झूठा सच उपन्यास का उद्देश्य मूल संवेदना

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झूठा सच उपन्यास का उद्देश्य मूल संवेदना प्रतिपाद्य झूठा सच उपन्यास में प्रगतिशील विचारधारा का पोषण हुआ है देश का भविष्य देश की जनता ही के हाथ में है

झूठा सच उपन्यास का उद्देश्य मूल संवेदना प्रतिपाद्य


शपाल जी उपयोगितावादी उपन्यासकार हैं। कला कला के लिए के सिद्धांत का आपकी दृष्टि में कोई मूल्य नहीं है। आप कला का उद्देश्य मनोरंजन मात्र न मानकर उसका मूल्य उपयोगिता की दृष्टि से मापते हैं। आपका झूठा सच उपन्यास सोउद्देश्य है। इसमें उनका उद्देश्य देश के विभाजन के कारणों ,विभाजन से उत्पन्न परिस्थितियों एवं वर्तमान समाज ,नेताओं एवं शासकों की बुराइयों को स्पष्ट कर समाजवादी समाज की स्थापना करना है। देश स्वतंत्र हुआ ,परन्तु विभाजन के परिणामस्वरूप खंडित हो गया। लाखों घर बर्बाद हुए ,लोग लुटे ,मरे और अनाथ हो गए। स्वतंत्रता के पश्चात शासन तंत्र भ्रष्ट ही रहा। 

अपने अन्य उपन्यासों की तरह इस उपन्यास में भी यशपाल जी का उद्देश्य साम्यवादी विचारधारा का पोषण और प्रचार ही रहा। यही कारण है कि उन्होंने कांग्रेसी नेताओं और उनकी नीतियों की आलोचना की है और कम्युनिस्ट एवं प्रगतिशील कहे जाने वाले लोगों की प्रसंसा की है। कम्युनिस्ट कार्यकर्त्ता असद के चरित्र को उन्होंने ऊँचा उठाने का प्रयास किया है। कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यों में रूचि लेने के कारण तारा की भी प्रशंसा की गयी है। मैसी ,चड्ढा ,गिल आदि को भी कथानक में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इस प्रकार सारे कथानक पर मार्क्सवादी विचारधारा का आवरण छाया हुआ है। 

यशपाल ने साम्यवादी विचारधारा के लोगों को इतना अधिक बढ़ा दिया है कि पक्षपात सा दिखने लगता है। यशपाल जी विवाह के नैतिक संबंधों को स्वीकार नहीं करते हैं। कनक दूसरा विवाह करती है। शीलों अपने पति को छोड़कर रतन के साथ भाग जाती है। तारा सोमराज की विवाहित होकर भी डॉ.प्राणनाथ से विवाह कर लेती है। उर्मिला पुरी की रखैल बन कर रहती है और सीता बार - बार गर्भपात कराती है। 

अनेक सामाजिक उद्देश्यों के होते हुए भी झूठा सच का प्रमुख उद्देश्य राजनितिक है। लेखक विभाजन के परिणामस्वरूप देश की दुःख भरी कहानी सुनाने में सफल हुआ है। संक्षेप में झूठा सच उपन्यास में निम्नलिखित उद्देश्य निरुपित हुए हैं - 

स्थानीय चित्रण 

यशपाल ने कथानक के प्रारभ में घरेलु जीवन के जो चित्र अंकित किये हैं ,उसमें आंचलिकता का गहरा रंग है। रामलुभाया ,रामज्वाया ,जयदेव पूरी ,तारा आदि के घरेलू जीवन का यथार्थ चित्र सामने आ जाता है। रामलुभाया की माँ की मृत्यु पर स्यापे का जो दृश्य उपस्थित किया गया है ,वह पंजाबी समाज की पारिवारिक प्रथा का सजीव चित्र है। 

जाति प्रथा का विरोध 

झूठा सच उपन्यास का उद्देश्य मूल संवेदना
झूठा सच में लेखक ने जाति पाति एवं ऊँच - नीच की भावना पर कड़े प्रहार किये हैं। वे जाति और समाज की पुरानी परम्परों को सड़ी हुई कहकर उनका विरोध करते हैं। आलोच्य उपन्यास में कनक पुरी ,कनक गिल ,तारा असद ,मैसी चड्ढा ,कांता - नैयर ,जुवेदा प्रदुम्न आदि के सम्बन्ध जाति - पाति और ऊँच - नीच की भावना को तोड़ते ही नज़र आते हैं। 

नेताओं के भ्रष्टाचार का विरोध 

झूठा सच उपन्यास में कांग्रेस की नीति और स्वार्थी नेताओं एवं अधिकारियों की आलोचना की गयी है। गान्धी जी ने घोषणा की थी कि पाकिस्तान उनकी लाश पर बनेगा ,परन्तु बाद में उन्होंने विभाजन स्वीकार कर लिया और अपने अनशन के द्वारा पाकिस्तान को पचपन करोड़ रूपये दिलवा दिया। सरकारी अधिकारियों और नेताओं के भ्रष्टाचार पर प्रहार करते हुए यशपाल की कहते हैं - योजनाओं से कुछ नहीं बनता है।  जनता का अरबों रूपये करोड़पतियों और सरकारी अफसरों की जेबों में चला जा रहा है। 

झूठा सच उपन्यास में नारी की आज के समाज में दयनीय स्थिति का चित्रण करके प्रेम एवं आर्थिक क्षेत्र में उसकी स्वतंत्रता को स्वीकार किया गया है। तारा अंडर सेक्टरी के पद पर कार्य करती दिखाई पड़ती है। 

मार्क्सवाद का प्रचार 

झूठा सच उपन्यास का प्रधान लक्ष्य मार्क्सवादी विचारधारा का प्रचार है। यशपाल के कथानक के प्रारंभ में स्टूडेंट फेडरेशन की स्थापना करायी है और साम्यवाद के क्रियात्मक रूप को हितकर बतलाया है। साथ ही कम्युनिस्ट पात्रों के त्याग और सेवा परायणता को दिखाकर साम्यवाद की महत्ता का पोषण किया गया है। 

झूठा सच उपन्यास में प्रगतिशील विचारधारा का पोषण हुआ है। यशपाल जी समाज को विकासोन्मुख मानते हैं ,अतः वे इस उपन्यास में समाजवादी विचार धारा के अनुकूल समाज व्यवस्था का सन्देश देते हैं। वे स्थान स्थान पर शोषण ,अन्याय ,साम्राज्यवादी एवं प्रतिक्रियावादी नीतियों पर कुठराघात करते हैं। कांग्रेसी नेताओं ,सत्ताधारीयों और अधिकारियों के भ्रष्टाचारी प्रवृत्ति पर उन्होंने तीखे प्रहार किये हैं। अतः इस उपन्यास का उद्देश्य साम्यवादी समाज की रचना करना है। उपन्यास की अंतिम पंक्ति में जनता की शक्ति को सर्वोपरि ठहराया गया है - 

'देश का भविष्य नेताओं और मंत्रियों की मुट्ठी में नहीं है ,देश की जनता ही के हाथ में है। "


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