एक अलौकिक प्रेम कहानी

SHARE:

एक अलौकिक प्रेम कहानी एक थी लड़की नाम चंदना, एक था लड़का नाम जगत उम्र यही बस पाँच छः बरस, आस पास दोनों के घर थे संग संग दोनों पढ़ते थे, कच्ची उमर के प

एक अलौकिक प्रेम कहानी



क थी लड़की नाम चंदना, एक था लड़का नाम जगत
उम्र यही बस पाँच छः बरस, आस पास दोनों के घर थे
संग संग दोनों पढ़ते थे, कच्ची उमर के पक्के साथी थे
इक दूजे में जान थी बसती, बचपन साथ गुजरता था

जग्गू- चंदू बड़े हो रहे, उमर यही कुछ दस या ग्यारह
एक दिवस बस्तों को संभाले, विद्यालय से लौट रहे थे
सहसा एक फूलों की दुकां पर, चंदू जाकर ठिठकी थी
सुन्दर लाल गुलाबों को वह, ललचाई सी देख रही थी
एक अलौकिक प्रेम कहानी

मोल से तब गुलाब को लेकर जग्गू ने चंदू को दिया था
सुन्दर लाल गुलाब को पाकर, चंदू बेहद आनंदित थी
सुर्ख दमकते फूल की खुशबू, चंदा को बेहद पसंद थी
ये घटना थी सोमवार की, चंदा और जग्गा की कहानी

सात दिवस के बाद पुनः जब सोमवार दिन आया था
जग्गू फिर चंदू के लिए एक सुर्ख गुलाब ले आया था
बस इसके ही बाद से उसने एक नियम ही बनाया था
हर एक सोमवार को उसको वह गुलाब दे आता था

मौसम मौसम बीत चले थे, चुपके से यौवन आया था
चंदू जग्गू बड़े हो चले, उमर यही कोई सत्रह अठारह
इतने साल बीत चले पर, जग्गू ने नियम न तोड़ा था
गुलाब भेंट की विधि को जग्गू सदा निभा ले जाता था

जग्गू, चंदू बचपन के साथी थे, एक अनोखा रिश्ता था
प्रेम का गहरा बंधन था, पर कभी किसी ने कहा न था
समय का पहिया चलता था, नहीं कभी वह रुकता था
दहलीज खड़ा यौवन भी उनको मीठे सपने दे जाता था

पर हाय, प्रारब्ध में उनके, गहन जुदाई की तड़पन थी 
मात-पिता ने चंदा की सगाई अन्य कहीं करवाई थी
नैनों में थी प्रेम की बोली, मगर जुबां पर खामोशी थी
अजब थी उनकी प्रेम कहानी, जाने कैसी मजबूरी थी

सोमवार का दिन था जब, चंदू दुल्हन बनकर बैठी थी
सुर्ख गुलाब भेंटकर जग्गू अपना सब कुछ खो बैठा था
मौन प्रेम का दर्द छुपाकर, डोली में चंदा विदा हुई थी
अकथ पीर से व्याकुल जग्गू किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ा था

नए शहर में नवजीवन में चंदा भी अब व्यस्त हो चली
हर एक सोमवार को लेकिन जग्गू की याद सताती थी
समय उड़ा फिर पंख लगाकर, साल बीतने वाला था
कई दिनों से जग्गू-चंदू की, मुलाकात भी नहीं हुई थी

एक शाम को, सोमवार को, चंदू बाहर टहल रही थी
तभी अचानक दरवाजे पर सुर्ख गुलाब रखा पाया था
बहुत खुशी से अचरज से उसने वह गुलाब उठाया था
जग्गू की यादों से उस पल, अपने मन को सजाया था

बात भूलकर अगले ही पल चंदू ने खुद को संभाला था
बात वो आई-गई हो गई, व्यस्त फिर उसका जीवन था
लेकिन अगले सोमवार को उसने, पुनः गुलाब पाया था
फिर हर सोमवार की संध्या यही एक क्रम दुहराया था

बड़ी अचंभित सी चंदा थी, बात समझ नहीं पाती थी
सुर्ख गुलाब रखने वाले को, देख कभी नहीं पाती थी
इक दिन मात-पिता से मिलने पीहर अपने पहुँची थी
जग्गू से मिलकर बतियाने को, उसे बड़ी उत्सुकता थी

लेकिन माँ की बातें सुन, अविरल आँसू बह निकले थे
"तेरे ब्याह के बाद ही बिटिया, जग्गू फौजी बन बैठा था
कुछ ही महिने पहले वो, आतंकियों की बलि चढ़ा था
देश की खातिर जीवन देकर, वीर शहीद कहलाया था"

लाल गुलाब का राज चंदना मन ही मन में जान गई थी
गहन अलौकिक प्रेम की चंदू स्वयं साक्षी बन बैठी थी
प्राण त्यागकर भी जग्गू, कच्चे धागे से बँधा हुआ था
बस यही अधूरी, अपरिभाषित जग्गू और चंदू कहानी

प्रेम का रिश्ता अजब अनोखा अकथ गूढ़ पहेली जैसा
देशकाल और जन्म से परे, प्रेम है रिश्ता केवल मन का
तन है नश्वर, प्रेम शाश्वत, कभी न माने देह की सीमा
जिसने गहरे प्रेम को पाया, धरती पर ही स्वर्ग को पाया




डॉ. सुकृति घोष (Dr. Sukriti Ghosh)
उच्च शिक्षा विभाग, मध्यप्रदेश में भौतिक शास्त्र की प्राध्यापिका, 
वर्तमान में ग्वालियर में पदस्थ

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका