जानने की जिज्ञासा से भरा युवा मन

SHARE:

जानने की जिज्ञासा से भरा युवा मन सुकरात को जहर दिया जा रहा है ,जहर बांटा जा रहा है ,सभी उसके मित्र रो रहे हैं लेकिन सुकरात उठ-उठकर जहर पीसने वाले से प

जानने की जिज्ञासा से भरा युवा मन 


सुकरात को जहर दिया जा रहा है ,जहर बांटा जा रहा है ,सभी उसके मित्र रो रहे हैं लेकिन सुकरात उठ-उठकर जहर पीसने वाले से पूछता है बड़ी देर कर कर रहे हो ,समय बहुत हो गया है ,सूरज अब डूबा जा रहा है । जहर घोंटने वाला एक बार सुकरात के तरफ आश्चर्य से देखा ऑर कहा –पागल हो गए हो सुकरात ! मैं तुम्हारी वजह से धीरे –धीरे पीस रहा हूँ ताकि तुम थोड़ी देर ऑर जीवित रह सको ,क्योंकि अच्छे आदमी को पृथ्वी पर कुछ देर ऑर रहना हो जाएगा । क्या तुम सचमुच पागल हो? तुम स्वयं हीं इतनी जल्दी मरने को आतुर हो ,इतनी जल्दी भी क्या है तुम्हें ? उसके मित्र भी पूछते हैं इतनी व्याकुलता क्यों है?तुम्हें मरने की ,क्यों मरने की आतुरता है ?

सुकरात कहता है –मरने की आतुरता नहीं ; जीवन को जाना ,मौत को भी जानने की बड़ी इच्छा है कि मौत क्या है ?हैरत की बात यह है कि कोई आदमी मरने के क्षण में यह जानने कि इच्छा करेगा कि मौत क्या है ?। यह आदमी जवान है , यह जितना जवान जवानी में था ,मरते पल भी उससे ज्यादा जवान है । क्योंकि यह हर वक्त सीखने की जिज्ञासा से भरा हुआ है ,यह हर पल कुछ –न कुछ जानने को तैयार है ,इसे मौत नहीं मार सकती है ,मार भी नहीं सकती । यह हमेशा जवान है ,इसका मन युवा है ऑर युवा मन लगातार कुछ सीखने ,खोजने एवं प्रयोग को राजी होता है । 

जानने की जिज्ञासा से भरा युवा मन

लेकिन हम आजकल सीखने की प्रवृति ही खो चुके हैं । अगर हम 40 के उम्र पर कुछ सीखने की बात करते हैं तो लोग कहने लगते हैं कि अब आपकी सीखने की आयु नहीं है ,उम्र खत्म हो चुकी है ,अब आप जो हैं ,वही आप जीवन में बने रहें । ज्यादा दिमाग लगाने की कोई जरूरत नहीं है । अब आपकी बच्चे की सीखने की उम्र है । ऑर इस तरह से जो व्यक्ति सीखने की लालसा लिए कुछ जानना चाहता है उसे समाज ,लोग उसके मन  में एक निराशा का भाव भर देते हैं ,जो सरासर गलत है । सीखने की कोई उम्र नहीं होती है ,जब आपका मन युवा हो ,जवान हो ,लालसा से भरा हो तो आप बेशक अपने मन पसंद की चीजें सीख सकते हैं ,ऑर सीखना भी चाहिए । प्रकृति हमें हर पल कुछ नया करने को प्रेरित करती है ।युवा का कोई संबंध शरीर की अवस्था से नहीं है ,उम्र से जवान होने का कोई भी संबंध नहीं है । युवा होने का मतलब है मन की जीवित अवस्था । 

कविवर रवीन्द्रनाथ के बारे में उल्लेख है कि एक दिन उनके एक मित्र ने कहा कि तुम महाकवि हो ,तुमने छह हजार गीत लिखे, जो संगीत से पिरोये जा सकते हैं ,तुमसे बड़ा कोई कवि दुनिया में कभी नहीं हुआ । इतना सुनते हीं रवीन्द्रनाथ के आँखों से आँसू बहने लगे । उन्होने ने कहा –क्या कहते हो ,मैं तो परमात्मा से प्रार्थना कर रहा हूँ कि अभी मैंने गीत गाये कहाँ हैं ,अभी तो साज को ठीक –ठाक किया हूँ ऑर विदा का क्षण आ गया । मरने की उम्र में रवीन्द्रनाथ कहते हैं कि अभी मैंने गीत गाया नहीं हूँ, अभी बहुत सा गीत गाना बाकी है ,बहुत कुछ सीखना है ,बहुत कुछ करना है । यही सीखने की आदत मनुष्य को जवान बनाती है । चाहे वह शरीर की अवस्था जो हो ,लेकिन हमेशा सीखने को तत्पर ,कुछ जानने के लिए उत्साहित ,कुछ कर गुजरने की हिम्मत ,कुछ पाने की आशा मानव को नवचित्त का निर्माण करती है। 

जब हम जीवन की कठिनाई में होते हैं ,संघर्षो के बाद एक नया जीवन का अनुभव होता है ऑर उन हालातों से बाहर निकलते हैं, तो मन एकदम नयी ऊर्जा से भर जाता है । ऑर अगर हम कठिन हालातों से निकालना नहीं सीखते हैं ,ऑर यह मान लेते हैं कि यह हमारे वश की बात नहीं है , यही मेरी नियति है ,तो जीवन निराशा से भर जाता है  जो मन से जवान है ,वह पार हो जाता है ,हम हालातों को जान लेते हैं ,उससे पार हो ही जाते हैं ,लेकिन जानने या उससे लड़ने से पहले हम जानना बंद कर देते हैं । हम अपनी मन ,बुद्धि ठप कर देते हैं ,मन से नया कुछ करने की कोशिश नहीं करते हैं ,मन को ताजा करने के बारे में नहीं सोचते हैं बल्कि सिर्फ संग्रह बढ़ाते चले जाते हैं । ऑर वह संग्रह ज्ञान की ,शास्त्र की,सिद्धांतों की ,परम्पराओं की , किताबें की,जो की सभी दिमाग एवं मन में भरता जाता है । ऑर नया सीखने की लालसा से वंचित हो जाते हैं । 
       
हमें चाहिए मन को युवा रखें ,कुछ नया सीखें ,कुछ नयी खोज ,नयी बातें सीखने की ,जानने की ,चाहे हालात जो भी हो मन को सीखने की इच्छा से तैयार रखना चाहिए । यही मन शांत होता है ,यही मन नया होता है ,नवीन होता है । ऑर विपरीत परिस्थितियों से जूझने के लिए तैयार होता है । चाहे उम्र कोई भी हो ,हालात कैसी भी हो ,मन जवान ,नयी ऊर्जा से सरावोर ही जीवन में कुछ कर गुजरने के लिए तत्पर होता है । 
                                    जे आर पाठक (लेखक )जल्द प्रकाशित मेरी पुस्तक –‘चंचला ‘






- ज्योति रंजन पाठक 
शिक्षा – बी .कॉम (प्रतिष्ठा )
पिता –श्री बृंदावन बिहारी पाठक 
संपर्क नं -8434768823
वर्तमान पता –रांची (झारखंड )

COMMENTS

Leave a Reply: 3
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका