विष्णु और शिव का चंद्रहरी मंदिर

SHARE:

चंद्रहरि मंदिर के ठीक पीछे एक अत्यंत प्राचीन कूप हैl इसके जल के स्नान से चर्म रोग ठीक होते रहे हैंl मुगल काल में इस मंदिर की प्रतिष्ठा और महिमा के का

विष्णु और शिव का चंद्रहरी मंदिर


श्रीहरि विष्णु ने रक्ष संस्कृति के विनाश के लिए अयोध्या में राजा दशरथ के यहां श्रीराम के रूप में अवतार लिया था। यह अवातर त्रेता युग में हुआ था लेकिन इसके पहले भी श्री हरि के अयोध्या की सांस्कृतिक सीमा 84 कोस में लेने से जुड़े होने के संकेत हैं।अयोध्या में प्राचीन काल में हरि अर्थात भगवान विष्णु के 16 मंदिर अति प्रसिद्ध मंदिर थे. कालांतर में अयोध्या में चक्रहरि चंद्रहरि धर्महरि विष्णुहरि ,गुप्तहरि, पुण्यहरि और बिल्लहरि आदि केवल सात हरिस्थान बचे हैं। इन स्थानों में कइयों की स्थिति वर्तमान में अत्यंत दयनीय हो चुकी है . यह  माना जाता है कि ये सप्त हरिस्थानों का अस्तित्व और प्रमाण 12वी शताब्दी से पूर्व से रहा है । इनमे चंद्रहरि मंदिर को 16 हरियों में चौथा स्थान प्राप्त है। 

चंद्रहरि मन्दिर की अवस्थिति

अयोध्या के विभिन्न कोणों पर स्थित सप्त हरि में चंद्रहरि को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। चंद्रहरि का प्राचीन मंदिर अयोध्या के स्वर्गद्वार मोहल्ले में राम की पैडी के पास स्थित सुरक्षित अवस्था में है। इस मंदिर परिसर में भी कुल 5 मंदिर हैं. मंदिर के मुख्य गर्भगृह में चंद्रहरि भगवान विराजमान हैं, जबकि उसके दाहिने ओर मंदिर में भगवान राधा-कृष्ण, बाईं ओर द्वादश ज्योतिर्लिंग मंदिर है. द्वादश ज्योतिर्लिंग एक विशाल अर्घ्य के ऊपर है और वह भी मूर्ति में साक्षात ओमकार का दर्शन कराता है। चंद्रजी मंदिर का पावन वैभव अति विशिष्ट है. यह मंदिर ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से तो महत्वपूर्ण है ही, साथ ही मंदिर के परिसर में स्थित मुख्य गर्भगृह में विराजमान काले कसौटी के एक ही पत्थर में 11 मूर्तियां मौजूद हैं, जो अति महत्वपूर्ण मानी जाती हैंl  माना जाता है इस मंदिर में दर्शन-पूजन करने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती हैं और नित्य दर्शन से बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है l इस स्थान पर यह मंदिर भगवान चन्द्रमा द्वारा स्थापित किया गया था। इसका महत्व कई धार्मिक ग्रंथो व पुराणों में वर्णित है। सैकड़ों वर्षों पूर्व इस मंदिर को महाराज विक्रमादित्य द्वारा पुनः जीर्णोद्धार किया गया। तब से लेकर आज भी यह मंदिर स्थापित है। 

विष्णु और शिव का चंद्रहरी मंदिर
मान्यता है कि चंद्रमा की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान नारायण ने चंद्रमा को आशीर्वाद दिया कि वे जहां विराजे, वहीं चंद्रहरि मंदिर होगा. मंदिर के गर्भगृह में एक काले कसौटी के पत्थर में ही भगवान राम गरुड़ पर विराजमान हैं. जिनके साथ किशोरीजी, लक्ष्मणजी, भरतजी, नल, नील अंगद, जामवंत, हनुमान और गरुण विराजमान हैं। 
       
मंदिर के महंत और चंद्रहरि ट्रस्ट के अध्यक्ष स्वामी कृष्णकांत आचार्य कहते हैं कि चंद्रमा द्वारा पूजित हरि अर्थात नारायण ही चंद्रजी महादेव हैं. यह मंदिर अत्यंत प्राचीन एवं धार्मिक महत्व रखता है. मंदिर के ठीक सामने यहां वर्तमान में राम की पैड़ी है, वहां सरयू की धारा प्रवाहित होती थी और त्रेता युग में यहां चंदन वन था। चंद्रमा द्वारा उपासना के बाद इसी वन में नारायणजी ने चंद्रमा को दर्शन दिया था. संत श्रीनाथ प्रपन्नाचार्य कहते हैं कि वैसे तो अयोध्या का कण-कण सिद्धि की खान है, लेकिन स्वर्गद्वार तीर्थ अत्यंत महत्व का है और उसमें भी चंद्रहरि में हरि और हर दोनों के दर्शन होते हैं।

बारह ज्योतिर्लिंग के दर्शन

इस मंदिर में भगवान चंद्र्हरेश्वर के साथ बारह ज्योतिर्लिंग स्थापित है। इस मंदिर की महत्व को बताते हुए आचार्य सतेन्द्र दास ने कहा कि चंद्र्हरी का मतलब होता है कि भगवान शिव और भगवान विष्णु की परम शक्ति वहां पर उपस्थित है और द्वादश ज्योतिर्लिंगों की स्थापना भी किया गया है। पृथ्वी पर विद्यमान बराह ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए कई स्थानों पर जाते है और उस स्थान के पुण्य प्राप्ति के लिए वह सिर्फ अयोध्या के इस चन्द्र हरि में दर्शन करने से प्राप्त होता है । जो व्यक्ति जो कमाना लेकर आता है उसे उस प्रकार की फल की प्राप्ति होती है। 

गोदांबा महोत्सव 

इस मंदिर की परंपरानुसार प्रत्येक वर्ष के एक माह तक धनुर्मास महोत्सव का आयोजन होता है। जिसे श्री गोदाम्बा पर्व कहा जाता है।  मंदिर का वार्षिकोत्सव ज्येष्ठ पूर्णिमा को मनाया जाता है. इसमें एक महीने तक प्रतिदिन खीर और खिचड़ी से भगवान की सेवा की जाती है. इसका प्रसाद सैकड़ों लोगों में वितरित किया जाता है. 14 जनवरी को समापन के दिन भव्य भंडारा और संत सेवा होती है। मंदिर की परंपरा और पूजन पद्धति आगम है। मंदिर परिसर में गोदांबा जी का मंदिर भी निर्माणाधीन है. गोदांबा जी साक्षात लक्ष्मी जी ही हैं, जो भगवान रंगनाथ की पटरानी हैं और भगवान रंगनाथ अयोध्या के कुलदेवता हैं. इस नाते गोदांबा जी अयोध्या की कुलदेवी हुईं. मंदिर पर निरंतर पूजन स्त्रोत का पाठ आदि चलता रहता है.

उद्धार की प्रतीक्षा में खंडहर हो चुके प्राचीन धर्मस्थल का असलियत 
प्राचीन काल से अयोध्या के चंद्रहरि मंदिर का बहुत महत्व  रहा है। स्कंद पुराण के वैष्णव खंड के अयोध्या महात्म्य में इस  स्थान का उल्लेख किया गया है। आक्रांताओं की बलि चढ़ गए इन पौराणिक धरोहरों को उसके उद्धारकर्ता के रूप में भागीरथ जैसे राजा, राम जैसे उद्धारकर्ता भगवान ,हनुमान और पराशुराम जैसे न्यायप्रिय शक्तिशाली धर्म धुरंधर शक्ति या कृष्ण  जैसे कूटनीतिक भगवान या कल्की भगवान जैसे भविष्य के किसी परित्रानाय भगवान की प्रतीक्षा है। 

हमेशा हमेशा के लिए ढक दिया गया प्राचीन कुआं 
इस मंदिर परिसर में एक प्राचीन कुआं था। इसके जल के स्नान से चर्म रोग ठीक होते हैं। स्कंध पुराण में स्थान के महत्व बताया है कि स्वर्ग द्वार में इस मंदिर में प्रवेश करने मात्र से जन्म जन्मान्तरो के पाप नष्ट हो जाते है। तथा लिखा है कि इस स्थान पर भगवान विष्णु की परम शक्ति व गूढ़ स्थान है। मनुष्य भगवान विष्णु का व्रत धारण कर विष्णु लोक आकांक्षा रख कर जिस प्रकार का धर्म फल पाता है वैसा अन्य किसी स्थान पर नहीं प्राप्त होती है। इस मंदिर में स्थापित कुएं के जल से स्नान कर वस्त्र व आनाज दान करने से बड़ा फल मिलता है।

औरंगजेब का मंदिर तोड़ने का आदेश
मुगल काल के 1669 ईस्वी में औरंगजेब ने फरमान जारी कर मुल्तान, काशी अयोध्या, मथुरा के हिंदू मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनाई जाने का आदेश दिया था। यह फारसी भाषा में है। अयोध्या के इस महत्वपूर्ण स्थान को औरंगजेब के आदेश पर ध्वस्त कर दिया गया और वहां एक  मस्जिद का निर्माण किया गया। अयोध्या के इतिहास पर प्रामाणिक शोध करने वाले लेखक और अयोध्या के पूर्व आईपीएस अधिकारी आचार्य किशोर कुणाल ने अपनी उसी पुस्तक "अयोध्या रिविजिटेड"  के अध्याय आठ पृष्ठ संख्या 239 में इसकी पुष्टि की है। अवध विश्वविद्यालय के इतिहासकार डॉक्टर देशराज उपाध्याय के अनुसार, अंग्रेज इतिहासकार कनिंघम और ए फ्यूरर, हालैंड के इतिहासकार हंस बेकर ने अपनी पुस्तकों में इसका जिक्र किया है। हंस बेकर सात साल तक आयोध्या आते जाते रहे और इस दौरान उन्होंने अयोध्या में रिसर्च कर इस स्थान का जिक्र अपनी किताब में किया है। इस मस्जिद के खंडहर में छिपे अवशेष इतिहास के पन्नों के साथ दबे पड़े हैं l ये स्थल सैकड़ों साल से वीरान होकर अब खंडहर बन चुके हैंl लंबे समय से पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए भी इस स्थल के अवशेष कौतूहल का विषय बने हुए हैं ।

मंदिर के प्राचीन कूप पर बना मीनारनुमा मस्जिद

चंद्रहरि मंदिर के ठीक पीछे एक अत्यंत प्राचीन कूप हैl  इसके जल के स्नान से चर्म रोग ठीक होते रहे हैंl मुगल काल में इस मंदिर की प्रतिष्ठा और महिमा के कारण लगने वाले मेले और जुटने वाले श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए इसे बंद करवा दिया गया l चंद्रहरि मंदिर के ठीक पीछे एक अत्यंत प्राचीन कूप है, जिसके ऊपर लोहे का मोटा चद्दर रखकर उसे बंद किया गया है। इसी के तहत अयोध्या की चंद्रहरि कूप पर मीनार बना दी गई। इस मीनार के नीचे आज भी सीढ़ी मौजूद हैं। इसके ऊपर मस्जिद बना दी गई जो आज खंडहर होकर समाप्त होने के कगार पर हैl इस स्थान पर मस्जिद के अवशेष बचे हैं, जिसके नीचे प्राचीन चंद्रहरि कूप होने का दावा किया जा रहा है। कूप को इसे लोहे की चद्दर से ढंक दिया गया। जिसका सरिया हिलाने पर कूप पर लगी लोहे के चद्दर से आवाज आती थी। अब यह खंडहर बन गया है।इसे  आसपास के लोगों को कुछ साल पहले तक देखा और बजाया l वर्तमान में मलबा गिरने से वह स्थान पट गया है ।

- डा.राधे श्याम द्विवेदी

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका