गहन है यह अंधकारा कविता की व्याख्या प्रश्न उत्तर

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गहन है यह अंधकारा कविता निराला


हन है यह अंधकारा कविता का भावार्थ गहन है यह अंधकारा कविता का अर्थ गहन है यह अंधकारा कविता की व्याख्या सूर्यकांत त्रिपाठी निराला suryakant tripathi nirala ki kavita BA General chhayavadi kavi nirala 


गहन है यह अंधकारा कविता का भावार्थ


गहन है यह अंधकारा;
स्वार्थ के अवगुंठनों से
हुआ है लुंठन हमारा।
खड़ी है दीवार जड़ की घेरकर,
बोलते है लोग ज्यों मुँह फेरकर
इस गगन में नहीं दिनकर;
नही शशधर, नही तारा।

व्याख्या - प्रस्तुत कविता में कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ने गहन है यह अंधकारा से उधृत है। प्रस्तुत कविता में कवि ने यह स्पष्ट किया है कि हमारा देश पतन के गड्ढे में जा गिरा है और इसका कारण स्वार्थ है। आपका लिखते हैं कि यह अँधेरी गुफा , यह अँधेरे की कैद बहुत घनी है ,गहरी है। स्वार्थपरता का पर्दा हमारी बुद्धि पर पड़ा है ,इसी कारण हम सब का पतन हुआ है। हमारे विनाश का मुख्य कारण हमारी स्वार्थ परता है। आज दीवारे ,जड़ों को घेर कर खड़ी है अर्थात हमारे मूल शुद्ध भावों को स्वार्थपन और मूर्खता की दीवारों ने घेरा हुआ है। आज कोई भी किसी से सीधे मूंह बात नहीं करता है अर्थात हर व्यक्ति स्वार्थपरता में डूबा हुआ है। आज भारत के आकाश में कोई चंद्रमा ,कोई सितारा या कोई नक्षत्र दिखाई नहीं पड़ता है। 

कवि ने उपरोक्त पंक्तियों में भारत के लोगों की कुछ कमियों की ओर संकेत किया है। १९४२ में गांधी जी के भारत छोड़ों आन्दोलन के समय लिखी गयी यह कविता सचमुच हमें जगाती है। 

विशेष - उपरोक्त पंक्तियों में निम्नलिखित विशेषताएं हैं - 

  1. तत्सम प्रधान शब्दावली से युक्त यह लघु कविता भारतीय जन - मानस का विश्लेषण प्रस्तुत करती है। 
  2. प्रस्तुत कविता में कवि की समाज से जुड़ने की भावना लक्षित होती है। 
  3. मुक्तक छंद का सुन्दर प्रयोग हुआ है। 
  4. रूपक एवं अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है। 
  5. 'अन्धकार ' जड़ता और अज्ञानता का तथा प्रकाश जीवन और ज्ञान का प्रतिक है। 


गहन है यह अंधकारा कविता की व्याख्या प्रश्न उत्तर
कल्पना का ही अपार समुद्र यह,
गरजता है घेरकर तनु, रुद्र यह,
कुछ नही आता समझ में 
कहाँ है श्यामल किनारा।
प्रिय मुझे वह चेतना दो देह की,
याद जिससे रहे वंचित गेह की,
खोजता फिरता न पाता हुआ,
मेरा हृदय हारा।

व्याख्या - कवि प्रस्तुत पंक्तियों में भारतीयों को पराधीनता की अँधेरी कोठरी से निकलने की प्रेरणा देता है जिसमें रहकर हम सब कमजोर हो गए हैं ,जड़ और स्वार्थी हो गए हैं। कवि लिखते हैं कि कल्पना का अपार समुन्द्र मुझे घेर कर भयंकर से गरज रहा है। कवि को लगता है कि यह संसार गरजते हुए समुन्द्र के समान है जिसका सामना वह नहीं कर पायेगा। यह समुन्द्र कवि के शरीर को घेरकर भयंकर गर्जना कर रहा है अर्थात इसे अपना ग्रास बनाने के लिए तैयार है। कवि कहता है कि इस संसार सागर से परे हरा - भरा किनारा कहाँ पर विद्यमान है। 

हे प्रिय ! मेरे देह को वह चेतना दे दो जिससे गेह की याद भी न रहे। मैं उस गेह या लक्ष्य को खोजते - खोजते पूरी तरह हार चुका हूँ। कवि संसार में अपना लक्ष्य प्राप्त करने में असमर्थ रहा है और अपनी हार मान बैठा है। 

कवि निराला यह स्पष्ट करते हैं कि संसार में मनुष्य का अस्तित्व सदा खतरे में रहता है। मनुष्य अपने लक्ष्य को पाने के लिए भटकता है परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि उसे अपना लक्ष्य मिल ही जाए। 

विशेष - उपरोक्त पंक्तियों में निम्नलिखित विशेषताएं हैं - 

  1. प्रस्तुत पद्यांश में कल्पना का समुन्द्र में रूपक अलंकार है। 
  2. मुक्तक छंद में अर्थ की लय का महत्व होता है। यहाँ भी पूरी कविता अर्थ से बंधी है। पूरी कविता में एक ही विचार विकसित हुआ है। 
  3. वंचित गेह से अभिप्राय अलौकिक जगत से है। 
  4. श्यामल शब्द का प्रयोग काले के रूप में न होकर हरियाली के रूप में हुआ है। यह गहरे हरेपन का घोतक है। 


गहन है यह अंधकारा कविता के प्रश्न उत्तर 


प्र. कवि ने जीवन को अंधकारा क्यों कहा है ?

उ. कविवर निराला को लगता है कि भारतीय पराधीनता के अँधेरे में पूरी तरह डूबे है। हम सब स्वार्थपरता ,मूर्खता ,अज्ञानता और रूढ़िवादीता के कारण भटकने के लिए विवश हैं। इन्ही कारणों से कवि ने जीवन को अंधकारा कहा है। 

प्र. इस जीवन में कोई भी आकर्षण क्यों नहीं रहा ?
उ. कवि निराला जी के अनुसार इस जीवन में कोई भी आकर्षण इसीलिए नहीं रहा क्यों जड़ता या मूर्खता ने हमें घेर रखा है। हमारे साथ रहने वाले लोग कठोर और जड़ है। आपसी सौहार्द न होने से लोग मूंह मोड़कर एक दूसरे से बात करते हैं। इस आकाश में सूर्य ,चाँद और तारे नहीं है ,यह कहकर कवि स्पष्ट करता है कि जीवन में कोई लक्ष्य नहीं रह गया है। 

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

प्र. कवि किन किन विरोधी स्थितियों से घिर कर अपने आपको असहाय पाता है ?

उ. कवि को लगता है कि जीवन एक अँधेरी काल कोठरी बन कर रह गया है क्योंकि ह्रदय में स्वार्थ और कपट लेकर जब हम बात करते हैं तो उसका कोई अर्थ नहीं होता है। कवि को यह भी लगता है कि स्वार्थी लोगों से घिरे होने कारण बातचीत नहीं हो सकती है। लोग अंहकार की दिवार से दबे हुए हैं ,उनकी बात जुबान पर ही नहीं आती है। संसार सागर में सब कुछ काल्पनिक और अस्थिर लगता है। जीवन की क्षणभंगुरता के सामने किनारा पाना मुश्किल है। संसार सागर से टकराते हुए अपने लक्ष्य तक पहुँचना कवि को कठिन लगता है। 

प्र. 'श्यामल किनारा ' से कवि का क्या अभिप्राय है ? वह कवि को क्यों नहीं दिखाई पड़ रहा है ?

उ. कवि जीवन के सुखो को श्यामल किनारा कहता है।  यह कविता १९४२ में भारत छोड़ो आन्दोलन में लिखी गयी थी इसीलिए इस का अर्थ आजादी का किनारा भी लगाया जा सकता है। कवि को यह श्याम किनारा इसीलिए दिखाई नहीं पड़ रहा है क्योंकि संसार सागर में भयंकर उथल - पुथल है। 


प्र. 'गहन है यह अंधकारा ' कविता में निराला जी ने किसे अँधेरी ,कठोर जेल कहा है ?

उ. कविवर निराला जी द्वारा १९४२ में द्वितीय विश्व युद्ध के समय लिखी इस कविता में कवि की गहरी पीड़ा व्यक्त हुई है। अँधेरी ,कठोर जेल मनुष्य के मन और मस्तिष्क में ही है। विकृत विचार ,कठोर भावनाएं ,अंध - विश्वास तथा अज्ञानता स्वार्थ एवं हिंसा की दीवारों से बनी यह जेल सचमुच अत्यधिक कठोर एवं काली है। 


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