बदलते भारत की असली तस्वीर

SHARE:

बदलते भारत की असली तस्वीर घर की दहलीज़ से आगे निकल कर और सभी क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाकर लड़कियों ने यह साबित कर दिया है

जंजीरों को तोड़ना जानती हैं लड़कियां


देश के इतिहास में पहली बार एक हज़ार से अधिक लड़कियों ने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी यानि एनडीए की परीक्षा पास कर अपने जज़्बे और हुनर को साबित कर दिया है. उन्होंने यह संदेश भी दे दिया कि यदि अवसर मिले तो वह हर उस क्षेत्र में अपना लोहा मनवा सकती हैं जिसे केवल पुरुषों के लिए ख़ास समझा जाता है. हालांकि एनडीए में उनका प्रवेश इतना आसान नहीं था. पिछले कई वर्षों से लंबी क़ानूनी लड़ाई के बाद उन्हें यह अवसर प्राप्त हुआ है. वैसे अभी भी देश के इस प्रतिष्ठित रक्षा अकादमी में उन्हें बराबरी की संख्या में अवसर नहीं मिले हैं, लेकिन अभी यह शुरुआत है और बहुत जल्द उन्हें यहां भी लड़कों की तरह पर्याप्त संख्या में प्रवेश के अवसर प्राप्त हो जायेंगे. अपने संघर्ष और क्षमता से लड़कियों ने यह साबित कर दिया है कि ज़मीन की गहराइयों से लेकर आसमान की ऊंचाइयों तक ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है जिसे वह संभाल नहीं सकती हैं.

लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर क्या कारण है कि लड़कियों को बार बार अपनी क्षमता साबित करने के लिए लंबी जद्दोजहद करनी पड़ रही है? उन्हें बराबरी का दर्जा पाने के लिए कभी आवाज़ें बुलंद करनी होती है तो कभी कानून का सहारा लेना पड़ता है? 21 वीं सदी के इस दौर में हम खुद को वैज्ञानिक रूप से विकसित कहते हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि अभी भी हमारा समाज मानसिक रूप से पूरी तरह विकसित नहीं हुआ है. उसे यह समझने में कठिनाई होती है कि लड़के और लड़कियों के बीच केवल शारीरिक अंतर है. आज भी समाज का एक वर्ग ऐसा है जो लड़के और लड़कियों के बीच के अंतर को ख़त्म करना स्वीकार नहीं कर पा रहा है. उसे महिलाएं घर की चारदीवारी में कैद रहना और अधिकारों से वंचित रहना ही स्वीकार है. जबकि केवल वर्तमान में ही नहीं बल्कि इतिहास में ऐसे कई दौर गुज़रें हैं जहां महिलाओं ने घर से लेकर बाहर तक के समाज को सफलतापूर्वक संचालित कर अपनी योग्यता का परिचय दिया है.

दरअसल हमारा समाज जेंडर भेदभाव यानी लैंगिक असमानता को सच मानता है. यह वह सोच है जहां लड़के और लड़कियों के बीच केवल शारीरिक ही नहीं बल्कि उसके पहनावे और जीवन गुज़ारने की पद्धति के आधार पर भी असमानता की एक लकीर खींच दी जाती है. शहरों की अपेक्षा देश के दूर दराज़ ग्रामीण क्षेत्रों में इस प्रकार की विचारधारा बहुत अधिक गहरी है. बात चाहे शिक्षा के क्षेत्र में हो या किसी भी अन्य फील्ड में, लड़कियों की तुलना में लड़कों को अधिक प्राथमिकता दी जाती है. उत्तराखंड के बागेश्वर जिला स्थित गरूड़ ब्लॉक का जखेड़ा गांव भी लैंगिक समानता में पिछड़ा नज़र आता है. पहाड़ी क्षेत्रों से घिरे इस गांव की आबादी लगभग 600 के करीब है. आर्थिक रूप से पिछड़ा यह गांव शिक्षा के क्षेत्र में भी बहुत अधिक समृद्ध नहीं है. गांव की अधिकतर आबादी कृषि पर निर्भर है. सरकारी सेवा में उपस्थिति लगभग नगण्य है. किसानी के अलावा अधिकतर युवा सेना में कार्यरत हैं. वहीं 12 वीं के बाद ज़्यादातर लड़कियों की शादी कर दी जाती है. ऐसे में उच्च शिक्षा के क्षेत्र इस गांव की बहुत कम लड़कियां पहुंच पाती हैं.
जंजीरों को तोड़ना जानती हैं लड़कियां

ऐसा नहीं है कि इस गांव की लड़कियों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने और आगे बढ़ने में कोई दिलचस्पी नहीं है. गांव की ऐसी बहुत लड़कियां हैं जो न केवल पढ़ने में तेज़ हैं बल्कि कविता और चित्रकारी में भी गज़ब की महारत रखती हैं. लेकिन उन्हें वह अवसर प्रदान नहीं किया जाता है जिसकी वह वास्तविक हक़दार हैं. बल्कि इसके विपरीत उन्हें बचपन से मानसिक रूप से इस बात के लिए तैयार किया जाता है कि वह पराई हैं और उन्हें दूसरों के घर जाना है. जहां उन्हें स्वयं को एक आदर्श बहू साबित करने के लिए अच्छा खाना पकाना आना चाहिए. बच्चों की ज़िम्मेदारी उठाने के लिए तैयार रहनी चाहिए. ऐसे में 12 वीं तक की पढ़ाई काफी है. माता पिता उसके लिए उच्च शिक्षा पर पैसे खर्च करने की जगह उसके लिए दहेज़ का सामान जुटाने को प्राथमिकता देते हैं. 

अलबत्ता जो लड़कियां इन संकीर्ण मानसिकता को तोड़ कर आगे बढ़ने का प्रयास करती हैं, उसकी मदद करने की जगह पूरा समाज उसे बागी और कई लांछनों से नवाज़ देता है. गांव का अन्य परिवार अपनी लड़कियों को उससे दूर रहने की सलाह देना शुरू कर देता है. उसके संघर्ष और क्षमता को बिगड़ी हुई लड़की के रूप में पहचान दी जाती है. हालांकि कुछ परिवार ऐसा भी है जो शिक्षा के महत्त्व को प्राथमिकता देता है और घर की लड़कियों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने और उन्हें अपने सपनों को साकार करने में मदद करता है, लेकिन अक्सर ऐसे परिवार को समाज द्वारा प्रताड़ना सहनी पड़ती है. कुछ परिवार टूट जाता है और समाज के दबाव में 12वीं या स्नातक के बाद अपनी बेटी की शादी करने पर मजबूर हो जाता है.

बात केवल शिक्षा तक ही सीमित नहीं है बल्कि संस्कृति के नाम पर भी लड़कियों पर ज़ुल्म किया जाता है. किशोरावस्था में पहुंचने के बाद माहवारी के दिनों में उसे छुआछूत के नाम पर परिवार से अलग गौशाला में डाल दिया जाता है. जहां सवेरे उठकर उसे नदी में स्नान करने पर मजबूर किया जाता है. यह प्रक्रिया उसे दिसंबर जैसे कड़ाके की ठंड में भी निभानी होती है. अफ़सोस की बात यह है कि पूर्वजों से चली आ रही इस कुसंस्कृति को श्रद्धा के साथ पीढ़ी दर पीढ़ी महिलाएं ही आगे बढ़ा रही हैं. दरअसल जागरूकता की कमी के कारण लड़कियां इस परंपरा को निभाने पर मजबूर हैं. लड़की को पराई समझने और उसके साथ पराया जैसा व्यवहार करना ही, समाज में लैंगिक विषमता का जीता जागता उदाहरण है, जिसे हर हाल में समाप्त करने की ज़रूरत है. यह वह सोच है जो समाज के साथ साथ लड़कियों की क्षमता को भी आगे बढ़ने से रोक रहा है. 

बहरहाल घर की दहलीज़ से आगे निकल कर और सभी क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाकर लड़कियों ने यह साबित कर दिया है कि अब समाज को अपनी सोच बदलने की ज़रूरत है. पराई के नाम पर उसके पैरों में ज़ंज़ीर डालने की बजाए उसके हौसले को उड़ान देने की ज़रूरत है. अब वह दौर आ चुका है जहां रूढ़िवादी संस्कृति की दुहाई देकर ग्रामीण क्षेत्रों की लड़कियों की प्रतिभा को भी रोकना नामुमकिन है क्योंकि वह ऊंची उड़ान भरना सीख गई है. कलम और स्केच के माध्यम से भी अपने जज़्बात को उबारना सीख गई है. अपने सपनों को साकार करने की राह पर चल पड़ी है. अब लड़कियां घिसी पिटी सोच और सदियों से चली आ रही रूढ़िवादी परंपरा से आगे निकल कर ज़ंजीरों को तोड़ना जानती हैं. यही है बदलते भारत की असली तस्वीर. (चरखा फीचर)




- चांदनी परिहार
जखेड़ा, गरूड़,उत्तराखंड

COMMENTS

Leave a Reply: 1
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका