मणिपुर की आग मैं वाणी की आग और कलम के गुस्से को, गाकर तुम्हें बताता हूं मणिपुर के किस्से को। जहां देश का प्रशासन भी मौन दिखाई देता है, लोकतंत्र का म
मणिपुर की आग
मैं वाणी की आग और कलम के गुस्से को,
गाकर तुम्हें बताता हूं मणिपुर के किस्से को।
जहां देश का प्रशासन भी मौन दिखाई देता है,
लोकतंत्र का मुखिया भी गौण दिखाई देता है।
एक झलक दिखती है जहां तालिबान के संत्राशो की,
सरेआम हत्या हो रही है आजादी के एहसासों की ।
हथियारों के बल पर पूरा देश जला डाला,
मासूमों की हत्याओं पर खूनी फाग मना डाला।
बच्चा बच्चा डरा हुआ है इन खूनी शेतानों से,
नारी की अस्मत लुटी हुई है इन जंगली हैवानों से।
इनके कारण भयभीत बने हुए हैं लोग भोले भाले ,
क्योंकि हत्यारे बन गए है अब सरकारों के रखवाले।
लिखते लिखते फिर आंखों में पानी आया है
जब भारत की नारी को निर्वस्त्र घुमाया है ।
सीता माता की मर्यादा राम राज्य में फिर हारी,
मणिपुर में बेहाल और असहाय पड़ी हुई है नारी।
जिस देश में नारी को देवी का सम्मान दिया ,
उसी देश में फिर नारी का अपमान किया ।
धज्जियां उड़ी पड़ी हैं संविधान के कानूनों की,
नारी आज शिकार बनी है कातिल के नाखूनों की।
इस घटना से मन विचलित और आंखों में पानी है,
राम राज्य में नारी उत्पीड़न की कैसी ये कहानी है।
जिस देश को हम विश्वगुरु बनाने वाले हैं,
पूरी दुनिया में नई पहचान दिलाने वाले हैं।
जिस देश ने साकार किया है चंद्रयान के सपनो को,
राम राज्य का अहसास कराया था सब अपनो को।
यूं तो इस बार हमने आजादी का अमर महोत्सव मनाया हैं,
घर घर जाकर भारत का झंडा शान से फहराया है।
भारत एक आजाद देश है पूरी दुनिया को बतलाया है,
भारत की शक्ति शौर्य को हमने दिखलाया था।
उसी देश में ऐसी घटना शर्मशार कर देती है,
शीतल वाणी को अंगारों से यूं भर देती है।
अब तो परिवर्तन लाना है कविता की परिभाषा में,
इसलिए मैं लिखता हूं केवल अंगारों की भाषा में।
इतनी बड़ी घटनाओं पर प्रशासन मौन साधकर बैठा है,
इन हत्यारो के कुकर्मों पर हाथ बांधकर बैठा है।
अब तक सरकारों ने कोई फैसला नहीं लिया,
इन हत्यारो को सजा देने का हौसला नही किया।
लगता है इन फैसलों को लेने में सरकारों की मजबूरी है,
शायद लोगों की जान से ज्यादा सिंहासन बहुत जरूरी है।
नारी की दुर्दशा पर आज कोई खून नहीं खौला,
मणिपुर की शर्मशार घटना पर कोई नहीं बोला।
इस घटना को जिसने भी अंजाम दिया ,
उसने केवल हैवानों जैसा ये काम किया ।
सब मिलकर के सरकारों से एक कानून मांगों तुम,
जो नारी का अपमान करे उसको फांसी पर टांगो तुम।
इन घटनाओं से देश का लोकतंत्र शर्मिंदा है,
जब तक ये तमाम हत्यारे और हैवान जिंदा है
इसीलिए देश के प्रधानों से मेरा एक निवेदन है,
तन मन धन से उनका पूरा पूरा अभिनंदन है।
आखिर बोलो आखिर कब तक की ये मजबूरी है,
इन घटनाओं का रुकना अब तो बहुत जरूरी है।
आखिर कब तक चुप बैठोगे इन अत्याचारों पर,
अब तो कोई कदम उठाओ इन हत्यारो पर।
संविधान के कानूनों को अब और अधिक कड़ा करो,
अपराधो को रोकने के लिए अब सेना को खड़ा करो।
एक बार इन सबका निर्णय सेना को ले लेने दो,
अत्याचारों का उत्तर सिर्फ गोली से दे लेने दो।
कुछ भी करके रोक लगाओ मासूमों की हत्याओं पर,
चाहे हत्यारो को फांसी दे दो बीच चौराहों पर।
जब दो चार हत्यारे फांसी पर टंग जायेंगे ,
तो ये सारे दंगे अपने आप रुक जायेंगे।
पढ़ने के लिए धन्यवाद ।
✍️ जीतेंद्र सिंह फौजदार
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