मां तुम कहां हो बहुत सारी बातें करनी थी बहुत दिनों से सोच रखा था ढेर सारी बातें करना पढ़ाई व आजीविका के लिए बाहर रहने के कारण ही तुम्हारे साथ गांव
मां काश तुम लौट आती बच्चों से अपने जैसा प्यार करना सिखाती
मां तुम कहां हो बहुत सारी बातें करनी थी
बहुत दिनों से सोच रखा था ढेर सारी बातें करना
पढ़ाई व आजीविका के लिए बाहर रहने के कारण ही
तुम्हारे साथ गांव में रहने का बहुत कम सौभाग्य मिला!
किन्तु अनायास ही तुम हम सबको छोड़कर चली गई
मां तुझे याद है जब ग्रामीण प्रतिभा खोज परीक्षा पासकर
मैंने जिला स्कूल की आठवीं कक्षा में दाखिला पाया था
सौ रुपए माहवार स्कॉलरशिप समय पर नहीं मिलने पर
छात्रावास मेस में मेरा दो वक्त का भोजन बंद हो गया था!
जिन्हें स्नातकोत्तर पढ़ाने में तुम्हारे गहने बिक गए थे
जो अधिवक्ता बनते ही अच्छी कमाई करने लगे थे
उस सगे काका ने मात्र दस रुपए उधार नहीं दिए थे!
घर आने के लिए मेरे पास टिकट के पैसे नहीं थे
एक सहपाठी ने सवा रुपए में हाफ टिकट कटा दिए
और स्कूल से घर आया महज दस रुपए लेने के लिए!
पर पिताजी के पास मुझे देने को दस रुपए नहीं थे
और दस दिनों तक लगातार इंतजार के बाद
पिता से लड़कर तुमने उनके दूसरे कार्य के दस रुपए दिलाई!
मां याद है जब मैं प्रथम श्रेणी में मैट्रिक पास कर घर लौटा
मेरे ख्वाब उस टी एन बी कालेज भागलपुर में नाम लिखाई के
पिताजी के पास फीस के पैसे तब भी नहीं थे जहां भाई को
एम ए एल एल बी कराए अपनी पढ़ाई छोड़कर अनाथ हो जाने से!
मां तुमने स्थानीय एस पी कालेज में मेरा नाम लिखा दी
पिताजी से लड़कर छोटा सा प्रेशर कूकर खरीद कर भी दी
ताकि मैं सेल्फ कुकिंग करके छोटे भाई को भी साथ पढ़ा सकूं!
मां तुझे याद होगा जब आई एस्सी उतीर्ण करने के बाद
बड़ी मुश्किल से आगे की पढ़ाई के लिए पटना भेजी थी
पहली तारीख को मनीआर्डर भेजने पिता से लड़ जाती थी!
मां तुम्हें अवश्य याद होगा जब मेरी सरकारी नौकरी लगी
तब पिता ने बी एस्सी परीक्षा के दौरान मेरी शादी लगा दी
जिससे प्रायोगिक परीक्षा और विवाह तिथि मिल जाने से
उस वर्ष मैं वनस्पति विज्ञान में स्नातक नहीं हो सका था!
मां तुम मेरे पुत्र जन्म के अवसर पर
मेरे साथ रहने राँची शहर आई थी और मेरे काम से वापस आते ही
मेरे लिए चाय नाश्ता बनाकर खुशी से हड़बड़ा कर लाती थी
ऐसे ही एक दिन चाय बनाकर आई
कि मेरी छोटी सी बेटी तुमसे टकरा कर गिर पड़ी थी
और मैंने चाय नाश्ता नहीं किया जिससे तुम बहुत दुखी हो गई!
मां वो अपराध बोध मुझे आज भी कचोटता है
जब भी मैं अपने बच्चों से प्यार करना चाहता हूं
वो स्मृति कौंध जाती और बच्चों से प्यार नहीं कर पाता
ऐसा लगता तुम्हारी उदास आंखें मुझे ऐसा करने से रोक देती!
आज भी वो दिन मुझे याद है जब तुम मेरे लिए
पिताजी से अक्सर लड़ जाया करती थी
मगर मुझसे लड़ना तो दूर गुस्सा तक नहीं करती थी!
सच में बच्चों से मां जैसा प्यार कोई नहीं कर सकता
मां बच्चों से प्यार करने का गुण तुमसे नहीं सिख पाया!
मां अपने बच्चों से तुम्हारी तरह
मैं प्यार नहीं कर पाता बल्कि जोर से झुंझलाता हूं
शायद तुम्हारे जीते जी मैं प्रायश्चित नहीं कर पाया
मां काश कि तुम एकबार फिर लौटकर आ जाती
अपने जैसा प्यार अपने बच्चों से करना सिखा देती
और मैं अपराध बोध से प्रायश्चित भी कर लेता!
- विनय कुमार विनायक
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