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कर्मवीर कविता अयोध्या सिंह उपाध्याय
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कर्मवीर कविता की व्याख्या भावार्थ
देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं
रह भरोसे भाग्य के दुख भोग पछताते नहीं
काम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नहीं
भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं
हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले
सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले।
व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने यह कहा है कि इस सनार में जो मनुष्य विघ्न बाधाओं को देखकर घबराते नहीं है ,वे ही उन्नति के पथ पर अग्रसर होते हैं। कर्मवीर पुरषों के सम्बन्ध में बताते हुए कवि का कहना है कि वे पुरुष अनेक बिघ्न ,संकटों ,बाधाओं आदि के आ जाने पर भी घबराते नहीं है ,बल्कि उनसे जूझने की क्षमता रखते हैं। वे भाग्य के भरोसे रहकर दुःख भोग कर पश्चाताप नहीं करते हैं। वे कठिन से कठिन काम को करने में भी घबराते नहीं है ,अपितु आनन - फानन में उसे कर डालते हैं। वे वीर संकटों के आने पर भी चंचलता या व्याकुलता नहीं दिखलाते हैं। ऐसे वीर पुरुष के बुरे दिन भी एक पल में अच्छे हो जाते हैं। ऐसे वीर पुरुष ही सब कालों और सब स्थानों में फूलते फलते हैं।
सैकड़ों मरुभूमि में नदियाँ बहा देते हैं वे।
गर्भ में जल-राशि के बेड़ा चला देते हैं वे।
जंगलों में भी महा-मंगल रचा देते हैं वे।
भेद नभ तल का उन्होंने है बहुत बतला दिया।
है उन्होंने ही निकाली तार तार सारी क्रिया।
व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी कहते हैं कि कर्मवीर अपनी शक्ति से संसार के बड़े से बड़े कार्य कर सकते हैं। कर्मवीर पुरुष पर्वतों को काट कर वहां सड़कों को निर्माण कर देते हैं। वे सैकड़ों बंजर (रेगिस्तानी ) भूमियों में नदिया बहाकर या नहरे बनाकर वहां लहलहाती खेतियाँ कर सकते हैं। वे समुन्द्र के भीतर भी समुद्री जहाजों के समूह पनडुब्बी आदि को चला देते हैं। वे बैरोनक और सुनसान जंगलों में भी महामंगल रचा देते हैं। उन्होंने ही आकाश मार्ग का बहुत सा भेद बतलाया है और उन्होंने ही टेलीग्राम ,टेलीफोन आदि की सारी प्रक्रिया या अन्वेषण किया है। भाव यह है कि कर्मवीर व्यक्ति अपने साहस और आत्मविश्वास से सब कुछ कर सकने की क्षमता रखते हैं।
कार्य -थल को वे कभी नहिं पूछते ‘वह है कहाँ’।
कर दिखाते हैं असंभव को वही संभव यहाँ।
उलझनें आकर उन्हें पड़ती हैं जितनी ही जहाँ।
वे दिखाते हैं नया उत्साह उतना ही वहाँ।
डाल देते हैं विरोधी सैकड़ों ही अड़चनें।
वे जगह से काम अपना ठीक करके तल।
व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियों में कवि का कहना है कि कर्मवीर व्यक्ति कार्य को आरम्भ करके बीच में ही नहीं छोड़ते हैं। वे हर स्थिति का मुकाबला करते हैं और अपने परिश्रम से असंभव को भी संभव कर दिखाते हैं। कवि का मानना है कि कर्मवीर पुरुष किसी कार्य को एक बार आरम्भ कर लेने के बाद उसे पुनः बीच में ही नहीं छोड़ते हैं। यदि उन्हें संकटों का सामना करना पड़े तो वे भूल कर भी उन संकटों से मुंह नहीं मोड़ते हैं। आकाश से फूल तोड़ना एक असंभव बात है पर वे व्यर्थ ही आकाश के फूलों को बातों से नहीं तोड़ते हैं अर्थात अपनी वाक्य कुशलता और कठोर आचरण से वे आकाश के फूल भी तोड़ लेते हैं अर्थात असंभव को भी संभव कर दिखाते हैं। कर्मवीर कभी शेखचिल्ली की तरह काल्पनिक संसार में विचरण नहीं करते हैं। वे अपने भुजबल से ही करोड़ों की संख्या जोड़ते हैं ,करोड़ों रुपये कमाते हैं ,शेखचिल्ली की तरह ख्याली पुलाव नहीं पकाते हैं। वे अपने परिश्रम के द्वारा और अपनी कर्मठता से कोयले को भी हीरे में बदल देते हैं। वे कांच को भी चमकीला रत्न बना कर दिखा देते हैं। यह सब उनकी कर्मकुशलता से ही संभव होता है।
जो कभी अपने समय को यों बिताते हैं नहीं।
काम करने की जगह बातें बनाते हैं नहीं।
आजकल करते हुए जो दिन गँवाते हैं नहीं।
यत्न करने में कभी जो जी चुराते हैं नहीं।
बात है वह कौन जो होती नहीं उनके किए।
वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिए।
व्याख्या - कवि का कहना है कि कर्मवीर पुरुष अपने समय को व्यर्थ नहीं गंवाते ,काम करने की जगह जो बातें नहीं बनातें हैं। आजकल करते हुए दिन नहीं गवांते हैं ,यत्न करने में जो जी चुराते ,उनके लिए कोई काम असंभव नहीं होता है। वे औरों के लिए खुद नमूना बन जाते हैं। कवि ने कर्मवीर पुरुषों के लक्षण स्पष्ट करते हुए कहा है कि वे अपने समय का सदा सदुपयोग करते हैं। वह समय को निठल्ले बैठकर व्यर्थ नहीं गंवाते हैं। वे काम करने के समय बातें नहीं बनाते हैं। वे आज का काम कल पर नहीं छोड़ते हैं। और आज कल करते हुए अपना दिन नहीं गंवाते हैं। वे यत्न करने में कभी भी जी नहीं चुराते हैं। वे इतनी सामर्थ्य रखते हैं कि उनके लिए कोई भी काम करना कठिन नहीं होता है। जिस काम को वे आरम्भ करते हैं ,उसे पूरा करके ही छोड़ते हैं। वे दूसरों के लिए स्वयं आदर्श बन जाते हैं। लोग उनका उदाहरण देते हैं।
कर्मवीर कविता का सारांश मूल भाव
कर्मवीर कविता अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' जी द्वारा लिखित प्रसिद्ध कविता है। इस कविता के द्वारा कवि ने भारतीय के लोगों को प्रेरणा दी है कि वे साहसी और कर्मवीर बने तथा धर्म और विज्ञान आदि के क्षेत्रों में उन्नति करें। कवि का कहना है कि इस संसार में जो मनुष्य अनेक बाधाओं को और बहुत से विघ्नों को देखकर नहीं घबराते ,भाग्य के भरोसे रहकर दुःख भोगकर घबराते नहीं। जो कितना ही कठिन कार्य हो ,घबराते नहीं ,संकट में व्याकुल जो वीर व्याकुलता नहीं दिखलाते हैं। कर्मवीर मनुष्य जंगलों में महामंगल कर देते हैं। उन्होंने ही नभतल का भेद करके बतला दिया है। उन्होंने ही तार की सारी प्रक्रिया का आविष्कार किया है। कर्मवीर किसी कार्य को आरम्भ करके बीच में नहीं छोड़ते हैं। एक बार किसी स्थिति का सामना करने के बाद जो फिर उससे मुंह नहीं मोड़ते है। कभी अपने समय को व्यर्थ नहीं गँवाते ,काम करने की जगह जो बातें नहीं बनाते हैं। आजकल करते हुए दिन गवांते ,यत्न करने में जो जी नहीं चुराते हैं ,उनके लिए कोई काम असंभव नहीं होता है। वे औरों के लिए खुद नमूना बन जाते हैं।
कर्मवीर कविता के प्रश्न उत्तर
प्र. कर्मवीर के ऊपर विघ्न बाधाओं का क्या प्रभाव पड़ता है ?
उ. कर्मवीर मनुष्य विघ्न बाधाओं आदि से कभी घबराते नहीं है ,बल्कि उनसे जूझने की क्षमता रखते हैं।
उ. कर्मवीर पुरुषों पर्वतों का काटकर वहां सड़कों का निर्माण कर देते हैं। वे रेगिस्तान की भूमि पर भी नदिया बहाकर या नहरे निकाल कर वहां लहलहाती फसलें उगा सकते हैं। कर्मवीर व्यक्ति समुद्र के भीतर भी समुद्री जहाज तथा पन्दुब्बियाँ चला देते हैं। वे सुनसान डरावने जंगलों में भी महा मंगल रचा देते हैं। कर्मवीर व्यक्तियों ने आकाश मार्ग का भेद बतला कर हवाई जहाज का निर्माण किया है। कर्मवीरों ने ही अपने साहस और आत्मविश्वास से टेलीफोन और दूरसंचार व्यवस्था का अन्वेषण किया है।
प्र. कार्य के समय और स्थल के विषय में कर्मवीर का क्या दृष्टिकोण होता है ?
उ. कर्मवीर किसी कार्य को आरम्भ करके बीच में नहीं छोड़ते और असंभव कार्य भी संभव कर दिखाते है। कर्मवीर आकाश से भी फूल तोड़ने की क्षमता रखते हैं।
प्र. कर्मवीर किस प्रकार अपने समय का सदुपयोग करते हैं ? वे किस प्रकार समाज के लिए आदर्श बन जाते हैं ?
उ. कर्मवीर पुरुष अपने समय का सदा सदुपयोग करते हैं और वे समय को निठल्ले बैठकर व्यर्थ नहीं गंवाते हैं। वे जिस काम को आरम्भ करते हैं ,उसे पूरा करके ही छोड़ते हैं। इसीलिए वे दूसरों के लिए आदर्श बन जाते हैं।
कर्मवीर कविता के शब्दार्थ
बाधा -रुकावट
बहु - बहुत
विघ्न - आपत्ति
उकताते नहीं - उबते नहीं
तम - अन्धकार
भयदायिनी - भय देने वाली
लबर - लपट
कोस - लगभग दो किलोमीटर
खली - तिल तथा सरसों आदि में से तेल निकालने के बाद बचने वाला पदार्थ
काकली - कोयल की आवाज
उकहे - सूखे
कारबन - कोयला
मरुभूमि - रेगिस्तान
नभतल - आकाश
तार - तार
विभव - वैभव
Welldone
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