आंगन का पंछी गौरैया की विशेषताएं और लेखक की संवेदना विद्यानिवास मिश्र द्वारा लिखित इस निबंध में मिश्र जी ने गौरैया के महत्व को बताया है। गांव में कह
आंगन का पंछी गौरैया की विशेषताएं और लेखक की संवेदना
आंगन का पंछी गौरैया की विशेषताएं और लेखक की संवेदना - विद्यानिवास मिश्र द्वारा लिखित इस निबंध में मिश्र जी ने गौरैया के महत्व को बताया है। गांव में कहा जाता है कि जिस घर में गौरैया घोंसला नहीं बनाती वह घर निर्बल हो जाता है। गौरैया एक छोटी सी चिड़िया है जो अपने साधारण रंग रूप में भी घर आंगन को रौनक से भर देती है। लेखक के अनुसार गौरैया में निम्नलिखित विशेषताएं होतीहैं -
- निर्भयता - यह छोटी सी चिड़िया निर्भय निशंक आंगन में विचरती है, बेधड़क दाने चुगती है, तिनके बिखेरती है और घर आंगन में खुशियां बरसा देती है।
- सौभाग्य का प्रतीक - लेखक के अनुसार गोरिया सौभाग्य का प्रतीक है। जिस घर में गौरैया नहीं आती वह घर दुर्बल निर्बल व साधन हीन हो जाता है इसलिए गौरैया का आंगन में चहचहाना सुख समृद्धि का द्योतक माना जाता है।
- पक्षियों में ब्राह्मण - गौरैया को जनमानस ने पक्षियों में ब्राह्मण की संज्ञा दी हुई है। इसीलिए वह इतनी आत्मीय और मंगलमय है। चिड़ियों का शिकार करने वाले भी इसी वजह से गोरिया का शिकार नहीं करते क्योंकि वह शुभ मंगलकारी है।
- स्वच्छंद - गोरिया स्वच्छंद पक्षी है। स्वच्छंदता से आंगन आंगन विचरती है ।आंगन में सूखे हुए धान पर एक साथ झुंड आता है और जरा सा हाथ हिलाते ही तितर-बितर हो जाता है पर वही तक ज्यादा दूर नहीं, इसलिए लेखक कहते हैं कि गौरैया स्वच्छंद पक्षी है।
- जन जन के प्रिय - लेखक कहते हैं कि गोरिया में रूप रंग की कोई विशेषता नहीं, लाल पीले नीले रंगों की खूबसूरती नहीं है, कोयल जैसी मीठी बोली भी नहीं है, मोर जैसी नृत्य कला भी नहीं है, बाज ऐसी उड़ान नहीं है फिर भी गौरैया सबकी प्रिय है क्योंकि उसमें लोगों के दुख दर्द को बांटने की उत्कंठा है उत्साह है।
- तुलसी के पौधे के समान पूजनीय - लेखक ने गौरैया की तुलना तुलसी के पौधे से की है। जिस तरह फल फूल विहीन,गंध हीन तुलसी का पौधा हर आंगन में सुशोभित है। न विशालता है न सघन छांव फिर भी आंगन में पूजा जाता है उसी तरह गौरैया भी महज आंगन में उछाह से फुदकने की वजह से प्रिय है।
इस प्रकार प्रकृति की देन पर्यावरण की रक्षक गौरैया की इन विशेषताओं के कारण ही सौंदर्यहीन गौरैया जनमानस की प्रिय है।
चीन में गौरैया के खिलाफ चलाए गया अभियान
कुछ समय पूर्व चीन में गौरैया के खिलाफ सामूहिक अभियान चलाया गया जिसमें उन्हें खेती का, फसलों का शत्रु मानकर उन्हें नष्ट करने का बीड़ा उठाया गया। लाखों की संख्या में चीन के सिपाही बंदूक लेकर गोलियों का शिकार करने उन्हें खत्म करने के लिए निकल पड़े। एक नन्ही चिड़िया के वध के लिए इतने सिपाहियों का जाना हास्यास्पद लगा पर उनके गोरियों को मारने का तरीका इतना अमानवीय था कि इस पर दुख ही ज्यादा व्यक्त किया जा सकता है। यह सिपाही बंदूक दाग दाग कर झुंड के झुंड गोरियों को खदेड़ते हैं खदेड़ते ही रहते हैं ताकि वे कहीं बैठ ना सके अंत में बेदम हो कर गोरिया जमीन पर गिर कर दुनिया से विदा हो जाती। लेखक ने चीन के इस अमानवीय कृत्य पर शोक प्रकट करते हुए लिखा है कि छोटी सी, मासूम, मनुष्य पर सहज विश्वास रखने वाली दुर्बल चिड़िया को मारकर चीन जैसे शक्तिशाली देश को क्या प्राप्त हुआ? चीन सत्य अहिंसा अस्तेय जैसे पंचशील के सिद्धांतों में विश्वास रखता है तो नन्ही सी चिड़िया को खदेड़ खदेड़ कर, उड़ा उड़ा कर, थका थका कर मारने में कौन से सिद्धांत का पालन किया गया ।चीन का कहना था कि गौरैया अनाज खाकर अनाज को नुकसान पहुंचाती है तो लेखक कहते हैं कि जितना अनाज उस नन्ही सी चिड़िया ने नहीं खाया होगा उससे ज्यादा की तो उन्हें मारने में गोलियां बर्बाद हो गई होंगी ।
इस प्रकार चीन ने गौरैया को मारने के लिए अभियान चलाकर उन्हें एक तरह से पूर्णतः समाप्त कर दिया।
गौरैया के खिलाफ किए गए अभियान को लेकर लेखक के विचार
गौरैया खेती की दुश्मन है यह मानकर चीन ने गौरैया के खिलाफ सामूहिक अभियान चलाया था। लेखक ने इसे घोर अमानवीय कृत्य मानकर चीन के इस अभियान का तीव्र शब्दों में विरोध किया है। वे लिखते हैं कि, ' चाहे भारत हो या चीन गोरिया जैसे दुर्बल प्राणी को मारना कहां तक न्याय संगत है फिर चीन तो प्रज्ञा पारमिता का देश है बुद्धिमानों का देश है, बुद्ध की मैत्री का देश है, नए युग में मनुष्य का उद्धार करने वाला देश है,
सह- अस्तित्व परस्पर सहयोग और प्रेम की कसम खाने वाला देश है तो यह निर्दयता क्यों? फिर क्यों उसने गोरिया के खिलाफ यह नादिर शाही कृत्य किया गया? उसका अपराध किया है? क्या उन्हें इसलिए मारा गया कि वह निशंक हैं निर्भय हैं,हर आंगन में खुशियां बिखेरती हैं ,क्या इसलिए कि वे कबूतर की तरह संदेश नहीं पहुंचा पाती,क्या इसलिए कि वे तोते की तरह हर बात सीख नहीं सकती, दोहरा नहीं सकती, क्या इसलिए कि उनके पास मोर जैसी सुंदरता नहीं है, सुंदर कलगी नहीं है, वह मुर्गे की तरह सुबह सवेरे सबको बांग देकर उठा नहीं सकती, ऊंची उड़ान नहीं भर सकती, क्या सिर्फ इसलिए कि वे गगन के पंछी नहीं आंगन के पंछी हैं?
इस तरह के विचार व्यक्त कर लेखक ने दर्शाया है कि गौरैया को मारना उन्हें खत्म करना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है ना मानवता की दृष्टि से, इंसानियत की दृष्टि से, न पर्यावरण की दृष्टि से, ना हमारी संस्कृति की दृष्टि से।
- डॉ ममता मेहता
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