ये तो तय है कि मोहब्बत भी दोबारा होगी

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वो समय जो हुआ है खर्च किसी पत्थर पर वो तमाम उम्र कमाया भी नहीं जाएगा ये तो तय है कि मोहब्बत भी दोबारा होगी हिज्र पर उसका मनाया भी नही जाएगा लोगों

ये तो तय है कि मोहब्बत भी दोबारा होगी


या था फूल चुराने का शक हमारी तरफ़
चली थी मिलने ख़ुद उसकी महक हमारी तरफ़

जुदा दरख़्त से दीवार कर नहीं सकती
जहाँ रहेगा, रखेगा लचक हमारी तरफ़

इसी यकीन से चलते रहेंगे सड़कों पर
कभी तो आएगी कोई सड़क हमारी तरफ़

वो पास आता नहीं मिलने, फिर सिसकता है
मगर आ जाती है उसकी सिसक हमारी तरफ़

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हम को काफ़ी नहीं बस शाख से झड़ने का सुकून
चाहिए पत्तों को बस मिट्टी में सड़ने का सुकून
ये तो तय है कि मोहब्बत भी दोबारा होगी

काफ़ी कम होती है अब बात के बनने की ख़ुशी 
अब मुझे होता है बस बात बिगड़ने का सुकून 

सारे छूटे हुए हाथों की वो भरपाई है
सामने सबके तेरे हाथ पकड़ने का सुकून

मौसमे हिज्र में हर बार किसी से मिलना
मौसमे इश्क़ में फिर उससे बिछड़ने का सुकून

यूँ मोहब्बत से मुझे देखना उसका और फिर 
लोगों की आँखों में इस बात के गड़ने का सुकून

हम मुसाफ़िर हैं, हमारी ख़ुशी घर मे नहीं है
बस गए.. तो हमे याद आया उजड़ने का सुकून

अब न झगडे न शिकायत न कोई बहस "कुनाल"
हाय.. उस शख़्स से हर बात पे लड़ने का सुकून

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कई क़बूल इक उसकी "नहीं" से निकलेंगे
कुछ आसमान तो यारों ज़मीं से निकलेंगे

तुम्हारा हाथ मेरा हाथ जब पकड़ लेगा
किसी के हाथ मेरी आस्तीं से निकलेंगे

यहीं के लोगों को फिर याद आएगी यहीं की
यहीं के लोग भला जब कहीं से निकलेंगे

तुम्हारा घर मेरी मंज़िल के रस्ते में ही है
कि मर भी जाएँ तो भी हम वहीं से निकलेंगे

वो लोग दूर के अब पास लग रहे हैं मगर
भला नज़ारे कभी दूर-बीं से निकलेंगे??

मैं बेवफ़ाओं को बेकार में ही जाने दिया
नहीं पता था ग़म इतने हसीं से निकलेंगे 

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इधर उगा रहा हूँ मैं मचल-मचल के फूल
उधर वो तोड़ रहा है उछल-उछल के फूल

पुराना इश्क़ नए इश्क़ में तलाशते हो?
नहीं मिलेगी वो खुश्बू तुम्हें बदल के फूल

तुम्हारे बालों में सज कर ये मुरझा ही जाएँ 
बहुत ही ख़ुश हैं ये गुलदान से निकल के फूल

जगह जगह पे मिलेंगे ये तोड़ने वाले
खिलो खिलो दुआ है, पर खिलो सँभल के फूल

मै फूल हाथों में पकड़े ये सोचता हूँ कि वो 
करे क़ुबूल भले पैरों से कुचल के फूल 

किसी भी रिश्ते का देखा है किसने मुस्तकबिल 
बनेंगे दिल के लिए काँटे आगे चल के फूल

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चमन में काँटों की गुल को चुभन सुलाती है
हमे ये रात नही अब थकन सुलाती है

 हमारी रूह भटकती है रात भर बाहर
ये नींद सिर्फ़ हमारा बदन सुलाती है

कभी कभी तो अँधेरा हुआ सो जाते हैं
कभी तो सुब्ह की पहली किरन सुलाती है 

किसी के हिज्र में क़ैदी कई बरस रहे हम
हमे तो कमरे की बस अब घुटन सुलाती है

 इमारतों के ये जंगल में सोएँ भी कैसे
 जिन्हे हमेशा ही खुशबू-ए-बन सुलाती है

लगे रहो की ज़रा भी कहीं न आँख लगे
लगे ही रहने की हमको लगन सुलाती है

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उसके आने से अब आया भी नही जाएगा 
घर से बाहर मेरा साया भी नहीं जाएगा

दुश्मनी ऐसी है अब हाथ मिलाना तो दूर
किसी को हाथ दिखाया भी नहीं जाएगा

शेर एक ऐसा पढ़ेंगे... कि हमे जिसके बाद
कभी महफ़िल में बुलाया भी नहीं जाएगा

हमे इस दर्जा सताने के लिए लौटा है वो
हमको इस बार सताया भी नहीं जाएगा 

कैसे फिर याद दिलाऊँ कि दिलानी है याद
जब हमे याद दिलाया भी नहीं जाएगा 

टूटते टूटते टुकड़े हुए हैं दिल के कई
अब फटा नोट चलाया भी नहीं जाएगा 

वो समय जो हुआ है खर्च किसी पत्थर पर 
वो तमाम उम्र कमाया भी नहीं जाएगा 

ये तो तय है कि मोहब्बत भी दोबारा होगी 
हिज्र पर उसका मनाया भी नही जाएगा

लोगों का काम करेंगे तो कुछ ऐसे कि हमे 
फिर कोई काम बताया भी नहीं जाएगा

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- कुनाल बरकड़े
पता - सतना , मध्य प्रदेश
फोन नंबर - 9993348885

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