नकली दुल्हन को मिली सजा

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नकली दुल्हन को मिली सजा नक़ली दुल्हन बनी सरिता को सबके सामने बेइज्जत किया और पुलिस के हवाले कर दिया। सरिता ने सबसे अपने किये की माफ़ी मांगी सज़ा मिल

सज़ा


रिता और सुधा सुबोध कालेज में बीए अंतिम वर्ष में पढ़ रही थी। सरिता जहां एक ओर बहती हुई नदी की भांति चंचल और स्वच्छंद विचारों वाली थी, वहीं दूसरी ओर सुधा सागर की लहरों की तरह धीर गंभीर प्रकृति की , संकीर्ण मानसिकता से ग्रस्त ।

नकली दुल्हन को मिली सजा
विवाह
परंतु उनकी यह असमानता दोनों की मैत्री के मध्य कभी नहीं आई। यह तब की बात है जब एक सुदर्शन युवक ने उस कालेज में लेक्चरर के रूप में ड्यूटी ज्वाइन की थी। उसका नाम सुधीर कुमार था, वह भी धीर गंभीर स्वभाव का था। सरिता को पता ही नहीं चला कि वह कब सुधीर के आकर्षक रूप के पाश में बंध चुकी है। धीरे धीरे उसके कोमल हृदय में प्रेम के अंकुर प्रस्फुटित होने लगे थे। उसका यह एकतरफा प्यार था, सुधीर ने कभी सरिता को प्यार की नजर से नहीं देखा।

सरिता और सुधा अपना अध्ययन पूरा करने के पश्चात् अपने घर चली गई थी। वहां से लौटने के बाद भी सरिता सुधीर को भुला नहीं पाई। इधर सुधा के परिवार वाले उसके लिए अच्छा सा वर ढूंढने में लग गए। श्याम सुंदर जी को एक दिन उनके रिश्तेदार ने बताया कि उनकी बूआ का लड़का है जो सुबोध कालेज में लेक्चरर है। आप आकर देखलें और लडके को देखकर तसल्ली करलें। श्याम सुंदर जी उसी समय अपनी पुत्री के लिए उस युवक को देखने निकल पड़े और सुधीर को अपनी पुत्री के लिए सुयोग्य वर पाकर रिश्ता तय कर दिया। घर आकर उन्होंने बताया कि वह सुधा का रिश्ता सुधीर नाम के एक सुदर्शन युवा से तय कर आए हैं। यह सुनकर सुधा की खुशी का ठिकाना न रहा, कालेज में अध्ययन के समय ही सुधा, सुधीर के धीर गंभीर स्वभाव से परिचित और प्रभावित थी। सुधीर भी सुधा के धीर गंभीर स्वभाव से प्रभावित था, यह बात सुधा जानती थी।

घर पर विवाह की तैयारियां जोरों से शुरू हो गई थी और निमंत्रण पत्र भी छप कर आ चुके थे।सुधा ने अपने विवाह का निमंत्रण पत्र अपनी मित्र सरिता को भी भेजा , सरिता निमंत्रण पत्र में सुधीर का नाम देखकर अवाक रह गई। वह अपना संतुलन खो बैठी। जब वह इस स्थिति से बाहर निकल आई तो उसने एक कुटिल निर्णय लिया।

वह अपने साथ आवश्यक सामग्री लेकर विवाह में शामिल होने के लिए रवाना हो गई।सुधा इतने दिनों बाद अपनी मित्र से मिलने पर बहुत प्रसन्न हुई और अपने परिवार से उसका परिचय कराया।सुधा को दुल्हन के रुप में श्रृंगार किया जा रहा था कि किसी महिला ने बरात के आने की सूचना दी।सुधा के कमरे में उपस्थित सभी महिलाएं बरात देखने निकल गई और सुधा अपनी मित्र सरिता के साथ कमरे में अकेली थी। सुधा ने सरिता को अपने लिए ठंडा पानी लेकर आने के लिए कहा , उसे बहुत जोरों की प्यास लगी थी।

सरिता सुधा के लिए जब पानी लेकर आई तो उसने पहले ही उसमें नशीली दवा डाल दी। पानी पीने के बाद सुधा पर बेहोशी छाने लगी और वह बेसुध होकर अपने पलंग पर गिर पड़ी। सरिता को इसी अवसर की तलाश थी, उसने आनन फानन में सुधा के वस्त्र धारण कर उसे अपने वस्त्र पहना दिए। इतना करने के बाद सुधा को स्टोर रूम में बंद कर वापस आकर पलंग पर ऐसे बैठ गई जैसे कुछ हुआ ही नहीं। पंडित जी के बुलावे पर उसे ही फेरों पर बैठा दिया गया।

बरात विदा हो चुकी थी और परिवार के सभी लोग फुरसत में थे, तभी अचानक स्टोर रूम की तरफ से खट की आवाज सुनाई पड़ी। जब दरवाजे को खोला गया तो वहां सुधा को देखकर सब अवाक रह गए। सुधा से जब सच्चाई का पता लगा तो इस बात की खबर सुधा के ससुराल वालों को दे दी गई। सुधीर को जब अपने साथ हुए छल की जानकारी मिली तो उसने नक़ली दुल्हन बनी सरिता को सबके सामने बेइज्जत किया और पुलिस के हवाले कर दिया। सरिता ने सबसे अपने किये की माफ़ी मांगी परन्तु उसका यह अपराध अक्षम्य था।
  
आज सरिता को अपनी सहेली के साथ छल करने की सज़ा मिल गई थी।





- विनय मोहन शर्मा
अलवर

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