नालायक

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यह एक ऐसे लड़के की कहानी है, जो विशेष अध्ययन-मनन न कर सका I फलतः तथाकथित सभ्य परिवार और समाज के द्वारा ‘नालायक’ की संज्ञा से विभूषित कर दिया गया I

नालायक


यह एक ऐसे लड़के की कहानी है, जो विशेष अध्ययन-मनन न कर सका I फलतः तथाकथित सभ्य परिवार और समाज के द्वारा ‘नालायक’ की संज्ञा से विभूषित कर दिया गया I अतः घर के भी सभी लोग उसे ‘नालायक’ या ‘नालायकवा’ नाम से ही सम्बोधित करते हैं I लेकिन जहाँ उसका शिक्षित अफसर बड़ा भाई सपत्नी घर की जिम्मेवारियों से मुँह मोड़े रहता है, वहीं वह तथाकथित ‘नालायक’ घर की सभी जिम्मेवारियों को वहन करते रहता है I क्या फिर भी वह ‘नालायक’ ही है ? 


पात्र-परिचय

 जयराम: 65 वर्षीय वृद्ध 

कौशल्या: 60 वर्षीय वृद्धा 

        बुद्धिराम:         30 वर्षीय भलेमानस 

 नालायक:   25 वर्षीय युवक 

        कंचना:       25 वर्षीय 


(एक साधारण घर के आँगन का दृश्य I जिसमें दोनों ओर दो दरवाजें, भीतर कमरों में जाने के लिए खुलते हैं I एक युवक नाम ‘नालायक’ एक कुर्सी पर आराम से बैठा अपने मोबाइल पर कुछ कर रहा है)  


नेपथ्य से: अरे नालायकवा ! अरे नालायकवा ! कहाँ मर गया है ? अरे, नालायकवा I 


बुद्धिराम: (प्रवेश करते हुए) अरे नालायकवा ! तू यहाँ बैठा मोबाइल पर गेम खेल रहा है और मुझे एक पार्टी में जाने के लिए देर हो रही है I दौड़ के जा, और देख तो, धोबी मेरे कपड़े आयरन कर दिया है कि नहीं I अगर नहीं किया हो तो आयरन करवाकर तुरंत ही लेते आ I (कुछ खिन्नता से) कुछ घर-द्वार का भी चिंता-फ़िक्र किया करो I दिन भर बैठे मोबाइल चलता रहेगा I अब उठेगा भी ? उठ जा I 


नालायक: (अनमने से) भईया, जाता हूँ न I (गिड़गिड़ाते हुए) भईया ! सौ रूपये दो न I मुझे भी अपने एक दोस्त की शादी की पार्टी में जाना है I 


बुद्धिराम: (खिन्नता से) जब देखो तो पैसा-पैसा किये रहता है I पिछले सप्ताह तो तुझे सौ रूपये तो दिए थे I सब खर्च कर डाला ? जा I अभी मेरे पास एक फूटी कौड़ी भी नहीं है I चल जा I और मेरे कपड़े लेते आ I


नालायक: (रुष्ट होकर) जाता हूँ I (प्रस्थान)


बुद्धिराम: काम के न काज के दुश्मन आनाज के I माथे पर बोझ की तरह पड़ा रहता है I दिन भर आवारा गर्दी करता रहता है I बदनामी तो हमारी होती है I 


जयराम: (प्रवेश करते हुए) क्या हुआ बुद्धिराम I कौन तुम्हारे माथे पर बोझ की तरह पड़ा हुआ है I और किस बात की बदनामी होती है, तुम्हारी ?


बुद्धिराम: जाने भी दीजिए I क्या करियेगा सुन कर I आपने ही नालायकवा को बिगड़ कर रख दिया है I उसे सर पर चढ़ाये रहते हैं I कुछ काम-धाम करना नहीं है I जब देखो पैसा-पैसा माँगते ही रहता है I


जयराम: अच्छा I अब समझा I नालायकवा की बात करते हो I अरे ! तुम्हारी इतनी बड़ी कम्पनी है, उसी में उसे कोई भी काम पर रखवा देते I घर में दो पैसे आ जाते और वह भी लगा रहता I अब उसी की एक चिंता लगी रहती है I अच्छी तरह से पढ़ाई-लिखाई की होती, तो उसे भी आज कोई अच्छी नौकरी मिल जाती I तुम्हे अच्छी शिक्षा देने की चाहत में उसको आदमी बनाना ही भूल गया I और उसका तो मन भी तो पढ़ाई-लिखाई में न लगा I अब करे भी तो क्या करें ?


बुद्धिराम: ऐसे अनपढ़ गवाँर नालायक के लिए मेरी कम्पनी में कोई भी जगह नहीं है I और फिर मेरे स्टाफ भी मुझे क्या कहेंगे ? मुझे अपने स्टाफ के सामने हमेशा लज्जित होना पड़ेगा I  (प्रस्थान)


जयराम: घर में सब का बिन पैसे का नौकर बने रहने के लिए भी तो इस नालायक की जरुरत है ही I (चिंतामग्न कुर्सी पर बैठ जाते हैं) 


नालायक: (एक पैकेट में कुछ कपड़े लेकर नालायक का प्रवेश) भईया ! यह लीजिए I ले आया I आपके कपड़े I 


जयराम: वहीं से चिल्ला क्या रहा है ? जा उसके कमरे में दे आ I दिन भर आवारागर्दी करता रहेगा I जा हट, मेरी नजरों के सामने से I अपना मनहूस चेहरा मुझे मत दिखा I (नालायक का प्रस्थान) 


कौशल्या: (प्रवेश करते हुए कुछ कठोर आवाज में) क्यों न लगेगा ? मेरे बेटे का चेहरा आपको मनहूस I घर-द्वार का सारा काम तुम्हारा वह अफसर बेटा बुद्धिराम ही तो करके जाता है ? जिस दिन मेरा यह बेटा घर पर न रहे, उस दिन आपको भोजन तक नसीब न होगा I उस लाट साहब और लाट साहिबा को तो बिस्तर पर ही पड़े-पड़े समय पर सब फरमाइश पूर हो जानी चाहिए I कौन सामान कहाँ से कैसे आएगा, उसकी उन्हें क्या चिंता ? महिना की शुरुआत में हाथ पर कुछ कागज गिनकर रख दिए, बस I और फिर बिस्तर पर पड़े-पड़े हर चीज की फरमाइश I लगता है, यह घर नहीं है, कोई होटल है I कोई धर्मशाला है I और नौकर बन कर मेरा यह बेटा हमेशा हाथ बांधे खड़ा रहता है I (नालायक का प्रवेश I एक ओर बैठकर फिर मोबाईल पर कुछ करने लगता है)


जयराम: तब इसको कोई काम-काज करने के लिए कुछ बोलती क्यों नहीं ? मैंने तो कई बार बुद्धिराम को इसके लिए कोई काम काज देखने के लिए कहा है I ई नलायकवा के लायक कोई काम होने पर वह जरूर इसे कोई न कोई नौकरी पर लगा देगा I 


कौशल्या: देखते रहिये मुंगेरी लाल के सपने I अगर नौकरी पर लगा देगा, तो उसका और उसकी बीवी का बिन पैसे का गुलाम कहाँ से आवेगा ? बुद्धिया का साला, जो कुछ न जनता है, आते ही उसको बुद्धिया ने नौकरी पर लगावा दिया I आज भी उसके ससुराल से अगर कोई आ जाए, फिर तो वो जो कहे, तुरंत होगा I न करेगा, तो साहिबा  रुठ कर बैठ जायेगी I (प्रस्थान)


जयराम: (कुछ दुखी मन से) अरे नालायकवा ! तू कुछ काम-धाम क्यों नहीं देखता है ? कब तब अपने बड़े भाई के माथे पर बैठा रहेगा और सबको जलील करते रहेगा ? 


नालायक: करूँगा न, जरूर करूँगा I फिर उस दिन से आप भी मुझे नालायकवा कहना भूल जाएँगे I 


जयराम: चल भाग यहाँ से I जा, मेरे लिए ये कुछ दवाइयाँ लेते आ I (कागज लेकर नालायक का प्रस्थान) पता नहीं, वह दिन मुझे कब देखने को मिलेगा I


(दृश्य परिवर्तन)

नेपथ्य से: कुछ दिन बाद I 

(मंच पर प्रकश मद्धिम I एक खाट पर जयराम लेटे हुए I अचानक उठ कर जोर-जोर से खाँसने लगते हैं I खटिया से उठते ही फर्श पर गिर पड़ते हैं I मुँह से अस्पष्ट आवाज I कुछ उलटियाँ होने के लक्षण I आवाज सुनकर कौशल्या का घबराहट के साथ प्रवेश)


कौशल्या: क्या हुआ आपको ? क्या हुआ ?


जयराम: अ ........ अ ........ ब ....... ब ........ (अस्पष्ट भाषा)


कौशल्या: हे भगवान् I ये क्या हो गया इनको ? ए बुद्धिराम I ए नालायकवा I अरे सब जल्दी आओ I (रोते हुए) देखो तो इनको क्या हो गया ? हे भगवान् I


नालायक

बुद्धिराम:
(शयन कपड़ों में प्रवेश) क्या हुआ माँ ? क्या हुआ ? 


नालायक: क्या हुआ माँ ? बाबूजी ! क्या हुआ आपको ?


कौशल्या: देख बुद्धिया I देख नालायकवा I तेरे पिताजी को क्या हो गया ? (बुद्धिराम पिता के पास जाकर उन्हें सहारा देता है I उसकी पत्नी कंचना का प्रवेश I चहरे पर खिन्नता I नालायक जयराम को अपनी गोद में उठा कर खाट पर लिटा देता है )


बुद्धिराम: पिताजी ! घबराइए नहीं, मैं हूँ न I 


कौशल्या: बुद्धिया जल्दी कुछ कर I लगता है, इनको हार्ट अटैक हुआ है I जल्दी से इन्हें अस्पताल ले चलो I 


नालायक: हाँ भईया I जल्दी ही कुछ कीजिए I 


बुद्धिराम: हाँ, हार्ट अटैक ही है I मैं अभी गैराज से गाड़ी निकलता हूँ I (प्रस्थान करना चाहता है)


कंचना: कहाँ चले गाड़ी निकलने के लिए, देखते नहीं, बूढा वोमेटिंग पर वोमेटिंग किये जा रहा है I पूरी गाड़ी ही गंदी हो जाएगी I आज ही शाम को 1200 रूपये दे कर पूरी गाड़ी धुलवाई गई है I कल ही मेरी सहेली की मैरेज अनवर्सरी (marriage anniversary) पार्टी में जाना है I गाड़ी मत निकालो I 


बुद्धिराम: (लौट कर) हाँ माँ I क्या है कि गाड़ी में आज पेट्रोल नहीं है I 


कौशल्या: कुछ भी कर I पर जल्दी इनको अस्पताल ले चल I       


बुद्धिराम: मैं अभी कोई टैक्सी व्यवस्था करके आता हूँ I (प्रस्थान और उसके पीछे कंचना का भी प्रस्थान)


कौशल्या: नालायक बाबू ! टैक्सी लाने में बुद्धिया तो बड़ी ही देर कर रहा है I जा बेटा ! तू भी देख कर तो आ I 


नालायक: नहीं माँ I अब ज्यादा देर करना उचित नहीं है I तुरंत ही बाबूजी को अस्पताल ले चलना ही होगा I 


कौशल्या: हाँ बेटा I 


नालायक: माँ, मैं बाबूजी को अस्पताल लिए जाता हूँ I (जयराम को बड़ी मसकत से अपने पीठ पर कौशल्या की सहायता से एक कपड़े से बाँध लेता है) माँ ! मैं बाबूजी को अस्पताल लिए जाता हूँ I तुम पीछे से आओ I बुद्धिराम: (प्रवेश करते हुए) अरे नालायक ! यह तू क्या कर रहा है ? भला मरीज को क्या ऐसे कोई अस्पताल ले जाता है I तू तो इन्हें अब ही मार ही डालेगा I मैं टैक्सी वाले से अभी बात करके आया हूँ I अभी वह आधे घंटे में आ ही रहा है I 


नालायक: परन्तु भईया, आधे घंटे तक बाबू जी समय न देंगे I टैक्सी का इंतजार करना मुनासिब न होगा I आप उस टैक्सी से बाद में अस्पताल आइए I मैं बाबूजी को लिये चलता हूँ I (प्रस्थान I कंचना का प्रवेश)


कौशल्या: मैं भी आती हूँ, बेटा I (प्रस्थान)


बुद्धिराम: इस नालायक को कुछ भी बुद्धि-उद्धि है ही नहीं I ऐसे ही मरीज को कंधे पर अस्पताल लिये जा रहा है I कोई देखेगा तो क्या कहेगा ?


कंचना: उसे हमारी इज्जत और स्टैट्स की थोड़े ही कोई परवाह है I जो मन में आता है, वही करता है I अपने मन का मालिक बना फिरता है I  


बुद्धिराम: मैं भी अस्पताल जाता हूँ I 


कंचना:नालायकवा तो गया ही है I इतनी रात गए अब आप अस्पताल जा कर क्या करेंगे ? जो कुछ भी करना है, वह डाक्टर ही तो करेगा I अब सबेरे अस्पताल जाइएगा I चलिए आराम किया जाय I (जम्हाई) अब तो नींद भी पूरी न होगी I (कंचना का, फिर बुद्धिराम का प्रस्थान)


(दृश्य परिवर्तन) 

नेपथ्य से: कुछ दिनों के बाद I जयराम स्वस्थ होकर घर आ गए हैं I


(जयराम आराम कुर्सी पर बैठे हुए I कौशल्या पास बैठी सूप में चावल बिनती हुई I नालायक दरवाजे के पास बैठा मोबाइल पर खेलते हुए)


जयराम: अरे नालायकवा I जा, जरा आज का अखबार तो लेते आ I 


कौशल्या: आप भी इसे नालायक ही कहते हैं और नालायक ही समझते हैं I बुद्धिया को तो कुछ कहते नहीं हैं I यह बेचारा दिन भर भागे फिरता है I फिर भी घर के सब लोग इसे नालायकवा ही कहते-फिरते रहेंगे I तो दुनिया वाले इसे नालायक क्यों न कहेंगे ? उस दिन अगर आपका यह नालायक बेटा आपको अस्पताल में बैल बनकर न पहुँचाता, तो आप आज इस तरह से इसे नालायकवा भी न कह रहे होते, समझे I जब देखो तो नालायक, जब सुनो तो नालायकवा I 


जयराम: (मुस्कुराते हुए) अरे कौशल्या ! तुम क्या जानो ? जब लोग इसे ‘नालायकवा’ कहते हैं, तब उस समय मेरे हृदय पर कितनी चोट लगती है I मेरा कलेजा फट-सा जाता है I लेकिन मैं हृदय थामे रह जाता हूँ I पर मैं इसे बुद्धिराम तो कदापि नहीं कह सकता I और न चाहता ही हूँ कि यह कभी बुद्धिराम के जैसा क्रूर हृदय का असामाजिक, बुद्धिहीन और स्वार्थी बने, जिसके हृदय में केवल अपनी ठाट-बाट और शानों-सौकत को स्थान प्राप्त हो, पर अपने माँ-बाप, घर-परिवार और मानवता के लिए रंच-मात्र भी जगह न हो I (रूक कर) मेरा यह बेटा भले ही दुनिया की निगाह में नालायक है, परन्तु मेरे हृदय-भावों का उतराधिकारी यही है I यही नालायकवा ही है I और सदैव रहेगा I  


नालायक: बाबू जी ! यह आप क्या कह रहे हैं ? (जयराम से लिपट कर) मैं तो आपका बेटा नालायक हूँ I किसी योग्य नहीं हूँ, बाबू जी I ऐसा प्रेम मत दिखलाइए बाबूजी I मैं प्रेम-भाव सहन नहीं कर सकता I सभी कोई मुझसे नफरत करते हैं I आप भी मुझसे नफरत कीजिए I यही मेरी नियति है I मुझे नालायकवा कहिए I मुझसे घृणा कीजिए I पर प्रेम मत दिखाइए I मैं सचमुच आपका नालायक बेटा हूँ, बाबू जी I नालायक I 


कौशल्या: (भर्राए गले से जयराम के पास आकर) फिर भी आप इसे ही नालायक कहते हैं ?


जयराम: अरे पगली ! मैं मन से इसे कहाँ नालायक कहता हूँ, यह तो मेरे बाहरी शब्द हैं I यह नालायक नाम ही तो इसे जिम्मेवार बना दिया है I इस पर तो मुझे इतना भरोसा है, जितना अपने आप पर नहीं है I मैं नहीं चाहता हूँ कि यह भी बुद्धिराम कहलाकर उस बुद्धिराम की तरह ही स्वार्थी बन जाए I 

नालायक: बाबू जी ! मैं तो अब तक समझता था कि आप भी मुझसे नफरत ही करते हैं, जैसे कि अन्य लोग मुझे से नफरत करते हैं I 


जयराम: और सुनो कौशल्या ! मुझे  अपने पर जितना भरोसा नहीं है, उससे ज्यादा भरोसा मुझे इस काबिल नालायकवा पर है I हम दोनों का पार लगाने वाला भी वह बुद्धिराम कदापि नहीं है, बल्कि यही मेरा बेटा नालायकवा ही होगा I हे प्रभु ! अगर ऐसे काबिल बेटे को नालायक कहा जाता है, तो प्रभु ! मैं तुमसे यही प्रार्थना करता हूँ कि बुद्धिराम की तरह तथाकथित योग्य बेटा किसी को न देना, बल्कि मेरे इस नालायक बेटे की तरह ही सबको ऐसा ही नालायक कहलाने वाला ही बेटा देना I नालायक कहलाने वाला ही बेटा देना I  


नालायक: बाबू जी I (लिपटकर रोते हुए)


(मंच पर सभी पात्र स्थिर हो जाते हैं)

      (पूर्ण)      



श्रीराम पुकार शर्मा,

24, बन बिहारी बोस रोड, 

हावड़ा – 711101,
(पश्चिम बंगाल)

सम्पर्क सूत्र – 9062366788.

ई-मेल सूत्र – rampukar17@gmail.com 

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