जवाहरलाल नेहरू की विरासत

SHARE:

जवाहरलाल नेहरू की विरासत विरासत एक सतत जीवंत प्रक्रियामय अवधारणा है, जो व्यक्ति से लेकर परिवार और राष्ट्र तक प्राकृतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक स्तरों

जवाहरलाल नेहरू की विरासत


विरासत एक सतत जीवंत प्रक्रियामय अवधारणा है, जो व्यक्ति से लेकर परिवार और राष्ट्र तक प्राकृतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक स्तरों पर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होती रहती है। अतः विरासतों के मायनों को समझना और उनका संरक्षण सम्बद्ध जनों का उत्तरदायित्व होता है। जब विरासत हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की हो, तब तो उस संरक्षण में राष्ट्रीयता के भावों और संवेदनाओं का समावेश स्वाभाविक है। बचपन से ही घरों में उसके बाद शालाओं में पंडित नेहरु के व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में इतना कुछ सुना, देखा और पढ़ा जाता है कि उनकी विरासत में भारत का हर बच्चा अपनापन अनुभव करता है। 

मेरी दृष्टि में नेहरु की सबसे बड़ी विरासत उनकी सोच और दृष्टिकोण हैं, जो उनके कार्यों और किताबों के रुप में सदा के लिए अमर हो गए हैं। ये उनकी वे विरासतें हैं, जिनको भौतिकतौर पर कोई विनष्ट करना भी चाहे तो उनको प्रेम करने वाले लोगों के हृदयों से मिटाना असम्भव है। उनका प्रत्येक कृत्य नदी, सागर, भूमि, पर्वत, पठार, जीव-जंतु, मौसम, खनिज आदि की भांति मानो हर भारतीय के लिए प्राकृतिक विरासतों से कम नहीं हैं। वहीं उनकी प्रत्येक कृति और उनमें विद्यमान उनका ज्ञान किसी सांस्कृतिक विरासत की मानिंद सभी भारतीयों को उनके पाण्डित्य, कौशल एवं कलात्मक प्रतिभा को विरासतों के रुप में संजोए रखने को प्रेरित करती हैं। उनकी लिखी किताबों में से 'डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया' अर्थात् भारत की खोज और 'ग्लिम्पसेस ऑफ़ द वर्ल्ड हिस्ट्री' अर्थात् विश्व इतिहास की झलक दो अदभुत कृतियां हैं।

इन किताबों को लिखने के साथ साथ देश की हर वो इमारत, भवन, पथ, गलियारे, बाग-बगीचे जो आज भी नेहरु के चलने, बैठने, बतियाने, विभिन्न छोटे-बड़े विमर्शों को स्वयं में संवेदनाओं की तरह संजोए हुए हैं, उनमें नेहरु आज भी पुरातात्विक विरासत के रुप में अनुभव किए जा सकते हैं। नेहरु के विचार, जीवनयापन और काम करने की शैली, राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय परम्पराओं, धर्मों, दर्शन, रीती-रिवाज़, गीत-संगीत, नृत्य आदि प्रत्येक क्षेत्र में नेहरु स्वयं भारत को एक वरदान के रुप में मिली अमूर्त सांस्कृतिक विरासत हैं। अतः यह कहना अतिश्योक्ति न होगा कि पंडित नेहरु अपनेआप में एक ऐसी समग्र संस्था थे, जो अपनी पुस्तकों के माध्यम से देश के बच्चे बच्चे को हमारे देश के बहु-सांस्‍कृतिक भण्‍डार, बहु-सभ्यताई आधार और विश्‍वविख्‍यात विरासत के तीन हजार से अधिक वर्षों की जानकारी सतत् अनुस्‍मारक के रूप में प्रदान कर गए हैं। उनकी दी गईं ये विरासतें निःसंदेह देश की राष्‍ट्रीयता का सच्‍चा दर्शन कराती हैं।
जवाहरलाल नेहरू
जवाहरलाल नेहरू 

पंडित नेहरु ने सन् 1928 में जब अपनी दस वर्षीय प्रिय पुत्री इंदिरा को एक पिता के कर्तव्य निर्वहन हेतु क्षुद्रजीवों से लेकर सौरमण्डल तक जीवन की सूक्ष्म से स्थूल यथार्थताओं को पत्रों के रुप में लिखना शुरु किया, तभी से वे पत्र भारत के सभी नोनिहालों के लिए विरासत की नींव डालने लगे थे। पंडित नेहरु की अंग्रेजी में लिखी और मुंशी प्रेमचंद द्वारा अनुदित पिता के पत्र पुत्री के नाम नामक पुस्तक नेहरु को सही मायनों में हर भारतीय बच्चे का रिश्ते में चाचा बनाती सी प्रतीत होती है। वे एक ऐसे चाचा साबित होते हैं जो देश के प्रत्येक बेटे-बेटी को अपने इन पत्रों के माध्यम से पृथ्वी के अस्तित्व में आने और उस पर लाखों वर्ष पहले मानव सभ्यता द्वारा इतिहास रचने की गाथा बड़ी ही रोचकता से बतलाते हैं। निःसंदेह  नेहरु की यह अप्रतिम विरासत बच्चों में देश-दुनिया के सरोकारों के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करती है। 

इस पुस्तक को पढ़ते हुए मानो सभी को उन पत्रों में अपने वे पिता नजर आने लग जाते हैं, जिनको वो इसी रुप में देखना और अनुभूत करना चाहते हैं। यही कारण है कि नेहरु के जाने के इतने बरसों बाद वे विदेह होकर भी साकार हैं। वे मेधा की अहमियत को बतलाते हुए जब यह कहते हैं कि बुद्धि ही व्यक्ति को अन्य जंतुओं से अलग करती है। बिना समझ के मनुष्य और जानवर में कोई अंतर नहीं है। वे शिक्षा देते हैं कि हर व्यक्ति, समाज, देश और पूरी दुनिया को प्रयास करना चाहिए कि सम्पूर्ण जगत चैन से रह सके। वे समझाते हैं कि जब दो बड़े-बड़े राष्ट्र आपस में लड़ने लगें और लाखों लोगों को अपने निजी स्वार्थों के लिए बलि चढ़ाने लगें तो यह निरा पागलपन के और कुछ नहीं है। सबकी भलाई के लिए एक साथ मिलकर काम करना सबसे अच्छी बात है। नेहरु के मानवता को लेकर ये आदर्श ऐसी महान विरासत के परिचायक हैं, जो उनको अनन्य बनाते हैं।

भारत के इस अद्भुत रत्न का जन्म 14 नवम्बर 1889 ई. को पं. मोतीलाल नेहरू और श्रीमती स्वरूप रानी के एकमात्र पुत्र के रुप में हुआ था। समृद्ध भारतीय परिवार के इस असाधारण पुत्र का लालन पोषण भी अद्वितीय ढंग से हुआ था। प्रारम्भ में घर पर उसके पश्चात् इंग्लैण्ड के हैरो स्कूल और फिर केंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज तक का नेहरु का विद्यार्जनकाल उनके पाण्डित्य की कहानी कहता है। इस पूरे कालखण्ड के दौरान नेहरु ने अंग्रेजी, हिन्दी, संस्कृत सहित कई विदेशी भाषाओं के साथ साथ रसायनशास्त्र, भूगर्भशास्त्र और वनस्पति शास्त्र जैसे विज्ञान के विषयों के अलावा राजनीतिशास्त्र और कानून का भी अध्ययन किया। सन् 1912 में बैरिस्टर बनकर आए जवाहरलाल नेहरु ने अपने पहले पेशे के तौर पर इलाहाबाद में वकालत प्रारम्भ की। लेकिन देशभक्त नेहरु जैसे व्यक्तित्व को कोई भी व्यावसायिकता अधिक समय तक बांधे नहीं रख सकती थी। फलतः सन् 1916  में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में पहली बार महात्मा गाँधी के सम्पर्क में आने के बाद नेहरु भारतीय राजनीति के सागर में उतरने लगे थे। तदंतर वे अपने राजनीतिक आदर्शों के बल पर भारतीय राजनीति में अग्रदूत बनकर स्वयं राजनीति के समुद्र बन गए। एक ऐसा धीर गम्भीर और पाण्डित्य से परिपूर्ण महासागर जिसकी गोद में 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुए भारत ने स्वयं को सुरक्षित और संरक्षित अनुभव किया। और बना दिया नेहरु को स्वतंत्र भारत का प्रथम प्रधानमंत्री, जिसने देश की राजनीतिक व्यवस्था को समृद्ध और सुदृढ़ बनाने के लिए पंचवर्षीय योजनाओं के तहत भारत की नींव में लोकतांत्रिक संस्थाओं के निर्माण, भारतीय धर्मनिरपेक्षता, समाजवादी आर्थिक व्यवस्था, पंचशील सिद्धांत और गुटनिरपेक्षता की विदेश नीति जैसे लौह लोकतांत्रिक मूल्यों को भरा। 

भारत में स्वतंत्रता के बाद पहली बार सन् 1952 में चुनाव हुए जिसमें 17 करोड़ से अधिक लोगों ने मतदान दिया था। वहीं नेहरु के एकता, भाईचारे और शांतिप्रियता के आदर्शों के साथ मिलकर सरदार पटैल के नेतृत्व में 560 रियासतें बिना खूनखराबे के भारत संघ में विलीन होकर अखण्ड भारत बनीं। भारत को स्वतंत्रता के समय 32 लाइनों सहित कुल 42 अलग– अलग रेलवे प्रणालियों वाला करीब 33,000 किमी में फैला पुराना रेल– नेटवर्क विरासत में मिला था। इनका स्वामित्व भूतपूर्व भारतीय रियासतों के प्रमुखों के पास हुआ करता था। वर्ष 1951 में इनका भी राष्ट्रीयकरण किया गया और भारतीय रेलवे दुनिया का सबसे बड़ा नेटवर्क बना। वर्तमान में इसमें 68,312 किमी मार्ग पर 115,000 किमी का ट्रैक और 7,112 स्टेशन हैं। वर्ष 1953 में इंडियन एयरलाइन्स की स्थापना की गई थी। इसके साथ ही पंडित नेहरु ने अपनी अद्भुत राजनीतिक प्रवीणता के बल पर देश में सड़कों, बंदरगाहों, भाखड़ा नांगल बाँध, रिहंद बाँध, भिलाई, बोकारो इस्पात कारख़ाना आदि का निर्माण करवाकर एवं खाद्यान्न के उत्पादन में आत्मनिर्भर बना कर देश की अर्थव्यवस्था को विकास के उच्च मार्ग पर लाने की दिशा में अभूतपूर्व कार्य किए। साथ ही भारत को विश्व की सैन्यशक्ति बनाने में नेहरु की विरासत में मिले इसरो, डीआरडीओ और कई अहम संस्थान का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 

पंडित नेहरु की सबसे महत्वपूर्ण विरासत उनके द्वारा सौंपी गई भारत की शैक्षिक समृद्धता है। भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् सबसे बड़ी आवश्यकता देश को आर्थिक और सामाजिक रूप से समृद्ध बनाना थी और इसके लिए पंडित नेहरु ने शिक्षा के आधारभूत ढांचे का निर्माण किया। इसके अन्तर्गत प्राथमिक विद्यालयों से लेकर बड़े बड़े विश्वविद्यालयों और युवाओं को तकनीकी रूप से सक्षम बनाने के‌ लिए आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थानों की स्‍थापना की गई। वर्ष 1951 में पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में पहले आईआईटी के बाद से लगातार 1958 में आईआईटी बांबे, 1959 में आईआईटी कानपुर और आईआईटी मद्रास, 1961 में आईआईटी दिल्‍ली की स्‍थापना की गई। आईआईटी के महत्व को समझते हुए नेहरु सरकार ने 1961 में संसद में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एक्ट-1961 पेश किया जिसके कारण देश में आईआईटी को कानूनी अधिकार प्रदान करते हुए उसे स्वायत्ता दी गई। 

पंडित नेहरु की वैज्ञानिक सोच ने परमाणु ऊर्जा को भारतीय विद्युत उत्पादन एवं आपूर्ति के क्षेत्र में एक निश्चित एवं निर्णायक भूमिका समझा। उन्होंने 1948 ई. में परमाणु ऊर्जा कमीशन बनाकर परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्वक ढंग से उपयोग में लाने हेतु नीतियां निर्धारित कीं और इनको निष्पादित करने के लिए 1954 ई. में परमाणु ऊर्जा विभाग भी गठित किया। आज के हमारे पाँच परमाणु अनुसंधान केंद्र भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र, मुंबई, इंदिरा गाँधी परमाणु अनुसंधान केंद्र, कलपक्कम, उन्नत तकनीकी केंद्र, इंदौर, वेरिएबल एनर्जी साइक्लोट्रॉन केंद्र,  कोलकाता एवम् परमाणु ऊर्जा विभाग के सात राष्ट्रीय स्वायत्त संस्थान टाटा फंडामेंटल अनुसंधान संस्थान, मुम्बई, टाटा स्मारक केंद्र, मुंबई, साहा नाभिकीय भौतिकी संस्थान, कोलकाता, भौतिकी सँस्थान, भुवनेश्वर, हरिश्चंद्र अनुसंधान संस्थान, इलाहाबाद, गणितीय विज्ञान संस्थान, चेन्नई और प्लाज़्मा अनुसंधान संस्थान, अहमदाबाद नेहरु की वैज्ञानिक सोच की जीवंत विरासत हैं। 

एक सिद्धांत वास्तविकता के साथ संतुलित किया जाना चाहिए, या फिर नागरिकता देश की सेवा में होती हैं अथवा संस्कृति मन और आत्मा का विस्तार है, जैसे अनगिनत अनमोल विचार भी पंडित नेहरु की अमूल्य विरासत से कम नहीं हैं। पंडित जवाहर लाल नेहरू की अद्भुक्त वाणी, उत्कृष्ट लेखन, इतिहासपटुता और स्वप्नदृष्टि ने विरासतों के तौर पर आधुनिक भारत को निर्मित किया है। देश के सबसे अधिक समय यानी 17 वर्षों तक प्रधानमंत्री रहे पंडित नेहरु ने विरासत के तौर पर देशवासियों को आधुनिक भारत और सुदृढ़ लोकतंत्र दिया है। पंडित नेहरु अपनी पीढ़ी के वे महानतम व्यक्ति और अद्वितीय राजनीतिज्ञ थे, जिनकी आधुनिक भारत के निर्माण हेतु दी गईं सेवाएं और विरासतें चिरस्मरणीय रहेंगी।




- डॉ. शुभ्रता मिश्रा, गोवा
ईमेल- shubhrataravi@gmail.com
मोबाइल- 8975245042

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका