महर्षि वशिष्ठ की एक लम्बी परम्परा

SHARE:

वेदव्यास की तरह वशिष्ठ भी एक पद हुआ करता था।कहा जाता है कि जो ब्रह्मा के पुत्र थे वे आज भी जीवित हैं और वे ही हर काल में प्रकट होते हैं। उनका स्थान हि

महर्षि वशिष्ठ की एक लम्बी परम्परा

 सिष्ठ यानी सर्वाधिक पुरानी पीढ़ी का निवासी - महर्षि वसिष्ठ का निवास स्थान से सम्बन्धित होने के कारण बस्ती का नामकरण उनके नाम के शब्दों को समेटा जा रहा है। प्राचीन काल में यह अवध की ही  इकाई रही हैं। वसिष्ठ मूलतः ‘वस’ शब्द से बना है जिसका अर्थ - रहना, निवास, प्रवास, वासी आदि होता है । इसी आधार पर ‘वस’ शब्द से  'वास' का अर्थ निकलता है।वरिष्ठ, गरिष्ठ, ज्येष्ठ, कनिष्ठ आदि में जिस 'ष्ठ' का प्रयोग है, उसका अर्थ - 'सबसे ज्यादा' यानी 'सर्वाधिक बड़ा' होता है। ‘वसिष्ठ’ का अर्थ 'सर्वाधिक पुराना निवासी' होता है। महर्षि वशिष्ठ के 'तपस्या स्थल' को वशिष्ठ कहा गया है।

एक नहीं अनेक वशिष्ठों का उल्लेख
वसिष्ठ एक जातिवाची नाम रहा है। आजकल भी जातिवादी नाम पीढ़ी दर पीढ़ी व्यक्तियों के साथ जुड़ा रहकर चलता रहता है। वैसी ही परम्परा पुराने काल से चलती आ रही है। "पुरानिक इनकाइक्लोपीडिया” नामक सन्दर्भ ग्रंथ (पृ.834-36 पर) वसिष्ठ के तीन जन्मों की बातें कही गयी हैं।  वशिष्ठ मैत्रावरुण, वशिष्ठ शक्ति, वशिष्ठ सुवर्चस सहित कुल 12 वशिष्ठों का पुराणों में उल्लेख है। वशिष्ठ की संपूर्ण जानकारी वायु, ब्रह्मांड एवं लिंग पुराण में मिलती है, जबकि वशिष्ठ कुल ऋषियों एवं गोत्रकारों की नामावली मत्स्य पुराण में दर्ज है। ब्रह्मा के पुत्र वशिष्ठ के नाम पर आगे चलकर उनके वंशज भी वशिष्ठ कहलाए। इस तरह ‘वशिष्ठ’ केवल एक व्यक्ति नहीं बल्कि पद बन गया और विभिन्न युगों में अनेक प्रसिद्ध वशिष्ठ हुए।

1. 
प्रथम जन्म में अनाम आद्य वसिष्ठ:-
आद्य वसिष्ठ, सबसे पुराने वसिष्ठ थे। वे कोशल देश की राजधानी अयोध्या में आकर बसे । वे स्मृति परम्परा के मुताबिक हिमालय से वहां आए थे और अयोध्या में आकर रहने से पहले का विवरण चूंकि हमारे ग्रंथों में खास मिलता नहीं, इसलिए उन्हें ब्रह्मा का पुत्र मानने की श्रद्धा से भरी कही गई। आदि वशिष्ठ की दो पत्नियां थीं। एक ऋषि कर्दम की कन्या अरुंधती और दूसरी प्रजापति दक्ष की कन्या ऊर्जा। वह हिमालय में ही रहते थे ।  प्रथम जन्म में वे ब्रह्मा के मानस पुत्र कहे गये हैं। जो ब्रहमा के सांस (प्राण) से उत्पन्न हुए हैं।  पूर्व जन्म में अरुन्धती का नाम सन्ध्या था। प्रथम जन्म के वसिष्ठ की मृत्यु दक्ष के यज्ञ कुण्ड में हुई थी। उन्हें ब्रह्मा का मानस पुत्र मान लिया गया और उनका विवाह दक्ष नामक प्रजापति की पुत्री ऊर्जा से बताया गया, जिससे उन्हें एक पुत्री और सात पुत्र पैदा हुए। 

