भारतीय समाज में सांस्कृतिक परिवर्तन

SHARE:

भारतीय समाज में सांस्कृतिक परिवर्तन एक जटिल और निरंतर प्रक्रिया है यह प्रक्रिया कई कारकों से प्रभावित होती है, और यह भारतीय समाज के भविष्य को प्रभावित

भारतीय समाज में सांस्कृतिक परिवर्तन


भारतीय समाज में सांस्कृतिक परिवर्तन किसी भी देश की छवि विश्व के रंगमंच पर उबारने में वहाँ की संस्कृति का महत्वपूर्ण योगदान होता है। संस्कृति के अन्दर कई बातों को सम्मिलित किया जाता है। जैसे-वहाँ के निवासियों की जीवनशैली, खान-पान, वेशभूषा, सामाजिक उत्सव, विचारधारा, शिक्षा, आचरण आदि। समय का चक्र अपनी अबाध गति से चलता रहता है। समय के साथ मानव के जीवन में परिवर्तन होता रहता है। लोगों की विचारधाराएँ भी बदलती रहती हैं। हमारे देश की भी एक गौरवशाली सांस्कृतिक परम्परा अनादिकाल से चली आ रही है। इस भारतीय संस्कृति में कुछ ऐसी विशेषताएँ हैं जो संसार को अपनी तरफ आकर्षित करती हैं। प्राचीनकाल में हमारा भारतवर्ष भारतीय संस्कृति से पूर्णत: अनुप्राणित था । यहाँ पारस्परिक प्रेम भाईचारे का भाव दृष्टिगोचर होता था। सादगी, सच्चाई, मन-वचन और कर्म के सद्गुण दृष्टिगोचर होते थे, लेकिन जैसे-जैसे समय का परिवर्तन हुआ मध्यकाल में मुगलों के आगमन और आधुनिक काल में अंग्रेजों के आगमन से यहाँ की सभ्यता और संस्कृति में अनेकानेक परिवर्तन हुए। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद ये परिवर्तन तीव्रतर होते गये । 


इक्कीसवीं सदी में होने वाले परिवर्तन

भारतीय समाज में सांस्कृतिक परिवर्तन
आज जब हम लोगों ने इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर लिया है यदि हम पीछे मुड़कर देखें तो ज्ञात होगा कि प्राचीन और आधुनिक काल में जमीन आसमान का परिवर्तन आ गया है। यह परिवर्तन कई क्षेत्रों में दृष्टिगोचर होता है- प्राचीनकाल में शिक्षा का प्रचार न के बराबर था तब हमारे देश में लोग शिक्षित नहीं होते थे, लेकिन आज सरकार अनेक ऐसे 'साक्षरता' कार्यक्रम आरम्भ कर रही है तथा शिक्षा के नये-नये आयाम लोगों के लिये खोल रही है जो उनके व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक होते हैं। विज्ञान और तकनीक ने यहाँ की औद्योगिक प्रगति में चार-चाँद लगा दिये हैं, जिससे विश्व के अन्य देशों के सामने हमारा मस्तक गौरव से उठ जाता है।
 

भारतीय वेशभूषा का महत्व

लेकिन भारतीय समाज में सांस्कृतिक परिवर्तन में विकास की इस दौड़ में अगर हम ध्यानपूर्वक देखें तो पायेंगे कि हमारी भारतीय संस्कृति दिन-प्रतिदिन लुप्त होती जा रही है और पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव हमारे दिलोदिमाग पर छाता जा रहा है। प्राचीनकाल में भारतीय वेश-भूषा का महत्व दृष्टिगोचर होता था । महिलाएँ साड़ी पहनना अच्छा मानती थी परन्तु आज उसका स्थान विदेशी पहनावे ने ले लिया है। शील, सदाचार के गुण तो जैसे कहीं खो गये हैं।
 
अपने से बड़ों का आदर करना प्रत्येक भारतवासी अपना परम कर्त्तव्य मानते थे। हमारे समाज में गुरुजनों का आदरणीय स्थान होता था, लेकिन आज छोटे अपने से बड़ों के प्रति आदर से पेश आएँ ऐसा बहुत कम देखा जाता है। लोग अपने जीवन मूल्य जैसे ईमानदारी, कर्त्तव्यपरायणता, सत्यनिष्ठा, वचनबद्धता आदि को अपने जीवन का एक अंग मानते थे, लेकिन आज मनुष्य की नैतिकता का जिस तीव्रगति से पतन हो रहा है वह चिन्ता का विषय है।
 

सामाजिक उत्सव की संस्कृति

सामाजिक उत्सव एवं त्योहार संस्कृति का एक प्रधान अंग होते हैं। प्राचीनकाल से ही भारत को त्योहारों का देश माना गया है ये त्योहार लोगों के मन को हर्षोल्लास से भर देते थे। लोग बड़े उत्साह से अपने पारम्परिक त्योहारों को मनाते थे, लेकिन आज आधुनिक समय के व्यस्त जीवन, अंग्रेजी शिक्षा पद्धति के प्रभाव के कारण ये त्योहार भी अपनी परिधि में सिमट कर रह गये हैं उनका भी संक्षिप्तीकरण हो गया है।भारतीय समाज में सांस्कृतिक परिवर्तन
 
पहले हमारे देश में आवागमन के साधन सीमित थे। आने-जाने में लोगों को कष्ट का सामना करना पड़ता था। इक्कीसवीं सदी में सड़कों पर तीव्रगति के वाहनों का आगमन देखा जा सकता है, लेकिन इसका लोगों के स्वास्थ्य पर बहुत दुष्प्रभाव पड़ता है। पहले लोग व्यायाम करते थे, पैदल चलते थे जिससे उनका स्वास्थ्य भी उत्तम रहता 

खान-पान की भारतीय शैली विदेशियों को सदा अपनी तरफ आकर्षित करती है, लेकिन हमारे देश के लोग आज अपने ही देश के पारम्परिक पौष्टिक आहारों को छोड़कर 'फास्ट फूड' और 'चाइनीज' भोजन की तरफ आकर्षित होने लगे हैं, जगह-जगह रेस्टोरेंट लोगों को लुभाते हैं और वे इनमें जाकर गर्व की अनुभूति करते हैं।
 
प्राचीनकाल में जिन मनोरंजन के साधनों का नाम भी हम नहीं जानते थे वे अत्याधुनिक साधन भी हमें अपने देश में लोगों के घरों में ही मिल जाते हैं। पहले केवल नृत्य, संगीत, लोकगीत, मनोरंजन के साधन थे, परन्तु आज उनका स्थान टेलीविजन, सिनेमा, क्लब आदि ने ले लिया है। भारतीय समाज में सांस्कृतिक परिवर्तन

प्राचीनकाल में महिलाओं का गौरवमयी स्थान माना गया है उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था, लेकिन आज महिलाएँ भी अपने को असुरक्षित महसूस करने लगी हैं। 

देशप्रेम में परिवर्तन

स्वतन्त्रता से पूर्व भारतवासियों के मन में देशप्रेम की अद्भुत लौ प्रज्वलित होती थी। अपने देश की रक्षा, उसके सम्मान की रक्षा, मिट्टी से प्यार आदि बातें प्रत्येक नागरिक के मन में होती थीं, लेकिन आजकल ये बातें बेमानी हो गई हैं और लोग भारत से विदेश-गमन मैं अधिक रुचि लेने लगे हैं। दूसरी ओर विदेशियों के मन में भारतीय संस्कृति के प्रति लगाव उत्पन्न हो रहा है। 



इस प्रकार संसार भर में इक्कीसवीं सदी में आश्चर्यजनक रूप से सांस्कृतिक परिवर्तन हो रहे हैं। ये परिवर्तन होना भी चाहिए क्योंकि एक ही जीवन शैली लम्बे अर्से बाद उबाऊ हो जाती है, किन्तु परिवर्तन की इस लहर में बहकर हमें अपनी मर्यादा, अपनी परम्पराओं को भूलना नहीं चाहिए उनकी रक्षा करना अपना कर्त्तव्य समझना चाहिए।

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका