मंजिलें उनको मिलती है जिनके सपनों में जान होती है

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कंगूरे पर बैठकर भी बंदर शोभायमान नहीं होता , और मोर मैदान में भी मन मोह लेता है । मंजिलें उनको मिलती है ,जिनके सपनों में जान होती है पंखों से कुछ

ओ मितवा रे


केडमिक परीक्षाओं और प्रतियोगी परीक्षाओं में जमीन आसमान का अंतर है ।प्रतियोगी परीक्षाएं विशिष्ट रूप से उम्मीदवार की शारीरिक, व्यक्तिगत और शैक्षिक योग्यताओं के साथ-साथ की बुद्धि की , शैक्षिक योग्यता  तक आकलन करने के लिए होती है व्यक्ति की आई क्यू कितनी है और अफसर जैसी योग्यताएं उसे शुरू में है और स्वभाव, सोहबत  इस तरह का व्यक्तित्व रखता है,  यह सारी बातें वांछनीय  हैं, उम्मीदवार के लिए जरूरी है , एकेडमिक परीक्षाओं में केवल आधारिक विषय की जानकारी और  उसके परिणाम का  यह एक आंकलन है ।

प्रतियोगी परीक्षाएं इस तरह से डिजाइन की गई है कि उम्मीदवारों से लिखे और बोले गये  कथ्य ,पाठ ,पेपर  में लिखे हुए और व्यवहार कुशलता में संवादों को  तत्क्षण  समझने की  अच्छी -खासी क्षमता होनी चाहिए ।

बिना मेथड के, बिना प्रणाली के ,और बिना समय संतुलन के सफल भी हो गए , तब सफलता टिकेगी नहीं । टिकाऊ रहने के लिए कई  बातों की जरूरत है , जिनमें आपकी जीवनचर्या ,आपके अपने लोगों से व्यवहार ,साथियों से व्यवहार और उनसे समय पर  आपकी वित्तीय प्रबंधन और वित्तीय लेनदेन में स्पष्टता आदि इन सब बातों की निगह बानी करते हुए ही आपके व्यक्तित्व का निर्माण होता है । तो आप अगर  शीर्ष  पर पहुंच भी गए तो गिरने में और  भटक जाने में भी आपको देर नहीं लगेगी ।

मद्रास में पहले ब्रिलिएंट कोचिंग था, एक विशिष्ट प्रकार के नोट तैयार करते थे फिर राव अकैडमी आई इसके बाद दिल्ली के मुखर्जी नगर में और अन्य  छोटे बड़े शहरों में विशिष्ट परियोजनाओं के लिए विशिष्ट नगरों में जैसे व्यापम जैसे कोचिंग सेंटर इधर-उधर उभर आए इनमें एक विशिष्ट प्रकार की चीज भी कभी- कभार देखने को मिली  कि  पेपर  पिल्फर किए गए अथवा कोचिंग यह मामले इक्का-दुक्का ही हो सकते हैं  ,बड़ी तादाद के लिए  नहीं ।

आई सी एस को करीब  1912 मेंआई ए एस में रिप्लेस किया और अंग्रेजों ने आईसीएस जो बने वह स्टील फ्रेम था,1857से 1922तक, आसानी से वफादार  ,  फ्रेमवर्क वह ढांचा फिरंगियों का  वफादार था कि अंग्रेजों की सुरक्षा में  अहर्निश लगा रहता था, जाहिर सी बात है की पृष्ठभूमि भी इसकी अंग्रेजी आधारित  फिरंगियों और उनके काम आने वाली रही होगी, उन्हें देशज लोगों से कोई ज्यादा सरोकार नहीं था ।

मंजिलें उनको मिलती है जिनके सपनों में जान होती है
कोठारी आयोग 1976 के बाद बदलाव हुआ और वह सिविल सर्विसेज परीक्षा के नाम में जानी गई और इसके बाद सतीश चंद्र और होता समिति की सिफारिशों को लागू किया गया, इसके एक निश्चित पैटर्न है और उसे सिलेबस को समझते हुए आपको आगे बढ़ना है इसमें कई बार तो व्यक्ति को सफलता कई-कई अवसरों के बाद हासिल होती है और कई बार पहले में ही आप पास हो जाते हैं , जो भी हो -आपको निराश होने की जरूरत नहीं है और जैसा फिल्म छिछोरे में कहा गया था , आप प्लान बी  पहले से तैयार रखें,क्योंकि प्रतिभाशाली भी कभी-कभी रह जाते ,नहीं हो पाए  पार तो मायूस होने जैसी कोई बात नहीं है और कुछ इस तरह आपको याद रहना चाहिए कि मोरारजी देसाई एक साक्षात्कार में गए थे ,साक्षात्कार्यकर्ता ने कहा नौजवान यदि हम आपको इस पद के लिए  न चुनें तो ? मोरारजी देसाई जी ने कहा कि इसका सीधा अर्थ है कि इससे भी अच्छा पद मेरा इंतजार कर रहा है ।

व्यक्ति के जीवन में सुधार भी धीरे-धीरे आता है , बहुत से व्यक्ति तो मैंने ऐसे देखे हैं कि ना तो वह अपनी जिम्मेदारियां को ही पूरा नह,करते हैं आधा अधूरा काम छोड़ देते हैं,  काम सोपा गया हो मामले में अपडेट तक नहीं देते,  कुछ तो इतने भुलक्कड़ है किसी से क्या वादा किया ,क्या बातें हुई,  उनके अनुसार सुबह की बात शाम तक याद नहीं रहती , भला  फिर एसे व्यक्ति को प्रबंधकीय अथवा प्रशासकीय दायित्व सोंपे कैसे जा सकते हैं?

शीर्ष पर बैठे व्यक्ति के व्यक्तित्व में अधिकारी जैसे लक्षण O.L.Q.तो होने चाहिए , सर्वप्रथम वह विवाद  से दूर रहेंऔर व्यक्तिगत प्रश्नों से  भी बिल्कुल परहेज करें यदि वे शासकीय कार्य निर्वहन में नहीं है, अन्यथा जरूरी ना हो , नहीं पूछे  ।मिलनसारिता हो , और विनम्र स्वभाव हो,  रुख में नरमी हो पर जरूरत से अधिक ना हो और सबसे महत्वपूर्ण है निर्णय लेने की तीव्र क्षमता हो ।

यह बातें इतनी आसानी से नहीं आती , जब तक की यह आचरण और व्यवहार से जीवन में आत्मसात नहीं कर लेते,  और इतनी सादगी से रहना हो ,उनका कभी प्रभाव दूर-दूर तक पड़े। बच्चों की सोहबत पर भी ध्यान देना चाहिए उनके शौक मिजाज को भी समय-समय पर नोट करते रहना चाहिए ।

वैसे ज्यादा बातें अपने हाथ में नहीं होती लेकिन इसके बावजूद भी व्यक्ति को जितना उपाय करते रहना चाहिए
कहावत है कि - 

अच्छेन के बुरे होत हैं ,बदल जात है अंश ।
हरियाणकश्यप के प्रहलाद भये,
उग्रसेन   के कंस ।।

फिर भी कितना भी कोई महत्वपूर्ण क्यों ना हो उसका भी महत्व नहीं रहता यह  जीवन उसके बिना भी वैसे ही चलती रहती है और चलती रहेगी तो अपने आप को इतना महत्व  देकर और अहंकारी न बनें।प्रकृति के गोद में एक से एक नया बीज जन्म लेने के लिए उत्सुक है यह गोद इसी तरह हरी भरी रहेगी।

परिस्थितियों चाहे कैसी भी हो,  शिक्षा , शिक्षा हो लेकिन आप में इतनी सहज समझ होनी चाहिए कि आप अपने जीवन को  प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अवस्थित रखें व संभव ।

सफल होना है तो आप आलस्य को न आने दें, आलस्य आने से  आप किसी काम के नहीं रहेंगे, आप अपने काम में शिथिलता लेंगे  और दूसरी बात है कि अपने पर ध्यान केंद्रित फोकस करें ।   कभी  अपमान होने पर खिसियाहट ना आने दे क्या , न बदला लेने की भावना रखें।

याद रखें कि भूमि केवल यही है । इसके अतिरिक्त कहीं कोई भूमि नहीं है। आकाश के पास भी अपनी कोई भूमि नहीं है। इसके अनुरूप ही आपकी भूमिका हो। अगर आपकी भूमिका एक ही विषय पर बार बार डगमगाने लगे तो आप अपने लिए भी उपयोगी नहीं रहोगे। लोग चौगला तक बोलेंगे । आपकी भूमिका ही आपके जीवन को स्पष्ट करेंगी।

प्रकृति का संतुलन भी बेहद अभूतपूर्व है ।मुझे याद है अपने बचपन के दिनों में मैं कक्षा 7में करीब गांव से शहर तक तीन-चार किलोमीटर पैदल जाया करता था तो,  सड़क के किनारे किनारे एक गंदा नाला बहता  करीब ढ़ाई किमी था तो वह गंदा नाला कभी-कभी दुर्गंध बहुत दूर तक फैल जाती थी , शहर के निकट सौंफ के  खेत थे और आप यकीन मानिए की  सोंफ की सुगंध नाले की दुर्गंध पर बहुत भारी हो  जाती थी , यहां तक की दर दिगंत में सौंफ की लहराती हुई खुशबू बढी चली जाती थी , इस दृष्टांत को मैं इसलिए बता रहा हूं कि अच्छाई जो है इसी प्रकार  महकती है , बुराई जब तक उससे छेड़छाड़ न करो सीमित दायरे में ही रहती है ,अपनी जगह लॉकेट रहती है उसे मोशन में स्थिति वापस से लाया जाता है फैलने लगती है , नहींतो अपने स्थानीय सीमित दायरे में ही सिमट कर रह जाती है।और अंत में अपने आप मर जाती है।

फ्रांसिस बेकन अंग्रेजी निबंधकार  ने निबंध ऑफ of studies स्टडीज में   स्पष्ट किया है कि ज्ञान हमें किन पुस्तकों  से प्राप्त  करने चाहिए , किस तरह करना चाहिए इस पर विस्तार से प्रकाश डालें  ग्रे हैं ।कुछ किताबें, तो बिल्कुल  सरसरी तौर पर पढ़नी होती है ,लेकिन कुछ किताबें नियमित अध्ययन की होती हैं और कुछ किताबों का सम्यक अध्ययन किया ही जाना चाहिए । इस बात पर भी गौर करें कि निबंध की उपयोगिता क्या है ,क्यों निबंध इतना महत्वपूर्ण है।

निबंध इस शीर्षक को थोड़ा सा गुमराह करने वाला होते हुए भी यह जान लो कि इससे सम्यक प्रासंगिक कोई गद्यलेख नहीं हो सकता।

निबंध को सही अर्थों में समझने के लिए सुप्रसिद्ध निबंधकार हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के  सभी निबंध , विशेष कर *अशोक के फूल* आपको जरूर पढ़ने चाहिए। पाठ्य सामग्री में आप बहुत अच्छी पुस्तकों के अलावा  स्तरीय पत्रिकाओं को जरूरत के हिसाब के पन्नों को पढ़कर अपने नोट्स बना लें।ग्रंथ पढ़ें पर ग्रंथियां न पालें।

निबंध के मुख्य तत्व शीर्षक का एक पृष्ठ में परिचय विषय के विभिन्न पर पहलुओं पर विचार सुविचार मत बता अंतर और अंतिम में काम से कम एक डेढ़ पेज का निष्कर्ष होना चाहिए।

नीति शास्त्र आदि की बातें कुछ पुस्तकों का अध्ययन पसंद करता हूं , मैं आपको बता रहा हूं . पढ़ने योग्य अच्छी पुस्तकें , जो घरेलू पुस्तकालय में भी होनी चाहिए

लाला हरदयाल की पुस्तक Hints for self culture ,
इंद्रजीत खन्ना की पुस्तक फ्लैशेस बिफोर माय आईज ,
किशोर कुणाल की पुस्तक तक्षकों का दमन  ,
गोरकी की मां ,
अलबरूनी इंडिया ,
संस्कृति के चार अध्याय ,
तिरुक्कुरल ,
श्रीलाल शुक्ल ,राग दरबारी,
मारियो पुजो , गाडफादर
the wonder that was India  ,BashamAL
नॉट सो सिविल  -अनिल स्वरूप,
विंग्स आप फायर -अब्दुल कलाम ,
हिंदू धर्म की विशेषताएं -सत्यकाम वेदालंकार ,
चेखव की शर्त , विमल मित्र -साहिब बीवी और गुलाम , मेकिंग ऑफ़ मैन  - स्वामी चिन्मयानंद, चिन्मय मिशन ,चेन्नई ,कन्हैया लाल मानिक लाल मुंशी -लोपामुद्रा , ज्ञानेश्वरी , श्यामची आई , प्राइड एंड प्रेज्यूडिश,  एक्सपेक्टशंस  , रोजेस इन दिसंबर  -एम सी छागला  , एन इंट्रोडक्शन  टू कॉन्स्टिट्यूशन ऑफ़ इंडिया -दुर्गा दत्त बसु ।
भारतीय शासन एवं राजनीति -शर्मा,
चेतन भगत तस्लीमा नसरीन ,सलमा रशदी इनकी भी किताबें पढ़ी जानी चाहिए,।

यह सच है कि मैकाले और लॉर्ड कॉर्नवालिस ने जिस प्रशासकीय उद्देश्य के लिए सेवा का गठन किया वह अब भारतीय परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिक नहीं रह गई है  ।सिविल सर्वेंट बनना हर एक के बस की भी बात नहीं है। यह इतना आसान काम नहीं है इसके लिए बहादुर भी , सही रिफ्लेक्स , सूझबूझ  और क्विक रेस्पोन्स  भी pre requisite होनी चाहिए ।

दयानंद सरस्वती  की सत्यार्थ प्रकाश की  कहानी ,आधी सुपारी ,प्रेमचंद की कहानियां  ।यह सच है कि मैं कॉलेज और लॉर्ड कॉर्नवालिस ने जिस प्रशासकीय उद्देश्य के लिए शिवा का गठन वह अब भारतीय परिपेक्ष में प्रासंगिक नहीं रह गई है सिविल सर्वेंट बना हर एक के बस का भी बात नहीं है यह इतना आसान काम नहीं है इसके लिए बहादुर भी , सही रिफ्लेक्स सूझबूझ  और क्लिक रेस्पोन्स  भी होनी चाहिए ।

,प्रेमचंद की कहानियां और अब  रुआब  और शानशौकत के लिए  सिविल सेवा नहीं रह गई है,अब नई-नई चुनौतियां हैं ,नई-नई चीज हैं और अपराध का स्वरूप भी वह नहीं रह गया है साइबर स्पेस में जिस तरह से अपराध घटित हो रहे हैं वह सफेद कॉलर क्राईम से कहीं बढ़कर कारपोरेट जगत में सिंडीकेटेड हो गया है।

यह बात भी याद रखें की कंगूरे पर बैठकर  भी  बंदर शोभायमान  नहीं होता , और मोर  मैदान में भी मन मोह लेता है ।

मंजिलें उनको मिलती है ,जिनके सपनों में जान होती है
पंखों से कुछ नहीं होता  ,हौसलों से उड़ान होती है।।



- क्षेत्रपाल शर्मा  
शान्ति पुरम, आगरा रोड अलीगढ़ 202001

COMMENTS

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  1. प्रेरक ढंग से लिखी गई बढ़िया जानकारी ***-किशोर वासवानी,पुणे

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