पचास साल की आधी अधूरी औरत | हिंदी कहानी

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पचास साल की आधी अधूरी औरत जैसे एक फूल महक के बिना और वृक्ष फल के बिना अधूरा हैं। वैसे ही नारी पुरुष के बिना अधूरी है। समाज का विकास उस पक्षी की तरह

पचास साल की आधी अधूरी औरत


जैसे एक फूल महक के बिना और वृक्ष फल के बिना अधूरा हैं। वैसे ही नारी पुरुष  के बिना अधूरी  है। समाज का विकास उस पक्षी की तरह हैं जिसका एक पंख पुरुष हैं और दूसरा नारी। जब तक दोनों पंख समान रूप से मजबूत नहीं होंगे, समाज का विकास असंभव हैं। वो नारी ही थी जिनकी प्रेरणा से कालिदास और तुलसीदास महान बन सके। औरत इस दुनिया में त्याग और तपस्या का दूसरा रूप हैं। भगवान और धरती माँ के बाद अगर किसी में सृजन शक्ति हैं तो वह नारी में हैं। माँ, बहन, बेटी, बहु, पत्नी आदि सब नारी  का ही रूप हैं। इस सृष्टि पर मानव जाति के अस्तित्व का कारण ही नारी हैं। नारी वह प्रकाश हैं जो एक नए जीवन को प्रकाशमान करती हैं। जो संबंधों का पालन-पोषण करती हैं। नारी कितनी महान हैं इसका अंदाजा इसी से लगा लेना चाहिए कि पुरुष की तुलना कभी किसी देव से नहीं होती लेकिन नारी को देवी की उपाधि दी जाती हैं।
               
जीवन में कुछ भी स्थाई नहीं हैं जिस यौवन पर इतना घमंड हैं वह चंद दिनों का मेहमान ही हैं।सुंदरता आपके चेहरे के चमक से नहीं आपके विचारों और आपके व्यवहार से आती हैं। 
          
पुरुष को नारी का अस्तित्व स्वीकारना होगा। जब पुरुष नारी के अस्तित्व को स्वीकार करेगा, तभी नारी को समाज में सही अर्थों में समानता का दर्जा प्राप्त होगा। नारी को अपने लिए स्वयं अन्याय के खिलाफ खड़ा होना होगा। जब नारी स्वावलंबी बनकर आगे बढ़े गी तो एक आदर्श समाज का निर्माण होगा। 
                
नारी की अस्मिता इतनी सस्ती भी नहीं होनी चाहिए कि कोई भी उसकी कीमत लगा ले। समाज में हर बार यह सवाल उठता हैं कि नारी को उसके अधिकार दो, नारी को सम्मान दो। कोई यह सवाल नहीं उठाता हैं कि पुरुष को उसके अधिकार दो। अथवा पुरुष को सम्मान दो। कानून ने महिला और पुरुष को समान अधिकार दिए हैं। महिला एवं पुरुषों का समान अधिकार और समान सम्मान होना चाहिए। महिला आज किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से कम नहीं हैं।                

नारी को आगे बढ़ने के लिए शॉर्टकट तलाश ने बंद करने होंगे। नारी को सबसे पहले अपने सम्मान को स्वीकारना होगा। आज की नारी अबला नहीं हैं। जरूरत हैं नारी को स्वयं को पहचानने की। बदलते समय में नारी की भूमिका भी बदल रही हैं। नए परिवेश में उन्हें अपने कर्तव्यों से मुख नहीं मोड़ना चाहिए।   महिलाओं को आत्मनिर्भर बनना हैं । नारी और पुरुष समाज के दो पहिए हैं। एक पहिया भी अगर कमजोर पड़ेगा तो परिवार की गाड़ी ठीक से नहीं चल पाए गी। महिलाओं को शुरू से दबा या जाता हैं, ताकि वह किसी भी तरह के अन्याय के खिलाफ आवाज ना उठा सकें। आज महिलाएं भले ही अपना परचम लहराएं, पर उन्हें घर में ही वह सम्मान नहीं मिलता जो उन्हें मिलना चाहिए। नारी को लेकर आज तक की सबसे बड़ी विडम्बना यह हैं कि समाज नारी को एक बंधी-बंधाई दृष्टि से ही देखता हैं. अशिक्षित, पिछड़ा और ग्रामीण वर्ग जहां उसे एक पर्दे में सजा कर रखने वाली रचना समझता हैं वहीं पढ़ा लिखा और बुद्धिमान समझा जाने वाला शहरी वर्ग इसे पुरुष के समकक्ष बनाना चाहता हैं. यह दोनों नजरिया ही स्त्री से उसकी मौलिकता छीनते हैं. और दुःख की बात यह हैं कि आज स्त्री भी अपनी मौलिकता को छोड़ अपने को पुरुषों से श्रेष्ठ बनाना ही अपनी जीत समझती हैं| किसी ने कहा हे की जब पुरुष नारी के गुण धारण करता हैं तो देवता बन जाता हैं और जब नारी  पुरुष  के गुण धारण करती  हैं तो राक्षसी  बन जाती हैं। 
पचास साल की आधी अधूरी औरत | हिंदी कहानी
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प्रेम, ममत्व, सुंदरता, आकर्षण, कोमलता, भावुकता, सहजता और सौन्दर्यबोध यह सब नारी को प्रकृति की देन हैं. लेकिन नारी की इन विशेषताओं का लोप हो जाता हैं पुरुष से उसकी तुलना में. हां यह बात सही हैं कि समाज में रहने वाले हर लिंग को सामान अवसर मिलें, लेकिन यह कहां तक जायज़ हैं कि उन अवसरों को पाने के लिए एक लिंग विशेष की विशेषताओं को सब के लिए मानदंड बना दिया जाए. क्या एक नारी प्रेम के बल पर अच्छी प्रशासक नहीं हो सकती? क्या वह अपनी ममता के बल पर अच्छी नेता नहीं बन सकती? मैं कहूंगा बिलकुल बन सकती हैं. आप चाहे तो वर्तमान देख लें या इतिहास खंगाल ले आपको अनेक उदाहरण मिल जायें गे| क्या द्रोपदी का प्रेम ही आताताई कौरवों के नाश का कारण नहीं बना? क्या जीजा बाई की ममता ने ही बिखरे मराठों को एक नहीं किया और क्या जय ललिता बिना ममत्व के इतनी बड़ी नेता होती की उनके देहावसान से दुखी लोग अपनी जान तक दे जाते?
                   
अगर आप अपनी इच्छा से ही अकेले रह रहे हों तो भी समाज हैं कि बस पीछे पड़ ही जाता हैं. आस-पड़ोस में यदि कोई लड़की ज्यादा समय तक अविवाहित रहे या तलाक बाली औरत अकेली रहे तो पड़ोसियों में काना फूसी का दौर आरंभ होने में कितनी देर लगती हैं| इन्हें बस कोई चट्पटी न्यूज चाहिए होती हैं और इससे मजेदार खबर क्या होगी कि फलाँ पड़ोसी की लड़की ना जाने क्यों अभी तक बिना शादी के हैं? अरे बोह औरत तलाक सुधा हैं।  ना इधर चैन ना ही उधर. ऐसे में क्या करे कोई |जब कि भा गम-भाग वाली जिंदगी में कई बार तो वक्त की कमी के कारण और कभी परिस्थितिवश अकेले जीवन जीना मजबूरी बन जाए |              
                   
परिवार वह संस्था हैं जहां औरतों की प्रतिभा चूल्हे-चक्की में व्यर्थ होती हैं और पुरुष की क्षमताएं पारिवारिक जिम्मेदारियां उठाने में जाया होती हैं. यह बात स्थान-काल-परिस्थिति के संदर्भ में कही गई थी. लेकिन आज की स्थितियां भिन्न हैं. शादी के  बगैर भी कंपेनियनशिप में रहा जा सकता हैं. जरूरी नहीं कि सिंगल लोग गैर-जिम्मेदार हों या शादी से भागते हों| यह भी जरूरी नहीं कि महज़ इसलिए शादी कर लें कि शादी करनी हैं |शादी प्यार के लिए की जाती हैं और यदि प्यार न मिले तो शादी का कोई मतलब नहीं |घर-परिवार-समाज के लिए तो शादी की नहीं जा सकती |अकेले लोग भी खुश रह सकते हैं | दोस्त बनाए, सामाजिक जीवन में व्यस्त रहें, अपने शौक पूरे करें|
             
विदेशों में लोग अपने ढंग से अकेलेपन का आनंद लेते हैं | वे दुनिया भर में घूमते हैं, रचनात्मक कार्य करते हैं, रेस्तराँ में अकेले खा सकते हैं| भारत में एक साथी पता नहीं क्यों जरूरी माना गया हैं | शादी हो तो अच्छा हैं, लेकिन न हो तो इसमें बुरा कुछ नहीं |सिंगल रहने के बहुत से फायदे भी हैं। 
                     
इसी उधेड़बुन में बोह अर्द्ध निद्रा  में सोफे पर लेटी हुई सोचे जा रही थी। उसकी उम्र लगभग पचास-पचपन  साल की हो गयी हैं। बोह अकेली हैं। बोह तलाक  सुधा    हैं या नहीं ,उसे भी पता नहीं हैं।  जब उसने जबानी की देहलीज पर कदम रखा था ,प्रेम के बीज उसके जीवन में भी अंकुरित हुए थे। उस समय उसकी उम्र लगभग चौबीस साल की थी  और बह देहरादून  के एक प्रतिष्ठ  कॉलेज में मैथमैटिक्स  की प्रोफेसर थी। एक दिन बोह  अपनी सहलिओं के साथ ऋषिकेश  घूमने गयी। अचानक बंहा बहुत तेज बारिश होने लगी।  बह भीग गयी थी। बह तेजी से गंगा नदी के किनारे चल रही थी। उसे देहरादून के लिए बस पकड़ना था।  इसी आपा धापी  में  उसका  पैर  फिसल  गया और बह  सीधे गंगा में गिर गयी। उसे लगा की अब बोह मर जायेगी।  तभी झराप की आवाज आयी और बह किसी जबान  लड़के की बाँह में थी और उसके सीने से बुरी तरह से चिपकी हुई थी। बह उसे किनारे लेकर आया और बहुत देर तक उसकी कमर सहलाता रहा। बह भी कोई ऐतराज ना कर सकी।  अचानक कई आबाजे एक साथ आयी ,"भाई  ,बहिन जी ठीक हैं।  आप छोड़ दे। काश हमारी किस्मत भी ऐसी होती। हम भी किसी सुंदरी को नदी से निकालते । " बह एक दम शर्म   से    उठ  गयी।  पता चला की बह  आई  एम ए के आर्मी ऑफिसर थे  और स्विमिंग के लिए गंगा नदी आये थे  और जिसने उसे  डूबने से बचाया था ,उसका नाम बिशाल था।
                    
बह और बिशाल मिलते रहे और हमने शादी करने का फैसला कर लिया।तभी कारगिल युद्ध शुरू हो गया और उसकी पोस्टिंग  कारगिल हो गयी। बिशाल मुझसे यह  कह कर गया था की बह कारगिल  युद्ध  के बाद शादी कर लेगा । किन्तु बह आ ना सका। उसे बहुत दिन बाद पता चला की बह कारगिल  युद्ध में शहीद हो गया।  उसके बाद बह बहुत डीप्रैशन  में आ गयी।  घर बाले शादी का दबाब बनाने लगे। शादी हुई, लेकिन  पति से तालमेल नहीं बैठा और वह चला गया |  बह तलाक  लेती तो किससे ?
                   
तब से न तो कोई आया और न उसने  ऐसी कोशिश की| फिर से घर बसाने जैसी बात दिल में आई ही नहीं।  कामकाज की आपाधापी में जिंदगी के पचास-पचपन साल यूं बीते कि कुछ पता न चला|अपने ढंग से जीती रही  हूं| न तो कोई बंधन , न किसी के प्रति जवाबदेही। अपनी शर्तो पर जीना चाहा| लिहाजा कभी तब से न तो कोई आया और न उसने  ऐसी कोशिश की| फिर से घर बसाने जैसी बात दिल में आई ही नहीं।  कामकाज की आपाधापी में जिंदगी के पचास-पचपन साल यूं बीते कि कुछ पता न चला|अपने ढंग से जीती रही  हूं| न तो कोई बंधन , न किसी के प्रति जवाबदेही। अपनी शर्तो पर जीना चाहा| लिहाजा कभी बह नहीं समझ सकी  दूसरे को, तो कभी सामने वाला नहीं समझ सका उसको ।  अकेले रहने की सुविधा यह हैं कि किसी के प्रति जवाबदेही नहीं होती | लेकिन यही आजादी असुविधा भी बनती हैं, क्योंकि अपनी इच्छा से जीने की भी एक सीमा होती हैं।  आज यह जिंदगी अकेली लगती हैं और अधूरी लगती हैं। 
            
इन्ही बातों को सोचते हुए उसे पता नहीं कब गहरी नींद आ गयी। दर बाजे  पर लगातार घंटी बज रही थी।  बह हर बड़ में ऊटी और दर बाजा खोला। उसने देखा की सामने पचास-पचपन  का एक व्यक्ति खड़ा हैं। चेहरा मासूम हे और उस पर बड़ी बड़ी दाढ़ी हे।  बह लगातार  मुस्करा  रहा हैं।  बह अपलक नज रो से उसको देखती रही।  उसे पता ही नहीं चला की उसको दर बाजे पर खड़े हुए बहुत समय हो गया हैं।  सामने बाले ने कहा ,"अंदर नहीं  बुलाओगी  " तब बह चौकी।  यह बिशाल की आवाज थी।  बह उसे अंदर लेकर आयी।  पानी पिला या।  बिशाल ने बताना शुरू किया। युद्ध में बह घायल हो ।युद्ध में बह घायल हो गया था और पाकिस्तानी सेना ने बेहोशी की हालात में उसे पकड़ लिया।  बह को मा में चला गया था।  महीनों बाद उसे होश आया  और अपने आपको पहचान सका। फिर पाकिस्तानी सेना ने उस को छोड़ दिया। भारत आकर तभी से तुमको ढूंढ रहा हूं।  जगह जगह  तुमको ढूंढ रहा  हूं। अब जाकर तुम मिली हो। बह बोले जा रहा था ," मेंने तय कर लिया था की बह शादी करेगा तो तुमसेही  ,नहीं ऐसे ही बगैर शादी के मर जाएगा। "बह उसकी बांह में कसती जा रही हैं और उसके सीने से सिमटी जा रही हैं।  अब बह पचास  साल की  आधी अधूरी  औरत  नहीं हैं।                                      




                                        - अशोक कुमार भटनागर
                                        रिटायर वरिष्ठ लेखा अधिकारी 
                                 रक्षा लेखा विभाग , भारत सरकार

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