प्रसिद्ध कवि और गीतकार गोपालदास नीरज की कहानी

SHARE:

प्रसिद्ध कवि और गीतकार गोपालदास नीरज की कहानी गोपालदास नीरज को भुलाने में, रूमानी गीतों के राजकुमार आज हमारे बीच नहीं हैं, पर जिन्होंने भी उनका काव्यप

प्रसिद्ध कवि और गीतकार गोपालदास नीरज की कहानी


भारतीय साहित्य जगत का एक ऐसा सितारा जिन्होंने अपनी कलम की ताकत से साहित्य जगत में अपना परचम लहराया और नई बुलंदियों को स्पर्श किया।साहित्य जगत में आज भी उनका नाम आदर और सम्मान से लिए जाता है। संसार का एक शाश्वत सत्य है प्रेम... प्रेम को एक अनूठे अंदाज में परिभाषित और प्रस्तुत करने का श्रेय श्री गोपाल दास सक्सेना "नीरज" जी को जाता है। 

गोपालदास "नीरज": भूल पाओ तो मुझे तुम भूल जाना

सदियां लगेंगी गोपालदास नीरज को भुलाने में, रूमानी गीतों के राजकुमार आज हमारे बीच नहीं हैं, पर जिन्होंने भी उनका काव्यपाठ सुना है और गीतों का आनंद लिया है वे उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके।

4 जनवरी 1925 को इटावा जिले के गांव पुरावली में जन्मे गोपालदास सक्सेना जब छह साल के थे, तब उनके सिर से पिता का साया उठ गया था। उन्होंने डीएस कॉलेज के हिंदी विभाग में बतौर शिक्षक अपने दायित्व का निर्वहन किया। मायानगरी के लिए उन्होंने कई गीत लिखे। इनमें -

लिखे जो खत तुझे वो तेरी याद में.., 
बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं..., 
ए भाई जरा देख के चलो.., 
खिलते हैं गुल यहां, खिल के बिखरने को, 
फूलों के रंग से दिल की कलम से.., 
स्वप्न झरे फूल से मीत चुभे शूल से.., 
बेहद चर्चित हैं। 

नीरज जी कवि सम्मेलन और मुशायरों की शान बनते गए। पद्मश्री और पद्मभूषण से अलंकृत नीरज जी ने शर्मीली, मझली दीदी, कन्यादान, दुनिया, जंगल में मंगल, यार मेरा, मेरा नाम जोकर, प्रेम पुजारी, तेरे मेरे सपने, कल आज और कल, छुपा रुस्तम, गैंबलर, मुनीम जी, रेशम की डोरी, जाना न दिल से दूर आदि फिल्मों में करीब 135 गीत लिखे। राजकपूर, देवानंद, एसडी वर्मन से उनके बेहद करीबी रिश्ते थे। 

प्रसिद्ध कवि और गीतकार गोपालदास नीरज की कहानी
1955 में कोलकाता में हुए एक मुशायरा के दौरान नीरज जी की मुलाकात देव आनंद से हुई। देव आनंद उस दौर में फिल्मी जगत की एक नामचीन हस्ती हुआ करते थे। कवि नीरज की रचनाओं और गीतों ने देव साहब को इतना अधिक प्रभावित किया कि मुशायरा के बाद एक मुलाकात के दौरान देव साहब ने नीरज जी को फिल्मों में गीत लिखने का निमंत्रण दे डाला। देव साहब बोले कि नीरज जी जब भी आप फिल्मों में गीत लिखने के बारे में सोचें तो मुंबई आकर एक बार मुझे अवश्य मिलिएगा। कालांतर में मुंबई जाने पर उन्होंने देव आनंद से मुलाकात की। देव साहब ने उन्हें एक महंगे होटल में रुकवाया और महान संगीतकार सचिन देव बर्मन से मिलवाने का वादा किया। अगले दिन सचिन दा के घर देव साहब के साथ नीरज जी की मुलाकात हुई। सचिन दा ने अपनी एक फिल्म प्रेम पुजारी के लिए नीरज जी को एक गीत लिखने को कहा। शर्त यह थी कि गीत की शुरुआत "रंगीला रे" से होना चाहिए। अगले दिन उन्होंने गीत पूरा किया और लेकर देव साहब के पास गए। देव साहब गीत को देखकर बेहद प्रसन्न हुए और उन्हें साथ लेकर सचिन दा के घर आ गए। सचिन दा को वह गीत बहुत ही पसंद आया और उसे उन्होंने अपनी फिल्म "प्रेम पुजारी" में स्थान दे दिया। आप जानते हैं वह गीत है "रंगीला रे तेरे रंग में रंगा ये मेरा मन..."। इसके बाद देव साहब और सचिन दा के साथ नीरज जी का बढ़िया सामंजस्य स्थापित हो गया जो आगे कई वर्षों तक सचिन दा के निधन तक कायम रहा।

इंजी संजय श्रीवास्तव
1958 में आकाशवाणी लखनऊ से उनकी एक कविता प्रसारित हुई जिसके बोल थे "स्वप्न झरे फूल से मीत चुभे शूल से.., "  इस कविता के आकाशवाणी से प्रसारण के बाद जन-जन पर इस गीत का जादू सर चढ़कर बोलने लगा। उसके बाद 1960 में फिल्म निर्माता आर चंद्र द्वारा उनकी इस कविता को थीम बनाकर एक फिल्म का निर्माण शुरू करने का फैसला लिया गया। इस फिल्म में नीरज जी के आठ गीतों को समाविष्ट किया गया था। यह फिल्म बनकर तैयार हो पाती इसके पूर्व ही 1964 में निर्माता चंद्रशेखर की फिल्म "चा चा चा" प्रदर्शित हो गई। ठीक दो वर्ष बाद 1966 में आर चंद्र की वह फिल्म रिलीज हुई जिसका नाम था "नई उमर की नई फसल"। इस फिल्म में मोहम्मद रफी का गाया वह गीत जिसे हम सब "कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे..."   के रूप में याद करते हैं एक कालजयी गीत बनकर हमारे सामने है। इन दो घटनाओं का जिक्र यदि यहां नहीं होता तो शायद यह नीरज जी की काव्य यात्रा के साथ नाइंसाफी होती।

पद्म भूषण गोपाल दास नीरज गीतों के ऐसे बेताज बादशाह थे कि उनके गीत जनमानस में एक जादू सा जगा देते थे । हिंदी साहित्य से लेकर फिल्मों तक उन्होंने हिंदी की पताका को पूरी दुनियां में लहराया । वे मुझे अपना सबसे प्रिय शिष्य मानते थे ,वे अपने साथ मुझे देश के अनेक हिस्सों के कवि सम्मेलनों में ले जाते और अच्छे से अच्छा पेमेंट कराते थे । मेरी पहचान अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों में उन्हीं की वजह से बनी। उनके बारे में यही कह सकता हूं कि -

सारे जगत में गीत की पहचान थे नीरज ।
साहित्यकार के लिए सम्मान थे नीरज ।
कविता हो ,गीत हो ,रूबाई हो या गजल ,
हर इक विधा को ईश्वरी वरदान थे नीरज ।

-ओजस्वी कवि डॉ. हरीश बेताब

नीरज ने कभी लिखा था-

इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में, 
तुमको लग जाएंगी सदियां हमें भुलाने में।
लेकिन इस गीतकार को शायद ही कभी भुलाया जा सके।  

गोपाल दास नीरज जी 19 जुलाई 2018 को हमसे बिदा लेकर हमसे दूर बहुत दूर चले गए। परंतु अपनी कविताओं, गीतों के माध्यम से वे सदैव ही हमारे बीच अमर रहेंगे।



- इंजी संजय श्रीवास्तव
BSNL बालाघाट

COMMENTS

Leave a Reply: 1
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका