देहाती डॉक्टर - जर्मन कहानी

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मैं बड़ी मुश्किल में था । मुझे एक ज़रूरी यात्रा पर निकलना था । यहाँ से दस मील दूर के एक गाँव में एक बहुत बीमार रोगी मेरी प्रतीक्षा कर रहा था ।

देहाती डॉक्टर


मैं बड़ी मुश्किल में था । मुझे एक ज़रूरी यात्रा पर निकलना था । यहाँ से दस मील दूर के एक गाँव में एक बहुत बीमार रोगी मेरी प्रतीक्षा कर रहा था । यहाँ से वहाँ तक का पूरा रास्ता बर्फ़ से ढँका था । देहाती गाँवों के रास्तों के अनुरूप मेरे पास बड़े पहियों वाली एक घोड़ा-गाड़ी मौजूद थी । मैंने अपना ओवर-कोट पहन रखा था । मेरा उपकरणों वाला थैला मेरे हाथ में था । यात्रा शुरू करने के लिए मैं अहाते में खड़ा था । किंतु अफ़सोस ! घोड़ा-गाड़ी में जोते जाने के लिए कोई घोड़ा मौजूद नहीं था । यहाँ कोई घोड़ा उपलब्ध नहीं था । मेरा अपना घोड़ा पिछली रात में बर्फ़बारी वाली ठंड में मर गया था । मेरी नौकरानी मेरे लिए एक घोड़ा उधार माँगते हुए पूरे गाँव में घूम रही थी । लेकिन घोड़ा मिलने की उम्मीद न के बराबर थी ।

बर्फ़बारी लगातार हो रही थी और मुझे चलने में असुविधा हो रही थी । मैं बेकार में बाहर खड़ा था । थोड़ी देर बाद नौकरानी अपनी लालटेन हिलाते हुए और गाना गाते हुए मुख्य द्वार पर नज़र आई । ज़ाहिर है , मेरी इस यात्रा के लिए इस मौसम में कोई भी अपना घोड़ा देने वाला नहीं था । मैंने एक बार फिर अहाते को पार किया । मैं घबराया हुआ था व तीव्र मनोव्यथा से ग्रस्त था । मुझे यात्रा करने का कोई तरीका नहीं सूझ रहा था । ऐसी हालत में खीझ कर मैंने सुअर-बाड़े के ढहते हुए दरवाज़े को लात मारी । क़ब्ज़े पर आधा झूलता हुआ दरवाज़ा खुल गया । भीतर से गर्मी का भभका और घोड़ों की गंध बाहर आ रही थी । भीतर रस्सी से बँधी एक मद्धिम रोशनी वाली लालटेन झूल रही थी । एक आदमी उस कम ऊँचाई वाले बाड़े में झुक कर बैठा हुआ था । मद्धिम उजाले में भी उसकी नीली आँखें नज़र आ रही थीं । घुटनों के बल रेंगता हुआ वह बाहर की ओर आया और उसने पूछा , “ क्या मैं गाड़ी में घोड़े लगा दूँ ? “

मुझे समझ नहीं आया कि मैं क्या कहूँ । मैंने थोड़ा झुक कर यह देखने का प्रयास किया कि बाड़े में और क्या मौजूद था । नौकरानी मेरे बग़ल में खड़ी थी ।

“ आपके अपने घर में क्या मिल जाएगा , यह आप कभी नहीं बता सकते , “ उसने कहा और हम दोनों हँस पड़े । उस कोचवान ने घोड़ों को आवाज़ दी । देखते-ही-देखते मज़बूत टाँगों वाले दो हृष्ट-पुष्ट घोड़े रेंगते हुए उस दरवाज़े में से एक-के-बाद-एक बाहर निकल आए । उनके शानदार सिर ऊँटों की तरह झुके हुए थे । बाहर आते ही लम्बी टाँगों वाले वे घोड़े खड़े हो गए । उनकी मज़बूत देह से भाफ़ निकल रही थी ।

देहाती डॉक्टर - जर्मन कहानी
फ़्रेंज़ काफ़्का

“ उसकी मदद करो , “ मैंने कहा और नौकरानी ने तत्काल बग्घी के साज़ का सामान कोचवान को दे दिया । लेकिन तभी उस व्यक्ति ने नौकरानी को बाँहों में भर लिया और उसका चुम्बन लेने के लिए अपना चेहरा उसके चेहरे के क़रीब ले गया । वह डर कर चिल्लाई और शरण लेने के लिए मेरी ओर भागी । लड़की के चेहरे पर दाँतों से काटे जाने के निशान थे ।

“ जंगली जानवर कहीं के , “ मैं ग़ुस्से में चिल्लाया । “ क्या तुम कोड़े से पीटा जाना चाहते हो ? “

पर मैं समझ गया कि वह यहाँ अजनबी था । मुझे नहीं पता था कि वह कहाँ से आया है । लेकिन वह ऐसे समय में खुद ही मेरी मदद कर रहा था जब अन्य सभी लोगों ने मेरी मदद करने से इंकार कर दिया था ।

जैसे वह जान गया हो कि मैं क्या सोच रहा हूँ , उसने मेरी धमकी का बुरा नहीं माना बल्कि घोड़ों में खुद को व्यस्त करते हुए उसने केवल एक बार मेरी ओर मुड़ कर कहा , “ अंदर बैठिए । “ सब कुछ तैयार है । गाड़ी में इतने मज़बूत जुते हुए घोड़ों के साथ मैंने कभी यात्रा नहीं की और मैं थक-हार कर घोड़ा-गाड़ी में बैठ जाता हूँ ।

“ लेकिन लगाम मैं अपने हाथ में रखूँगा । तुम्हें रास्ता नहीं मालूम , “ मैं कहता हूँ ।

“ मैं तो वैसे भी आपके साथ नहीं आ रहा । मैं इस युवती रोज़ के साथ रहूँगा । “

“ नहीं , “ रोज़ प्रतिरोध करती है लेकिन अपनी अवश्यंभावी क़िस्मत का पूर्वानुमान करके वह नौकरानी दौड़ कर घर के भीतर भाग जाती है । जब वह भीतर से कमरे में साँकल लगा रही होती है तो मैं ज़मीन पर ज़ंजीरों के बजने की आवाज़ सुन सकता हूँ । मैं ताले के बंद किए जाने की आवाज़ भी सुनता हूँ । फिर मैं बड़े कमरे में बत्ती के बंद होने की आवाज़ सुनता हूँ और अनुमान लगा सकता हूँ कि वह दौड़ कर भीतर के सभी कमरों की बत्तियाँ बंद कर रही है ताकि अँधेरे में उसे ढूँढ़ा न जा सके ।

“ तुम मेरे साथ आ रहे हो , “ मैं कोचवान से कहता हूँ , “ अन्यथा महत्त्वपूर्ण होते हुए भी मैं इस यात्रा पर नहीं निकलूँगा । मैं इस युवती को घोड़ों की क़ीमत के रूप में तुम्हें बिल्कुल नहीं दूँगा । “

“ ध्यान से बैठिए , “ वह कहता है । तभी घोड़े गाड़ी को लेकर इतनी तीव्र गति से दौड़ने लगते हैं जिस तीव्रता से तूफ़ान में पेड़ उखड़ जाते हैं । कोचवान के हमले से मुझे दूर से आती हुई अपने घर के दरवाज़े के टूटने की आवाज़ सुनाई देती है । फिर एक अट्टहास की आवाज़ मेरे भीतर भर जाती है । उस अट्टहास की आक्रामकता मेरी सभी इन्द्रियों को तीव्रता से लील जाती है । लेकिन यह सब एक पल के भीतर हो जाता है क्योंकि अपने घर के मुख्य द्वार की तरह मैं अगले ही पल अपनी घोड़ा-गाड़ी को रोगी के घर के मुख्य दरवाज़े के बाहर खड़ा पाता हूँ । मैं वाक़ई वहाँ हूँ । गाड़ी में जुते घोड़े अब चुपचाप खड़े हैं । बर्फ़बारी अब बंद हो चुकी है । चारों ओर चाँदनी छिटकी हुई है ।

बीमार लड़के के माता-पिता जल्दी से घर से बाहर आते हैं । लड़के की बहन उनके पीछे है । वे मुझे लगभग उठा कर गाड़ी में से उतार लेते हैं । घबराहट में बोले गए उनके विचित्र शब्द मुझे समझ नहीं आ रहे । जिस कमरे में मरीज़ है , वहाँ की हवा साँस लेने लायक़ नहीं है । एक उपेक्षित स्टोव में से धुआँ निकल रहा है । मैं खिड़की को धकेल कर खोल दूँगा । लेकिन पहले मैं रोगी की जाँच करना चाहता हूँ । एक पतला-दुबला लड़का ओढ़ी हुई चादर को हटा कर थोड़ा-सा उठता है और मेरे गले में बाँहें डाले कर फुसफुसाता है , “ डॉक्टर, मुझे मर जाने दो ! “ उसकी त्वचा न ठंडी है , न गर्म है । उसकी आँखें सूनी हैं । उसने क़मीज़ नहीं पहन रखी है । मैं चारों ओर देखता हूँ । लड़के की बात किसी ने नहीं सुनी है । उसके माता-पिता आगे झुक कर मेरे कुछ कहने की प्रतीक्षा में खड़े हैं । उसकी बहन मेरा बैग रखने के लिए एक कुर्सी ले आई है । मैं उसे खोलता हूँ और अपने उपकरणों के बीच कुछ ढूँढ़ता हूँ । इस पूरे समय में वह लड़का अपना हाथ मेरी ओर पसारे जैसे मुझसे की गई अपनी विनती की ओर मेरा ध्यान आकृष्ट करने का प्रयास करता रहता है ।

मैं एक चिमटी उठा लेता हूँ । मोमबत्ती की रोशनी में मैं उसे ध्यान से देखता हूँ और फिर उसे वापस रख देता हूँ । “ अरे हाँ , “ मैं ईश-निंदा करने की तरह सोचता हूँ । “ वे न जाने कहाँ से घोड़े भेज देते हैं । दो घोड़े , ताकि गाड़ी तीव्र गति से चले । और वे एक कोचवान भी भेज देते हैं । “ तभी मुझे मेरी नौकरानी रोज़ की याद आती है । मैं क्या करूँ ? मैं उसे कैसे बचाऊँ ? मैं उस दुष्ट कोचवान की पकड़ से उसे कैसे दूर ले जाऊँ जबकि इस समय वे दोनों मुझसे दस मील दूर हैं । मेरी गाड़ी में लगे घोड़े तो बेक़ाबू हैं । घोड़े अपनी ढीली लगाम के साथ बाहर से धकेल कर खिड़की को खोल रहे हैं । उन्होंने ऐसा कैसे किया , मैं नहीं जानता । दोनों घोड़ों ने अपने-अपने सिर अब खिड़की में डाल दिए हैं । परिवार की चीख-पुकार से बेपरवाह वे घोड़े भी उस रोगी लड़के को देख रहे हैं ।

मैं ठीक अभी वापस अपने घर के लिए निकलूँगा — मैं सोचता हूँ । मुझे लगता है जैसे वे घोड़े मुझे यात्रा शुरू करने की चुनौती दे रहे हैं । लेकिन रोगी की बहन को लगता है कि मुझे गर्मी लग रही है । इसलिए वह मेरा पहना हुआ ओवरकोट मुझ से ले लेती है । मेरे लिए एक गिलास में ‘ रम ‘ लायी जाती है । लड़के के बूढ़े पिता मेरे कंधे थपथपाते हैं । मुझे ‘ रम ‘ का अपना ख़ज़ाना दे कर वे स्वयं को इस बेतकल्लुफ़ी का अधिकारी समझने लगते हैं । मैं अपना सिर हिलाता हूँ । उस बुज़ुर्ग की सीमित सोच के हिसाब से शायद मुझे मिचली आ रही है । उसके अनुसार शायद यही कारण है कि मैं ‘ रम ‘ नहीं पी रहा हूँ । रोगी की माँ बिस्तर के बग़ल में खड़ी हो कर मुझे इशारे से कुछ बता रही है । मैं उधर देखता हूँ । एक घोड़ा छत की ओर देखकर ज़ोर से हिनहिनाता

है । मैं अपना सिर उस रोगी लड़के की छाती पर रखता हूँ । मेरी गीली दाढ़ी के नीचे उसकी देह काँपती है । इससे मैं जो जानता हूँ , उसकी पुष्टि होती है : लड़का स्वस्थ

है । हालाँकि उसकी देह में रक्त-संचार ठीक से नहीं हो रहा । उस पर फ़िदा उसकी माँ ने उसे खूब कॉफ़ी पिलाई है । पर लड़का स्वस्थ है । सबसे ठीक बात तो यह होगी कि उसे धक्का दे कर बिस्तर से नीचे उतार दिया जाए । लेकिन मैंने पूरे विश्व को सुधारने का ठेका नहीं लिया है । इसलिए मैं उस रोगी लड़के को वहीं बिस्तर पर लेटे रहने देता

हूँ ।

मरीज़ों को देखने के बदले मुझे बेहद कम रक़म मिलती है । लेकिन मैं दरियादिल हूँ और ग़रीब लोगों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहता हूँ । मुझे अब भी अपनी नौकरानी रोज़ की देखभाल करनी पड़ती है । लेकिन शायद उस रोगी लड़के का सोचना सही है । शायद मैं भी मर जाना चाहूँगा । इस भयावह ठंड में मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ ? मेरा अपना घोड़ा मर चुका है और पूरे गाँव में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं था जो मुझे अपना घोड़ा उधार देता । मुझे सुअर-बाड़े में से दो घोड़े-जैसे जीवों को निकालना पड़ा । यदि वे घोड़े मौजूद नहीं होते तो मुझे सुअरों को गाड़ी में जोतना पड़ता ! यही कहानी है ? मैं उस परिवार को देखकर अपना सिर हिलाता हूँ । उन्हें इसके बारे में कुछ नहीं पता और यदि उन्हें यह पता भी होता तो भी वे इस पर यक़ीन नहीं

करते । नुस्ख़ा लिखना आसान है । पर लोगों से बात करके उन्हें समझा पाना मुश्किल काम है ।

ख़ैर , इस बिंदु पर मेरी यहाँ की यात्रा समाप्त हो सकती है । एक बार फिर लोगों ने मुझे बेकार की मुसीबत में डाल दिया । मुझे इसकी आदत हो गई है । मेरे दरवाज़े की घंटी बजा कर पूरे ज़िले के लोग रात में भी मुझे तंग करते हैं । लेकिन इस बार मुझे अपनी नौकरानी रोज़ को भी उस कोचवान के हवाले करना पड़ा है । वह प्यारी-सी लड़की बरसों से मेरे घर में रह रही थी । मैंने उसका कोई संज्ञान भी नहीं लिया था । यह बलिदान बहुत ज़्यादा है । अपने ज़हन में मुझे कोई सत्याभासी स्पष्टीकरण गढ़ना पड़ेगा ताकि मैं उस घटना के लिए यहाँ इस परिवार से हिसाब न चुकाने लगूँ । चाह कर भी ये लोग मेरी रोज़ को बचा नहीं सकते ।

लेकिन जब मैं अपना बैग बंद करता हूँ और इशारे से उनसे अपना ओवरकोट माँगता हूँ तो पूरा परिवार मेरे क़रीब आ जाता है । रोगी के पिता हाथ में पकड़े अपने ‘ रम ‘ के गिलास को सूँघ रहे हैं । उसकी माँ बेहद निराश लग रही है । आख़िर ये लोग मुझसे क्या चाहते हैं ? उन सभी की आँखों में आँसू हैं और और वे अपने होठों को अपने दाँतों से काट रहे हैं । रोगी की बहन खून से भीगा एक रुमाल हिला रही है । मौक़े की नज़ाकत को देखते हुए मुझे यह मानना ही पड़ेगा कि वह लड़का शायद बीमार है । मैं उस रोगी लड़के की ओर बढ़ता हूँ । वह मेरी ओर देख कर ऐसे मुस्कराता है जैसे मैं उसे उसका मनपसंद सूप दे रहा हूँ । अब दोनों घोड़े ज़ोर-ज़ोर से हिनहिना रहे हैं ।क्या इन घोड़ों के शोर मचाने के पीछे ऊपर वाले का हाथ है ? शायद इस शोर में मैं रोगी की जाँच अच्छी तरह से कर सकूँ !

अब जा कर मुझे पता चलता है कि यह लड़का वाक़ई बीमार है । इसकी देह के दाईं ओर नितम्ब के पास मेरी खुली हथेली जितना बड़ा एक खुला हुआ ज़ख़्म मौजूद है । वह घाव कई रंगों का है । मुख्य घाव गुलाबी-लाल है । गहराई में उसका रंग काला है जबकि बाहरी किनारों पर वह घाव हल्के रंग का है । कहीं-कहीं उस पर एक छीनी पपड़ी पड़ी हुई है । बग़ल में से कहीं-कहीं से खून निकल रहा है । घाव का मुँह किसी खुली खदान-सा लग रहा है । कुछ दूरी से वह ऐसा ही लग रहा है । क़रीब जा कर जाँच करने पर घाव की स्थिति और ख़राब लगती है । हल्की सीटी बजाए बिना इस घाव को कौन देख सकता है ? मेरी छोटी उँगली जितने मोटे और लम्बे खून से सने गुलाबी रंग के कीड़े घाव के बीच में रेंग रहे हैं और रोशनी की ओर आना चाह रहे हैं । उन बिलबिलाते कीड़ों के सिर सफ़ेद हैं और उनकी कई टाँगें हैं । बेचारा लड़का , अब उसके लिए कुछ भी नहीं किया जा सकता । लड़के , मैंने तुम्हारे बड़े-से ज़ख़्म को ढूँढ़ लिया है । तुम अपनी देह के बग़ल में मौजूद पक गए इस घाव के द्वारा ही नष्ट हो जाओगे ।

परिवार अब ख़ुश हो गया है । वे सब मुझे अब काम करता हुआ देख सकते हैं । बहन माँ से कुछ कहती है । माँ पिता से कुछ कहती है । पिता वहाँ मौजूद उन मेहमानों से कुछ कहता है जो चाँदनी रात में दबे पाँव बाहर के दरवाज़े के रास्ते वहाँ भीतर आ गए हैं । अपने सुबकने के बीच में लड़का फुसफुसा कर पूछता है , “ क्या आप मुझे बचा लेंगे ? “ वह अपने घाव के भीतर मौजूद जीवित कीड़ों को देखकर ‘ हिल ‘ गया है । मेरे इलाक़े के लोग ऐसे ही हैं । वे हमेशा अपने डॉक्टर से असंभव की माँग करते हैं । वे अपने पुराने विश्वास को भूल गए हैं । इसलिए उनके पुजारी अब घर बैठ कर बेकार के काम में अपना वक़्त बिताते हैं जबकि डॉक्टरों से उम्मीद की जाती है कि वे अपने नाज़ुक हाथों से शल्य-चिकित्सा करके सब कुछ ठीक कर देंगे । ठीक है , यदि वे सब ऐसा चाहते हैं तो यही सही । मैंने स्वयं नहीं कहा कि मैं उसे ठीक कर दूँगा । लेकिन यदि वे अपने धार्मिक विश्वास के लिए मेरा इस्तेमाल कर रहे हैं तो मैं उन्हें ऐसा करने दूँगा । मेरे जैसा एक बूढ़ा देहाती डॉक्टर इससे बेहतर स्थिति की उम्मीद कैसे कर सकता है ? मेरी तो नौकरानी भी मुझसे छीन ली गई है ।

वे सब आगे बढ़ते हैं — परिवार वाले और उस गाँव के बड़े-बुज़ुर्ग । वे मेरे कपड़े उतार देते हैं । धार्मिक गीत गाने वालों का समूह उस घर के बाहर खड़ा हो कर एक गीत गाने लगता है । उनका शिक्षक उन्हें प्रेरित कर रहा है । वे सब किसी किताब में से पढ़ कर यह गीत गा रहे हैं —

“ इसे निर्वस्त्र कर दो , और तब यह तुम्हें नीरोग कर देगा

और यदि यह तुम्हें नीरोग न करे तो तुम इसे मार डालो ।

यह केवल एक चिकित्सक है , यह केवल एक चिकित्सक है । “

वे सब मुझे निर्वस्त्र कर देते हैं । और मैं अपनी दाढ़ी में उँगली घुसाए हुए तथा सिर झुकाए हुए उन सभी की ओर देखता हूँ । मेरा चित्त बिल्कुल शांत है , हालाँकि इससे मुझे कोई फ़ायदा नहीं होता । अब उन्होंने मुझे हाथों और टाँगों से पकड़ कर उठा लिया है । वे सब मुझे रोगी के बिस्तर की ओर ले जा रहे हैं । वे मुझे लड़के के घाव के बग़ल में दीवार के साथ बिस्तर पर बैठा देते हैं । फिर वे सब कमरे से बाहर चले जाते

हैं । दरवाज़ा बंद कर दिया जाता है । गीत गाने की आवाज़ भी बंद हो जाती है । बाहर आकाश में बादल आ कर चाँद को ढँक लेते हैं। बिस्तर पर पड़ी चादर ऊष्म है । खिड़की में से झाँकते घोड़ों के चेहरे परछाइयों जैसे लगते हैं ।

“ क्या आप जानते हैं , “ एक आवाज़ मेरे कानों में फुसफुसा कर कहती है , “ मुझे आपके इलाज पर कोई भरोसा नहीं है । आपको यहाँ ज़बर्दस्ती लाया गया

है । आप अपनी मर्ज़ी से यहाँ नहीं आए हैं । मेरी मदद करने की बजाए आप केवल मेरी मृत्यु-शैय्या पर भीड़ को बढ़ा रहे हैं । सबसे ज़्यादा मैं आप की आँखें नोच लेना चाहता हूँ । “ “ तुम ठीक कह रहे हो । यह शर्मनाक है किंतु मैं एक चिकित्सक हूँ । मैं क्या करूँ ? यक़ीन करो , यह मेरे लिए भी आसान नहीं है । “ “ तो क्या मैं आपके इस बहाने से संतुष्ट हो जाऊँ ? हाँ , मुझे संतुष्ट होना होगा । मुझे हमेशा संतुष्ट होना पड़ता है । मैं इस दुनिया में इस खूबसूरत घाव के साथ आया हूँ । यह घाव मेरे हिस्से पड़ा है । “ “मेरे प्यारे दोस्त , “ मैं कहता हूँ , “ तुम्हारी गलती यह है कि तुम चीज़ों को समग्र दृष्टि से नहीं देखते हो । मैं तुम्हें बताता हूँ । मैं आस-पास और दूर-दराज के सभी रोगियों से मिला हूँ । तुम्हारी देह के घाव की स्थिति उतनी ख़राब नहीं है । वह एक ऐसी जगह पर स्थित है जिसे तुम ख़ुद देख भी नहीं सकते ... । “ “ क्या वाक़ई यही बात है या तेज बुख़ार की मेरी दशा के कारण तुम मुझे धोखा दे रहे हो ? “ “ वाक़ई यही बात है । एक पूरे ज़िले के आधिकारिक डॉक्टर पर तुम भरोसा कर सकते हो । “

उसने मेरी बात पर भरोसा किया और शांत हो गया । लेकिन अब समय आ गया है कि मैं ख़ुद को बचाऊँ । घोड़े अब भी अपनी जगह पर ईमानदारी से खड़े हैं । मैंने अपने कपड़े , ओवरकोट और बैग को जल्दी से उठाया । मैं कपड़े पहनने लगता तो और देरी हो जाती । यदि घोड़े वापसी में भी उसी गति से दौड़े जिस रफ़्तार से वे यहाँ पहुँचे थे तो मैं लगभग इस बिस्तर से उछल कर अपने घर के बिस्तर पर पहुँच जाऊँगा । एक घोड़ा मेरा आदेश मानते हुए खिड़की पर से हट गया है । मैंने कपड़ों का थैला घोड़ा-गाड़ी में डाला । मेरा ओवरकोट दूर चला जा रहा था किंतु उसकी आस्तीन घोड़ा-गाड़ी में लगी एक कील में फँस गई । जो हुआ , सही हुआ । मैंने घोड़े पर छलाँग लगाई । लगामें ढीली थीं । दोनों घोड़े बड़ी मुश्किल से एक - दूसरे से जुड़े हुए थे । घोड़ा-गाड़ी इधर-उधर डोल रही थी । मेरा आधा ओवरकोट बर्फ़ में घिसट रहा था ।

“ तेज़ चलो , “ मैंने कहा , लेकिन वह यात्रा तीव्र गति की नहीं थी । जैसे बूढ़े लोग बर्फ़ में चलते हैं , हम वैसे ही बर्फ़ से भरे उस बंजर इलाक़े में चलते रहे । बच्चों द्वारा गाए गए एक नए गीत की आवाज़ बहुत दूर तक हमारा पीछा करती रही —

“ ख़ुशियाँ मनाओ , ख़ुशियाँ मनाओ , ओ रोगियों ,

डॉक्टर को भी तुम्हारे बिस्तर पर लेटा दिया गया है । “

इस तरह से तो मैं कभी घर नहीं पहुँच पाऊँगा । मेरा डॉक्टरी का फलता -फूलता पेशा बर्बाद हो जाएगा । कोई और डॉक्टर मेरी जगह आ जाएगा । लेकिन कोई फ़ायदा नहीं होगा क्योंकि वह मेरी जगह कभी नहीं ले सकता । दूसरी ओर वह पागल कोचवान मेरे घर में घूम - फिर रहा है । मेरी युवा नौकरानी रोज़ उसका शिकार है — इसके आगे मैं और कुछ नहीं सोच पाता हूँ ।

बिल्कुल नग्न , बर्फ़बारी और ठंड से पीड़ित मैं , एक बूढ़ा आदमी , इस ठोस घोड़ा-गाड़ी और वायवीय घोड़ों के साथ इधर-उधर भटक रहा हूँ । मेरा बड़ा ओवरकोट एक कील में फँसा , गाड़ी से लटका हुआ घिसट रहा है किंतु मेरे हाथ वहाँ तक नहीं जा पा रहे । और वहाँ मौजूद रोगियों का वह पूरा चुस्त समूह एक उंगली भी नहीं हिला रहा । धोखा , धोखा ! एक बार यदि आप रात्रिकालीन घंटे की आवाज़ सुनकर रास्ता भटक गए हों तो फिर आप कभी नहीं सँभल सकते ।


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मूल लेखक : फ़्रैंज़ काफ़्का
अनुवाद : सुशांत सुप्रिय


प्रेषक : सुशांत सुप्रिय
A-5001 ,
गौड़ ग्रीन सिटी ,
वैभव खंड ,
इंदिरापुरम् ,
ग़ाज़ियाबाद - 201014
( उ. प्र. )
मो : 8512070086
ई-मेल : sushant1968@gmail.com

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