2.
विदेह निमि जनक के मित्रावरूण वशिष्ठ
महर्षि वशिष्ठ की एक लम्बी परम्परा
निमि, मिथिला के प्रथम राजा थे। वे मनु के पौत्र तथा इक्ष्वाकु के पुत्र थे। वे महात्मा इक्ष्वाकु के बारहवें पुत्र थे। उवैजयन्त  नगर बसाकर उन्होंने एक भारी यज्ञ (कर्म-धर्म) का अनुष्ठान किया। पहले महर्षि वशिष्ठ को और फिर अत्रि, अंगिरा, तथा भृगु को आमंत्रित किया। परन्तु वशिष्ठ का एक यज्ञ के लिए देवराज इन्द्र ने पहले ही बुला लिया था, इसलिये वे निमि से प्रतीक्षा करने के लिये कहकर इन्द्र का यज्ञ कराने चले गये। वशिष्ठ के जाने पर महर्षि गौतम ने यज्ञ को पूरा कराया। वशिष्ठ ने लौटकर जब देखा कि गौतम यज्ञ को पूरा कर रहे हैं तो उन्होंने क्रोध में आकर निमि को श्राप दिया कि राजा निमि! तुमने मेरी अवहेलना (निरादर) करके दूसरे पुरोहित को बुलाया है, इसलिये तुम्हारा शरीर प्राणहीन होकर गिर जायेगा। 
       
जब राजा निमि को इस श्राप की बात मालूम हुई तो उन्होंने भी वशिष्ठ जी को श्राप दिया कि आपने मुझे अकारण ही श्राप दिया है अतएव आपका शरीर भी प्राणहीन होकर गिर जायेगा। इस प्रकार श्रापों के कारण दोनों ही विदेह (बिना देह (शरीर) के हो गये। पहले तो वे दोनों वायुरूप हो गये। वशिष्ठ ने ब्रह्माजी से शरीर दिलाने की प्रार्थना की तो उन्होंने कहा कि तुम मित्र और वरुण के छोड़े हुये वीर्य में प्रविष्ट हो जाओ। इससे तुम अयोनिज रूप से उत्पन्न होकर मेरे पुत्र बन जाओगे। इस प्रकार वशिष्ठ फिर से शरीर धारण करके प्रजापति बने। तब से वशिष्ठ मित्रावरूण वशिष्ठ कहे जाने लगे।मैत्रा बरूण वसिष्ठ के 97 सूक्त ऋग्वेद में मिलते हैं, जो ऋग्वेद का करीब-करीब दसवां हिस्सा है। 
      
राजा निमि का शरीर नष्ट हो जाने पर ऋषियों ने स्वयं ही यज्ञ को पूरा किया और राजा को तेल के कड़ाह आदि में सुरक्षित रखा। यज्ञ कार्यों से निवृत होकर महर्षि भृगु ने राजा निमि की आत्मा से पूछा कि तुम्हारे जीव चैतन्य को कहाँ स्थापित किया जाय? इस पर निमि ने कहा कि मैं समस्त प्राणियों के नेत्रों में निवास करना चाहता हूँ। राजा की यह अभिलाषा पूर्ण हुई। तब से निमि का निवास वायुरूप होकर समस्त प्राणियों के नेत्रों में हो गया। उन्हीं राजा के पुत्र मिथिलापति जनक हुये और वे भी विदेह कहलाये।"

3. सहस्त्रबाहु के समय वरुण पुत्र वशिष्ठ अपव
एक बार अग्नि देव ने भूख से पीड़ित होकर सहस्त्रबाहु से भोजन की भिक्षा मांगी थी।तब सहस्त्राबाहू अग्नि को सातों द्वीप दे दिया था। तब तो वह अग्नि पुर, ग्राम, घोष तथा देशो को चारो तरफ से अपनी ज्वाला से सब कुछ जला दिया। अग्नि उस पुरुषेन्द्र महात्मा अर्जुन के प्रभाव से वन और पर्वतों को जलाते जलाते वरुण पुत्र वशिष्ठ के सूने आश्रम को भी डरते डरते हैहय (सहस्त्रबाहु) के साथ वन की भांति भस्म कर दिया। वरुण ने पहले जिस उत्तम तेज वाले पुत्र का लाभ किया था वही वशिष्ठ नाम से विख्यात मुनि हुए, उनको आपव भी कहते है। वशिष्ठ मुनि ने आश्रम को भस्म हुआ देख अर्जुन को श्राप दिया की हे हैहय, जिन भुजाओं के बल से तूने हमारे वन को जलाने से नहीं रोका और दुष्कर्म कर डाला, उन भुजाओं को काटकर वेग से तुम्हारा मान-मर्दन कर जमदग्नि  के पुत्र तपस्वी ब्राह्मण प्रतापी एवं बली भृगुवंशी परशुराम बध करेगे। 

4.  
सत्यव्रत त्रिशुंक कालीन  देवराज वसिष्ठ
इक्क्षवाकुवंशी राजा सत्यव्रत त्रिशुंक के काल में हुए, जिन्हें वशिष्ठ देवराज कहते थे। जिन वसिष्ठ ने विश्वामित्र को ब्राह्मण मानने से इनकार कर दिया, उनका नाम देवराज वसिष्ठ था। अयोध्या के ही एक राजा सत्यव्रत त्रिशंकु ने जब अपने मरणशील शरीर के साथ ही स्वर्ग जाने की पागल जिद पकड़ ली और अपने कुलगुरु देवराज वसिष्ठ से वैसा यज्ञ करने को कहा तो वसिष्ठ ने साफ इनकार कर दिया और उसे अपने पद से हाथ धोना पड़ा। पर जब इसी वसिष्ठ ने एक बार यज्ञ में नरबलि का कर्मकाण्ड करना चाहा तो फिर विश्वामित्र ने उसे रोका और देवराज वसिष्ठ की काफी थू-थू हुई। इसके बाद वशिष्ठ को वापस हिमालय जाने को मजबूर होना पड़ा । 

महर्षि विश्वामित्र क्षत्रिय कुल में जन्म के कारण अपने वचन के पक्के माने जाते थे. कहा जाता है कि उनके मित्र राजा त्रिशंकु की इच्छा थी कि वह सशरीर स्वर्गधाम जाएं, लेकिन प्रकृति के नियमों के अनुसार यह संभव नहीं था. ऐसे में त्रिशंकु सिद्धियों से भरपूर गुरु वशिष्ठ के पास गए, लेकिन उन्होंने नियमों के विरुद्ध ना जाने का फैसला लिया. निराश त्रिशंकु वशिष्ठ के पुत्रों के पास गए और आपबीती बताई तो पुत्रों ने क्रोधित होकर उन्हें चांडाल हो जाने का श्राप दे दिया. इसे अपना अपमान मानते हुए त्रिशंकु अपने मित्र विश्वामित्र के पास गए. विश्वामित्र ने कहा- मैं भेजूंगा। इसके लिए महायज्ञ शुरू किया, जिसमें वशिष्ठ पुत्रों समेत कई ब्राह्मणों को आमंत्रित किया गया. यज्ञ का कारण जानने के बाद वशिष्ठ पुत्रों ने तिरस्कार करते हुए कहा कि हम ऐसे किसी यज्ञ में शामिल नहीं होंगे, जो एक चांडाल के लिए किया जा रहा हो।

विश्वामित्र आग बबूला हो गए और उन्होंने श्राप दे दिया, जिससे वशिष्ठ के पुत्रों की मृत्यु हो गई. क्रोधित विश्वामित्र ने अपने तप से त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग लोक भेज दिया।लेकिन इंद्र ने उन्हें यह कहते हुए लौटा दिया कि वो शापित हैं, इसलिये स्वर्ग में नहीं रह सकते. त्रिशंकु का शरीर धरती और स्वर्ग के बीच ही अटक गया. विश्वामित्र ने अपना वचन पूरा करने के लिये त्रिशंकु के लिए नया स्वर्ग सप्तऋषि की रचना कर दी. भयभीत देवताओं ने विश्वामित्र से प्रार्थना की तो उन्होंने कहा कि मैंने अपना वचन पूरा करने के लिए यह किया है. अब त्रिशंकु इसी नक्षत्र में रहेगा, मगर आश्वासन देता हूं कि देवताओं की सत्ता को हानि नहीं होगी. 

5. 
राजा हरिशचंद्र कालीन वशिष्ठ :-
राजा हरिश्चंद्र अयोध्या के प्रसिद्ध क्षत्रिय सूर्यवंशी  राजा थे जो त्रिशंकु के पुत्र थे। वे बहुत दिनों तक पुत्रहीन रहे पर अंत में अपने कुलगुरु महर्षि वशिष्ठ के उपदेश से इन्होंने वरुणदेव की उपासना की तो इस शर्त पर पुत्र जन्मा कि उसे राजा हरिश्चंद्र यज्ञ में बलि दे दें। पुत्र का नाम रोहिताश्व रखा गया और जब राजा ने वरुण के कई बार आने पर भी अपनी प्रतिज्ञा पूरी न की तो उन्होंने राजा हरिश्चंद्र को जलोदर रोग होने का श्राप दे दिया। रोग से छुटकारा पाने और वरुणदेव को फिर प्रसन्न करने के लिए राजा ने महर्षि वशिष्ठ जी की सम्मति से अजीगर्त नामक एक दरिद्र ब्राह्मण के बालक शुन:शेप को खरीदकर यज्ञ की तैयारी की। परंतु बलि देने के समय शमिता ने कहा कि मैं पशु की बलि देता हूँ, मनुष्य की नहीं। जब शमिता चला गया तो महर्षि विश्वामित्र ने आकर शुन:शेप को एक मंत्र बतलाया और उसे जपने के लिए कहा। इस मंत्र का जप कने पर वरुणदेव स्वयं प्रकट हुए और बोले - हरिश्चंद्र, तुम्हारा यज्ञ पूरा हो गया। इस ब्राह्मणकुमार को छोड़ दो। तुम्हें मैं जलोदर से भी मुक्त करता हूँ।

6. 
बाहु और सागर के समय के वशिष्ठ अथर्वनिधि (प्रथम):-
अयोध्या के राजा बाहु और सागर के समय में हुए जिन्हें वशिष्ठ अथर्वनिधि (प्रथम) कहा जाता था। सूर्यवंश में राजा हरिश्चंद्र, रोहित के वंश में बाहु नाम के एक राजा हुए, उनके पिता का नाम वृक था। बाहु बड़े धर्मपरायण राजा थे, वे अपनी प्रजा का पालन पुत्रों के समान करते थे। पापियों और द्रोहियों को उचित दंड देते थे जिससे समस्त प्रजा निर्भय होकर धर्मपूर्वक रहते थे। अहंकार के बढ़ जाने के कारण राजा बाहु अत्यंत उदंड हो गए। परिणाम स्वरूप उनके बहुत सारे शत्रु बन गए।हैहय और तालजंघ कुल के क्षत्रियों से उनकी प्रबल शत्रुता हो गई और उनके साथ राजा बाहु का घोर युद्ध छिड़ गया। युद्ध में राजा बाहु परास्त हो गए और दुखी होकर अपनी दोनों पत्नियों के साथ वन में चले गए और वहीं समय व्यतीत करने लगे।दुःख और संताप से राजा बाहु का शरीर जर्जर हो गया और कुछ समय बाद वन में ही उन्होंने प्राण त्याग दिए।उस समय उनकी छोटी पत्नी गर्भवती थी । दुख में पतिव्रता छोटी रानी को सती होते देखा तो पास ही में और्व मुनि ने उनको मना करते हुए कहा – ” हे देवी, तेरे गर्भ में शत्रुओं का नाश करने वाला चक्रवर्ती बालक है।और्व मुनि के आश्रम में रहकर दोनों रानियां महर्षि के सेवा सत्कार में समय व्यतीत करने लगीं। छोटी रानी अपने पूर्व के संस्कारों के कारण धर्म कर्म में विशेष रूचि लेतीं ।बड़ी रानी के मन में उसके प्रति ईर्ष्या होने लगी और एक दिन बड़ी रानी ने छोटी रानी को भोजन में जहर मिला कर दे दिया। ईश्वर की कृपा से छोटी रानी पर उस जहर का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और नाही गर्भ में पल रहे शिशु पर।समय आने पर छोटी रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया। और्व मुनि ने गर (विष) के साथ उत्पन्न हुए उस बालक का नाम सगर रखा। माता ने बालक सगर का बड़े प्रेमपूर्वक पालन पोषण किया।और्व मुनि से शिक्षा पाकर बालक सगर बलवान, बुद्दिमान और धर्मात्मा हो गए। अपने वंश के बारे में जानकर उसने माता के सामने प्रतिज्ञा ली कि वह अपने पिता के शत्रुओं का नाश कर देगा और अपना खोया हुआ राज्य वापस लेगा।तब माता से आज्ञा लेकर सगर और्व मुनि के पास पहुँचे और उनका आशीर्वाद लेकर वहां से प्रस्थान किया और अपने कुलगुरु  वशिष्ठ के पास पहुँचे।वशिष्ठ सगर को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें विभिन्न प्रकार के दिव्य अस्त्र शस्त्र प्रदान किए। सभी दिव्य अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित होकर सगर कुलगुरु वशिष्ठ से आज्ञा लेकर अपने पिता के शत्रुओं से युद्ध करने पहुँचे। शूरवीर सगर ने बहुत ही कम समय में अपने सभी शत्रुओं को पराजित कर दिया। तब शक, यवन तथा अन्य बहुत से राजा अपने प्राण बचाने वशिष्ठ मुनि के शरण में पहुँचे।गुरु वसिष्ठ की बात मानकर सगर ने उन राजाओं को प्राणदान दे दिया। ये देखकर वशिष्ठ मुनि सगर पर बहुत प्रसन्न हुए और अन्य तपस्वी मुनिओं को साथ लेकर सगर का राज्याभिषेक किया। तत्पश्चात राजा सगर और्व मुनि के आश्रम गए और उनकी आज्ञा लेकर अपनी दोनों माताओं को अपने साथ राजमहल ले आए और सुखपूर्वक राज्य करने लगे।

7.
कल्माषपाद कालीन वशिष्ठ श्रेष्ठभाज:-
राजा इक्ष्वाकु के कुल में एक सौदास या सुदास (कल्माषपाद)
नाम का एक राजा हुआ। राजा एक दिन शिकार खेलने वन में गया। वापस आते समय वह एक ऐसे रास्ते से लौट रहा था। जिस रास्ते पर से एक समय में केवल एक ही आदमी गुजर सकता था। उसी रास्ते पर मुनि वसिष्ठ के सौ पुत्रों में से सबसे बड़े पुत्र शक्तिमुनि उसे आते दिखाई दिये। राजा ने कहा तुम हट जाओ मेरा रास्ता छोड़ दो तो कल्माषपाद ने कहा आप मेरे लिए मार्ग छोड़े दोनों में विवाद हुआ तो शक्तिमुनि ने इसे राजा का अन्याय समझकर उसे राक्षस बनने का शाप दे दिया। उसने कहा तुमने मुझे अयोग्य शाप दिया है ऐसा कहकर वह शक्तिमुनि को ही खा जाता है।शक्ति और वशिष्ठ मुनि के और पुत्रों के भक्षण का कारण भी उसकी राक्षसीवृति ही थी। पुत्रों की मृत्यु पर अधीर होकर वसिष्ठ आत्म हत्या के कई प्रयास भी किये थे। 

