसे यह भी पता लगता है कि तैमूर उसी के वाक् चातुर्य के कारण गाँव को छोड़कर चला गया है तब तो उसकी प्रसन्नता की सीमा नहीं रहती । इसी प्रसन्नता के कारण वह बलकरन की उँगली के खून से ही उसके तिलक लगाती है क्योंकि वीर बालक की वर्षगाँठ है। इससे सिद्ध होता है कि उसके हृदय में वीरता के प्रति कितना आदर है । 
 

बलकरन 

बलकरन इस एकांकी का प्रमुख पात्र एवं नायक है। इस एकांकी में उसका चरित्र एक वीर एवं वाक्पटु बालक के रूप में प्रस्तुत किया गया है । एकांकी का नामकरन भी बालक की वीरता के गुणों के आधार पर हुआ है। इसके द्वारा एकांकीकार यह संदेश देना चाहता है कि किस प्रकार एक छोटा बालक भी अपनी वीरता तथा वाक् चातुर्य से तैमूर जैसे क्रूर शासक का साहसपूर्वक सामना कर सकता है और भोली-भोली बातों से उसका हृदय जीतकर उसको अपने आगे झुका सकता है । 

बलकरन की वीरता का परिचय तो उसी समय लग जाता है जब एकांकी के आरम्भ में ही वह चाकू तेज़ करता हुआ दिखाई देता है । चाकू की धार तेज़ करने के पीछे उसकी वीरता की भावना का ज्ञान होता है । 

घर में जब इतने क्रूर पराक्रमी तैमूर का सामना उससे होता है तब वह बिल्कुल भी विचलित नहीं होता, बल्कि साहस से पूछता है—'तुम कौन हो' । इस पर तैमूर कहता है—'गाज़ी तैमूर से नाचीज़ सवाल करता है कि तुम कौन हो ? कमबख्त ! अगर बात करने की तमीज़ नहीं हो तो खामोश रह । दुनिया का ज़र्रा-ज़र्रा जिसके कदमों को चूम चुका है उससे सवाल करता है तुम कौन हो ? मेरी तलवार से पूछ।' इस प्रकार के तैमूर के उत्तर से बलकरन बिल्कुल भी भयभीत नहीं होता । तैमूर उसके लाये हुए दूध को उससे पीने के लिए माँगता है किन्तु बलकरन साहस से उसको दूध देने के लिए मना करता है । कहता है—यह मेरी वर्षगाँठ के लिए है । इसे मैं अपनी माँ के सिवा किसी को नहीं दे सकता। तैमूर इस बात पर नाराज़ होकर उसे तलवार से काटने की धमकी देता है । फलस्वरूप बलकरन निर्भीकता से कहता है— क्या वह खून बहाना चाहता है ? इस पर तैमूर स्वयं उसको निडर कहता है क्योंकि बलकरन उससे कहता है—उसके पास तो सिर्फ चाकू है, उसे भी एक तलवार दे तब तो सामने आये । इन शब्दों से उसकी वीरता तथा उसके साहस का परिचय मिलता है। इस प्रकार पूरा एकांकी उसके चारों ओर घूमता है। बलकरन वीर होने के साथ-साथ बात करने की कला में भी निपुण है। उसने यह बात सिद्ध कर दी है कि जो कार्य शक्ति के बल से नहीं किए जा सकते उनमें वाक्पटुता द्वारा सफलता प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकार वीरता रणस्थली से हट कर भी मिल सकती है। 

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