महाभोज उपन्यास मन्नू भंडारी की समीक्षा

SHARE:

महाभोज मन्नू भंडारी उपन्यास की समीक्षा महाभोज उपन्यास की कथा सार महाभोज उपन्यास का उद्देश्य महाभोज उपन्यास में अपराध का राजनीतिकरण प्रासंगिकता भाषा

महाभोज उपन्यास की समीक्षा 

हाभोज उपन्यास मन्नू भंडारी जी द्वारा लिखा गया एक प्रसिद्ध उपन्यास हैं। महाभोज उपन्यास का प्रकाशन सन 1979 में हुआ। उपन्यास में अपराध और राजनीति के गठजोड़ को बहुत ही यथार्थवादी दृष्टि से दिखाया गया है। मनोवैज्ञानिक विषयों को अत्यंत सूक्ष्मता से पाठकों के समक्ष रखने के लिए विख्यात मन्नू भंडारी जी नवलेखन के दौर से जुड़ी हैं। 

महाभोज उपन्यास की कथा सार

महाभोज का कथानक सरोहा नामक गाँव और उसके निवासी बिसेसर की आकस्मिक मौत की घटना के इर्द-गिर्द रचा गया है। गाँव में एक महीना पहले कुछ हरिजनों को ज़िदा जला दिया गया था। आगजनी की घटना का प्रभाव अभी ठंडा नहीं हुआ था और ऐसे में बिसू की इस तरह संदिग्ध मौत ने राजनीतिक गलियारों में उथल-पुथल मचा दी। इस स्थिति से विभिन्न चेहरों ने किस तरह लाभ उठाने की कोशिश की, हमारे समाज में राजनीति नौकरशाही और मीडिया से मिलकर किसी भी घटना को अपनी सहूलियत के अनुसार रंग देकर पेश करती है तथा किस तरह संवेदनशील मामलों को भी निजी स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करती है, यही इस उपन्यास की मुख्य कथावस्तु है। 

महाभोज उपन्यास की समीक्षा

समीक्षा
: मन्नू भंडारी जी की ख्याति मुख्यतः मानव मन की सूक्ष्म तहों को टटोलने के लिए है। ऐसे में उनकी कलम से ‘महाभोज’ के रूप में समकालीन राजनीतिक-सामाजिक वास्तविकताओं पर तीक्ष्ण व्यंग्य एक बार तो पाठक को चौंका देता है। जिस दौर में मध्यमवर्गीय जीवन का द्वंद्व और मानव के अंतर्जगत की गुत्थियाँ ही साहित्य में मुख्य रूप से व्यक्त की जा रही थीं; उस वक्त लेखिका ने समाज के प्रति साहित्य की ज़िम्मेदारियों का ईमानदारी से निर्वहन किया। इस विषय में मन्नू जी ने प्रस्तावना में ही कहा है कि-

‘‘जब घर में आग लगी हो तो सिर्फ़ अपने अंतर्जगत में बने रहना या उसी का प्रकाशन करना क्या खुद ही अप्रासंगिक, हास्यास्पद और किसी हद तक अश्लील नहीं लगने लगता।’’

उपन्यास की जो पहली चीज़ पाठकों को आकर्षित करती है वह है इसका नाम। सामान्य तौर पर ‘महाभोज’ का अर्थ उस भोज से है जो किसी की मृत्यु पर आयोजित किया जाता है। इसे पढ़ते ही पाठक कौतूहल से भर जाता है कि आखिर लेखिका किसके महाभोज की बात कर रही हैं। 

यह महाभोज है ‘बिसू’ की मौत का जो कुछ वक्त पहले हरिजनों को ज़िंदा जलाने की वारदात के प्रमाण जुटाने में तथा उन्हें न्याय दिलाने में लगा था, और बिंदा की संभावित मृत्यु का जिसने बिसू के बाद उसके अधुरे लक्ष्य को पूरा करने का बीड़ा उठाया। इनके साथ ही उन हरिजनों को न्याय मिलने की रही-सही संभावनाएँ भी मर गईं। किंतु इस सब से अधिक यह उन लोगों के हाथों लोकतंत्र, नैतिकता और मानवता की मृत्यु का महाभोज है, जो इन मौतों का फ़ायदा उठा अपने राजनीतिक मनसूबों को पूरा करने की तमन्ना में जमा हुए हैं। ‘‘लावारिक लाश को गिद्ध नोच-नोच कर खा जाते हैं’’, बिसू की मौत की खबर मिलते ही उसे अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए इस्तेमाल करने के लिए ललायित गिद्ध इस नाम की सार्थकता बढ़ा देते हैं। फ़िर चाहे वह नेता हों, पत्रकार या नौकरशाही। 

महाभोज उपन्यास का उद्देश्य 

महाभोज का केंद्रिय उद्देश्य उन राजनीतिक विद्रूपताओं पर से पर्दा हटाना है जो ना केवल समकालीन समय में बल्कि वर्तमान में भी अपनी समस्त जटिलताओं के साथ विद्यमान है। उपन्यास का हर पृष्ठ भ्रष्टाचार, दल-बदल की राजनीति, नेताओं का दोहरा व्यक्तित्व, अपराधियों को शरण देना, जनता के प्रति संवेदनशून्यता, अवसरवादिता और नौकरशाही पर अनैतिक दबावों जैसी विकृतियों का पर्दाफ़ाश करता है। हमारे समाज पर यह धब्बे क्योंकि वक्त के साथ गहरे ही होते गए हैं, पाठकों को ‘महाभोज’ का कथानक अपने समय की ही वास्तविकता साफ़ करता हुआ लगता है। 

मन्नू भंडारी
मन्नू भंडारी
राजनीति की बिगड़ती स्थिति को दर्शाने के साथ ही मन्नू जी भारत की अंधकारमयी सामाजिक स्थिति के भी कई पक्षों पर विचार किया है। 1970 के दशक में पहली बार दलित वर्ग में ऊँची दबंग जातियों के विरुद्ध प्रत्यक्ष रूप से संघर्ष चेतना का विस्तार होने लगा था। आमजन के मानस में अभी भी 1977 के ‘बेलछी कांड’ की भयावहता ताज़ा थी। जिस प्रकार नागार्जुन ने अपनी कविता ‘हरिजन गाथा’ इसी घटना को पृष्ठभूमि बनाकर लिखी, ‘महाभोज’ के आरंभ में ही हमें इस ओर संकेत मिलते हैं- 

‘‘महीने भर पहले की तो बात है, गाँव की सरहद से ज़रा परे हट कर जो हरिजन टोला है वहाँ कुछ झोपड़ियों में आग लगा दी गई थी, आदमियों सहित।’’

भारतीय राजनीति में किस प्रकार स्वार्थसिद्धि हेतु लोगों की जातीय भावनाओं को उत्तेजित किया जाता है, जातीय संघर्ष तथा प्रभु वर्गों की परिवर्तनों के प्रति जड़ता आदि अनेक विद्रूपताएँ उपन्यास में अनावृत हुई हैं। दा साहब से समयानुसार चलने की सलाह पाकर ज़ोरावर कहता है ‘‘इन हरिजनों के बाप-दादे हमारे बाप दादों के सामने सिर झुकाकर रहते थे। झुके-झुके पीठ कमान की तरह टेढ़ी हो जाती थी। और ये ससुरे सीना तानकर आँख में आँख गाड़कर बात करते हैं। बरदास्त नहीं होता यह सब हमसे।’’ वहीं दत्ता बाबू के माध्यम से उन्होंने थोड़े से लाभ हेतु खबरों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने बाली मीडिया को बेनकाब किया है.

इसके अलावा लेखिका ने बुद्धिजीवियों की सामाजिक कुरूपताओं से तटस्थता और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को लेकर नज़रअंदाज़ी तथा उदासीनता के प्रति भी आपत्ति और खेद प्रकट किया है। महेश और अखिलन के ज़रिए मन्नू जी ने उन बुद्धिजीवियों पर चोट की है जो अपने सामने होते अत्याचारों को देखकर भी आवाज़ उठाने या आवाज़ उठाने वालों का साथ देने भर से भी कतराते हैं। बौद्धिक और साधन संपन्न वर्ग धीरे-धीरे इतना संवेदनहीन होता जा रहा है कि बड़ी से बड़ी घटना भी उन्हें क्षणिक क्षोभ व्यक्त करने से अधिक विचलित नहीं करती। क्रूर से क्रूर ज़्यादतियाँ उनके लिए सामान्य बात बनती जा रही हैं, जिनपर वह एक टिप्पणी भर कर देने के सिवा कुछ नहीं करते। 

‘‘किसी ने सवेरे खुमारी में अंगड़ाई लेते हुए, तो किसी ने चाय की चुस्की के साथ पढ़ा, देखा। देखते ही चेहरे पर विषाद की गहरी छाया पुत गई। चाय का घूँट भी कड़वा हो गया शायद। ढेर सारी सहानुभूति और दुख में लिपटकर निकला…’ओह हॉरिबल’…’सिंपली इन्ह्यूमन’। कब तक यह सब और चलता रहेगा? ततत!’ और पन्ना पलट गया। थोड़ी देर बाद गाँव वालों की ज़िंदगी की तरह अखबार भी रद्दी के ढेर में जा पड़ा।’’

