विचित्र इश्तेहार - लघु कहानी

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विचित्र इश्तेहार जनवरी का महीना चल रहा हैं। दिल्ली में बहुत ठंड हैं। शीतलहर चल रही हैं। में हमेशा की तरह सुबह पांच बजे जाग गया हूं

विचित्र इश्तेहार


नवरी का महीना चल रहा हैं।  दिल्ली  में बहुत  ठंड हैं।  शीतलहर  चल रही हैं।  में हमेशा  की तरह सुबह  पांच बजे   जाग  गया हूं।  अपने लिए चाय बना कर पहला शिप  लेते हुए  आज के अखबार  पर  एक नजर  डाली हैं  और एक इश्तहार  को  देख कर  चौंक जाता हूं।  इश्तहार   कुछ  इस तरह  था।  
       
 " सत्तर  और  पैंसठ बरस के वृद्ध पति  पत्नी  को  एक  जवान बेटे  या बेटी को गोद लेने की   जरूरत हैं , साथ में बहू या दमाद या बच्चे  हो  तो  कोई प्रॉब्लम  नहीं हैं। बोह हमारे घर या हम उनके घर रह सकते हैं। हम   उन पर बोझ नहीं बनेंगे बल्कि  अपना खर्चा  स्वंय  करेंगे।  जरूरत पड़ने  पर हम मदद भी करेंगे।  बदले में हमें उनका मुस्कराता  चेहरा देखना मांगते हैं।  सुबह शाम  गुड मॉर्निंग ,गुड इवनिंग  हो जाये  और बेटा या बेटी  कैसे हो बोलने पर एक मुस्कराता   रिस्पांस  मिल जाये। "                          

इस विज्ञापन ने उस को  ठंड के महीने में पसीने ला दिए  और बोह जिस घटना को करीब करीब  भूल गया था ,पुनः याद दिला दी। उसका जन्म कँहा हुआ था ,उसे नहीं पता।  उसने जब होश समा ला ,अपने आपको एक अनाथालय में पाया।  फादर पिंटू  उसके माता ,पिता ,संरक्षक सभी कुछ  थे। उन्हीं के सहयोग से उसने पढ़ाई की और कंप्यूटर सांइंस  में बी टेक  किया और अब बोह एक बड़ी कम्पनी में कंप्यूटर प्रोग्रामर हैं। 
                   
उसने  कभी भी अपने माँ बाप के बारे में नहीं सोचा।  जब  उसने होश समा ला  और अपने माँ बाप के बारे में पहली बार सोचा उसे लगा की उनकी कोई मजबूरी  रही होगी।  बोह  कभी इमोशनल  नहीं रहा। बोह बचपन में ही समझ  गया था कि यह दुनिया एक बाज़ार हैं ,यहाँ रिश्ते की कोई कीमत नहीं हैं। कोई किसी को प्यार नहीं करता हैं। लोग रिश्ता को यूज़ करते हैं और फेंक देते हैं।  
विचित्र  इश्तहार
                 
अतः: ईश्वर ने ना तो उसे रिश्ते दिए  और ना ही उसने नए रिश्ते  बनाने की कोशिश  की। बोह कंप्यूटर प्रोग्रामिंग  में इतना बिजी हो गया कि ना तो उसे किसी रिश्ते की जरूरत  महसूस हुई  और ना ही उसने इसे आवश्यक  समझा। 
                       
कभी कभी उसे लगता हैं कि कम्प्यूटर प्रोग्रामर  ईश्वर तुल्य हैं।  प्लीज  आप इसे घमंड  मत कहिये। जैसे ईश्वर जीबो में समझ पैदा करता हैं ,उनेह कार्य करने की छमता देता हैं। हम भी लगभग ऐसा  ही करते हैं।  हम कम्प्यूटर की भाषा में  मशीनों से जो काम करने को  कहते हैं ,मशीनें  बह काम करती हैं  जिसे कम्प्यूटर की भाषा में  कोडिंग या प्रोग्रामिंग कहते हैं। ए टी एम  मशीन ,आटोमेटिक वाशिंग मशीन, हवाई जहाज का चलना  और रोबोट आदि जिन्होंने  इन्सान  की जिंदगी को सरल और सुगम बना दिया हैं।  सेकड़ो  आदमिओं की जगह एक मशीन काम करती हैं।  यह सब  कम्प्यूटर की  कोडिंग  या प्रोग्रामिंग  द्वारा सम्भव हो पाया हैं। अब रोबोट घर का सारा काम करने ,बैंक का सारा काम करने ,सैन्य  अभियानों  में भाग लेने , दुर्गम और  पहाड़ी स्थानों  पर समान भेजने में  उपयोग किए  जाते हैं।  चिकित्सा के क्षेत्र में भी रोबोट  का विशेष  योगदान हैं।  अभी जल्दी में   चाइना  ने ऐसा रोबोट तैयार किया हैं  जो एक  डॉक्टर  की  तरह  काम करेगा। 
             
