राष्ट्रीय आचरण का वर्तमान स्वरूप

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यह आबादी न हिन्दू है न मुसलमान ,बल्कि ऐसी एक अंधी भीड़ है जो सरकार को ही देश मान बैठी है और उसके प्रत्येक आचरण को राष्ट्रीय आचरण कहती है

राष्ट्रीय आचरण का वर्तमान स्वरूप


ब इस देश में दो तरह की आबादी है।इसमें से पहली तो वह पुरानी आबादी है जो नागरिक होना जानती थी और सरकारों को वह हैसियत कभी नहीं देती थी जो देश और राष्ट्र की हुआ करती थी।वह जानती थी कि सरकारें तो आती जाती रहती हैं,पर देश तोअपने महान सपनों,उदात्त विचारों और ऐसे सांस्कृतिक जीवन प्रवाह से बनता और जाना जाता है जिसके केन्द्र में वह महामानवता होती है जिसके प्रतीक बुद्ध और गाँधी जैसे लोग हुआ करते हैं, जिन्हें समूचा विश्व करुणा और अहिंसा के प्रतिमान के रूप में देखता है।

इस बीच सबसे दुखद यह हुआ कि इसी आबादी का एक हिस्सा यह मानने ,जीनेऔर प्रचारित करने में  जुट गया कि सरकार ही देश है और सरकार के कामकाज पर उँगली उठाना दंडनीय देशद्रोह है।

राष्ट्रीय आचरण का वर्तमान स्वरूप
यह कोई रहस्य की बात नहीं कि इस आबादी को पिछले लगभग सौ सालों के बीच तरह तरह से पाला पोसा और एक सेना के बतौर  तैयार किया गया हैऔर यह प्रक्रिया अभी भी योजनाबद्ध ढंग से जारी है।अनेक संघों,संगठनोंऔर परिषदों के रूप में सक्रिय इस आबादी का काम सरकार के हरेक काम का आँख मूँदकर समर्थन करना और इससे असहमत लोगों को अपने उग्र विचारों और त्रासकारी रवैयों से  आतंकित करना है,सो भी ऐसी सरकार के लिए जो देश की संपत्तियों को पूँजीपतियों के हाथ बेंच रही है।जो सवाल कर या उठा रहा है,उसका संतोषप्रद  जवाब देने की  जगह चुप्पी साध रही हैऔर ऐसी ऐसी चालें चल रही है कि सरकार ही नहीं देश भी शर्मसार हो रहा है।और उसके द्वारा पाली पोसी गई यह आबादी अपनी गौरवमयी नागरिकता को भूल कर जयकारे लगा रही और हो हल्ला करके समूचे देश की बची खुची जागरूकता को भी नष्ट करने में लगी है।

यह वह आबादी है जिसे ऐसा हिन्दुत्व बहुत प्यारा है जो अपने से असहमत हिन्दू  गाँधी तक को मार डालना जरूरी समझती  है औरअपने से भिन्न और स्वतंत्र सोच समझ वाले हिन्दुओं को राष्ट्रविरोधी प्रचारित कर ऐसा वातावरण बनाती  चल रही  है कि विशालऔर उदार हिन्दुत्व के लिए नए सिरे से खतरा पैदा हो गया है। ऐसा करके यह किस देश का हित साधने में लगी है--यह बड़ा सवाल है?

या फिर यह आबादी न हिन्दू है न मुसलमान ,बल्कि ऐसी एक अंधी भीड़ है जो सरकार को ही देश मान बैठी है और उसके प्रत्येक आचरण को राष्ट्रीय आचरण  कहती है।

इसलिए चाहे नोटबंदी का मामला हो,चाहे जनसंपत्तियों  को बेचने  या फिर पुलवामा जैसी दुर्घटनाओं को लेकर सवाल उठाने का ,इस आबादी की निगाह में सब अपराधपूर्ण सवाल हैं ।चकित करने वाला अनुभव यह कि हमारे जो प्रधानमंत्री चौबीसों घंटे बोलते ही रहते हें,इन सब मुद्दों पर गजब का मौन धारण कर लेते हैं ।उनके जय श्रीराम  भी उनकी इन चुप्पियों पर क्या सोचते होंगे--यह भी वही जानें।



- विजयबहादुर सिंह 
वरिष्ठ साहित्यकार

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