दिल दुखाना छोड़ अब नेकियों की राह पर चल

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इस धरा पर प्यार का गुलशन सदा ज़िंदा रहे हर बशर का दिल यहां इक फूल सा सच्चा रहे फिर न झुलसे ये मुहब्बत नफरतों की आग में अब हमारा पाक़ दिल क़ुरआन सा सच्चा

दिल दुखाना छोड़ अब नेकियों की राह पर चल  


स धरा पर प्यार का गुलशन सदा ज़िंदा रहे
हर बशर का दिल यहां इक फूल सा सच्चा रहे

फिर न झुलसे ये मुहब्बत नफरतों की आग में
अब हमारा पाक़ दिल क़ुरआन सा सच्चा रहे

हों नहीं ज़ज़्बात बदले के हमारे दरमियाँ 
अब फ़ज़ा में दोस्ती की ये ग़ज़ल जिंदा रहे 

हर बशर में नूर तेरा हो नुमाया हर घड़ी
राह-ए-हक़ पर ऐ ख़ुदा तेरा हरिक बंदा रहे

दिल दु:खाना छोड़ अब तू नेकियों  की राह चल 
कर जतन इंसानियत से ज़ुल्म शर्मिंदा रहे

हैं तभी तक काम की उपलब्धियाँ औ शुहरतें 
आँख में पानी तुम्हारी जब तलक़ ज़िंदा रहे

बो रहा है फ़स्ल देखो नफरतों की फ़लसफ़ा
और हम चाहें मुहब्बत से चमन महका रहे

देश पर मिटने का जज़्बा मेरे दिल में हो सदा
हिन्द का परचम उड़े दुश्मन भी शर्मिंदा रहे

****(2)****

तुम नूर ए नज़र हो तो मेरे साथ चलो
ग़र मेरे क़मर हो तो मेरे साथ चलो

कश्ती से बहुत दूर किनारा है अभी
नाशाद अगर हो तो मेरे साथ चलो

ज़ालिम ये ज़माना है गिरायेगा सदा
उठने का हुनर हो तो मेरे साथ चलो

ये ज़िंदगी गुज़री है शब-ए-ग़म में सदा 
तुम इसकी सहर हो तो मेरे साथ चलो

अशआर ही पहचान बनाएंगे वहाँ
कहने का हुनर हो तो मेरे साथ चलो

आइन: सियासत का दिखाना है हमें 
ज़ाबांज़ ज़िगर हो तो मेरे साथ चलो

है ज़ुस्तज़ू में जिसकी मुहब्बत का सफ़र
तुम ही वो बशर हो तो मेरे साथ चलो

मुश्किल है बहुत इश्क़ की मतवाली डगर
पत्थर का ज़िगर हो तो मेरे साथ चलो

अब इल्म के दीपक को जलाना है 'लता'
बेबाक, निडर हो तो मेरे साथ चलो

****गज़ल 3****


ऐसे में उजालों की क्या बात हुई होगी
सूरज भी मुक़ाबिल था पर रात हुई होगी 

लता जौनपुरी
लता जौनपुरी
आंखों में नमी लेकर रुखसत हुआ है कोई
दिल कांच सा बिखरा है कुछ बात हुई होगी

खोए हैं जो हमदम की बाहों में वो क्या जानें
कब सांझ ढली होगी कब रात हुई होगी

हक़ छीन लिया जब से हाकिम ने किसानों का
तक़लीफ़ उन्हें कितनी दिन रात हुई होगी

परदेस में जब माँ का ख़त उसने पढ़ा होगा
फिर नैनों से सावन की बरसात हुई होगी

इक बार सही उसको दिल से तो लगा लें हम
रुख्सत न अभी उसकी बारात हुई होगी 


****ग़ज़ल 4****

ग़म से मुझको रिहा करे कोई
हक़ वफ़ा का अदा करे कोई

सच बयानी पे तुल गया है वो 
उसके हक़ में दुआ करे कोई

दिल मेरा है क़िताब उल्फ़त की
रोज़ इसको पढ़ा करे कोई

माँ न सिसके न गाँव ही छूटे
यूँ तरक्की किया करे कोई

मुझको गर आ जाये ज़रा सा सुकूँ
तिलमिला कर जिया करे कोई

ज़ह्र ये तेरी बेवफ़ाई का 
रोज़ कैसे पिया करे कोई

बाद मरने के भी रहे ज़िन्दा 
फ़र्ज़ ऐसे अदा करे कोई

*****ग़ज़ल 5 ******

यूँ तो रस्ते में पड़ा पत्थर किसी काबिल नहीं
देवता उसको बनाना पर बहुत मुश्किल नहीं

पी के प्याला ज़ह्र का वो मुस्कराकर कह गई
थी कभी दुनिया हसीं पर अब मेरे काबिल नहीं

जीत लेगा जमाने को तू बेशक़ प्यार से
है यकीं मुझको ज़माना इतना भी बेदिल नहीं

क्यों न हो हमको शिकायत इस तरक्की से हुजूर
जिस तरक्की में कोई मज़दूर ही शामिल नहीं 

हम हैं गौहर के दीवाने रखते हैं पक्का जुनूँ
ढूंढ ही लेंगे उसे मज़िल मेरी साहिल नहीं

अपने ख्वाबों के फलक़ पर है सदा मेरी नज़र
बस ज़मीं पर चलते रहना ही मेरी मंज़िल नही

🌷🌷ग़ज़ल 6 🌷🌷

रो रहा है किसलिए ख़ुशियाँ मनाता क्यों नहीं
भूल कर अपने ग़मों को मुस्कुराता क्यों नहीं

हिचकिचाता किसलिए है आग  है ये इश्क़ की
शौक है जल जाने का तो आजमाता क्यों नहीं

है डगर खामोश अब तो हक़ परस्ती की यहां
जग में सच का फैसला कोई सुनाता क्यों नहीं

देश की जागीर हमने आज तुझको सौंप दी
तू हिफाज़त में वतन की जां लुटाता क्यों नहीं

ज़िन्दगी के रास्ते में है बहुत गमगीन तू
राज़दार-ए-गम हमें अपना बनाता क्यों नहीं

पहले अक्सर प्यार की बातें किया करता था जो
अब हमें नग्में वफ़ा के वो सुनाता क्यों नहीं


🌷🌷ग़ज़ल 7 🌷🌷

इश्क़ उनका भुला दिया जाए
दर्द सारा मिटा दिया जाए

आ गए हैं सनम तो अब उनको
हाल दिल का सुना दिया जाए

गम ज़माने के जीत लेंगे हम
 थोड़ा सा हौसला दिया जाए

है ये दस्तूर इश्क़ का यारो
दिल को दिल का पता दिया जाए

दर्द सारे ही वो मिटा देगी
सिर्फ माँ को बता दिया जाये

दिल मचलता है उनके ही दर पे
उनको भी अब जता दिया जाए

हौसले हैं बुलन्द मेरे अब
ये फ़लक को  बता दिया जाए

 उनसे कह दो ,क़मर नहीं, निकला
रुख से पर्दा हटा दिया जाए।।।।

शुहरतें कब तलक यूँ भटकेगी
उनको मेरा पता दिया जाए


- लता जौनपुरी,
चांदमारी, वाराणसी
उत्तर प्रदेश 

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