 जब महषि वसिष्ठ अपने आश्रम लौट रहे थे तो उन्हे लगा कि मानो कोई उनके पीछे वेद पाठ करता चल रहा है।
इस समय वसिष्ठ बोले कौन है ? तो आवाज आई मैं आपकी पुत्र-वधु शक्ति की पत्नी अदृश्यन्ती हूं। आपका पौत्र मेरे गर्भ में है वह बारह वर्षो से गर्भ में वेदपाठ कर रहा है। वे यह सुनकर सोचने लगे कि अच्छी बात है मेरे वंश की परम्परा नहीं टूटी। 

उनमें आशा संचार हुआ और वे मृत्यु का इरादा त्यागकर अपने भावी उस उत्ताधिकारी को पालने के लिए पुनः धर्मपूर्वक अपने कर्तव्यों का पालन करने लगे थे। यही बालक आगे चलकर पराशर ऋषि के रुप में प्रसिद्ध हुए। 

8. महाभारत कालीन शक्ति वसिष्ठ :- 
महाभारत के काल में हुए जिनके पुत्र का नाम शक्ति था। जिन वसिष्ठ के साथ विश्वामित्र का भयानक संघर्ष हुआ, वे शक्ति वसिष्ठ थे। महर्षि वसिष्ठ क्षमा की प्रतिपूर्ति थे। शक्ति वसिष्ठ के पास कामधेनु थी । एक बार श्री विश्वामित्र उनके अतिथि हुए। महर्षि वसिष्ठ ने कामधेनु के सहयोग से उनका राजोचित सत्कार किया। कामधेनु की अलौकिक क्षमता को देखकर विश्वामित्र के मन में लोभ उत्पन्न हो गया। उन्होंने इस गौ को वसिष्ठ से लेने की इच्छा प्रकट की। कामधेनु वसिष्ठ जी के लिये आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु महत्त्वपूर्ण साधन थी, अत: इन्होंने उसे देने में असमर्थता व्यक्त की। जिसका दुरूपयोग कर अहंकार पालने का मौका उन्होंने कभी भी नहीं दिया। विश्वामित्र ने कामधेनु को बलपूर्वक ले जाना चाहा। वसिष्ठ जी के संकेत पर कामधेनु ने अपार सेना की सृष्टि कर दी। विश्वामित्र को अपनी सेना के साथ भाग जाने पर विवश होना पड़ा। घमंडी विश्वामित्रों को ऐसी गाय न मिले, इसके लिए अपने पुत्रों का बलिदान देकर भी एक भयानक संघर्ष उन्होंने विश्वामित्रों के साथ किया था। द्वेष-भावना से प्रेरित होकर विश्वामित्र ने भगवान शंकर की तपस्या की और उनसे दिव्यास्त्र प्राप्त करके उन्होंने महर्षि वसिष्ठ पर पुन: आक्रमण कर दिया, किन्तु महर्षि वसिष्ठ के ब्रह्मदण्ड के सामने उनके सारे दिव्यास्त्र विफल हो गये और उन्हें क्षत्रिय बल को धिक्कार कर ब्राह्मणत्व लाभ के लिये तपस्या हेतु वन जाना पड़ा।विश्वामित्र की अपूर्व तपस्या से सभी लोग चमत्कृत हो गये। सब लोगों ने उन्हें ब्रह्मर्षि मान लिया, किन्तु महर्षि वसिष्ठ के ब्रह्मर्षि कहे बिना वे ब्रह्मर्षि नहीं कहला सकते थे। वसिष्ठ विश्वामित्र के बीच के संघर्ष की कथाएं सुविदित हैं। वसिष्ठ क्षत्रिय राजा विश्वामित्र को 'राजर्षि' कह कर सम्बोधित करते थे। विश्वामित्र की इच्छा थी कि वसिष्ठ उन्हें 'महर्षि' कहकर सम्बोधित करें। एक बार रात में छिप कर विश्वामित्र वसिष्ठ को मारने के लिए आये। एकांत में वसिष्ठ और अरुंधती के बीच हो रही बात उन्होंने सुनी। वसिष्ठ कह रहे थे, 'अहा, ऐसा पूर्णिमा के चन्द्रमा समान निर्मल तप तो कठोर तपस्वी विश्वामित्र के अतिरिक्त भला किस का हो सकता है? उनके जैसा इस समय दूसरा कोई तपस्वी नहीं।' एकांत में शत्रु की प्रशंसा करने वाले महा पुरुष के प्रति द्वेष रखने के कारण विश्वामित्र को पश्चाताप हुआ। शस्त्र हाथ से फेंक कर वे वसिष्ठ के चरणों में गिर पड़े। वसिष्ठ ने विश्वामित्र को हृदय से लगा कर 'महर्षि' कहकर उनका स्वागत किया। इस प्रकार दोनों के बीच शत्रुता का अंत हुआ था।

9.
राजा दिलीप कालीन वशिष्ठ अथर्वनिधि( द्वितीय):-
 ये वशिष्ठ राजा दिलीप के समय हुए, जिन्हें वशिष्ठ अथर्वनिधि (द्वितीय) कहा जाता था।दिलीप इक्ष्वाकु वंश के प्रतापी राजा थे जिन्हें 'खटवांग' भी कहते हैं। उनकी पत्नी का नाम सुदक्षिणा था।  दिलीप की परम कामना यही थी कि उनकी प्रिय पत्नी सुदक्षिणा उनके समान ही तेजस्वी, ओजस्वी पुत्र को जन्म दे।  राज्य भार सौंप देने पर उन्होंने महर्षि वसिष्ठ के आश्रम में जाकर उनसे परामर्श करने का निश्चय किया। उनके समीप पहुंचने पर राजा और उनकी पत्नी मगधकुमारी सुदक्षिणा ने कुलगुरु तथा उनकी पत्नी के चरण स्पर्श कर उनको प्रणाम किया। महर्षि वसिष्ठ और उनकी पत्नी अरुंधती ने हृदय से उनका स्वागत किया। गुरु ने आने का कारण पूछा तो राजा ने अपने निःसन्तान होने की बात बताई । तब महर्षि वशिष्ठ बोले – “ हे राजन ! तुमसे एक अपराध हुआ है, इसलिए तुम्हारी अभी तक कोई संतान नहीं हुई है ।एक बार की बात है, जब तुम देवताओं की एक युद्ध में सहायता करके लौट रहे थे । तब रास्ते में एक विशाल वटवृक्ष के नीचे देवताओं को भोग और मोक्ष देने वाली कामधेनु विश्राम कर रही थी और उनकी सहचरी गौ मातायें निकट ही चर रही थी। तुम्हारा अपराध यह है कि तुमने शीघ्रतावश अपना विमान रोककर उन्हें प्रणाम नहीं किया ।” महर्षि वशिष्ठ की बात सुनकर राजा दिलीप बड़े दुखी हुए। उपाय पूछने पर महर्षि वशिष्ठ बोले – “ एक उपाय है राजन ! ये है मेरी गाय नंदिनी है जो कामधेनु की ही पुत्री है। इसे ले जाओ और इसके संतुष्ट होने तक दोनों पति-पत्नी इसकी सेवा करो और इसी के दुग्ध का सेवन करो । जब यह संतुष्ट होगी तो तुम्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी ।

एक दिन संयोग से एक सिंह ने नंदिनी पर आक्रमण कर दिया और उसे दबोच लिया । उस समय राजा दिलीप कोई अस्त्र – शस्त्र चलाने में भी असमर्थ हो गया । कोई उपाय न देख राजा दिलीप सिंह से प्रार्थना करने लगे – “ हे वनराज ! कृपा करके नंदिनी को छोड़ दीजिये, यह मेरे गुरु वशिष्ठ की सबसे प्रिय गाय है ।आप इसके बदले मुझे खा लो, लेकिन मेरे गुरु की गाय नंदिनी को छोड़ दो ।”इसके बाद नंदिनी गाय बोली – “ उठो राजन ! यह मायाजाल, मैंने ही आपकी परीक्षा लेने के लिए रचा था । जाओ राजन ! तुम दोनों दम्पति ने मेरे दुग्ध पर निर्वाह किया है अतः तुम्हें एक गुणवान, बलवान और बुद्धिमान पुत्र की प्राप्ति होगी ।” इतना कहकर नंदिनी अंतर्ध्यान हो गई। उसके कुछ दिन बाद नंदिनी के आशीर्वाद से महारानी सुदक्षिणा ने एक पुत्र को जन्म दिया, रघु के नाम से विख्यात हुआ और उसके पराक्रम के कारण ही इस वंश को रघुवंश के नाम से जाना जाता है ।

10.
 महाराज दशरथ और राम के समय के वशिष्ठ:- 
ये वशिष्ठ ब्रहमा के हवन कुण्ड से ही  दूसरी बार जन्म लिये थे। इस बार उनकी पत्नी का नाम अक्षमाला था। जो अरुन्धती का पुनर्जन्म था। इस कारण इन्हें अग्निपुत्र भी कहा गया है। जब इनके पिता ब्रह्मा जी ने इन्हें मृत्युलोक में जाकर सृष्टि का विस्तार करने तथा सूर्यवंश का पौरोहित्य कर्म करने की आज्ञा दी, तब इन्होंने पौरोहित्य कर्म को अत्यन्त निन्दित मानकर उसे करने में अपनी असमर्थता व्यक्त की। ब्रह्मा जी ने इनसे कहा- 'इसी वंश में आगे चलकर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम अवतार ग्रहण करेंगे और यह पौरोहित्य कर्म ही तुम्हारी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेगा।' निमि राजा के विवाह के बाद वसिष्ठ ने सूर्य वंश की दूसरी शाखाओं का पुरोहित कर्म छोड़कर केवल इक्ष्वाकु वंश के राजगुरु पुरोहित के रूप में कार्य किया। महाराज दशरथ की निराशा में आशा का संचार करने वाले महर्षि वसिष्ठ ही थे।  दशरथ से ऋष्यश्रृंग की देखरेख में पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराया और भगवान श्री राम का अवतार हुआ।राम आदि का नामकरण किया, शिक्षा-दीक्षा दी और राम-लक्ष्मण को विश्वामित्र के साथ भेजने के लिए दशरथ का मन बनाया। पर इनका अलग से नाम नहीं मिलता। वे दशरथ से पुत्रेष्टि यज्ञ कराया जिससे राम आदि चार पुत्र हुए। अनेक बार आपत्ति का प्रसंग आने पर तपोबल से उन्होंने राजा प्रजा की रक्षा की। राम को शस्त्र शास्त्र की शिक्षा दी। वसिष्ठ के कारण ही ' रामराज्य' की स्थापना संभव हुई। महर्षि वसिष्ठ ने सूर्यवंश का पौरोहित्य करते हुए अनेक लोक-कल्याणकारी कार्यों को सम्पन्न कराया था। इन्हीं के उपदेश के बल पर भगीरथ ने प्रयत्न करके गंगा-जैसी लोक कल्याणकारिणी नदी को हम लोगों के लिये सुलभ कराया।  भगवान राम के समय में हुए वाशिष्ठ को महर्षि वशिष्ठ कहते थे। भगवान श्री राम को शिष्य रूप में प्राप्त कर महर्षि वसिष्ठ का पुरोहित-जीवन सफल हो गया। भगवान श्री राम के वन गमन से लौटने के बाद इन्हीं के द्वारा उनका राज्याभिषेक हुआ। गुरु वसिष्ठ ने श्री राम के राज्यकार्य में सहयोग के साथ उनसे अनेक यज्ञ करवाये। उन्होंने दशरथ की मृत्यु के बाद कोशल राज्य को संभाला, विश्वामित्र से कामधेनु को लेकर उनके युद्ध हुए, उन्होंने विश्वामित्र को ऋषि तो माना । पौराणिक श्रुति इस प्रकार है कि वनवास के दौरान जब युद्ध में रामचन्द्र जी द्वारा रावण मार दिया गया तो रामचन्द्र पर ब्रह्महत्या का पाप लगा। अयोध्या वापस आने पर श्रीराम इस पाप के निवारण के लिये अश्वमेध की तैयारी में जुट गये। यज्ञ शुरू हुआ तो उपस्थित सारे ऋषि मुनियों ने गुरू वशिष्ठ को कहीं नहीं देखा। वशिष्ठ राजपुरोहित थे, बिना उनके यह यज्ञ सफल नहीं हो सकता था। उस समय वशिष्ठ हिमालय में तपस्यारत थे। श्रंगी ऋषि लक्ष्मण को लेकर मुनि वशिष्ठ की खोज में निकल पड़े। लम्बी यात्रा के बाद वे इसी स्थान पर आ पहुंचे। सर्दी बहुत थी। लक्ष्मण ने गुरू के स्नान के लिये गर्म जल की आवश्यकता समझी। लक्ष्मण ने तुरन्त धरती पर अग्निबाण मारकर गर्म जल की धाराएं निकाल दीं। प्रसन्न होकर गुरू वशिष्ठ ने दोनों को दर्शन देकर कृतार्थ किया। गुरू ने कहा कि अब यह धारा हमेशा रहेगी व जो इसमें नहायेगा, उसकी थकान व चर्मरोग दूर हो जायेंगे। लक्ष्मण ने गुरूजी को यज्ञ की बात बतलाई। तदुपरान्त गुरू वशिष्ठ ने अयोध्या जाकर यज्ञ को सुचारू रूप से सम्पन्न कराया। 

10.
वशिष्ठ सुवर्चस भी एक वशिष्ठ रहे। इनके बारे में जानकारी अत्यल्प ही मिलती है।
 है। 

11.
जातुकर्ण शाखा के वशिष्ठ :-
एक और अल्प शाखा है, जो जातुकर्ण नाम से जानी जाती है। 

         
यह भी कह सकते हैं कि, वशिष्ठ केवल एक व्यक्ति ही नहीं,बल्कि एक संपूर्ण कुल का प्रतीक, एक गौत्र तथा एक पद भी है। आज भी, कई जाती के लोग अपना गौत्र वशिष्ठ लगाते हैं। वशिष्ठ गौत्र या वंश में देवराज, आपव, अथर्वनिधी,वारुणी, श्रेष्ठभाज,सुवर्चस, शक्ति और वारुणी जैसे कई प्रमुख व्यक्ति हुए हैं, जिनका ग्रंथों और पुराणों में उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद के सातवें मंडल के रचनाकार, होने के साथ ही महर्षि वशिष्ठ ने वशिष्ठ संहिता, वशिष्ठ पुराण, वशिष्ठ शिक्षा, वशिष्ठ श्राद्धकल्प  तथा वशिष्ठ तंत्र  की भी रचना की थी। ऋग्वेद के अनेक मंत्रों के सुक्तकार तथा द्रष्टा, सूर्यवंश तथा रघुकुल के महान राजपुरोहित महर्षि वशिष्ठ को एक त्रिकालदर्शी, महान तपस्वी, यज्ञ तथा मंत्र विद्या के ज्ञानी तथा एक तेजस्वी ऋषि के रुप में युगो तक याद किया जाएगा।
          
वेदव्यास की तरह वशिष्ठ भी एक पद हुआ करता था।कहा जाता है कि जो ब्रह्मा के पुत्र थे वे आज भी जीवित हैं और वे ही हर काल में प्रकट होते हैं। उनका स्थान हिमालय के किसी क्षेत्र में बताया जाता है।


- डा. राधेश्याम द्विवेदी 

COMMENTS

Leave a Reply
नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,35,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",6,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,3,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,7,आषाढ़ का एक दिन,17,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,2,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,15,कमलेश्वर,6,कविता,1413,कहानी लेखन हिंदी,13,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,5,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,4,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,3,केशवदास,4,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,138,गजानन माधव "मुक्तिबोध",14,गीतांजलि,1,गोदान,6,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,2,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,2,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,30,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,73,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,5,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,25,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,3,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,6,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,23,नाटक,1,निराला,35,निर्मल वर्मा,2,निर्मला,38,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,174,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,133,प्रयोजनमूलक हिंदी,24,प्रेमचंद,40,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,86,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,5,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,7,भक्ति साहित्य,138,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,13,भीष्म साहनी,7,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,5,मलिक मुहम्मद जायसी,4,महादेवी वर्मा,19,महावीरप्रसाद द्विवेदी,2,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,11,मैला आँचल,4,मोहन राकेश,12,यशपाल,14,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,20,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,2,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,8,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,2,लघु कथा,118,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,33,विद्यापति,6,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,1,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,7,शमशेर बहादुर सिंह,5,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,5,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,53,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,1,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,28,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,39,समसामयिक हिंदी लेख,222,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,17,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,70,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",9,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,20,सूरदास,15,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,10,हजारी प्रसाद द्विवेदी,2,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,353,हिंदी लेख,504,हिंदी व्यंग्य लेख,4,हिंदी समाचार,164,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,86,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,6,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,18,hindi essay,345,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,102,hindi stories,656,hindi-gadya-sahitya,7,hindi-kavita-ki-vyakhya,15,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,14,kavyagat-visheshta,22,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,10,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,Rimjhim Class 3,14,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,sponsored news,10,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,41,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: महर्षि वशिष्ठ की एक लम्बी परम्परा
महर्षि वशिष्ठ की एक लम्बी परम्परा
वेदव्यास की तरह वशिष्ठ भी एक पद हुआ करता था।कहा जाता है कि जो ब्रह्मा के पुत्र थे वे आज भी जीवित हैं और वे ही हर काल में प्रकट होते हैं। उनका स्थान हि
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhXzykzU9i1uGqDtnJtI2kz5IDybP8t8LGn7GI0LaHAihoc_uTjeJ8YhUwNbqYEyeRcr1HjPRh9XCp1uu9lOCLvqhwWrWrK0Slkva10wVaftGbF-17AgeXND1SE2ea9dYV6n2MBg9hRB_vu4OMeHtXLg9wTUZrN60Ut5x2NY7W78jCsmE6vAeRHU1lZ3A/s320/maharishi-vashishth.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhXzykzU9i1uGqDtnJtI2kz5IDybP8t8LGn7GI0LaHAihoc_uTjeJ8YhUwNbqYEyeRcr1HjPRh9XCp1uu9lOCLvqhwWrWrK0Slkva10wVaftGbF-17AgeXND1SE2ea9dYV6n2MBg9hRB_vu4OMeHtXLg9wTUZrN60Ut5x2NY7W78jCsmE6vAeRHU1lZ3A/s72-c/maharishi-vashishth.jpg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2022/06/long-tradition-of-maharishi-vashistha.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2022/06/long-tradition-of-maharishi-vashistha.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका