मेरे तल्ख तन्हाइयों में

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सर्दी के भोर में होती हुई बारिश की तरह है मेरी उदासीनता! जो तुम्हारे क्षोभ से भर गया है।

मरी हुई सांसे


र्दी के भोर में
होती हुई बारिश की तरह है
मेरी उदासीनता!
जो तुम्हारे क्षोभ से भर गया है।

किसी साख पर बैठी 
भींगी हुई चिड़िया की तरह है,
मेरी उदासीनता!
जो तुम्हारे क्षोभ से भर गया है।

बहुत दिनों बाद
खुले हुए किसी घर के
दरवाजे की तरह है,
मेरी उदासीनता!
जो तुम्हारे क्षोभ से भर गया है।

यह सच को दो टूक में
जानने का असर है।

2.मैं जिंदा रहना चाहता हूं
ठीक उसी तरह
जैसे किसी सड़क के किनारे
दीवार पर बनी कोई
पेंटिंग!
जिस पर,
हर किसी की नजर
बारी-बारी से पड़ती रहे!

मैं जिंदा रहूं,
ठीक उसी तरह
जैसे कोई बुढ़ी औरत
के आंचल के कोर में
गठियाए हुए...
चंद पैसें!

3.कभी कभी मैं
अपने तल्ख अभिलाषाओं से
अपने आप को 
वैसे ही छूपाता हूं
जैसे किसी अजनबी मर्द को 
देख कर
अपने गिरे हुए पल्लू को
ठीक करती हुई,
कोई औरत!

4.करूणा!
काश मैं वैसे ही बेचैन
हुआ होता एक क्षण 
तुम्हारे लिए और
अपने उन 
अपरिचित लक्ष्यों के लिए
जैसे आज अचानक
बेचैन हो गया था
रेलवे स्टेशन पर
अपने डिस्चार्ज मोबाइल
को चार्ज करने के लिए
इधर-उधर हाॅ॑फते हुए!

5.मैं कुछ नही सोचनें के लिए
मेरे तल्ख तन्हाइयों में
कभी कुछ नही सोचा
तुम्हारे लिए,ताकि
तुम मुझे सोचती रहो!

ये मेरे शब्द ही
मेरी तुम हो
और यह सोच
बरकरार रहेगी 
तुम्हारे और मेरे पीढ़ीयों तक
क्योंकि मैं इन्हें,
कलम के सहारे उनके
हवाले कर रहा हूं...

6.बारिश की सिर्फ एक बूंद
सहसा मेरी हथेलियों पर टपकी
मुझे ना जाने क्यों
तुम्हारा नाम याद आया!

बहुत दिनों बाद,
आज मेरे गमलों के फूलों पर
एक नन्ही तितली को
चुपके से आते देखा,
मुझे ना जाने क्यों
तुम्हारा नाम याद आया!

मां के आलमारी में
मुझे मां के वो कंगन मिले
जिसे कई वर्षों बाद
आज देख रहा था,
मुझे ना जाने क्यों
तुम्हारा नाम याद आया!

7.क्या गलत था
क्या सही था
तुम्हारे मेरे-बीच!
मुझे नही मालूम
बस मुझे इतना यकीन था
तुम्हारा और मेरा समपर्ण
सच था,
जैसे मैं और तुम सच है
अपनी-अपनी जगह
हां मुझे यकीन था कि
मेरे और तुम्हारे कल्ब से ही
जन्मा था हमारा तसव्वुफ
प्रेम!


8.मेरे हड्डियों को चाट रही है,
धीरे-धीरे
किसी दीमक की तरह
तुम्हारे स्मृतियों की
अतृप्त इच्छाएं!
क्योंकि मेरे लहू ने
लिख था
मेरे नसों में तुम्हारा नाम!

9.तुम क्यों नही आते हो
मेरे नींद के आगोश में।
जैसे आधी रात में,
कहीं दूर से आती हुई
मेरे कानों को स्पर्श करते
किसी रोते हुए 
बच्चे की आवाज!

10.आज पापा को
ख़ामोश शाल ओढ़े
सर्दी में अलाव जलाते हुए
बहुत ध्यान से देखा
और जाना‌
जिंदगी चाहे जैसी हो
उसे जीते रहना चाहिए!


11.तुमनें कहा था न
कि तुम्हें कैसा प्यार चाहिए?
उस‌ वक़्त मैंने कुछ नही कहा था
मगर आज तुमसे दूर जाने के
बाद...
ये कह रहा हूं
मुझे विभावना का अर्थ वाला
तुम्हारा संस्कृत प्रेम
चाहिए था।


12.मैं बहुत कमजोर
व्यक्ति हूं,
क्योंकि मैं तुम्हारे हर बात को
सिरे से मानने वाला रहा हूं
जो अपने ही धुन के होते है
वो तो कुछ और कर जाते है।


13.जब भी लेता हूं मैं
स्मृतियों का कश
मुझे तारों के स्वभाव में
तुम्हारा अक्श झलकता है
जो बिखरी रहती है 
मेरे हर खुबसूरत ख्यालों में
रात भर...

14.तुम्हारा और मेरा संबंध 
किसी गांव के
आख़िरी छोर में स्थित 
उस कुएं और उसके किनारे
खिले गुलाब के फूल की तरह है
जिसे मैं समझा ही नही
तुम मेरे तासीर से खिले थे,
            या
तुम्हारे होने से मैं
योंहि खुबसूरत हो गया था।


15.हे ईश्वर!
जैसे तुम रहस्य हो,
वैसे ही तुम्हारी ये कायनात
और उतना ही आश्चर्य है
तुमसे विनती करना।
हां मगर,
मैं एक निवेदन करता हूं
इस कायनात को,
इसी तरह सलामत रखना
क्योंकि मेरे संवेदनाओं में
पल रही है,
अभी और कई जिंदगी।


16.जब यहां हर रातें सोती है
भूधर का मृत्युलोक
जब होता है,
तब जागती
किसी मोड़ पर
खांसती हुई
किसी बुढ़ी औरत की तरह
सामने से आती है,
मेरी हर रातें!

17.तुम्हारे जाने के बाद
कभी-कभी मैं,
घर के चारदीवारी में
मरती हुई सांसों को छोड़कर,
जीता हूं मैं..
कुछ पल जिन्दगी।

तुम्हारे जाने के बाद
जब-जब मैंने
सच कहा।
तब-तब लगा मुझे,
मैंने आत्महत्या की है।

18.जब कभी 
किसी धारा को
पत्थरों को तराश कर
बहते हुए देखा
मुझे उसमें तुम्हारा,
समर्पण दिखा।

जब कभी बांसुरी को
एक स्वर में,
बजते हुए सुना
मुझे लगा तुम मेरे सांसों से
एक छंद में निकल रही हो।

जब कभी अन्नदाताओं के
खेतों में हल को
मिट्टी को चीरते हुए देखा
मुझे तुम्हारा..
समयबद्ध प्रेम नज़र आया।

19.मेरे तल्ख तन्हाइयों में
मुझे तीक्ष्ण
तुम्हारी याद आई
फ़िराक़ फिल्म में
जगजीत सिंह को
राग बागेश्री में
बंदिश को क्षण भर
गुनगुनाते हुए जब सुना...।




यह रचना राहुलदेव गौतम जी द्वारा लिखी गयी है .आपने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की है . आपकी "जलती हुई धूप" नामक काव्य -संग्रह प्रकाशित हो चुका  है .
संपर्क सूत्र - राहुल देव गौतम ,पोस्ट - भीमापर,जिला - गाज़ीपुर,उत्तर प्रदेश, पिन- २३३३०७
मोबाइल - ०८७९५०१०६५४

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