श्राद्ध | हिंदी कहानी

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सुनीला को तुरंत अपनी भूल का अहसास हुआ। उसने माताजी को खाना खिलाया, दवाईयां दी और उनसे माफी मांगी।ब्राह्मणो को भोज कराकर उनको तृप्त कराया जाता हो।

श्राद्ध


पूरे घर मे चिल्ल-पों मची थी।सुनीला तड़के ही नित्य क्रिया के पश्चात स्नानादि से निवृत होकर रसोई मे बाबूजी की पसंद के तरह-तरह के व्यंजन बनाने मे लगी थी। आज बाबूजी का पहला श्राद्ध है।अत: पहले श्राद्ध का पुण्य बटोरने मे वह कोई कमी नही होने देना चाहती थी।उसने रूचिका को आवाज लगाई।दद्दू वाले कमरे मे अच्छे से झाड़ू पोछा कर आसन लगा देना। काम की आलसी रूचिका ने मुंह बनाते हुए कहा, ओहो, आज के दिन भी माला नही आई।अरे नही रे, माला तो आई है, पर आज का सब काम शुद्धता से अपने हाथों से ही करना है क्योंकि पित्तर का काम है।सुनीला ने सफाई दी।फिर उसने बाजार से बाबूजी के पसंद के रसगुल्ले लाने के लिए रूपेश को
श्राद्ध | हिंदी कहानी
आवाज लगाई। इस बीच माताजी ने आवाज लगाई, सुनीला खाली पेट दवाई कैसे लूं, कुछ खाने को दे दो। दही-बड़े बनाते हुए उसने डांटते हुए कहा, थोड़ी देर रूक जाइये, देखिए तो इतना काम पड़ा है। फिर उसने रूचिका को पुकारा, बेटे, पापा से कहना, पण्डित जी को फोन लगाकर उन्हे समय पर आने को कह दें । दद्दू के कमरे मे पोंछा लगाने के बाद जब वह बाहर निकली तो रूक्मिणी ने उससे भी कुछ खाने को मांगा। काम के कारण उसका मूड खराब था।उसने पोछे की बालटी उठाई और मुंह बनाते हुए बाहर की ओर चली। रूक्मिणी देखती रह गई।
     
बाबूजी के जाने के बाद से रूक्मिणी की तबियत खराब रहने लगी थी। उनकी कमजोरी को देखते हुए डाक्टर ने उन्हे ताकत की दवाईयों के साथ ही भूख की दवाईयां भी दे दी थी। अत: दिन के ग्यारह बजते-बजते रूक्मिणी भूख से बेचैन हो उठी।जब उससे बर्दाश्त नही हुआ तो उसने फिर से बहू को आवाज लगाई और कुछ खाने देने को कहा। सुनते ही सुनीला ने चिढ़कर कहा, थोड़ा तो धैर्य रखिए अम्मा, पहले श्राद्ध तो निबटा लूं।ठीक उसी समय पण्डित जी के बेटे ने घर मे कदम रखा। उन्होने सुनीला और रूक्मिणी की बातें सुन ली।सुनीला ने जब उन्हे आसन ग्रहण करने को कहा तो उन्होने उसे डपटते हुए कहा, 'पहले माताजी को कुछ खिलाएं, तभी ही मै इस घर का अनाज ग्रहण करूंगा। ऐसे घर मे भोजन करने का क्या फायदा, जहां जीते जी पितरों को भूख से तड़पाया जाता हो और मरने के बाद हम ब्राह्मणो को भोज कराकर उनको तृप्त कराया जाता हो। तृप्ति तो जीते जी होना चाहिए, मरने के बाद किसने देखा है।
        
सुनीला को तुरंत अपनी भूल का अहसास हुआ। उसने माताजी को खाना खिलाया, दवाईयां दी और उनसे माफी मांगी।



- शालिनी खन्ना
नई दिल्ली

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