कम्प्यूटर प्रोग्रामर और आपके ईश्वर में अंतर  यह हे की बह मानब में भावना  का संचार  करता हैं  और हमारे  रोबोट भावना रहित  होते हैं। यह भावना  जैसे सुख ,दुःख ,प्यार ,नफरत ,हिंसा ,लालच  आदि  की बजह से यह दुनिया एक अच्छी दुनिया नहीं बन पायी।
                
उसने स्वम्ब को एक रोबोट की तरह बना लिया था।  उसे भाबनाओ  और रिस्तो से कोई सरोकार नहीं था।  उसकी जिंदगी  इसी तरह से कट रही थी लेकिन इस इश्तहार ने उसे बेचैन कर दिया।  आखिर  एक बुजुर्ग इस उम्र में  एक जवान बेटे या बेटी को गोद  किंयो लेना चाहता हैं  जबकि बह पूर्ण रूप से आर्थिक रूप से संपन्न हैं।  उसने इस बुजुर्ग  दम्पति  से मिलने का फैसला  किया। 
                  
जब बोह  इस  दम्पति से मिलने गया  और उसने उनसे गोद लेने का कारण  पूछा बुजुर्ग  दंपति  ने बोलना  शुरू किया ,"हमारा  भी एक भरा पूरा परिवार हैं।  दो बेटे हैं। उनको पढ़ा ने में हमने बहुत मेहनत की किन्तु शादी के बाद और अपनी गृहस्थी  हो जाने के बाद बोह  हम को  इग्नोर करने लगे।  उनकी पत्नी  ढंग  से बात  नहीं करती थी। हम लोगो को अपमानित करती थी हमारी मजाक बनाती थी। 
                
हम लोगो को  देख कर उनका   चेहरा   फूला  रहता  था।  हम  लोग अपनी तरफ से काफी  कोशिश करते थे किन्तु बोह बहुत ही बद तमीज़ थी।  उनके अंदर संस्कार  नाम की कोई चीज नहीं थी। हमें तो आज तक  समझ में नहीं आया कि उनेह किस बात का घमंड था।  हम तो अपनी पोती  पो तो की बजह से उनके पास रहने के लिए  आतुर थे ,इस लिए उनके पास रहना चाहते  थे ,किन्तु  एक सम्मान  एक इज्जत के साथ।  जब बोह सम्मान  और इज्जत नहीं मिली ,हमने उनका घर छोड़ने का  फैसला  कर लिया  हालांकि  उनका घर छोड़ते समय काफी कष्ट हुआ था और इसका कारण पोता पोती थे। पर किया कर सकते थे।  फिर हमें तो इस दुनिया से जाना हे ही।  अच्छा ही हैं  जितनी जल्दी  पोती पोते को इस बात का अहसास हो जाय।  जिस तरह से गांधारी  दुर्योधन के कर्मो के कारण उसको को जीत का आशीर्वाद  नहीं दे पाई थी लेकिन उसको  अमरता का आशीर्वाद देना चाहती थी। ठीक उसी प्रकार हम उनको कोई श्राप तो नहीं दे पाए ,लेकिन खुश होने का आशीर्वाद  भी नहीं दे पाए  और शायद उन्हें हमारे आशीर्वाद की जरूरत भी नहीं थी। 
                  
बोह लोग बोले ही जा रहे थे।  कह रहे थे ओल्ड ऐज में दिल बहुत घबराता हैं।  बस इच्छा होती हैं कोई बात कर लें। घर में चलता फिरता कोई  दिखाई  दे जाय तो मन को अच्छा लगता हैं।  अपने अपने नहीं हुए तो क्या हुआ ,गेरो को भी अपना बनाया जा सकता हैं।  इस लिए हमने किसी को गोद लेने का फैसला किया हैं। “
        
रात के दस बज रहे हैं। अभी अभी में उस दम्पति के घर से आया हूं। बड़े प्यार से उन लोगो ने खाना खिला या।  घंटों बात करते रहे।  घर का खाना क्या होता हैं ,घर क्या होता हे और माँ बाप क्या होते हैं ,यह मेंने आज महसूस  किया हैं।  अब में उनके साथ ही रहूँगा यह मेंने तय कर लिया हैं।  बोह मेरे घर पर रहेंगे या में उनके घर पर रहँगा ,इसका फैसला मेंने उनके ऊपर  छोड़ दिया हैं। 




- अशोक कुमार भटनागर
रिटायर वरिष्ठ लेखा अधिकारी 
रक्षा लेखा विभाग , भारत सरकार

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