त्रिलोचन शास्त्री की काव्यगत विशेषताएँ Trilochan ki kavitayen त्रिलोचन का काव्य संसार एवं काव्य दृष्टि प्रगतिशील काव्य धारा और त्रिलोचन का काव्य विश्ल
त्रिलोचन शास्त्री की काव्यगत विशेषताएँ
त्रिलोचन शास्त्री की काव्यगत विशेषताएँ Trilochan ki kavitayen त्रिलोचन का काव्य संसार एवं काव्य दृष्टि प्रगतिशील काव्य धारा और त्रिलोचन का काव्य विश्लेषण - प्रगतिशील काव्य धारा के सशक्त रचनाकारों में त्रिलोचन एक ऐसा सुपरिचित नाम है ,जिसकी रचनाओं में सहजानुभूति का खुला चित्रण है। कवि त्रिलोचन प्रगतिवादी रचनाकार होने के कारण सदैव विकासोन्नमुख रहे हैं। ये परंपरा के नहीं ,नवीनता के पोषक होने के नाते आधुनिकता में निरंतरता की पहचान प्रस्तुत करने वाले अद्भुत कवि है। त्रिलोचन नाम से चर्चित कवि का पूरा साहित्यिक नाम त्रिलोचन शास्त्री है। त्रिलोचन का वास्तविक नाम वासुदेव सिंह है। त्रिलोचन रचनात्मक लेखन कार्य के साथ साथ कोश संपादन और पत्रिकारिता से भी जुड़े रहे हैं। हँस और कहानी जैसे उच्चस्तरीय पत्रिकाओं के साथ साथ आज ,जनवार्ता ,समाज ,प्रदीप और चित्रलेखा में आपने सह संपादक के रूप में कार्य किया। इसके अतिरिक्त आपने कुछ वर्षों तक दिल्ली विश्वविद्यालय के द्वारा निर्माणाधीन उर्दू हिंदी कोष का संपादन कार्य भी किया।
त्रिलोचन शास्त्री की रचनाएँ
त्रिलोचन के अब तक कुल आठ काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। धरती ,गुलाब और बुलबुल ,दिगंत ,ताप के ताए हुए दिन ,शब्द ,उस जनपद का कवि हूँ ,अरधान और तुम्हे सौंपता हूँ। त्रिलोचन का काव्य संसार एवं काव्य दृष्टि आरम्भ से अब तक इनकी रचनाओं में प्रेम ,सौन्दर्य ,प्रेरणा आदि का उल्लेख बड़ी सहजता से हुआ है ,लेकिन आपने समसामयिक ज्वलंत प्रश्नों को ही अधिकतर काव्य का विषय बनाया है। प्रेम और सौन्दर्य की रचनाओं में पहले पहल ,धुप सुन्दर आदि उल्लेखनीय हैं। राष्ट्रीय भावनाओं के कवियों में भी त्रिलोचन पीछे नहीं है। हिंदी काव्य में महिमामंडित करने वाली इनकी कविता हिंदी कविता इस प्रसंग में बहुत ही उच्चकोटि की है। इसके माध्यम से कवि ने देशवासियों में राष्ट्रीय भावना का बीजारोपण करना चाहा है। इस प्रकार त्रिलोचन की रचनाएँ एकांगी नहीं ,बहुआयामी है। उनमें विविधता है और वे विकासोनुमुख हैं।
त्रिलोचन की प्रगतिशील चेतना काव्य संसार
त्रिलोचन के काव्य की सर्वाधिक विशेषता ग्रामीण परिवेश का चित्रण है। कविताओं का स्वरुप चाहे जैसा हो ,लेकिन उसका प्रतिपाद्द्य सामान्य लोक जीवन के पहलुओं को ही रेखांकित करना होता है। इसके लिए लोक प्रचलित शब्दों को तराशते हुए कवि आत्मानुभूति को बड़े ही सहज ढंग से प्रस्तुत करना होता है। प्रायः सभी कविताएँ बदलती हुई मान्यताओं और मूल्यों के बीच आत्म - पहचान पर बल देती है। जहाँ कवि का आत्म बोध युग बोध के रूप में चित्रित है। भाव भूमि पर ही कविता का सौन्दर्य ,संवेदना ,उद्देग और अभिव्यक्ति ,अंकुरित होकर यथार्थ की ऊँचाई को छूने लगती है। कल्पना से यथार्थ की सजीवता ही कविता की सच्चाई है। भावों की क्रमबद्धता और अनुरूपता का अद्भूत शांत स्पर्श पाठक और श्रोता को आत्मसात कर लेना किसी काव्य की सफलता का बहुत बड़ा आधार है। निसंदेह त्रिलोचन की कविताएँ इन विशेषताओं के अनुरूप हैं। वस्तुतः त्रिलोचन की कविताएँ आस पास की संस्कृति का चित्र प्रस्तुत करने वाली यथार्थपूर्ण कविताएँ हैं ,जो जीवनसापेक्ष हैं। त्रिलोचन का काव्य संसार एवं काव्य दृष्टि बहुत बड़ी है। उनमें स्वदेश की मिट्टी की सुगंध और आकर्षण हैं। लोक मंगल की भावना का मुखर और उन्मुक्त गान करती हुई मानवता के ही महत्व को श्रेय देती हैं।
त्रिलोचन की भाषा शैली
त्रिलोचन जी की भाषा लोकजीवन की भाषा है। तत्सम शब्दों के साथ साथ तद्भव और देशज शब्दों का प्रयोग प्रचुर मात्रा में हैं। उर्दू और फासरी के प्रचलित शब्दों का प्रयोग प्रायः हुआ है। शब्द प्रयोग की विविधता से भाषा प्रवाह में कहीं विछिन्नता नहीं आई है क्योंकि यह भावानुरूप ही प्रयुक्त हुआ है। कहीं कहीं आध्यात्मिक चिंतन की गंभीरता के फलस्वरूप गूढ़ अर्थ की अभिव्यक्ति अधिक बोझिल हो गयी है ,फिर भी भाव और भाषा के ओज और प्रवाह तथ्य बोधगम्य रूप में ही प्रस्तुत होते हैं।
त्रिलोचन का सर्वप्रिय छंद मात्रिक छंद है। इसमें भी रोला ही इनका सर्वाधिक प्रयुक्त छंद है। काव्य शिल्प ,रस ,अलंकार ,छंद ,बिम्ब ,शब्द शक्ति की विविधता के फलस्वरूप चित्रात्मक और बोधगम्य शैली इनकी प्रायः सभी कविताओं का आधार है।
काव्य सौष्ठव की उपयुक्त विशेषता के साथ साथ आत्मबोध ,पांडित्य ,विषय मर्मज्ञता और व्यक्तित्व की छाप आदि ऐसी विशेषताएँ हैं ,जो कवि त्रिलोचन को समकालीन उच्च रचनाकारों में स्थान दिलाती हैं।
त्रिलोचन की कविता में लोक सौंदर्य
जीवन दर्शन और साहित्य को समान रूप से स्वीकार करने वाले कवि त्रिलोचन निरंतर संवेदनशील रचनाकार हैं। उनकी काव्य यात्रा परम्परा की लीक पर न चलकर निरंतर नव निर्माण पथ पर गतिशील है और आज भी नवीनतम है। कवि की प्रतिबद्धता परिवेश को ठीक ठीक प्रस्तुत करने की होती है। त्रिलोचन इसके अपवाद नहीं हैं। कवि त्रिलोचन ने अपनी काव्य रचना के लिए यथार्थ की भूमि पर नयेपन को जो बीजारोपण किया है ,उससे अपेक्षित आदर्श का प्रभावशाली चित्र प्रस्तुत किया है। इन्होने अपने काव्य की गरिमा को बनाये रखने के लिए स्पष्टता के साथ भावात्मक संकेतों को आवश्यक रूप से ग्रहण किया है। भावों की गति और भाषा की सशक्त पकड़ होने के कारण इनके काव्य में कहीं कोई भटकन ,उलझाव या गति अवरोध नहीं है। मौलिक चिंतन को सार्वजानिक दृष्टि से देखते हुए प्रणय संवेदना ,राष्ट्र चेतना ,दार्शनिकता और मानवतावादी विचारधारा कवि के काव्य की मुख्य विशेषताएँ हैं। अपने ओज और प्रवाह के कारण ये कविताएँ जन जन के लिए अतिशय प्रिय हो जाती है। ऐसी रचनाओं में व्यक्ति नहीं ,राष्ट्र और समाज का सच्चा प्रतिविम्ब हैं। कविवर त्रिलोचन का चित्रण बड़ा ही स्वाभाविक ,सारगर्भित और निष्पक्ष होते हुए भोगा हुआ ऐसा यथार्थ है ,जो सार्वजनिक स्तर पर संवेदनशील होकर प्रेरणादायक सिद्ध होता है।
त्रिलोचन की कविता का भाव पक्ष
त्रिलोचन जी कविताओं के भाव पक्ष ,उनकी स्वछन्द विचारधारा को प्रस्तुत करने के साथ साथ उनकी उन्मुक्त चेतना को भी प्रस्तुत करने वाला है। अपने काव्य को उन्होंने जनमानस को काव्य मानकर अभिव्यक्ति दी है। इस भावना का सच्चाई से पालन करते हुए वे काव्य में किसी प्रकार के आडम्बर और कृत्रिमता के समावेश पर रोक लगाते हैं। काव्य कानन में वे उन्मुक्त ,निहित और गंभीर वातावरण के द्वारा विविध उदारों के सुमन विकसित करने के पक्ष में है। कवि कभी आत्म अभिव्यक्ति के ऐसे सुन्दर रूप से सामने हो जाता है कि पहली दृष्टि में ही उस पर न्योछावर हो जाता है और तब वह पश्चाताप करने लगता है कि इस रूप को उसने इससे पहले क्यों नहीं देखा। इस अनुभव की भाव भंगिमापूर्ण रूप से पहले पहल कविता से कैसे हो रही हैं ,उसका अवलोकन दृष्टव्य है -
पहले पहल तुम्हें जब मैंने देखा
सोचा था
इससे पहले ही
सबसे पहले
क्यों न तुम्हीं को देखा
कवि का यह सौंदर्याकर्षण सामान्य और सतही का नहीं है। वह लीक से हटकर अलौकिक और नैसर्गिक है। उसमें चराचर की सुन्दरता है। ऐसी सुन्दरता से मुग्ध होकर कवि स्तब्ध और मौन हो जाता है। उसे आश्चर्य भी है कि इससे पहले और सबसे पहले इसे क्यों नहीं देखा -
अब तक
दृष्टि खोजती क्या थी
कौन रूप क्या रंग
देखने को उड़ती थी
ज्योति-पंख पर
तुम्ही बताओ
मेरे सुन्दर
अहे चराचर सुन्दर की सीमा रेखा
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