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हार की जीत कहानी सुदर्शन
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हार की जीत कहानी का सारांश
हार की जीत कहानी सुदर्शन जी की प्रसिद्ध कहानी है .प्रस्तुत कहानी में बाबा भारती के पास एक बहुत सुन्दर घोडा था ,जिसे देखकर उन्हें बहुत आनंद आता था। वह उसे सुल्तान कहकर बुलाते थे। वह सायंकाल के समय जब तक उस पर चढ़ सवार हो दस - पन्द्रह किलोमीटर का चक्कर नहीं लगा लेते थे ,उन्हें चैन नहीं आता था। इस इलाके के मशहूर डाकू खड़गसिंह को जब सुल्तान की खूबियों का पता चला तो वह एक दिन दोपहर को बाबाजी के पास पहुंचा। उसने सुल्तान की बहुत प्रशंसा की। बाबाजी ने कहा - "सचमुच घोड़ा बांका है। " उन्होंने अस्तबल में खड़गसिंह को ले जाकर घोडा दिखाया। खड़गसिंह घोडा देखकर आश्चर्यचकित हो गया और सोचने लगा कि ऐसा घोड़ा तो उसके पास होना ही चाहिए था। उसने बाबा भारती से कहा कि यह घोड़ा मैं तुम्हारे पास नहीं रहने दूंगा। बाबा भारती की डर के मारे रात की नींद उड़ गयी तथा वह सारी रात घोड़े की रखवाली के लिए अस्तबल में ही बिताने लगे।
एक दिन सायंकाल के समय बाबा भारती सुल्तान की पीठ पर सवार होकर घूमने जा रहे थे कि उन्हें एक आवाज सुनाई दी। ... ओ बाबा ! इस अपाहिज की भी बात सुनते जाना। " बाबा ने देखा कि एक अपाहिज वृक्ष के नीचे बैठा दया की भीख माँग रहा था। बाबाजी के पूछने पर उसने कहा कि चलने में असमर्थ हूँ। मुझे रामा वाला गाँव में मेरे सौतेले भाई बैद्य दुर्गादत्त के घर पहुँचा दो। आपकी बड़ी कृपा होगी।
बाबा भारती घोड़े से उतरे। अपाहिज को घोड़े पर चढ़ाकर स्वयं लगाम पकड़ कर धीरे - धीरे चलने लगे। सहसा उन्हें एक झटका लगा और लगाम उनके हाथ से छूट गयी। आश्चर्यचकित होकर उन्होंने देखा कि अपाहिज घोड़े की पीठ पर तन कर बैठा हुआ घोड़े को दौडाए लिए जा रहा है। यह अपाहिज खड़गसिंह डाकू था।
कुछ देर बाद बाबा भारती ने चिल्लाकर उसे ठहरने को कहा। आवाज सुनकर खड़गसिंह ने घोड़ा रोक लिया। बाबा ने उसके पास जाकर उसे विश्वास दिलाया कि वे उससे घोडा वापिस नहीं लेंगे ,लेकिन उसे यह बात माननी होगी कि वह इस घटना के बारे में किसी से नहीं कहेगा अन्यथा लोगों का किसी दीन - हीन पर विश्वास नहीं रहेगा।
बाबा भारती तो चले गए ,लेकिन उनके कहे उपरोक्त शब्द खड़गसिंह के कानों में गूंजते रहे। एक रात चारों तरफ सन्नाटा था। खड़गसिंह घोडा लेकर बाबा भारती के मंदिर में पहुंचा। अस्तबल का फाटक खुला था ,उसने सुल्तान को वहां बाँधा और फाटक बंद करके चला गया। इस समय उसकी आँखों में नेकी के आंसू थे।
सुबह जब बाबा भारती कुटिया से बाहर निकलकर ,स्नान करने के पश्चात अस्तबल की ओर मुड़े तो घोड़े ने स्वामी के पांवों की चाप को पहचान लिया। वह जोर से हिन- हीनया। बाबा भारती दौड़कर अपने घोड़े के गले से लिपटकर रोने लगे। घोड़े को प्यार करते हुए वे कह रहे तह कि गरीबों की सहायता से अब कोई मुँह नहीं मोड़ेगा। थोड़ी देर बाद जब वे अस्तबल से बाहर निकले तो उनके आँसू भी उसी जगह पर गिर रहे थे जहाँ खड़ा होकर खड़गसिंह रोया था। दोनों के आंसू उस भूमि की मिट्टी में मिल गए।
हार की जीत कहानी का उद्देश्य
हार की जीत कहानी सुदर्शन जी की लिखी गयी प्रसिद्ध कहानी है।प्रस्तुत कहानी में लेखक ने बाबा भारती ,सुल्तान और डाकू खड़गसिंह की कथा का आश्रय लेकर अपना सन्देश दिया। हमें गरीबों ,दीन-हीन लोगों ,असहायों की सहायता करनी चाहिए। जब डाकू खड़गसिंह अपाहिज बनकर बाबा भारती से जबरन घोड़ा छीन कर भागता है तो बाबा ने उसे चेतावनी दी थी इस घटना का जिक्र किसी और से न करना अन्यथा लोग किसी असहाय की मदद नहीं करेंगे। यही कारण है कि खड़गसिंह वापस सुल्तान को लाकर अस्तबल में बाँध कर चला जाता है।
हमें सबकी सहायता करनी चाहिए ताकि समाज में भाईचारा व सौहार्द बना रहे।
हार की जीत कहानी के प्रश्न उत्तर
प्र. खड़गसिंह कौन था और वह बाबा भारती के पास क्यों आया था ?
उ. खड़गसिंह इलाके का प्रसिद्ध डाकू था और उसने सुल्तान नामक घोड़े की कीर्ति सुन रखी थी। वह उसे देखने के लिए बाबा भारती के पास आया था।
प्र. खड़गसिंह के चले जाने के बाद बाबा भारती को रात के समय नींद क्यों नहीं आती थी ?
उ. खड़गसिंह के चले जाने के बाद बाबा भारती को रात के समय नींद इसीलिए नहीं आती थी क्यों वह डर गए थे ,जाते समय खड़गसिंह बाबा भारती को यह कह गया था कि 'मैं यह घोडा आपके पास न रहने दूंगा। "
प्र. संध्या के समय घोड़े पर सवार बाबा ने घोड़े को क्यों थाम लिया था ?
उ. बाबा भारती ने घोड़े को इसीलिए थाम लिया था क्योंकि उन्होंने एक अपाहिज की करुणा पूर्ण आवाज को सुना था ,जो एक वृक्ष की छाया में पड़ा कराह रहा था।
प्र. बाबा के मुख से भय ,विस्मय और निराशा से मिली हुई चीख क्यों निकली ?
उ. बाबा के मुख से भय ,विस्मय और निराशा से निकली हुई चीख इसीलिए निकली ,जब उन्होंने देखा कि अपाहिज घोड़े की पीठ पर तन कर बैठा है और घोड़े को दौडाए लिए जा रहा है।
उ. बाबा ने खड़गसिंह को बुलाकर यह कहा कि मेरी तुमसे केवल यह प्रार्थना है कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना। घोड़ा अब तुम्हारा हो चुका है। नहीं तो लोग गरीबों पर विश्वास करना छोड़ देंगे।
प्र. इस बात का खड़गसिंह पर क्या प्रभाव पड़ा था ?
उ. इस बात का खड़गसिंह पर यह प्रभाव पड़ा कि उसने घोड़ा बाबा को वापिस लौटा दिया।
प्र. हार की जीत कहानी में हार कर भी कौन जीता और जीत कर भी कौन हारा ?
उ. प्रस्तुत कहानी में बाबा भारती हार कर भी जीत गए और खड़गसिंह जीत कर भी हार गया।
प्र. बाबा भारती का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
उ. बाबा भारती एक साधू थे। उन्होंने अपना सब कुछ छोड़ दिया था और गाँव से बाहर छोटे से मंदिर में रहते थे और भगवान् का भजन करते थे। उनके पास सुल्तान नाम का एक घोड़ा था जिसके जोड़ का घोड़ा सारे इलाके में नहीं था। भगवान के भजन पूजा से जो समय बचता था ,बाबा भारती उस समय को अपने घोड़े की सेवा में लगा देते थे। वह सुल्तान को ऐसा प्यार करते थे जैसा कि कोई सच्चा प्रेमी अपने प्यार को करता हो। वह सुल्तान की चाल पर लट्टू थे। जब तक सुल्तान पर चढ़कर चौदह - पंद्रह किलोमीटर का चक्कर न लगा लेते ,उन्हें चैन न आता था।
प्र. खड़गसिंह अपने पास सुल्तान घोड़े को क्यों न रख सका ?
उ. खड़गसिंह घोड़े को अपने पास न रख सका क्योंकि उसके मन पर बाबा भारती के यह कहने का कि इस घटना का जिक्र किसी और से न करना ' का बहुत प्रभाव पड़ा था।
हार की जीत कहानी के शब्दार्थ
घृणा - नफरत
कीर्ति - यश
देनदार - कर्जदार
असहय - जो सहा न जा सके।
छवि - शक्ल ,सुन्दरता
सह्त्रो - हजारों
अभिलाषा - इच्छा
मिथ्या - झूठ
बांका - सुन्दर ,स्वस्थ्य
प्रयोजन - मतलब
अपाहिज - विकलांग
करुणा - दया
बाहुबल - बाजुओं की शक्ति
नाई - भांति ,जैसा
बाग़ - लगाम
अधीरता - बेचैनी
अस्तबल - घोड़े बाँधने की जगह
चाप - आवाज ,ध्वनि
सन्नाटा - खामोशी
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