नारी ही नारी के कष्टों का कारण बन जाती है सारा आकाश उपन्यास

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नारी ही नारी के कष्टों का कारण बन जाती है सारा आकाश उपन्यास प्रभा के विरुद्ध समर को उत्तेजित करना भाभी की दिनचर्या बन जाती है। भाभी की बातें प्रभा के

नारी ही नारी के कष्टों का कारण बन जाती है - सारा आकाश उपन्यास

सारा आकाश उपन्यास मध्यवर्गीय परिवार का सजीव चित्र प्रस्तुत करता है। इस उपन्यास में नारी पात्रों की मानसिकता भी यथार्थ रुप में प्रस्तुत है।कथाकार ने पारिवारिक स्थिति के चित्रांकन में आर्थिक सामाजिक परिस्थितियों का चित्र उकेरने में बड़ी सफलता प्राप्त की है। कथा में मर्मसर्शिता स्थापित करने तथा मध्यवर्गीय नारी मानसिकता को प्रकाशित करने के उद्देश्य से नारी के कष्टों को भी पर्याप्त स्थान दिया गया है। सारा आकाश' के नारी पात्रों के कष्टों के मूल में नारी पात्रों की ही सशक्त भूमिका है। जिन नारी पात्रों की पीड़ा का इस उपन्यास, में चित्रण किया गया है उनमें प्रमुखतः दो पात्र हैं-(क) प्रभा। (ख) मुन्नी। प्रभा इस उपन्यास की नायिका है। वह अत्यन्त सूझ-बूझ वाली सौन्दर्यवती शिक्षित नारी है। विवाह के पूर्व समर के भाई धीरज उसकी सुन्दरता और पाक कुशलता की भूरि-भरि सराहना करते हैं। उनके द्वारा की गई सराहना निराधार नहीं है। समर की माँ और मुन्नी भी प्रारम्भ में उसके रुप और गुण की तारीफ करती हैं- ऐसी बहू घर में आज तक नहा आयी नहीं आयी थी. छोटी बहू बड़ी बहू से अधिक सुन्दर है। 

प्रभा की सुन्दरता, शिक्षा तथा व्यवहार कुशलता अनपढ़ भाभी के हृदय में शूल की तरह चूमता है और उसके दाम्पत्य जीवन को मटियामेट करने हेतु वह कमर कस लेती है। वह सोचती  है कि प्रभा के व्यक्तित्व के सामने उनका व्यक्तित्व बौना बनकर रह जायेगा। अपने उद्देश्य की सफलता के लिए वह निम्नलिखित कार्य करती है- 

  • सास श्वसुर का कान भरना और प्रभा के विरुद्ध करना। 
  • समर को प्रभा के विरुद्ध उसकाना।  
  • प्रभा के दाम्पत्य जीवन में विष योलना।  
  • प्रभा के गुणों पर दोषारोपण करना।  
  • चरिख पर कीचड़ उछालना। 

नारी ही नारी के कष्टों का कारण बन जाती है सारा आकाश उपन्यास

समर की भाभी इस कार्य के लिए सर्वप्रथम अपनी सास को साथ लेती है और संयुक्त मोर्चा बनाती है। फलतः भाभी और समर की अम्मा दोनों मिलकर उसके जीवन में विष घोलने का काम प्रारंभ करके  जीवन वाटिका को झुलसा देती हैं। आगे चलकर समर भी इस योजना में आग में घी का कार्य करता है; और वह इस चाल को समझ भी नहीं पाता है। धीरे-धीरे स्थिति ऐसी हो जाती है कि समर प्रभा की पीड़ा, उसके कष्टों और अपमान को देख आन्नदित होता है। नई बहू के रूप में जब प्रभा घर आती है तो लोग उसके सौन्दर्य की सराहना करते हैं और वह समर से कहती है। 

"उसके चेहरे पर चेचक के दाग हैं।" 

इस कथन का अभिप्राय मात्र इतना था कि प्रभा समर तथा परिवार के अन्य सदस्यों की निगाहों से गिर जाय। 

समर के घर का नियम था कि ससुराल आने पर नई बहु के हाथ से खाना बनवाया जाता था और सर्वप्रथम उसका पति खाना खाता था। प्रभा ने खाना तैयार किया। भाभी ने उसकी कुशलता को मटियामेट करने के लिए छिपकर अतिरिक्त नमक डाल दिया। भाभी की योजना सफल हो जाती है। समर खाना नहीं खाता और थाली को पैर से ठोकर मार देता है। परिवार में चर्चा बन जाती है कि बहू को खाना बनाने नहीं आता। भाभी ने ताना कसते हुए कहा "दिखाते वक्त किसी को क्या पता कि खाना किसने बनाकर खिलाया है। बड़ी चली है रिस्ट वाच पहनकर खाना बनाने। बोलो, घड़ी का तुम चूल्हे में करोगी क्या? फैसन ही कर लो या काम ही कर लो। अरे! पहली बार ठीक से बनाकर खिला देती अब चाहे अमरित ही बनाती रहो यह बात तो अब आने से रही।" 

प्रभा के विरुद्ध समर को उत्तेजित करना भाभी की दिनचर्या बन जाती है। जब कभी अनजान में भी प्रभा से कोई भूल हो जाती तो भाभी और सास दोनों मिलकर व्यंग्य वर्षा करने से नहीं चूकती थीं। छोटी-छोटी बातों के बीच प्रभा के मैके का, उसके पिता का भी वे नाम घसीट लेते थे। इन कार्यों से वह पति द्वारा उपेक्षित रहती और ये दोनों आनन्दित होती थीं। एक बार अनजान में दूध गिर जाने पर वे कहती हैं। 

"फैला दिया दूध चलो अच्छा हुआ। उसकी गाँठ से क्या जाता है। उसका तो बाप पूरी भैस बैंधवा गया है न, सो रोज कभी दूध फैला रहा है। कभी उफन आ रहा है..........। अन्धी हो गयी है। फूहड़ चालै सब घर हाले थूथन ऊपर उठाकर काम करेगी। मस्ता रही है।.......आग लगे ऐसी पढ़ाई में।" 

प्रभा के जीवन को कष्टमय बनाने के लिए वे उनके चरित्र पर कीचड़ उछालना भी नहीं भूलती है। प्रभा शिक्षित है। वह अपना हित अहित सब कुछ समझती है। घर के घुटनशील वातावरण से उब कर छत पर जाना वह बहुत अनुचित नहीं मानती। परन्तु इसी को लेकर उसे कलंकिनी और चरित्रभष्ट कहा जाता है। समर की माँ उस पर दोषारोपण करती हुई कहती है 

"सबसे बचकर अकेली अगर छत पर न बैठी रहे तो पड़ोसियों से नैना कैसे लडे।" 

बात-बात पर ताना देना तो सास और जेठानी की आदत पड़ गयी है। प्रभा सब कुछ सनकर भी मौन बनी रहती है और विष की घूँट पीती रहती है। प्रभा पर व्यंग करना तो अम्मा का जन्म सिद्ध अधिकार है। भाभी जी उन्हें और अधिक भड़काती रहती है। जैसे 

"लो अम्मा जी। तुम क्यों अपना खून जलाओ।" इस पर अम्मा कहती है 

"खन न जलाऊँ तो क्या करूं ? इन्हीं लक्षणों के मारे खसम देखता तक नहीं और बह को चढी है जवानी।......अच्छी आफत गले पड़ी है. मरती भी नहीं कि पाप कटे । गरम टपमान निगलने का न उगलने का। जिन्दगी खराब हुई जा रही है लड़के की।" 

भाभी प्रभा के विरुद्ध समर को खूब  भरती है। आश्चर्य की बात है कि समर इसे समझ नहीं पाया है। प्रभा दूसरी बार नैहर से आने वाली है। उसके आने की सूचना भाभी इस प्रकार समर को देती है 

"तुम्हारा व्याह क्या हुआ लालाजी.........क्या-क्या अरमान लेन-देन की तो खैर कोई बात ही नहीं । एकाध साल में आयी गयी बात हो जाती है। लेकिन वह सब पर पानी फिर गया, महरानी जी तो जिन्दगी भर के लिए बंध गई।" 

वह प्रभा को दबाकर रखने के लिए समर को भरती हैं 'आ तो रही है, लेकिन दबा के लिए रखना लालाजी, कह देती हूँ, कसम से पछताओगे।" 

इस प्रकार भाभी की बातें प्रभा के जीवन में पीड़ा और दुःख का बीज बोती है। यद्यपि प्रभा अपने मैके में जाकर अपनी ससुराल की निन्दा नहीं करती परन्तु भाभी यह कहती है कि प्रभा वे यहाँ की बातें नमक मिर्च लगाकर जरूर कहा है। दहेज का बातें भी प्रायः भाभी और अम्मा ही कहती रहती हैं. भाभी कभी यह नहीं सोचती कि उन्हें दहेज में क्या मिला था? परन्तु प्रभा के लिए वह जरुर कहती हैं 

."आग लगे ऐसे रुपये में। अरे हा ! छाती पर रख के तोले नहीं जावे........ शादी विवाह में आदमी दिल खोलकर खर्च नहीं करे तो किस काम का यह रुपया। यही तो दो-चार मौके होवे।" 

मुन्नी- प्रभा की भाँति मुन्नी का जीवन भी कष्टों से भरा हुआ है। मुन्नी की सास और उसके पति की रखैल ही उसके दुःख का कारण है। उसे रखैल की सेवा करनी पड़ती है। उसके हाथों पर चारपाई के पावे रखकर रंगरेलियां मनायी जाती हैं। वह दिन-रात बिलखती और रोती रहती है। ससुराल से अत्यन्त कारुणिक पत्र लिखती है। मरना उसे स्वीकार है परन्तु पति के साथ ससुराल जाना उसे स्वीकार नहीं है। विदाई के समय अपने पिता से हाथ जोड़ती है कि उसे मार डालें परन्तु विदाई न करें। 

इन दोनों नारी पात्रों के अतिरिक्त दिवाकर की पत्नी किरण भी सास से कष्ट पाती है। उसने तो सास से बोलने बतियाने का सिलसिला ही समाप्त कर रखा है। 

इस प्रकार हम पाते हैं कि 'सारा आकाश' उपन्यास में नारी वेदना और कष्ट के पीछे नारी समाज का ही क्रूर हाथ है। वे अपनी ही बहू, अपनी ही देवरानी के जीवन को कुण्ठाग्रस्त और नारकीय बनाने से बाज नहीं आती है। प्रभा और किरण तो इस अन्याय के विरुद्ध सक्रिय दिखाई पड़ती हैं परन्तु मुन्नी तो मर ही जाती है। 


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