आत्मविश्वास के साथ महिलाओं को संदेश

SHARE:

आत्मविश्वास के साथ महिलाओं को संदेश देते हुए कहती हैं कि अगर मैं कर सकती हूं, तो आप क्यों नहीं?

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष
पुरुष प्रधान क्षेत्र में सीमा ने बनाया अपना मुकाम


इंद्रा नूई, नीता अंबानी, राधिका अग्रवाल, वाणी कोला ये ऐसी शख्सियत हैं, जो किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं. हाल के दशकों में भारत में महिला उद्यमियों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है. देश में लगभग 13.76 प्रतिशत उद्यमी महिलाएं हैं और 6 प्रतिशत महिलाएं भारतीय स्टार्टअप की संस्थापिका भी हैं. लेकिन बढ़ोत्तरी के बाद भी यह आंकड़े बहुत कम हैं. अमेरिकन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार यूएस में लगभग 13 मिलियन महिला अपना स्वयं का व्यवसाय चलाती हैं अथवा संभालती हैं. यह आंकड़ा यूएस में सभी कंपनियों के 42 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करता है, अर्थात् वहां 10 में से 4 महिलाएं किसी न किसी व्यवसाय की मालिक हैं, जो सालाना लगभग 1.8 ट्रिलियन डॉलर का व्यवसाय में योगदान है. भारत की महिलाएं भी उद्योग के क्षेत्र में अपनी कामयाबी दर्ज करा रही हैं, लेकिन यह आंकड़ा उम्मीद से अब भी कम है. बड़े आंकड़े तक पहुंचने के लिए छोटे शहरों की महिलाओं को भी आगे आना होगा. व्यापार करना यहां की महिलाओं के लिए अब भी थोड़ा चुनौतीपूर्ण है लेकिन नामुमकिन नहीं है. बिहार के छपरा की रहने वाली सीमा जयसवाल इसका एक उदाहरण हैं. सीमा एक महिला उद्यमी हैं. देश के लिए भले ही यह जाना माना नाम ना हो, लेकिन छपरा शहर के लिए वह अनजान नहीं हैं. 

आत्मविश्वास के साथ महिलाओं को संदेश
सीमा जयसवाल का जन्म 26 नवंबर 1977 को मुजफ्फरपुर जिला स्थित अमनौर प्रखंड के एक मध्यम वर्गीय संयुक्त परिवार में हुआ है. इन्हें माता-पिता के साथ-साथ चाचा और बुआ का भी प्यार मिला. साल 2001 में सीमा का विवाह छपरा शहर के कटहरी बाग निवासी स्व• निर्मल जयसवाल के पुत्र निलेश कुमार जयसवाल 'अतुल' से हुआ. उस वक्त निलेश के पिताजी का शहर के साहेबगंज बाजार में छोटी सी दुकान थी, जिसका नाम लिबास था. साल 2004 में पारिवारिक बंटवारे के बाद सीमा और निलेश के हिस्से में दुकान आई. उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और लगन से उस छोटी सी दुकान से व्यापार का विस्तार किया और साल 2014 में 'लिबास मार्ट' की शुरुआत की. इस दौरान उन्होंने अब तक जो भी रणनीतियां बनाई थी, उसमें वे सफल होते गए. लेकिन साल 2014 में मार्ट खुलने के बाद इतना बड़ा व्यापार उनके अकेले के बस का नहीं लग रहा था क्योंकि काम काफी बढ़ने लगा था. जिसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी सीमा से मदद मांगी और पत्नी ने भी पति का पूरा साथ दिया. 

सीमा कहती हैं कि मैं पूर्ण रूप से ग्रामीण परिवेश में पली बढ़ी थी. मुझे बैंक और रुपये-पैसे की अधिक जानकारी नहीं थी. अनजान लोगों से मिलना-जुलना भी बहुत कम होता था. कहते हैं न, छोटे बच्चे का हाथ पकड़ कर उसे चलना सिखाया जाता है, लेकिन जब तक हम उसका हाथ नहीं छोड़ेंगे, वह दौड़ना नहीं सीखेंगे. मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ. व्यापार के क्षेत्र में आना मेरी ज़िंदगी का नया मोड़ था, तब मेरे पति ने मुझे बहुत सपोर्ट किया. मुझे हर एक चीज के बारे में बारीकी से समझाया. अब सुबह से लेकर रात तक पूरा ध्यान बिजनेस पर ही रहता है. ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि दुकान और बिजनेस में मेरी आत्मा बस गई है. शुरुआती दिनों के बारे में बताते हुए सीमा कहती हैं कि लाइफ में एकदम से कुछ नया होता है, तो झिझक महसूस होती है. मुझे भी घर से ज़्यादा निकलने की आदत नहीं थी. अनजान लोगों के घर पर आने पर हम बहुएं अंदर चले जाते थे. ऐसे में कस्टमर्स और डिलीवरी को डील करना थोड़ा मुश्किल होता था. शुरुआती दो से तीन महीने दिक्कत हुई, फिर उसके बाद आदत हो गई. 

छोटे शहर में एक बहु का घर से निकलकर कारोबार संभालना मामूली बात नहीं थी. निलेश के दोस्तों और कई रिश्तेदारों ने ताना कसा कि घर की लेडीज को दुकान पर बैठा रहा है. घर की जगह वह दुकान संभाल रही है. लेकिन पति के साथ साथ ससुर निर्मल जयसवाल ने भी सीमा का भरपूर साथ दिया. सास ससुर की तरफ से सीमा को पूरी छूट थी. वह दिन का आधा समय घर को देती थी और आधा बिजनेस को. खाना पकाना और बच्चों को पढ़ाना, यह दोनों काम वह खुद ही करती हैं. इस संबंध में सीमा के पति निलेश कहते हैं कि छपरा में मुझे कोई बड़ा बिजनेस करने का मन था. शहर का सबसे पहला मार्ट मैंने ही 'लिबास मार्ट' नाम से खोला था. शुरुआत के दो साल बाद बिजनेस में बहुत उतार-चढ़ाव आने लगे और चीज़ों को संभालने में मुश्किल होने लगी. उस समय मेरी वाइफ ने मुझे बहुत सपोर्ट किया और घर के साथ व्यवसाय भी संभाला. एक वक्त ऐसा भी आया, जब मेरे भाई, मैनेजर और स्टाफ ने मेरा साथ नहीं दिया तब दिल में आया कि मार्ट बेच दूं. उस वक्त सीमा ने समझाया कि मुझे क्या करना चाहिए, कैसे किसी स्टाफ को समझाना है और बिना हारे बिजनेस में आगे बढ़ना है. यह सब मेरी वाइफ मुझे समझाती है, तब मैं आज हिम्मत के साथ बिजनेस कर पा रहा हूं और आगे बढ़ रहा हूं. 

सीमा कहती हैं कि मैंने बिजनेस से बहुत कुछ सीखा है और यह भी जाना है कि मुश्किल समय में हमें कभी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए. जब तक समस्या को समस्या समझेंगे, वह कठिन मालूम होगा. अगर जिम्मेदारी समझ कर करेंगे तो राह आसान हो जाएगी और समस्या भी चुटकियों में हल हो जाएगी. इस अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर अपने विचार व्यक्त करते हुए सीमा कहती हैं कि मैंने ज्यादा पढ़ाई नहीं की और न ही मेरे पास कोई प्रोफेशनल डिग्री है, फिर भी मैंने हार नहीं मानी और न ही समाज के संकुचित और कुंठित विचारों के आगे बेबस हुई. वह पूरे आत्मविश्वास के साथ महिलाओं को संदेश देते हुए कहती हैं कि अगर मैं कर सकती हूं, तो आप क्यों नहीं? (चरखा फीचर)




- अर्चना किशोर
छपरा, बिहार

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका