सेदोका की यात्रा में

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जापानी साहित्य की विधाओं में हाइकु, ताँका, सेदोका एवं चोका की प्रमुखता है, इन विधाओं को हिंदी साहित्य ने भारतीयकरण करते हुए अपनाया है

सेदोका की यात्रा में


जापानी साहित्य की विधाओं में हाइकु, ताँका, सेदोका एवं चोका की प्रमुखता है, इन विधाओं को हिंदी साहित्य ने भारतीयकरण करते हुए अपनाया है। इन्हीं विधाओं के जरिए ही हिंदी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी है। इन विधाओं की लोकप्रियता तथा रचनाकर्म की दृष्टि से सेदोका को ज्यादा महत्त्व नहीं मिल पाया है। सेदोका छह पंक्तियों में क्रमशः 5,7,7,5,7,7=38 वर्णीय पूर्ण कविता है, जो दो अपूर्ण कतौता से मिलकर पूर्ण होती है। स्वयं से होकर गुजरते हुए वक्त की स्पंदन को पहचान कर अपनी संवेदना को प्रबल रूप से संपादित करने की अद्भुत क्षमता किसी व्यक्ति को कवि बनाती है इसे मैं किसी कवि द्वारा उसके वक्त को दिया गया एक दुर्लभ उपहार मानता हूँ जिसे वक्त उसकी थाती के रूप में संभाले रखता है। इससे भविष्य सीखता है और समाज अपनी इन रचना परंपराओं का सम्मान करता है। सेदोका का प्रचलन आठवीं सदी के बाद कम हो गया, यह दो अपूर्ण कतौता से मिलकर बना होता है। यह संवाद या प्रश्न-उत्तर के रूप में जीवंत अनुभवों की संवेदनाओं का प्रकटीकरण होता है यद्यपि इसमें विषय वस्तु का कोई प्रतिबंध नहीं है तथापि प्रारंभिक दौर में यह प्रेमी- प्रेमिका को संबोधित होती थी।     

सेदोका की पुस्तकों का (साझा एवं स्वतंत्र संग्रह) प्रकाशन भारत में सन-2012 से देखने को मिलता है। इस दृष्टि से यह विधा हिंदी में कोई एक दशक पुरानी मानी जानी चाहिए यद्यपि इसका लेखन इससे पूर्व हुआ तथापि उसका मान्य (हिंदी में)इतिहास यहीं से आरम्भ हुआ। सेदोका विधा को लेखन में अपनाने और विस्तार देने में सोशल मीडिया का प्लेटफार्म-‘त्रिवेणी’ (संपादक- रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' एवं डॉ. हरदीप कौर संधू) की भूमिका की प्रशंसा करनी होगी जिसमें सेदोका प्रकाशित होते रहे हैं। सेदोका को लोकप्रिय विधा बनाने में लगे हुए सभी रचनाकारों का स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि यह जापानी साहित्य विधा की अन्य विधाओं के मुकाबले कम प्रचलित है। 

वर्ष 2012 को हमें सेदोका लेखन के लिए मील का पत्थर मानना होगा क्योंकि इस वर्ष हिंदी साहित्य को सेदोका विधा के उत्कृष्ट संग्रह मिलने आरम्भ हुए। जापानी साहित्य की विधाओं ने हिंदी साहित्य के विकास को उड़ान के लिए अंतरराष्ट्रीय पंख दिए साथ ही विदेशी विधाओं को अपनी पहचान देकर अपनाने में भी हिचक नहीं दिखायी। विभिन्न सोशल साइट्स एवं पत्र-पत्रिकाओं में सेदोका को स्थान मिलना अब आरम्भ हो चुका है यह सभी सेदोकाकारों के लिए हर्ष का विषय है।

सेदोका के एकल संग्रह- 

1

बुलाता है कदम्ब-डॉ. उर्मिला अग्रवाल 
अयन प्रकाशन-दिल्ली, 2012 
मूल्य-180/-रु.,पृष्ठ-104
ISBN:978-81-7408-582-5
भूमिका- रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' एवं डॉ. सतीश राज पुष्करणा 

इस संग्रह में 160 सेदोका, इन उपशीर्षकों के तहत हैं-1पुजारी मन, 2 दरवेश है दिल, 3 खटमिट्ठे से हैं रिश्ते, 4 ये पिंजरे की मैना, 5 सच की कतरनें, 6 आबाद है तनहाई, 7 आसमान के तले और 8 दीप जलते रहें। 

जीवन की विविधताओं के बीच आपकी सेदोका का मूल  स्वर आशा और आस्थाओं को साथ लेकर चलता है। कथ्य और शिल्प की दृष्टि से सशक्त यह संग्रह हिंदी साहित्य का अग्रणी अंक है जो सभी सेदोकाकारों का मार्गदर्शन करती है। प्रेम और पारिवारिक रिश्तों को सामाजिक कसौटियों पर कसते हुए आम जीवन के मनोभावों का अद्भुत शब्दांकन प्रशंसनीय है। कहीं-कहीं ब्याकुलता और अकेलापन पीड़ा के गाँव के यात्री से लगते हैं। आपके शब्दों का चयन सरस है जिससे सेदोका संप्रेषणीय बन गए हैं। 

 ज्योतित हुई/एक स्वर्णिम रेखा/काले मेघों के बीच/सजी हो जैसे/राधा जी की चुनरी/श्याम जी के तन पे। 

…….

2

सत्य यही है-डॉ. रामनिवास मानव 
मानव भारती प्रकाशन-हिसार,2012
मूल्य-50/-रु.,पृष्ठ-40
भूमिका-डॉ. हरिसिंह पाल 

इस संग्रह में 20 उपशीर्षकों के तहत 69 सेदोका संग्रहित हैं। इस संग्रह के सेदोका में कलात्मकता,काव्यत्मकता और तुक की जुगलबंदी दृष्टव्य हैं। इसके सेदोका जीवन और समाज की कसौटी पर खरे हैं। आपके अनुसार जीवन की समस्याओं पर हर रचनाकार को अपनी बेबाक टिप्पणी के लिए तैयार होना चाहिए लेकिन इन्हें देखने-पहचानने के लिए भी अपनी आँखें खुली रखनी चाहिए। जीवन की सत्यता पर बेख़ौफ़ लिखते हुए आमजन को उसका आईना दिखाते हुए इन सेदोका की सुंदरता प्रशंसनीय है। इन सेदोका में आधुनिक समय के बिम्ब प्रखरता से उकेरे गए हैं जो व्यंग्य के काफी निकट हैं इसलिए इनकी चोट काफी करारी है। आपके सेदोका चिंतन करने को मजबूर करते हैं साथ ही सत्य की राह पर अकेले निकल पड़े हैं। 

घर-बाहर/उग आये जंगल/पसरा घना डर/ घूमते जहाँ / खुले-बाघ-भेड़िये/झाँकते दर-दर।

………

3

जीने का अर्थ-डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव
सन- 2013,मूल्य-100/-रु.,पृष्ठ-64
उत्तरायण प्रकाशन-लखनऊ 
भूमिका-डॉ. सत्येंद्र अरुण

इस संग्रह में कुल-124 सेदोका हैं जो अपने परिवेश का सशक्त रेखांकन करते हैं,जीवन की समस्याओं पर बेबाक टिप्पणी सहित उनके समाधान पर भी अपनी लेखनी को आपने धार दी है। प्रकृति के असीमित दोहन, अनैतिकता की बाढ़, सामाजिक -राजनैतिक विषमताओं पर लिखना इतना आसान कहाँ होता है। वैश्वीकरण और बाज़ारवाद के इस वैभवभोगी युग की हकीकतों के साथ इस भावधारा की रचनाओं को-साधुवाद। आपके सेदोका, समय की विद्रूपताओं को प्रश्नांकित करते हैं तथा पूरे काव्यानुशासन के साथ प्रस्तुत हुए हैं। 

फूलों की गंध/बौरों की भी महक /पिकी की कुहकन/यदि रहेगी/मानवता बचेगी/धरा स्वर्ग बनेगी। 

….