महाभोज उपन्यास में अपराध का राजनीतिकरण

राहत की बात यह है कि हमारे आस-पास अपनी जड़ें मजबूत करती जा रही सामाजिक-राजनीतिक विद्रूपताओं को पूरी नग्नता के साथ पाठकों को सामने पेश करने तथा इस स्थिति से साफ़ तौर पर व्यथित होने के बावजूद भी मन्नू जी ने समस्या के समाधान की ओर भी संकेत किया है। स्थिति चाहे जितनी भी खराब क्यों ना हो, उसे बदलने की चिंगारी समाज में कहीं ना कहीं मौजूद रहती है। यही कारण है कि उपन्यास का अंत भले ही अनेक गिद्धों द्वारा बिसू और लोकतंत्र की मौत के महाभोज पर हुआ हो, आखिरी पंक्तियों में इस बदसूरत स्थिति को बदल देने की चेष्टा और उम्मीद साफ़ दिखती है। बिसू की हत्या और बिंदा की झूठे इल्ज़ामों के आधार पर गिरफ़्तारी के बाद भी मिस्टर सक्सेना का व्यक्तित्वांतरण इस बात का संकेत प्रस्तुत करता है कि क्रांति की यह चेतना वह ‘दुर्निवार सम्मोहन-भरी खतरनाक लपकती अग्नि-लीक’ है ‘जो बिसू और बिंदा तक ही नहीं रुकी रहती।’



- शिल्पी कुमारी
jeeshilpi@gmail.com

COMMENTS

Leave a Reply: 1
  1. अब मन्नू भंडारी हमारे बीच नहीं रही , आज भी हमारी सोच में उस का नावल "महाभोज" और कहानियाँ जिन्दा हैं . हमारा उनकों नमन

    जवाब देंहटाएं
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,35,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",6,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,3,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,7,आषाढ़ का एक दिन,17,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,2,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,15,कमलेश्वर,6,कविता,1413,कहानी लेखन हिंदी,13,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,5,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,4,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,3,केशवदास,4,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,138,गजानन माधव "मुक्तिबोध",14,गीतांजलि,1,गोदान,6,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,2,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,2,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,30,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,72,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,5,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,25,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,3,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,6,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,23,नाटक,1,निराला,35,निर्मल वर्मा,2,निर्मला,38,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,174,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,133,प्रयोजनमूलक हिंदी,24,प्रेमचंद,40,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,86,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,5,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,7,भक्ति साहित्य,138,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,13,भीष्म साहनी,7,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,5,मलिक मुहम्मद जायसी,4,महादेवी वर्मा,19,महावीरप्रसाद द्विवेदी,2,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,11,मैला आँचल,4,मोहन राकेश,12,यशपाल,14,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,5,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,20,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,2,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,8,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,2,लघु कथा,118,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,33,विद्यापति,6,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,1,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,7,शमशेर बहादुर सिंह,5,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,5,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,53,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,1,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,28,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,39,समसामयिक हिंदी लेख,222,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,17,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,70,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",9,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,20,सूरदास,15,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,10,हजारी प्रसाद द्विवेदी,2,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,352,हिंदी लेख,504,हिंदी व्यंग्य लेख,4,हिंदी समाचार,164,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,86,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,6,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,18,hindi essay,344,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,102,hindi stories,656,hindi-gadya-sahitya,7,hindi-kavita-ki-vyakhya,15,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,14,kavyagat-visheshta,22,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,10,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,Rimjhim Class 3,14,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,sponsored news,10,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,40,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: महाभोज उपन्यास मन्नू भंडारी की समीक्षा
महाभोज उपन्यास मन्नू भंडारी की समीक्षा
महाभोज मन्नू भंडारी उपन्यास की समीक्षा महाभोज उपन्यास की कथा सार महाभोज उपन्यास का उद्देश्य महाभोज उपन्यास में अपराध का राजनीतिकरण प्रासंगिकता भाषा
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhsdlMfBWagTNezBc7vXROFk0OYsqkKerN9EWjJaC0RVl4B1-QkCKtOWvfgaG47kI4r0jm20mvqw66rD_7aJJ8OII9Er4f_WrYFffQ_psUM8_fD2DQPFZUUsYMqQ56AK-I0ZIm3VYPRfXlo/s320/mahabhoj-upanyas.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhsdlMfBWagTNezBc7vXROFk0OYsqkKerN9EWjJaC0RVl4B1-QkCKtOWvfgaG47kI4r0jm20mvqw66rD_7aJJ8OII9Er4f_WrYFffQ_psUM8_fD2DQPFZUUsYMqQ56AK-I0ZIm3VYPRfXlo/s72-c/mahabhoj-upanyas.jpg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2021/08/mahabhoj-upanyas-ki-samiksha.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2021/08/mahabhoj-upanyas-ki-samiksha.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका