शहर में रहने के फायदे और नुकसान | Essay on City Life in Hindi

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शहरी जीवन के लाभ और हानि शहर में रहने के फायदे और नुकसान Essay on City Life in Hindi Advantage and Disadvantage of City Life in Hindi शहरी जीवन की समस

शहरी जीवन के लाभ और हानि


हरी जीवन के लाभ और हानि शहर में रहने के फायदे और नुकसान Essay on City Life in Hindi Advantage and Disadvantage of City Life in Hindi - हानि और लाभ एक ही सिक्के के दो पक्ष है। ब्रह्मा जी की सम्पूर्ण सृष्टि ही गुण और अवगुण का मिला-जुला स्वरुप है। किसी जगह पर निवास करने से कोई महान नहीं बन जाता है। महानगर में निवास करना भले ही गौरव का कारण हो परन्तु ऐसा कुछ भी नहीं है कि इस जीवन में गुण ही गुण हो।

शहर में रहने के फायदे Advantages of City Life in Hindi

शहर में रहने के फायदे और नुकसान | Essay on City Life in Hindi
महानगर के जीवन में शिक्षा ,यातायात ,चिकित्सा ,पुलिस सहायता ,बैंक सुविधा ,वैज्ञानिक अनुसंधानों की सुविधा तथा एक नागरिक को वांछित सुविधाओं महानगर में निवास करने के लाभ है। बालकों की शिक्षा - दीक्षा की समुचित व्यवस्था जैसी महानगरों में है वैसे ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं है। किसी के अस्वस्थ होने पर महानगर में तुरंत ही चिकित्सा सुविधा प्राप्त हो जाती है। जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में केवल झोलाछाप डॉक्टर की उपलब्ध होते हैं। जो नीम हकीम खतरे जान की कहावत को चरितार्थ करते हैं। महानगरीय जीवन में तुरंत पुलिस सहायता प्राप्त हो जाती है। जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में पुलिस राज्य ही रहता है। पुलिस सज्जन से सज्जन व्यक्ति को अपराधी बना सकती है और अपराधी को सज्जन प्रमाणित कर सकती है। 

महानगर के जीवन में शान्ति ,सुविधा और सुरक्षा की त्रिवेणी प्रवाहित होती रहती है। किसी का शारीरिक दृष्टि से निर्बल होना सबसे दबे रहने का कारण नहीं बन सकता है। शांतिपूर्वक कार्य करने के लिए सुरक्षा अनिवार्य तत्व है ,जो महानगरीय जीवन का वरदान है। शान्ति और सुरक्षा के अभाव में सुविधाओं का भी समुचित प्रयोग नहीं हो सकता है। नियमित कार्यक्रम सफल जीवन संपादन के लिए आवश्यक है। ऐसा जीवन महानगर की परिसीमा में भी संभव है। 

शहरी जीवन की समस्या 

महानगर के जीवन में कुछ हानियाँ भी है। इसकी सबसे बड़ी हानि स्वार्थपरता और सहयोग न करने की भावना है। महानगरों में समीप में घर लुटटा रहता है और पडोसी अपना घर बंद किये बैठे रहते हैं। उनमें सहयोग की भावना नहीं है। महानगर में पैसा है ,किन्तु प्रेम नहीं है। यहाँ प्रदर्शन है किन्तु कोई जीवन दर्शन नहीं है। एक भाई के जीवन में अपना जीवन ढालने का स्वभाव नहीं है। अतः एक भाई के संकट में जीवन की होड़ लगाना महानगर निवासियों का स्वभाव नहीं होता है। 

निष्कर्ष 

महानगर के जीवन में मनुष्य का स्वभाव दास होता है। बिजली चली गयी बस समझिये जीवन ज्योति चली गयी। पानी चला गया तो सबका पानी उतर गया। चाय न मिली तो चाँद तारे नज़र आने लगे। दूरदर्शन का कार्यक्रम न देखा तो सभी कार्यक्रम रुक गए ,कपड़े प्रेस न हुए तो कार्य से लेकर कार्यालय तक प्रभावित हुआ। जितना महानगरीय जीवन में जहाँ लाभ है वहां कतिपय हानियाँ भी है। यह तो प्रकृति का नियम है - 


'कोई न अच्छा बिलकुल होता 
गुण अवगुण सब में होता है। 
है गुलाब फूलों का राजा ,
पर काँटा उसमें भी होता है। "




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