4

सुधियों की कंदील- देवेंद्र नारायण दास 
निरुपमा प्रकाशन-दिल्ली,2013
मूल्य-60/-रु.,पृष्ठ-40
ISBN:978-93-81050-23-1
भूमिका-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
शुभकामना संदेश-डॉ. सुधा गुप्ता

इस संग्रह में कुल 100 सेदोका हैं। विविध भावों के इस माटी से जुड़े सेदोकाकार की आशावादिता इस संग्रह में स्पष्ट परिलक्षित होती है,प्रकृति और प्रेम के सौंदर्य का अनूठा वर्णन भी इस संग्रह में है। गहन संवेदनाओं के रथ पर अपने विचार की सुगंध को सीख की तरह बाँटते हुए आपके सेदोका अच्छे बन पड़े हैं। जीवन के सत्य का सरोकार, भाषा की सहजता की उंगली थामे सेदोका के गाँव की यात्रा पर निकल चले हैं। 

मौन धेनु सी/हाँफती दोपहरी/तपती हवा चले/जेठ मास है/लौट के आया नहीं/प्यार भरा मौसम। 

…….

5

सागर को रौंदने-डॉ. सुधा गुप्ता
सेदोका की यात्रा में
अयन प्रकाशन-दिल्ली- 2014, पृष्ठ-100, मूल्य- ₹200 

इस संग्रह में कुल-186 सेदोका संग्रहित हैं जो इन उपशीर्षकों के अंतर्गत प्रस्तुत हुए हैं-1अर्चन-आराधन 2 प्रकृति- सहचरी 3 रोती रही चिरई 4 सागर को रौंदने 5 ज्योति पर्व है  6 नारी महिमा 7 जीवन शैली। 

प्रकृति वर्णन, प्रकृति का मानवीयकरण तथा लोकजीवन की शुभता को शब्दांकित करने वाली डॉ. सुधा गुप्ता जी के सेदोका इस संग्रह में जीवंत रूप में विद्यमान हैं। इस संग्रह में आपके कथ्य एवं शिल्प का कोई सानी नहीं है, भाव पुष्ट हैं तथा सकारात्मकता का दामन ओढ़े हुए हैं। धूप का तकिया,हवा दर्जिन, शरारती झरना,आकाश का धुनिया एवं तापसी भोर जैसे उपमा का प्रयोग इस संग्रह को प्रभावी बनाता है। आपके सेदोका में जाग्रत विचारबोध तथा बिम्बों का जीवंत निरूपण,आपकी रचनाधर्मिता को सशक्त बनाते हैं। 

 तापसी भोर/उदास एकाकिनी /राम-राम जपती/मुँह अँधेरे/ धुन्ध कथरी ओढ़/ गंगा नहाने चली। 

…..

6

जाग उठी चुभन-डॉ.भावना कुँअर  प्रकाशक- अयन प्रकाशन,नई दिल्ली सन-2015,मूल्य-180,पृष्ठ-88
ISBN:978-81-7408-809-3
भूमिका-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

इसमें कुल 173 सेदोका संग्रहित हैं जो इन उपशीर्षकों के तहत वर्णित  हैं-1 रिश्ते काँच-से, 2 दर्द के दरिया में, 3 जाग उठी चुभन, 4 गर्म है हवा, 5 प्रकृति-प्रेम रुठे, 6 छिनी नीम की छाँव।

विदेश से प्रकाशित होने वाली हिंदी की इस पहली सेदोका संग्रह में रिश्तों के विश्वास का रेखांकन है, प्रकृति का अनुपम सौंदर्य है,संवेदनाओं का गुलदस्ता है और मानव जीवन के इर्द-गिर्द पसरी हुई विडम्बनाओं का चित्रण है। सेदोका के लिए यह संग्रह अपने वक्त का एक मानक है -इसके सेदोका चिंतन के लिए भी हमें प्रेरित करते हैं। इन सेदोका के बिम्ब एवं शिल्प की सशक्तता देखते ही बनती है। अपने परिवेश में ब्याप्त जीवन के विविध पहलुओं की चुभन ब्याकुलता को जन्म देती है। शब्दों के चयन में सावधानी बरती गयी है, प्रत्येक सेदोका की अनुभूति का आँगन हरियर दिखता है। 

चाकू की नोक/पेड़ों के सीने पर/दे जाती कुछ नाम/ठहरा वक्त/पेड़ भी हैं,नाम भी/पर,जीवन कहाँ?

……

7

मौसम छन्द लिखे-सेदोका संग्रह, देवेन्द्र नारायण दास 
भूमिका-डॉ.नलिनीकांत प्रकाशक-पूजा ग्राफिक्स -बसना, छत्तीसगढ़ 2015, पृष्ठ-38, मूल्य-100/- रु.

      बसना जैसे छोटे से नगर में हिंदी साहित्य की अन्य विधाओं के साथ-साथ जापानी विधा के साहित्य के प्रति गहरी रूचि की परंपरा का पैठ इन दिनों देवेंद्र नारायण दास के दूसरे सेदोका संग्रह 'मौसम छंद लिखे' के रूप में प्रकाशित हुआ है।

       ‘मौसम छंद लिखे’ में 153 सेदोका संग्रहित हैं । इस संकलन में सेदोका प्रायः विविध विषयों पर लिखे गए हैं किंतु वर्तमान की अव्यवस्था, मजबूरी, राजनीति की विडंबनाओं के साथ भ्रष्टाचार आदि के साथ इसके सेदोका अच्छे हैं।

    पानी के संयमित उपयोग और इसके संरक्षण को लेकर दुनिया इन दिनों चिंतित है और इसकी खोज में अन्य ग्रहों की सैर भी जारी है ऐसे में ही साहित्य साधक लिखते हैं-पानी के महत्व एवं उसकी उपयोगिता के  सेदोका। प्रकृति को जिसने भी जैसा देखा उससे मोहित होकर, बिना साहित्य रचे नहीं रह पाया है क्योंकि यह लोकजीवन में रची-बसी हुई है। इस विधा की आत्मा में प्रकृति विराजमान है अतः इससे ये सेदोका पृथक नहीं रह सकते।

       प्रकृति वर्णन के साथ अध्यात्म और मानवीय सरोकार किसी सेदोका की आत्मा होते हैं इन्हें लिखने वृहत सूक्ष्म संवेदना और कलम का अनुभवी सिपाही होने की जरूरत होती है।आपके सभी सेदोका पाठकों एवं रचनाकारों को अवश्य मार्गदर्शन देंगे साथ ही सेदोका लिखने को प्रोत्साहित भी करेंगे। बदलते मौसम में मौसम से छंद लिखवाना क्लिष्ट कार्य है, वह भी प्रथम पंक्ति पर खड़े होकर सुनहरे हर्फ़ों से।

आँका जाता है/हर चीज पैसों से/पैसों से खरीदता/आज आदमी/दुनिया के मेले में/ पैसों में बिकता है।

.......

8

वक्त की शिला पर-डॉ. उर्मिला अग्रवाल
निरुपमा प्रकाशन-मेरठ,2018
मूल्य-260/-रु.,पृष्ठ-112
ISBN:978-93-87184-09-01

इस संग्रह में 212 सेदोका हैं जिनके केंद्रीय भाव में राधा-कृष्ण की भक्ति, प्रकृति की अनुपम छटा एवं लोकजीवन का अनूठा शब्दांकन है। प्रकृति एवं प्रेम के दोनों रूपों के नवीन बिम्बों में भाव के साथ काव्यत्व सर्वत्र बिखरा हुआ है। इस संग्रह के सेदोका अपनी अनूठी रचना शैली के लिए पहचाने जाएँगे, सेदोका का मानवीयकरण भी इसमें उत्कृष्ट है। आम जनजीवन से जुड़े सेदोका को इस संग्रह में पढ़ते हुए यह अहसास होता है कि आपकी दृश्यानुभूति बेहद ही गहरी है। 

कैसे सूखेंगे/गीले हुए सपने/वर्षा मौसम/कभी नहीं सूखते/बहते हुए आँसू। 

……

9

अंतर्मन की हूक-प्रदीप कुमार दाश 'दीपक' 
उत्कर्ष प्रकाशन-दिल्ली, सन-2019, मूल्य-₹250, पृष्ठ-104
ISBN:978-93-89298-23-9
भूमिका-डॉ. मिथिलेश दीक्षित

 अंतर्मन की हूक में कुल 184 सेदोका संग्रहित हैं। इन सेदोका में प्रकृति की विविध अनुभूतियों के सुंदर चित्रण के साथ-साथ अपने परिवेश की सामाजिक व्यवस्थाओं में ब्याप्त विसंगतियों को आपने अच्छे से उकेरा है। सोनेरी धूप से लेकर बारूदी गंध तक के पर्यावरणीय बोध तथा परिवेश की अनुभूतियों का सूक्ष्म प्रत्यक्षीकरण को इस संग्रह की सेदोका में महसूस किया जा सकता है। जीवन के विविध आयामों में सकारात्मक एवं आध्यात्मिक चिंतन की गूँज भी यहाँ पर रेखांकित करने योग्य है। 

तन करघा/ चुन मन का धागा/ रामा धुन कबीरा/ घर फूँकता/चल पड़ा बुनने/ अपनी चदरिया। 

प्रदीप कुमार दाश 'दीपक' 

…….

10

देहरी पर धूप -सेदोका संग्रह 2020, कृष्णा वर्मा- कनाडा
प्रकाशक-अयन प्रकाशन -महरौली ,नई दिल्ली-110030
ISBN NO.-978-93-89999-35-8 मूल्य-200/-रु., पृष्ठ-96

        एक बहुमुखी प्रतिभावान व्यक्तित्व कृष्णा वर्मा जी के  कैनेडा से हिंदी के इस पहले  सेदोका संग्रह में कुल 352 सेदोका संग्रहित हैं जो विविध भावों के साथ प्रस्तुत हुए हैं। ‘देहरी पर धूप’ का केन्द्रीय भाव प्रकृति के सलोने रूप का वर्णन और सीख देते हुए किसी शिक्षक की सी भूमिका वाले सेदोका ने एक नया छाप छोड़ा है।

        अपने इस संग्रह में नाम के अनुरुप ही धूप के दोनों रूपों भोर और साँझ का अति सुन्दर वर्णन आपने शब्दांकित किया है। यहाँ हवाओं से सरगोशियाँ करते हुए पत्तों की बातें और नदियों में हवाओं से लहरों की चूड़ियाँ बजाना अद्भुत दृश्य उत्पन्न करते हुए प्रकट हुए हैं।

    प्रकृति पर जितना भी लिखा जाए वह कम ही होता है क्योंकि इसका सौन्दर्य सर्वत्र बिखरा हुआ है जिसे देखने के लिए चाहिए सिर्फ संवेदना और लिपिबद्ध करने को एक रचनाकार सा मन। चाँदनी रात ,चाँद और तारों के कितने ही उद्धहरण से साहित्य अटा पड़ा है लेकिन यहाँ तारों द्वारा लहरों को थपकियाँ देकर सुलाना और सूरज को जलोकड़ा कहना बिलकुल ही नया है, शीत ऋतु में कोहरा ,धुन्ध,रजाई और हिमपात का आँखों देखा वर्णन ही हम इसे कह सकते हैं। वर्षा ऋतु के अपने अलग अंदाज़ हैं आपने अपने सेदोका के माध्यम से कुछ नए शब्दों का प्रयोग किया है जो स्वागतेय है जैसे-मिजानिन घटा, हवा-बौछारों को लड़ाए , सावन डाकिया लाता पुरानी यादों के ख़त,कौन डाले नकेल, नाज़ुक बूँदें रो-रो धरा भिगोएँ ...आदि।

       मानव एक सामजिक प्राणी है और उसे अपने संबंधों के साथ जीवन का निर्वाह करना होता है लेकिन आज के इस वैश्विक युग ने इसे सब कुछ यांत्रिक और जरूरतों पर आधारित कर दिया है। प्रकृति के खनकते शब्दों से रिश्ते जोड़ने का अभिप्राय बताती सेदोका में काव्यत्व पठनीय है। मिट्टी के पुतले मानव का गुमान कभी भी उसके प्रभु से बड़ा नहीं हुआ और जब भी वह ऐसा करने की सोचता है तब उसे उसकी औकात पता चल ही जाती है कि वह कितने गहरे पानी में है। जीवन का ढाई आखर जिसने समझ लिया वह प्रेम के वशीभूत होकर तर जाता है।

       यह एक पठनीय और संग्रहणीय ग्रन्थ है इससे हिंदी साहित्य का गौरव बढ़ा है और विदेशों में भी इसने अपनी पताका फहरायी है। ‘देहरी पर धूप’ एक अद्भुत सेदोका का संग्रह है जिसे जितना पढ़ना चाहें उतना ही कम लगता है। 

भ्रष्टाचार से/घायल है सभ्यता/बीमार हैं संस्कार/चोरी-डकैती/लूट व बलात्कार/हुआ इनसे प्यार। 

 ……

11

 मन मल्हार गाए-सेदोका संग्रह, डॉ. सुदर्शन रत्नाकर
अयन प्रकाशन-दिल्ली,सन-2022,  भूमिका-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’   
ISBN:978-93-91378-12-7,   मूल्य-300/-Rs.  पृष्ठ-136

‘मन मल्हार गाए’ में कुल-456 सेदोका हैं जो इन उपशीर्षकों के तहत प्रकाशित हुए हैं- प्रकृति के रंग, रिश्तों के रंग और विविध। इस संग्रह के सेदोका, रचनाकार के परिवेश की अनुभवी दृष्टि से अनुभूत होकर शब्दांकित हुई हैं जिनमें गहराई से उसके सौन्दर्य को महसूस किया जा सकता है। ‘प्रकृति के रंग’ खंड के अंतर्गत इसके विविध भाव एवं दृश्यों के साथ पर्याप्त न्याय देखने को मिलता है। कुल मिलाकर यहाँ प्रकृति के उज्जवल पक्ष की तरफदारी है जो सूर्य की रोशनी से उपजी उजियारे की सम्पदा है।

      ‘रिश्तों के रंग’ खंड में हमें रिश्तों के इन्द्रधनुषी रंग देखने को मिलते हैं जिनमे सबसे ऊपर माँ का दर्जा है फिर एक सुन्दर से घर को संवारती नारी सम्बन्धी रिश्ते हैं। प्रेम,स्नेह,रिश्तों के ताने-बाने में उलझी इस दुनिया में भी आपने अपने सेदोका के रूप में पिरोया है;यहाँ इसके दोनों रूप के दर्शन होते हैं,जहाँ आप लिखती हैं-‘तपाने होते हैं विश्वास के आँवा में रिश्ते’, ‘आज के रिश्ते,बोनसाई से हैं-गमले में सिमटे हुए।

      ‘विविध’ खंड में आपके सेदोका अपने वर्तमान समाज और आसपास के दुनिया की ताँक-झाँक करते हुए सबकी खबर ले रहे हैं। इस खंड के ज्यादातर सेदोका सीख देते हुए दिखते हैं अर्थात इनमे विचार और भाव की प्रधानता है,शुभकामनाएँ हैं। इस संग्रह ‘मन मल्हार गाए’ के सेदोका में आपकी जीवनदृष्टि स्पष्ट रूप से सकारात्मक है,जीवन की विविधताओं का सम्मान है तथा लोक सौन्दर्य की रमणीयता का सुन्दर शब्दांकन है।

तपाने होते/विश्वास के आँवा में/तो निखरते रिश्ते/बिन भरोसे/काँच की दीवार-से/टूट जाते हैं रिश्ते।

.....

साझा सेदोका संग्रह- 

1

अलसाई चाँदनी
संपादक-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' , डॉ.भावना कुँअर एवं डॉ. हरदीप कौर संधू 
अयन प्रकाशन-दिल्ली,2012
मूल्य- ₹180, पृष्ठ- 104 
ISBN:978-81-7408-569-6
शुभकामनाएँ- डॉ. सुधा गुप्ता 

 यह हिंदी का पहला संपादित सेदोका संग्रह है जिसमें 21 सेदोकाकारों के कुल 326 सेदोका हैं। संपादकीय कसौटी पर अपनी उत्कृष्टता का परिचय देते हुए यह संग्रह, सेदोका लेखन की एक साझी विरासत बन गयी । इस संग्रह में तात्कालीन समय के मँजे हुए सेदोकाकार शामिल हुए हैं; इनमें से कुछ के स्वतंत्र एकल संग्रह बाद में प्रकाशित हुए। यह एक अंतरराष्ट्रीय संग्रह है जिनके रचनाकारों को एक मंच पर प्रस्तुत करना वाकई एक चुनौतीपूर्ण कार्य था-संपादकीय टीम के नेतृत्वकर्ता रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' को साधुवाद। 

झील का तट/ बिखरी हो ज्यों लट/ मचलती उर्मियाँ/पुरवा बही/बेसुध हो सो गई अलसाई चाँदनी। 

रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' 

…….

2

कलरव
संपादक-विभा रानी श्रीवास्तव 
प्रकाशक- ऑनलाइन गाथा
सन-2015, पृष्ठ-136, मूल्य- ₹100 ISBN:978-93-85818- 06-06 
भूमिका-दिलबाग सिंह विर्क

इस संग्रह में 15 रचनाकार की 21-21 ताँका एवं सेदोका संग्रहित है।इसकी विशेषता यह है कि यह फेसबुक मित्र समूह के रचनाकारों का एक साझा संग्रह है जिसमें 'क' वर्ण से शुरू हुई रचनाओं का उल्लेख है।इस संग्रह में क वर्ण से आरम्भ हुए शब्दों (21शब्द) का उपयोग सेदोका के किसी न किसी खंड में अवश्य हुआ है, जैसे-कजरी, कलरव, कला,कलोल, कांत, कांता, कांति,काम, क्लिन्न, कुठार ,कुंठ ,कुंड ,कुंतल,कुररी,कुहक,केली,कुंज,कोंपल,कौमुदी,कौतुक एवं कौशेय। यह संग्रह फेसबुक के  नव रचनाकारों की रचनाओं का गुलदस्ता है इस अनूठे प्रयोग को बधाई। इस संग्रह में सभी सेदोकाकार ने अपनी संवेदनाओं के गहरे समुद्र में गोते लगाकर मोती सदृश्य शब्द एकत्रित किए हैं जिनसे यह संग्रह जगमगा रहा है। इस नयी सोच और संपादकीय दायित्व दोनों को हिंदी साहित्य का धन्यवाद। इस संग्रह के रचनाकारों ने अपने लोकजीवन की संवेदनाओं के विविध आयामों को शब्दांकित करते हुए अतुल्य सहयोग दिया है। 'कुररी' शब्द के उपयोग वाला इस संग्रह का एक सेदोका देखिए-

टिहू गूँजती/ रेत आँधी ज्यूँ उड़े/रवि लौ से बचाती/माता कुररी/पीड़ा छलक जाती/ बच्चों पे तूफाँ आए। विभा रानी श्रीवास्तव 

 —-------- 

3

सेदोका की सुगंध 
संपादक-प्रदीप कुमार दाश 'दीपक'
उत्कर्ष प्रकाशन-दिल्ली 
सन-2020, पृष्ठ- 200,  मूल्य-₹400
ISBN:978-93-89298-64-2
शुभकामना संदेश-अविनाश बागड़े 

इस संग्रह के प्रथम खंड में 55 सेदोकाकार हैं जिनके 20-20 सेदोका इसमें शामिल हैं वहीं द्वितीय खंड में 155 सेदोकाकार हैं जिनके एक-एक  सेदोका सम्मिलित हैं। इस तरह इस संग्रह में 210 रचनाकारों के कुल-1255 सेदोका हैं। 

संपादक ने यहाँ एक वृहत कार्य किया है क्योंकि इतने सारे सेदोकाकारों को एक मंच पर समेटना इतना आसान नहीं था,साथ ही इन सबकी रचनाओं के साथ प्रकाशन में न्याय करना अद्भुत है। चयन यद्यपि संपादक का अधिकार है तथापि इसके विविध रंग देखने को हमें यहाँ मिलते हैं। 

थमी जो वर्षा/मौन है निःशब्दता/बूँदे टपक रहीं/अमा की रात/नीरवता तोड़ती/झींगुर की आवाज़। 

प्रदीप कुमार दाश 'दीपक'

……

         सेदोका  के उपरोक्त संग्रहों के अलावा अयन प्रकाशन-दिल्ली (2017) से प्रकाशित 'हिंदी हाइकु, ताँका सेदोका की विकास यात्रा- एक परिशीलन, डॉ.सुधा गुप्ता' का  संयोजन-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' ने किया है। इस संग्रह में-35 हाइकु पुस्तकों की समीक्षा, 18 भूमिकाएँ,  8 हाइकुकारों के आलेख एवं डॉ.सुधा गुप्ता की पसंद के 10 सेदोका शामिल हैं जो रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' के हैं। जापानी साहित्य की प्रायः सभी विधाओं के साथ यह संग्रह न्याय करते हुए नव रचनाकारों का पथ प्रदर्शक है । वरिष्ठतम साहित्यकार डॉ. सुधा गुप्ता जी के इन बिखरे हुए साहित्यिक मोतियों को सहेजने के इस अनुपम कार्य का श्रेय भी नमन योग्य है। यह संग्रह हम सबके लिए जापानी साहित्य विधाओं में हिंदी साहित्य की एक अनमोल धरोहर है। 

आएँगे लोग/उठे हुए महल/ गिरा जाएँगे लोग/शब्दों का रस/हार नहीं पाएगा/ प्रेम गीत गाएगा। 

रामेश्वर कांबोज 'हिमांशु'

इसी क्रम में हिंदी भाषा साहित्य परिषद-खगड़िया, बिहार से प्रकाशित महकी भोर (2019)  जो सुनीता कंबोज का संग्रह है जिसमें हाइकु, ताँका, सेदोका एवं क्षणिका संग्रह के साथ 7 सेदोका  संग्रहित हैं। इसकी भूमिका डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा ने लिखी है।

   वर्तमान समय में सेदोका पर वृहत कार्य करने की आवश्यकता है। सेदोका को प्रतीक्षा है- किसी राष्ट्रीय पत्रिका के विशेषांक की, आँचलिक सेदोका संग्रह की, हिंदी के सेदोका को अन्य भाषाओं में अनुवाद की, एवं इस पर हाइकु के जैसे शोध कार्य करने की। विधा कोई भी हो उसकी प्रस्तुति और प्रभाव आम पाठक के मनोमस्तिष्क पर यदि चित्रांकित करना है तो उसे आम लोगों के परिवेश से जुड़े मुद्दे और इन्द्रियों को झनझनाने वाली क्रियाशील बिम्ब की आवश्यकता होगी, जो इन उपरोक्त रचनाओं में मिलती है। हिंदी साहित्य की अन्य विधाओं की तरह इसे भी वक्त के साथ लोग अवश्य ही अपनाते हुए इसका प्रचार-प्रसार करेंगे;ऐसा मेरा विश्वास है। 

सेदोका लेखन से जुड़े सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं साधुवाद। ……..




- रमेश कुमार सोनी
रायपुर, छत्तीसगढ़

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