अपनी खबर पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र'

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पांडेय बेचन शर्मा उग्र अपनी खबर 



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अपनी खबर आत्मकथा का सारांश 

प्रस्तुत पाठ अपनी खबर लेखक पांडेय बेचन शर्मा उग्र जी के द्वारा लिखित है। उग्र जी ने इस पाठ में अपनी आत्म कथा का बहुत ही अनूठा वर्णन किया है। उन्होंने अपनी आपबीती के माध्यम से सामाजिक जीवन के विभिन्न समस्याओं का निरूपण किया है। उग्र जी ने समाज में फैले रूढ़ियों, विश्वासों, मान्यताओं और बुराईयों का बहुत ही बारीकी से विवेचन और विश्लेषण प्रस्तुत किया है। अपनी इस आत्म कथा में उग्र जी ने अभिजात्य वर्ग की कपट वृत्ति का भी यथार्थ चित्रण किया है। इनकी सशक्त वर्णन-शैली पाठक को आदि से अंत तक बांधे रखती है। निर्भीक, स्पष्ट और रोचक विवरण इसकी  विशेषता है। ‘उग्र’ ने जैसा जीवन जिया, वैसा कह डाला है। उग्र जी जब जन्मे तो उनके जन्म के समय किसी ने खुशियाँ नहीं मनाई,  क्योंकि उनके जीने की उम्मीद नहीं थी | इसलिए उन्हें कुछ पैसे में बेच दिया गया, ताकि वह जिंदा तो रहे उनका अजीब-अजीब नाम भी रखा गया। उन्होंने 60 साल की उम्र में अपनी आत्म कथा लिखी और बीते आरम्भिक 20 वर्षों के बारे में बताया कि उन्होंने उस दौरान कितना संघर्ष किया और उन्हें किन-किन मुसीबतों का सामना करना पड़ा। लेखक ने कहा कि उन्होंने नरक जैसा जीवन यापन किया है | उनके पिता जी की बचपन में ही मृत्य हो गई थी। और उनके यहाँ खाने के लाले पड़े हुए थे तो शिक्षा कहाँ से ले पाते | उस समय उनके समाज में अंधविश्वास और रूढ़िवादी का अंधेरा छाया हुआ था। सारे ब्राह्मण जजमानी के नाम पर भीख लिया करते थे | लेखक ने ऐसा कहकर तीखा प्रहार किया है। और तो और उन्होंने अपने आप को ब्रह्मीण के घर में पैदा हुआ असाधारण शुद्र कहा है। उन्होंने अपने आप के अनगढ़ होने पर कहा है कि वे अनगढ़ ही ठीक हैं, विश्व विराट हैं, क्योंकि उनको तराशा नहीं गया है। उनमें सारे रुप नज़र आते हैं। उन्होंने मूर्ति पूजा पर भी व्यंग्य किया है। उन्होंने समाज में फैले जुआ और चोरी का भी वर्णन किया है, जिसके कारण औरतों को सताया जाता है उनको प्रताड़ित किया जाता है। लेखक ने अपने ऊपर गुजरे सारे घटनाओं को अपनी इस पुस्तक में लिख दिया है। समाज में हो रहे अन्याय, अव्यवस्थित समाज, बिखरा हुआ और झूठ के बुनियाद में टिके हुए समाज को इसके माध्यम से सजीव बखान किया है। धर्म के ठेकेदार और ठगों को करारा जवाब दिया है। यह तीखा व्यंग्य ही दृष्टव्य है...|| 

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पांडेय बेचन शर्मा उग्र का जीवन परिचय

प्रस्तुत पाठ के लेखक पांडेय बेचन शर्मा उग्र जी हैं। इनका जन्म सन् 1900 में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के
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चुनार नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता जी बैजनाथ पांडेय व माता जी जयकली पांडेय थी। शर्मा जी परिवारिक अभाव के कारण व्यवस्थित शिक्षा नहीं ले पाए। लेकिन उन्होंने नैसर्गिक प्रतिभा और साधना से समय से पहले ही एक गद्य-शिल्पी के रूप में अपनी पहचान बनाई। उनके लेखन में एक अलग ही चमक और तेवर शैली के कारण अपने समय के प्रख्यात लेखक थे। उग्र जी का पत्रकारिता से सक्रिय सम्बंध रहा है। वे विश्वमित्र, स्वदेश, वीणा, स्वराज्य, और विक्रम के संपादक थे। मतवाला-मंडल के सदस्य के रूप में उनकी विशेष पहचान बनी। हिंदी गद्य के विशिष्ट शैलीकार 'उग्र' बालमुकुंद गुप्त की परंपरा के तेजस्वी लेखक थे। चॉकलेट उनकी बहुचर्चित पुस्तक थी। उग्र जी कहानी, उपन्यास, कविता निबंध, आत्मकथा, आलोचना, नाटक आदि विधाओं में लिखते थे। वे समृद्ध भाषा के धनी थे जिन्होंने कहानी को एक नई शैली दी थी जिसे सम्मान व आदर से उग्र-शैली कहा जाता है। इनकी भाषा सरल, अलंकृत एवं व्यवहारिक थी। सन् 1967 को दिल्ली में इनका निधन हो गया | 

इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं --- चंद हसीनों के खतूत, फागुन के दिन चार, सरकार तुम्हारी आँखों में, घण्टा, दिल्ली का दलाल, वह कंचन सी काया, शराबी, पीली इमारत, चित्र-विचित्र, काल कोठरी, कंचन वर, कला का पुरस्कार, गालिब और उग्र, जब सारा आलम सोता है आदि...|| 




अपनी खबर आत्मकथा पाठ के प्रश्न उत्तर


प्रश्न-1 बेचन जी वर्षों की आत्म कथा सुनाना चाहते हैं, क्यों ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, बेचन जी वर्षों की आत्म कथा सुनाना चाहते हैं, क्योंकि उनके जीवन के साठ साल बीत चुके हैं और उनको जो कमोबेश जानते हैं, उनको अपने जीवन के आरंभिक बीस साल की घटना से अवगत कराना चाहते हैं कि उनकी जीवन में कितने संघर्ष और दुखों का सामना करना पड़ा था | 

प्रश्न-2 लेखक को अपने भाई साहब का कार्य अधिक दुखदाई क्यों लगता है ? 

उत्तर- लेखक के बड़े भाई साहब जब जवान थे, तभी सनातन धर्म के भाग्य में, परिवार-पद्धत्ति के भाग्य में सर्वनाश कि भूमिका लिखी हुई थी। अतएव जाने-अनजाने युग के साथ भाई-साहब को भी इस सर्वनाश नाटक में अपने हाथ-पाँव में कुल्हाड़ी मारने का उत्तम पार्ट अदा करने को कहा गया। उस समय उग्र जी पास थे और उन्हें भाई साहब का यह कार्य अधिक दुखदाई व बुरा लगा | 

प्रश्न-3 'स्वर्ग मुझे जीवन में कहीं नजर न आया' --- लेखक ऐसा क्यों कहता है ? 

उत्तर- लेखक ने हमेशा से ही दुख में ही जीवन गुजारा है |  वे कहते हैं कि जीवन को स्वर्ग और नरक दोनों का समिश्रण कहा जाए तो मैंने नरक के आकर्षक सिरे से जीवन दर्शन-आरंभ किया और बहुत देर, बहुत दूर तक उसी राह में चलता रहा | स्वर्ग तो केवल सुनता था मैं लेकिन स्वर्ग मुझे जीवन में कहीं नज़र नहीं आया | 

प्रश्न-4 लेखक अपनी अनगढ़ता को गर्व से क्यों देखता है ? 

उत्तर- 
लेखक कहते हैं कि शूद्र द्विज के पूर्व-रूप हैं। ठीक वैसे ही जैसे मूर्त का पूर्व-रूप अनगढ़ पत्थर है  और मैं स्वयं को शूद्र मानता हूँ। इसलिए मैं अपनी अनगढ़ता को गर्व से देखता हूँ | जब तक अनगढ़ हूँ, तब तक विश्व विराट की मूर्तियों की संभावनाएं मुझमें सुरक्षित है | 

प्रश्न-5 इस आत्मकथा के अंश को पढ़ते हुए आत्मकथा लेखन की कुछ विशेषताओं से आप परिचित हुए होंगे,उन्हें लिखें | 

उत्तर- इस आत्म कथा के अंश में आत्मकथा लेखन की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं --- 

• इसकी भाषा-शैली प्रमुख है | भाषा में देशज और तत्सम शब्दों का मिला-जुला प्रयोग हुआ है | वहीं व्यास शैली की अधिकता है | 
• निर्भीक, स्पष्ट और रोचक विवरण इसकी अगली विशेषता है। ‘उग्र’ ने जैसा जीवन जिया, वैसा कह डाला है | 
• यह किताब अपने आप में न सिर्फ एक सफल जीवनी है, बल्कि एक सटीक उदाहरण और दस्तावेज़ है कि ईमानदार लेखन क्या होता है | 
• लेखन इतना आकर्षक और बांधे रखने वाला है कि कोई एक बार पढ़ना शुरू कर दे तो लत लग जाए | 
• कटु यथार्थ के साथ व्यावहारिक होना इस किताब की अन्य विशेषता है | 
• आधुनिक साहित्य पर इस किताब का भरपूर असर है | 
• साहित्य से जुड़े व्यक्ति को सच्चरित्र और पवित्र होना चाहिए’ के ढकोसले को उन्होंने इस पुस्तक पर आकर बाकायदा तिलांजलि दे दी है और ‘सब कुछ’ कहकर अपनी इस आत्मकथा को सफल बना दिया है | 


प्रश्न-6 पाठ में विभिन्न सामाजिक बुराइयों और व्यसनों का वर्णन हुआ है। आज भी बहुत से परिवार इसमें जकड़े हुए हैं। अपनी दृष्टि में समाज को इन जकड़नों से कैसे मुक्त किया जा सकता है ? 

उत्तर- 
सामाजिक बुराईयों और व्यसनों के प्रति जागरूकता लाकर, शिक्षा को बढ़ावा देकर और सामाजिक व्यवस्था में सुधार करके इन जकड़नों से मुक्त किया जा सकता है | 

प्रश्न-7 'यह मेरे घर का नहीं, समाज के घर-घर का नाटक था' से लेखक का क्या अभिप्राय है ? 

उत्तर- 'यह मेरे घर का नहीं, समाज के घर-घर का नाटक था' से लेखक का अभिप्राय यह है कि लेखक के बड़े भाई साहब जब जवान थे, तभी सनातन धर्म के भाग्य में, परिवार-पद्धत्ति के भाग्य में सर्वनाश की भूमिका लिखी हुई थी। अतएव जाने-अनजाने युग के साथ भाई-साहब को भी इस सर्वनाश नाटक में अपने हाथ-पाँव में कुल्हाड़ी मारने का उत्तम पार्ट अदा करने को कहा गया। उस समय उग्र जी पास थे और उन्हें भाई साहब का यह कार्य अधिक दुखदाई व बुरा लगा। लेकिन उस समय यह कार्य समाज के सभी घर के लोग कर रहे थे | 

प्रश्न-8 'जजमानी वृत्ति' को समाज में कब और क्यों हेय समझा जाने लगा ? स्प्ष्ट कीजिए | 

उत्तर- लेखक कहते हैं कि हम ब्राह्मणों को गरीब और ब्राह्मण जानकर जान-पहचान के लोग हमारे घर भीख पहुँचा जाते थे | यह भीख भी शानदार थी लेकिन तब-तक, जब-तक ब्राह्मणों के घर ब्राह्मण पैदा होते थे। लेकिन जब ब्राह्मणों के घर ब्रह्मराक्षस पैदा होने लगे तब यह जजमानी वृत्ति का नितांत कमीना धंधा-स्वयं निचाती नीच होकर भी दूसरों से चरण पूजवाना रह गई थी। तब से ही जजमानी वृति को हेय समझा जाने लगा। 

प्रश्न-9 सम्पूर्ण समाज में किस प्रकार का विष व्याप्त होता जा रहा है ? 

उत्तर- 
जब से गलतीवश, मोहवश, दुर्भाग्य वश हमने गलितांग को अपना अंग जानकर काट फेंकने से इनकार कर गले से लगाना शुरू किया है | तभी से सारे संसार में विष व्याप्त हो गया है | 

प्रश्न-10 खानाबदोशों को देख लेखक का मन ललककर उन्हीं में लीन क्यों होना चाहता है ? 

उत्तर- लेखन अपने आप को एक साधारण शुद्र मानते हैं ब्राह्मण-ब्रह्मीणो से अधिक आकर्षक अंग के शुद्र दिखते हैं। इसलिए अब भी लेखक उन खानाबदोशों को देखकर उनमें लीन होना चाहते हैं और उन्हीं के  साथ घूमना फिरना चाहते हैं | 

प्रश्न-11 निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए-

(क)- लेकिन, अब, इस उम्र में ऐसा लगता है कि यह नाम नहीं, तिलस्मी गण्डा है। जिसके सामने काल का हथकंडा भी चल नहीं पा रहा है।  

उत्तर- बेचन जी का बचपन में जीने की उम्मीद नहीं थी |  इसलिए उन्हें कई तरह के नाम दिए जा रहे थे, ताकि बेटा तो ज़िंदा रहे | इसलिए लेखक कहते हैं कि 60 साल बाद भी मुझे यह नाम पसंद नहीं है और न ही मौत को, लेकिन अब इस उम्र में लगता है मानो यह नाम नहीं मेरी ज़िंदगी की चली हुई चाल है, जिसके सामने उस यमराज का भी कोई उपाय काम नहीं आ रहा है | 

(ख)- तभी तथाकथित सनातन धर्म के नाश का आरंभ उसी के अनुगामियों,धर्म ठेकेदार  ब्राह्मणों द्वारा हो चुका था। मानो तो देव नही तो पत्थर।

उत्तर- लेखक कहते हैं कि सनातन धर्म के नाश की शुरुवात उन्हीं की पीढ़ी में पैदा होने वाले वंशो और जो धर्म की ठेकेदारी करते थे उनके द्वारा हो गया था। वे कहने लगे थे अगर पत्थर की पूजा करोगे उसमें आस्था रखोगे तो भगवान है नहीं तो वह पत्थर मात्र है | 

(ग)- जिसकी उपयोगिता सर्वथा समाप्त हो जाती है,वही नष्ट होती है, उसी का अंत होता है।

उत्तर-
 लेखक कहते हैं कि जिस वस्तु या प्रथा की जरूरत नहीं होती है, वह धीरे-धीरे ख़त्म हो जाता है | उसका अस्तित्व मिट जाता है, हमेशा के लिए नष्ट हो जाता है | 

(घ)- नरक लाख बुरा बदनाम हो, लेकिन अपना तो जीवनसंगिनी बन चुका है, सहज हो चुका है रास आ गया है | 

उतर- लेखक कहते हैं कि नरक भले ही बदनाम है, लेकिन मेरा जीवन तो उसी से आरम्भ हुआ है | इसलिए नरक मेरा साथी बन गया है, दुख मेरा हमसफ़र है। वह मुझे सहज लगता है | मुझे अपना लगता है। और उसके साथ ज़िंदगी गुज़र रही है | 

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अपनी खबर आत्मकथा पाठ से संबंधित शब्दार्थ 


अफसाना-नवीसी - कहानी लिखना
साकिन मुहल्ला - मोहल्ले का निवासी
तौक - हँसुली
हाल मुकाम - वर्तमान निवास (पता)
काल-क्षत्राणी स्वभाव - डरावनी, लड़ाकू स्वाभाव की
छदाम - पुराने पैसे का चौथा भाग
हथकंडा - षड़यंत्र, चतुराई भरी चाल
जजमानी - पुरोहिताई, दक्षिणा आदि देकर धार्मिक अनुष्ठान कराना
गलितांग - गला हुआ अंग
बेसबब - बिना कारण, बेवजह
गिरों धरना - गिरवी रखना
बेकहे - किसी की बात ना माननेवाला
बाजबान - पूरी तरह याद करना
झपड़ियाना - झापड़ मारना, थप्पड़ मारना
नवाह्न पाठ - रामचरितमानस का नौ दिनों का पाठ
कंठाग्र - मुँह जबानी याद होना 
जिह्वाग्र  - जीभ के आगे का भाग बात जुबान पर होगा। 
• दगा देना - धोखा देना
• पल्ले पड़ना - हाथ लगना, मिलना
मोहताज होना - किसी चीज के लिए तरसना,किसी चीज से वंचित होना
चूहों का डंड पेलना - खाने पीने की वस्तुओं का अभाव होना  | 




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उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,33,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,74,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,5,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,26,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,6,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,38,निर्मल वर्मा,2,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,192,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,134,प्रयोजनमूलक हिंदी,37,प्रेमचंद,41,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,86,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,7,भक्ति साहित्य,139,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा 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