कचौरी का श्री विष्णु भगवान से सम्बन्ध

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कचौरी का श्री विष्णु भगवान से सम्बन्ध कूर्म या कछुआ , भगवान विष्णु के कूर्म अवतार का प्रतीक है।औषधियों के मिश्रण से युक्त निर्धारित आटे की बाटी सेंक ल

कचौरी का श्री विष्णु भगवान से सम्बन्ध


चोरी / कचौड़ी / कचौरी शब्द की व्युत्पत्ति प्राकृत भाषा के (कच्चपूर) से मानी जाती है।यह यजुर्वेद के अनुसार दर्शपूर्णमासयागः में कूर्म अथवा कछुए के रूप में पुरोडाश का कछुए के आकार की पूरी में परिवर्तन होकर बना व्यञ्जन है। इस परिभाषा से कचौरी कछुए की आकृति वाली पूरी है।

कछुए की आकृति के पूर अथवा पूरी को उस रूप में बनाए रखने के लिए उसमें कुछ भरना आवश्यक है। इसी कच्छप पाक (कच्छप पु.(कच्छेन पाति, कच्छ + पा + क) ) अथवा कच्चपूर का कचौरी के रूप में हिन्दी में समायोजन हुआ है। 

पुरोडाश 
(पुरः दाश्यते) हविर्यज्ञ, सोम एवं पशु यज्ञ में आहवनीय में अर्पित की जाने वाली बाटी (ऋ.वे. 3.52.4) इसका निर्माण
पीसे हुए चावल अथवा जौ के आटे से किया जाता है और इसे गार्हपत्य अगिन् पर विभिन्नसंख्याक (8.11, इत्यादि) कपालों पर सेंका जाता है, आप.श्रौ.सू. 1.24.6; इसका आकार कूर्म के पीठ के सदृश होता है जो अनूप के सदृश न अधिक ऊँचा और न अधिक नीचा होता है, कछुए की आकृति में तैयार की यज्ञ सामग्री का यजुर्वैदिक कर्मकाण्ड में बहुत महत्व था।

कृष्ण यजुर्वेद में दही, घी और मधु से सना हुआ कछुआ अथवा कूर्म चयन में ‘आषाढा’ इष्टका के दक्षिण में रखने का प्रावधान है. शतपथ ब्राह्मण में  इसका उललेख विस्तार से किया गया है ।कूर्म या कछुआ , भगवान विष्णु के कूर्म अवतार का प्रतीक है।औषधियों के मिश्रण से युक्त निर्धारित आटे की बाटी सेंक ली जाती हैं। उसे पुरोडाश कहते हैं .पुरोडाश को ही कछुए का रूप देकर रखा जाता रहा  है।

कुछ विद्वानों के अनुसार कचौरी शब्द बना है कच+पूरिका से। क्रम कुछ यूं रहा- कचपूरिका > कचपूरिआ > कचउरिआ > कचौरी जिसे कई लोग कचौड़ी भी कहते हैं। संस्कृत में कच का अर्थ होता है बंधन, या बांधना। 

कचौड़ी शब्द की व्युत्पत्ति जैसे भी हुई है किंतु ये भारतीयों  का  सबसे अधिक पसंद  का पकवान है ।





-  डॉ निरूपमा वर्मा 
 सम्पर्क सूत्र - निरुमन विला , वर्मा नगर 
आगरा रोड ,सेवनिकेतन के पास
एटा (उत्तर प्रदेश ) 207001
मोबाइल नंबर --9412282390

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